Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 185
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुत्रम् ॥६०६॥ ममाणे कई छ त्रीसंगमां दुख छ, माटे संग न करवो. बळी ते त्यागवानो उपाय बतावे छे. आचा०४ 'स' ते स्त्रीसंगनो त्यागी मुनि स्त्रीना कपडांनी, वेषनी तथा शणगारनी कथा न करे, आ प्रमाणे ते त्यजाय छे, तथा तेमने नरकमां लइजनारी तथा स्वर्गमोक्षमां विघ्नरूप अर्गला जेवी जाणीने ते स्त्रीनां अंगउपांगने न देखे, कारण के स्त्रीभोने देखता तेना ॥६०६॥ कटाक्षो महान अनर्थने माटे थाय छे. का छे के: सन्मागें तावदास्ते प्रभवति पुरुषस्तावदेवेन्द्रियाणां, लज्जा तावद्विधत्ते विनयमपि समालम्बते तावदेव ॥ भूचापाकृष्टमुक्ताः श्रवणपथजुषो नीलपक्ष्माण एते, यावल्लीलावतीनां न हृदि धृतिमुषो दृष्टिबाणाः पतन्ति ।। का नीतिकार कहे के के पुरुष सन्मार्गमा इन्द्रियोंने राखवा त्यां सुधीज समर्थ पाय छे, तथा त्यां मुधीज लज्जा छे, तथा विनय पण त्यां सुधीज छे, के लीलावती (सुंदर स्त्री) ना कानना छेडा मुधीखेंचाइने नीली पांखोवाला पापणना चापबडे खेंचीने छोडेला (कटालो) पुरुषना हृदयनी धीरजने चोरनारा दृष्टिवाणो त्या सुधी न पडे. तथा ते स्त्रीओने नरकनी आपनारी जाणीने तेनी सायेद IPIसंमसारण (खानगी वात) पोतानी सगी बेन विगेरे पण न करचु. कयु के के मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा, न विविक्तासनो भवेत् । बलवानिद्रियग्रामः पंडितोऽप्यत्र मुह्यति ॥१॥ ____ माता बेन के दीकरी पोतानी होयः तेनी साथे पण एकान्तमा न बेसे कारण के इन्द्रियोनुं प्रबळ क्यारे छे जेमां, पंडित पण मोह पामे छे ! आई जाणीने स्वार्थमा तत्पर स्वीओमां ममत्व न करवो; तथा ते स्त्रीने मोइ करनारी मंडन विगेरेनी क्रिया पोते न सब- वासन For Private and Personal Use Only

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