Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 175
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा०13 सूत्रम् ॥५९६॥ CCC वयसावि एगे वुइया कुप्पंति माणवा, उन्नयमाणेय नरे महया मोहेण मुज्झइ, संवाहा बहवे. भुजो २ दुरइकम्मा अजाणओ अपासओ, एयं ते मा होउ, एयं कुसलस्स देसणं तद्दिट्टीए तम्मुत्तीए तप्पुरकारे तस्सन्नी तन्निवेसणे जय विहारी चित्त निवाई पंथनिज्झाई पलि बाहिरे. ॥५९६॥ पासिय पाणे गच्छिज्जा ॥ सू० १५७ ॥ कोइ बखत तप संयमनां अनुष्ठान विगेरेमा खेद आवतां; अथवा, प्रमादथी भूलतां गुरु विगेरेए धर्मना कारणे वचनथी पण | ठपको आफ्तां परमार्थने नहीं जाणनारा केटलाक साधुओ क्रोधायमान थाय छे, अने बोले के के, "आ गुरुए मने आटलावधा साधुओ बच्चे उपको आप्यो. में | गुनोह को हतो ? अथवा, आ बीजा पण तेवी भूल करनारा छे. मने पण एटलोज अधिकार छे. तेथी मारा जीवितने पण धिक्कार हो! विगेरे विचारतो महामोहना उदयवडे क्रोधरूप-अंधारावडे कायली चक्षुबाला तेश्रो साधुनोd (भांतिरूप)-समुचित आचार छोडीने बन्ने प्रकारे ज्ञानथी तथा, क्यथी अशक्त बनेला जेम, समुद्रमांथी बहार जतां माछलु नाश पामे तेम गच्छमाथी नीकळीने तेओ एकला फरतां धर्मभ्रष्ट थाय छे, अथवा कोइ माणस वचनथी एम कहे के: "आमाथामां लोच करावेला मेलथी शरीर गंधातावाळा प्रगत अवसरे (दहाडो चडेज) आपणे देखवा. (अर्थात आ अपशुकन रथया के सामा मळ्या.) आq बोलतांज केटलाक साधु क्रोधथी अंधा बनी जाय छे, अथवा कोइनो स्पर्श थाय; तोपण, कोपायमान AAR For Private and Personal Use Only

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