Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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संयम तरफ छे. ते दिशा, अने ते सिवायनी बीजी विदिशा छे, तेमांची मकर्षे तरेलो से विदी प्रतीर्ण छे, अने एवो होय ते आरंभ रहित बने, कुमार्गनो परित्याग करवाथी ते पापारंभनो अन्वेषी न होय, बळी चरण ते चार छे, अने ते 'अनुष्ठान छे. निर्वि ष्णनुं अनुष्ठान करे ते निर्विण्णचारी छे, क्यांथी होय? ते कहे छे. 'प्रजास्वरतः' वारंवार जन्मे ते प्रजा (भाणी भो) तेमां अरत होष, पटले तेना आरंभी निवृत्त होय, अथवा ममत्व विनानो होय, अने शरीर विगेरेमां पण जे ममत्त रहित होय ते निर्विण्णचारीज होय छे, अथवा प्रजा (स्त्रीओ) तेमां अरक्त होय ते आरंभमां पण निर्वेद (मोहरहित) होय, कारण के कारणना अभावमां कार्यनो पण अभावज होय छे, अने जे प्रजामां अरक्त अने आरंभरहित छे, ते केवो होय ? ते कहे छे:
से वसुमं सहसमन्नागयपन्नाणेणं अप्पाणेणं अकरणिजं पावकम्मं तं नो अन्नेसी, जं संमंति पासहा तं मोणंति पासहा जं मोणंति पासहा तं संमेति पासहा, न इमं सक्कं सिढिलेहि अजिमाणेहिं गुणासाएहिं बँकसमायारेहिं पमत्तेहिं गारमात्रसंतेहिं, मुणी मोणं समायाए धुणे सरीरगं, पंतं लूहं सेवंति वीरा सम्मतदंसिणो, एस ओहंतरे मुणी, तिष्णे मुत्ते विरए विग्राहिए तिमि ॥ सू० १५५ ॥ लोकसारेतृतीयोदेशकः ॥ ५-३ ॥
सुते द्रव्य छे, अने अहीं तेनो अर्थ संयम छे, ते जेने होय ते निवृत्तारंभवाळो छे. अने ते मुनि वसुवाळो छे, तथा जे
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सूत्रम् ॥५९८॥

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