Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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सावध व्यापारवाळां होबाथी पूर्वोत्थायी नथी, तेम दीक्षाना अभावथी पश्चात् निपाता पण नयी तेथी ते गृहस्थ समानज छे, कारण
के ते बन्नेमा आस्रवद्वारोनुं रोकण नथी, अथवा उदायी राजाने मारनारा विनय रत्न साधु जेवो कपटी चोथे भांगे छे. तेज प्रमाणे आचा
सूत्रम् बीजा पण जेओ सावध अनुष्ठान करनारा छे. ते पण तेबाज छे, ते बतावे छे. जेओ स्वयूथ्या (जैन मतना) पासत्था (पतित साधु विगेरे बन्ने प्रकारनी परित्नावडे लोकस्वरूपने जाणी (व्रत समजीने लेइने) पाछा रांधवा रंधाववा माटे तेज लोक (गृहस्थो)ने ५४२॥
आश्रये रहे छे, अथवा गृहस्थने शोधेछ ( तेना उपर ममल करी आधाकर्मी आहार ले छे.) तेओ पण गृहस्थ सरखाज जाणवा, Mआ पोतानी बुद्धिथी नहीं पण शाखकारर्नु वचन छे, ते बताये :
एयं नियाय मुणिणा पवेइयं, इह आणाकंखी पंडिए अणिहे, पुबावरण यंजयमाणे, सया सोलं सुपेहाए सुणिया भवे अकामे अझंझे, इमेण चेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ? ॥ सू० १५३ ॥
एतद्-जे उत्थान निपात विगेरे पूर्वे वताव्यु, ते केवळ ज्ञानना अवलोकनवहे जाणीने तीर्थकरे कछु दे, अने आ बीजु कयु | K, 'इह' आ मौनींद्र प्रवचनमा रहेल्लो तथा तीर्थकरना उपदेशने सांभळवानी इच्छाबालो ते, आझाकांक्षी आगमना अनुसारे प्रवृत्ति &
करनारो छे. मा-कोण एवो छे ? उ:-सद्-असना विवेकने जाणनारो तथा नेहरहित रागद्वेषथी पमुक्त रातदिवस गुरुनी आज्ञामां ४ रहेनारो यबचालो थाय; ते बतावे छे. रात्रिना पहेला पहोरे तथा छेला पहोरे सदाचारथी वर्ते; अने वचला चे पहोरमां यथोक्तविघिए निद्रा ले, अने वैरात्रादिक (सूत्रार्थ-चिंखन) करे, आ प्रमाणे रात्रिनी यत्ना बतावथी दिवसर्नु पण समजी ले, कारणके, &
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