Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 131
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥५५२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चऊणं संकपयं, सारपयमिणं दढेण धित्त । अस्थि जिओ परमपयं, जयणा जा रागदोसेहिं ॥ २४३ ॥ प्रथम शंका छोडी दे, अमारा करेला तप विगेरेनुं फल मोक्ष आपशे के नहि, एवो विकल्प ते शंका छे, ते शंकानुं पद ते निमित्तकारण छे, जेमके जिनेश्वरे कहेला इन्द्रियोथी न जणाय, एवा झीणा विषयो होवाथी ते फक्त आगम प्रमाणे मानवा जोइए, तेमां न समजतां संदेह थाय तो पण ते छोडीने आ ज्ञानादिक सार जे पूर्वे बतावेल छे, तेने दृढ पणे (स्थिरचित्ते ) कुमार्गे चालनाराओथी उगाया बिना निश्चलपणे मानवां, तथा पाळवां, ते शंका दूर करवा गथाना पाछला वे पदमां क ले के जीव छे, आम प्रथम जीवने बधा पदार्थमां प्रथम लेवाथी अने जीवप्रधान होवाथी बीजा अजीव विगेरे पदार्थों पण जाणी लेवा, ( के बधा पदार्थो विद्यमान छे ) तथा जीव वाळो ( शरीरधारी के बिना शरीरनो ) जीव जीवे छे, तथा जीवशे तथा ते संसारी जीव शुभ अशुभ कर्मना फलने भोगवनारो, अने ते 'हुं पोते' एम प्रत्यक्ष साध्य छे, अथवा तेने थती इच्छा द्वेष प्रयत्न विगेरे कादोना अनुमानथी पण साध्य के, तेज प्रमाणे अजीवो पण धर्म अधर्म आकाश पुद्गलने गति, स्थिति, अवगाह आपवाना; तथा वे अणु विगेरे स्कंधना हेतुरूप छे. तेथी, पांच द्रव्यसिद्ध थयां, ए प्रमाणे आस्रव-संवर बंध निर्जरा पण विद्यमान छे. कारणके, पुरुषा धानपणे छे. आ पदार्थमां आदिजीव अने अंते मोक्ष ग्रहण करवाथी वचला पदार्थों आवी जाय छे. एटले जीव तो सूत्रमां साक्षात् छे, अने मोक्ष हवे पछी बतावे छे के, परम तेज पद ते, परमपद छे. एम जाणवुं के, मोक्ष शुद्धपद कहेवानुं होवाथी विधमान छे. कारण के, ते बंधथी विरुद्धपक्षमां छे, अथवा बंधनी साथै अविनाभाविपणे छे. ( एटले बंध त्यारेज कहेवाय के कोइपण For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥५५२॥

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