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आचा०
॥५७४ ॥
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एम क, अथवा तेज जन्ममां वधा (आठे) कर्मनो क्षय थवाथी तेने नरकादि मार्ग नथी. प्रश्नः - कोने ! उ:-जे हिंसा विगेरे आश्रव द्वारोथी निवृत्त छे, तेने संसार भ्रमण नथी. आ प्रमाणे सुधर्मास्वामी कहे छे के हुं मारी स्वकल्मनाथी नथी कहेतो पण जे वीर वर्धमानस्वामीए दिव्य ज्ञानवडे जाणीने वचनथी कहुं ते हुं तमने कहुं हुं आ प्रमाणे विरत ते मुनि छे, एम कनुं, हवे अविरतवादी ते परिग्रहवाको छे, एम पूर्वे कहेलुं, ते सिद्ध करे छेः
आवंति केयावंती लोगंसि परिग्गहावंती, से अप्पं वाबहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा एएस चेत्र परिग्गहावंती, एतदेव एगेसिं महन्भयं भवइ, लोग वित्तं चणं उवेहाए, एएसंगे अवियाणओ ( सू० १४९ )
जे कोई मनुष्यो आलोकमां परिग्रहयुक्त छे तेमनी पासे आवी रीतनो परिग्रह छे, 'से अध्यं वा' जे परिग्रहाय (लेवाय) ते परिग्रह छे ते अल्प (थोडो) होय, जेम छोकराने रमावानी फोडीओ, विगेरे अथवा धनधान्य, सोनुं, गाम, देश, विगेरे घणो परिग्रह होय; अथवा तृण, लाकडुं विगेरे मूल्यथी अणुं ( ओछी किंमतनुं ) होय; अथवा प्रमाण ( कदमां) नानुं वज्र (हीरो) विगेरे होय; अथवा मूल्यथी तथा प्रमाणथी स्थूळ ( मोटु ) हाथी घोडा विगेरे होयः अने आ वस्तुओ सचित अथवा अचित्त होय. आ बतावेला परिग्रहवडे परिग्रहवाळा वनीने ए परिग्रह राखनारा गृहस्थीओ साथेज वेषधारी साधुओ रहेनारा होय. (जेमके गृहस्थनुं घर अने वेषधारी मठ के स्वमालिकीनो उपाश्रय तथा गृहस्थाने धन तेम वेषधारीनुं द्रव्य, तथा गृहस्थने नोकर-चाकरने बेटा-बेटीनो
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सूत्रम् ॥५७४॥