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18 कूळ आहारना भोजनथी धृति उपष्टभ विगेरेमा औदारिकभरीर वर्गणाना परमाणुना उपचपथी चय तथा घटवाथी अपचय छे एवा8
सूत्रम् &धर्मवाळ होवाथी अयापचयिक छ, एयीज विविध परिणामवाळु छे, तेथी ते विपरिणाम धर्मवाळू छे, जो आवी रीते शरीर नाश॥५७३॥ त छे, तो ते शरीर उपर शुं अनुबन्ध (पमत) होय ? अने कइ रीते मूर्ण होय? तेथी आ शरीरवडे कुशल (धर्म) अनुष्ठान विना
बीजी कोई पण रीते सफलता नथी ते कहे छ:__पासह आ रुपसंधि (योग्य अवसर) ने जुओ ! के नाशवंत धर्मथी घेरायलं आ औदारिक शरीर छे, तेमां पांचे इन्द्रियोनी संपूर्ण शक्तिना लाभनो अवसर छे, अने ते देखीने जुदा जुदा रोगोथी उत्पन्न ययेला स्पर्शोना दुःखनो उत्तम साधु सहन करे, आM प्रमाणे (हृदयचक्षुथी) देखनारने | याये, ते कहे छ
समुप्पेह माणस इकाययणरयस्स इह विप्प मुक्कस्स नस्थि मग्गे विरयम्स तिबेमि (सू. १४८)
सारी रीते देखाताने आ भेदुर धर्मवाळ शरीर छे, एवं विचारतो तेने मार्ग नथी. अर्थात् चार गतिमा भ्रमण नथी. ते कहे Kछे. एटले आ आत्मने बधा पापारंभोथी मर्यादामां लेबाय (कबजे रखाय) अथवा कुशल (धर्म) अनुष्ठानमा उग्रमवाळो कराय, तो
ते आयतन कहेवाय अने ते शानदर्शन चारित्र ए त्रणमा एक रुपे होय तो ते एकायतन छे, अने तेमां रमणता करे तो आत्मा 8 अकायतनरत छे, तेवा निस्पृही ज्ञानी मुनि 'इह' आ भरीर अथवा आ जन्ममा विविध उत्तम भावनाभोवडे शरीरना अनुसन्धथी
मुकाय ते विममुक्त छे, तेने नरकतिर्यच मनुष्य गतिमा भ्रमण नथी, तेमज वर्तमानकाळ नताववाथी भविष्यमा पण भ्रमण नथील
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