Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 149
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आची सूत्रम् ॥५ ॥ ॥५७०॥ याय तो अवश्ये कार्य भेद थाय छे, तेथी पूर्व कहेलुं फरीयाद करवावीने कहे हे, 'पुढो' दुःखना उपादानना भेदथी पाणीोर्नु दुःख पण जुएं जुएं बताव्युं कारण के बघा प्राणीओने पोताना करेलां कर्म भोगववामा इश्वर (समर्थ)पणुं छे, पण बीजार्नु करेलुं पोते न भोगवे आधु मानीने भुं करे ? ते कहे हे, से-ते अनारंभ जीवी साधु प्रत्येक प्राणीना सुख दुःखना अध्यवसायने जाणनोरो जुदा जुदा उपायो वडे प्राणीभोनी हिंसा न करतो तथा जुळु न बोलतो, (संयम पाळे) तेम तुं पण जो (मूत्रमा प्राकृतना अथवा आप वचनथी 'पश्य'नो लोप थयो छे. ए प्रमाणे पर स्वमां पण ज्यांपद न लीधुं होय त्यां लेबु) आवीरीते जीवहिंसा न करनारो बीजु शुं करे ते कहे छे, पुट्ठो-ते पांच महाव्रतमा स्थिर रहीने जे प्रमाणे संयम पाळयानी प्रतिज्ञा लीधी . ते प्रमाणे पाळवामा उद्यम करे, अने परिसह उपसर्गो आवतां तेनाथी यता शीत उष्ण विगेरे स्पर्श अथवा दुःखना स्पर्श आये तेने सहन करी आकुल न थाय पण संसार असार छे विगेरे जुदी जुदी भावनाओवडे (धर्ममां) प्रेरे, अने प्रेरणा ते सम्यक्प्रकारे सहे. पण ते दुःख पडवाथी आत्माने दुःखी न मानवो. (व्याकुल न थर्बु) पण जे समभावे रही परीषहोने सहे, तेने शुं गुणो थाय, ते कहे छे: एस समिया परियाए वियाहिए, जे असत्ता पावहिं कम्मेहिं उदाह ते आयंका फुसंति, इति उदाह धीरे ते फासे पुट्ठो अहिया सइ, से पुर्वि पेयं पच्छा पेयं भेउरधम्मविद्धंसगंधम्ममधुवं अणिइयं असासयं चयावचइयं विपरिणामधम्म, पासह एवं रूवसंधि (मू० १४७) पूर्वे कहेलो जे परीपहोनो प्रणोदक [सहेनारो] सम्मक् अथवा शमिता शमना भाववाळो पर्याय ते चारित्रने ग्रहण करीने सम्यक CL4 For Private and Personal Use Only

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