Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 136
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥५५७॥ सपापस्थानने ते बाल जीव करे छ, (आत्मनेपद क्रियापद छेवाथी पोताने माटे ते करे ,) नेनु कळ बतावे थे, क्रूर कर्मना विषा-16 आचाकथी मेळवेला दुःखबहे शें करवं? एम विचारमा मढ बनेलो क्या कृत्यथी मारूं आ दःख दर थशे, एम मोहथी मोहित धयेलो विप- होस (उलटो रस्तो) पामे छे, एटले ते मृद जे पाणीनी घात विगेरे पापकृत्यो जे दुःख मळयानां कारणो छे, तेज हिंसाना कृत्य ॥५५॥ दर करवा माटे फरी करे छे! बळी 'मोहेण' मोह अज्ञान छे, अथवा मोहनीयकर्म के, ते मिध्यान कपाय विषयनो अमिलापरुप छे, तेना बहे मूढ थयेलो नवां अशुभ कर्म बांधे छे, तेनाथी गर्भमां जाय छ, पछी जन्म वालावस्थ कुमार यवन बुढापो विगेरे तेने मळे के बळी ते विषय कपाय विगेरेथी कर्म नवां बांधीने आयुना क्षयथी मरण पामे छे, आदि शब्दथी पाछो गर्भ जन्म विगेरे 1 मेळवे, एम जाणवू. पछी ते नरक विगेरेनां दुःख पामे छे, ते कहे छे. 'पत्य' उपर कहेला मोह कार्य ते गर्भ मरण विगेरेमां वारवार अनादि अनंत चार गतिरूप संसार कांतारमा ते जीव भ्रमण करे छे, पण तेनाथी मुक्त यतो नथी, त्यारे केवीरीते भ्रमण न करे ? उत्तरः-मिध्यात कपाय अने विषयना अमिलापथी दूर रहेतो ते केवी रीते दर थाय ? उत्तर:-विशिष्ट ज्ञाननी उत्पतिMथी? प्र-ते केवी रीने मळे ? उ:-पोहना अभावधी ? जो आ प्रमाणे एक बीजाने आश्रये रहेला के, जेमके मोह अज्ञान अथवा मोहनीयकर्म तेनो अभावथी विशिष्ट जान, ते पण मोहनीयकर्म दर पवाथी र प्रमाणे इतर इतर आश्रय दोष खुलोज थाय छे, ? एटले एम थयु के ज्यां सुधी विशिष्ट ज्ञान प्राप्ति न थाय त्यां सुधी कर्म शांत करवानी मचि पण न वाय. उ:-तमारो कहेलो दोष लागतो नथी. कारण के अर्थ (पदार्थ) नो संशय आवतां पण प्रवृत्ति यती देखाय छे, ते मूत्र कहे छ:संसयं परिआणओ संसारे परित्राए भवइ, संसयं अपरियाणओ संसारे अपरिनाए भवइ (सू For Private and Personal Use Only

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