Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 142
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥५६३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चार (ते चर धातुनो अर्थ गति तथा खावाना अर्थमां छे, तेनुं भावमां चार रुप बने छे) तथा चर्या शब्द ( ३-१-१०० ना सूत्र प्रमाणे) बने छे, तेम चरण पण बने छे, एक ते अभिन्न, अर्थ ( समान अर्थ ) बाळा ते एकार्थ कद्देवाय छे. जेना बडे अर्थ प्रगट कराय ते व्यंजन शब्द छे, अर्थात् चार, चर्या अने चरण ए त्रणे शब्द एक अर्थवाळा छे, तेथी तेना जुदा निक्षेपा छ प्रकारे छे, नाम स्थापना मृगमने छोडीने श शरीर भव्य शरीरथी जुदो 'द्रव्य चार' ते अडधी गाथामां बताव्यो छे, 'दव्वं तु' तु शब्दनो अर्थ पुनः छे, द्रव्य आधी रीते थाय छे, दारु (लाकडं) चाले हे, ते जलयां तथा स्थलमां चाले छे, तेथी ते प्रथम कहे छे, ते लाकडं | जलमा स्थलमां अनेक प्रकारे चाले छे, एटले लाकडानो पूल विगेरे पाणीयां बनावे छे, अने स्थलमा खाडा विगेरे ओलंगवा माटे | लाकडां गोटवे छे तेमज जलमां लाकडानी नाववडे चलाय के, जमीन उपर रथ विगेरेथी चलाय छे तेमज आदि शब्दथी ते लाकडं | महेल बनाववा विगेरेमां दादर बनाववामां काम लागे छे, तथा जे जे द्रव्य एक देशथी बीजा देशमां जवा माटे वपराय ते द्रव्य चार छे. हवे क्षेत्र चार विगेरे कहे छे, वित्तं तु जंमि खिते, कालो काले जहिं भवे चारो। भावंमि नाण दंसण, चरणं तु पसत्थ मपसत्थ ॥२४७॥ जे क्षेत्रमा चार (चालवा करीये अथवा जेटलं क्षेत्र चालीए, ते क्षेत्र चार कहेवाय छे, ते प्रमाणे जे कालमां चालीए, अथवा जेटलो काळ चालीए ते काळ चार छे. भावमां चारके चरण चे प्रकारं छे, प्रशस्त चरण अने अप्रशस्त छे. तेमां प्रशस्त चरण ते 'ज्ञान दर्शन अने चारित्र' छे, अने For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥५६३॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190