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आचा० ॥५५५॥
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भोगवां पढे छे ? उत्तर 'गुरुसे० ' विगेरे तत्लने नहीं जाणनारा ते जीवने सुंदर शब्द विगेरे इच्छवा योग्य काम ( विषयो ) दुःखे - करीने छोडवा योग्य के ? कारणके, अल्प मत्ववाळा जेमणे पुण्यनो समूह पूरो नथी कर्यो; तेओने ते उल्लंघनुं दुष्कर छे, तेथी ते कायामां आरंभ करे छे, अने तेथी पाप बंधाय छे, तेथी शृं धाय ते कड़े छे, ते संसारी जीवे छ जीवनिकायने दुःख देवाथी तथा अधिक विषयलालसा करवायी पोते मारे ते आयुष्यनो क्षय ( मरणवश ) ने प्राप्त थाय छे, अने मरेला जीवने जन्म अवश्य थवानो छे, जन्ममां पालुं मरण थवानुं, ए प्रमाणे जन्म मरणरुप संसारसमुद्रमां उपर आवबुं. नीचे जनुं, तेथी जीव छुटतो नथी, पछी बीजुं ते शुं करे छे, ते कहे छे, 'जओ ' विगेरे जेथी ते मृत्युना मध्यमां पडेलो परम पदना उपायो ज्ञान विगेरे रत्नत्रयथी, अथवा | तेनुं कार्य मोक्ष तेथी दूर रहे, अथवा सुखनो अर्थी ते कामने त्यजतो नथी, अने विषय रस न छोडवाथी पाछो मरणना मुखमां जाय छे, तेथी जन्म जरा मरण रोग शोकथी घेरायेलो सुखधी दूर रहे छे, ते अधिक विषय रसीयाने मृत्युना मुखमां पडतां शुं थाय छे ते कहे छेले 'नेवसे,' विगेरे पछी ते विषय सुखना किनारे आवतोज नथी तेनो अभिलाष हृदयमां रहेवाथी काम वासनाने न त्यागवाथी संसारथी दूर नथी थतो, अथवा जेने अधिक विषय आस्वाद के ते कर्मनी अंदर ले के बहार छे ! उत्तर:- 'णेबसे. ' ते जीवकर्मा मध्यमां भिन्नग्रंथी होवाथी नथीज; कारणके, भविष्ययां तेनां कर्म अवश्य क्षय यशे तेम दूर पण नथी; कारणके | कोटी कोटी (कोडा कोडी ) सागरोपममां थोओ एवी तेनी स्थिति छे, पूर्वे कलां कारणोथी चारित्रनी प्राप्तिमांज ते कर्मनी अंदर नथी तेम दूर नथी. एम बोलवु शक्य छे. चारित्र आत्मामां एकवार फरश्युं होय; तो तेनो मोक्ष थाय छे, अथवा जेणे आ | प्राणों लेवारूप कर्म न कर्बु, ते संसारना अन्तर्भूत छे: के बहार वर्ते छे ! तेवी शङ्कानुं समाधान करे छे, ते जीव रक्षक साधुनां
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सूत्रम् ॥५५५॥