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आचा०
॥ ५३४॥
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एक अयश आ नव तथा उपर कहेली ध्रुव बार मळी एकवीस थइ हवे चोवीसनो एक भेद कहे छे:
तिर्यग गति एक एकेन्द्रिय जाति एक औदारिक शरीर एक हुंडसंस्थान एक, उपघात एक प्रत्येक अथवा एक साधारण स्थावर एक सुक्ष्म अथवा एक बादर दुर्भग एक अनादेय एक अपर्याप्त एक यशकीर्ति एक अथवा अयश आ बार तथा उपर बतावेली gait बार मळी चोवीस थइ. ते चोवीचमांथी अपर्याप्त दूर करी पर्याप्तक तथा पराघात १ मेळवतां २५ थइ. अने छत्रीश तो | केवळीने उपर जे बीस कही छे तेमां उदारिक शरीर एक आंगोपांग एक संस्थान एक प्रथम संहनन एक उपघात एक प्रत्येक एक मळी मिश्रकाययोगमा छवीश होय छे. ते छवीशमां तीर्थकरनाम मेळवतां तीर्थंकरने मिश्रकाय योगमां सत्यात्रीस होय छे. तेमां प्रशस्त विहायोगति मेळवतां अट्ठावीस अने ते अदाबीसमांथी तीर्थंकर नाम दूर करी उच्छ्वास एक सुस्वर एक पराघात एक मेळवतां (२७+३) त्रीस थइ तेमांथी सुस्वर ओळी करतां २९ तथा ते ३० मां तीर्थंकर नाम मेळवतां ३१ यह. पण नवनो उदय तो मनुष्य गति एक पचेन्द्रिय जाति एक त्रस एक बादर एक पर्याप्त एक सुभग एक आदेय एक यशकीर्ति एक तीर्थकर एक ए नव तीर्थकरने अयोगी गुणस्थानमां होय छे. पण तीर्थकर नाम सिवाय सामान्य केवळी अयगीने तो आठ होय छे गोनुं तो सामान्यथी एकज उदय स्थान छे. उंच अथवा नीच कोइ पण एक होय छे. कारण के बने एक बीजाथी विरुद्ध छे. उपर बताच्या प्रमाणे कर्मप्रकृतिना उदयवडे अनेक भेदो जाणीने प्रत्याख्यान परिज्ञावडे ते तोडवा प्रयत्न करे छे. जो एम छे तो ( नवा साधुए) शुं करवुं ते कहे छे.
इह आणाकंखो पंडिए अणिहे, एगमप्पाणं संपेहाए धुणे सरारं, कसेहि अप्पाणं जरेहि अप्पाणं- जहा
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सूत्रम ॥५३४॥