Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 121
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तने सुकवे, ते पुरि (नगर) मां शयन करवाथी पुरुष छे, अने व ते संयम छे ते संयम जेने होय ते द्रविक पुरुष , अथवा द्रव्यभूत छे कारण के तेज मोक्षमा जाय छे, कर्मशत्रु जीतवामां समर्थ होवाथी ते वीर पण छे, मांसशोणीत शोषवानुं बताच्याथी आचा० सुत्रम् वीजा पदार्थो भेद चरबी विगेरे शोषत्रानुं पण बताव्यु जाणवू. कारण के मांस मुकावा ते पण साये मुकाइ जाय छे; वळी आया॥५४२॥ मणीजे विगेर एटले वीर पुरुषोना मार्गे चालनारो जे मांस लोही सुकवे, ते मोक्षामिलापीओने आदानीय ग्राथ. मानवाजोग वचन ॥५४॥ वालो विख्यात थाय छे. प्रः-एवो कोण छे ? उ:-जे ब्रह्मचर्य ते संयममा रही कामवासना जीतबामा प्रयत्न करे, अथवा समुच्छ्रकाय ते शरीर अथवा कर्मोपचयने तपचारित्रबडे धुणावे. (कशकरे-दूरकरे) ते आदानीय तथा व्याख्यात (स्तुत्य पूज्य) याय छे, आ प्रमाणे अप्रमत्त साधुनुं खरूप बताव्यु. हवे तेवू संयम न पाळनारा जे प्रमत (प्रमादी साधुओ) छे तेनुं वर्णन करे : नित्तेहि पलिच्छिन्नेहिं आयाणसोयगढिए बाले, अव्वोच्छिन्नबंधांणे अणभिकंतसंजोए तमंसि अवियाणओ आणाए लंभो नस्थि तिबेमि (सू० १३०) जे पदार्थ तरफ लइ जाय-अर्थात् पदार्थनो निर्णय करवा जे दोरे, ते नेत्र विगेरे पांच इन्द्रियो छे, तेना बढे पोताना विषयने ग्रहण करवा बडे जे पाप याय, ते अटकावीने साधु यतां जगत्मा सारा पुरुषोथी पूजनीक थइ ब्रह्मचर्यमा रहेवा छतां पण फरीची 18 तेने मोहनो उदय यवायी सावध कृत्यमा संसारभ्रमणना बीजरुप कर्मना इन्द्रियोना विषयोरुप स्रोत (प्रवाहो) अथवा मिथ्यात & अविरति प्रमाद कपाय योग के तेमा गृद्ध यार ते आदान स्रोत मृद्ध बने. मा-कोण ? उ:-बाल (अक्ष) छे, ते राग द्वेषरुपाली अCA For Private and Personal Use Only

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