Book Title: Acharanga Stram Part 03
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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आचा०
॥५४०॥
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समिए सहिए सया जए, दुरणुचरो मग्गो वीराणं अनियहगामीणं, विगिंच मंससोणियं, एस पुरिसे दविए वीरे, आयाणिजे बियाहिए, जे घुणाइ समुस्लयं वसित्ता वंभचेरंसि ॥ सू० १३७ ॥
'आवीलए ' इत्यादि आपीडन कर, अर्थात् अविकृष्ट (घोडा) तपत्र ढे शरीरने दुःख आप आ प्रथम दीक्षा अवसरे छे, पण ज्यारे सिद्धांत भणी रहे, त्यारे प्रकर्षथी ( वधारे प्रमाणमां ) तप करी कायाने पीड, (सुकाव ) फरी वधारे तत्वज्ञान मेळवतां गुरुनी | सेवा करनार अंतेवासी वर्ग जेणे अर्थसार (रहस्य) मेळव्युं छे, तेत्रा मुनि शरीरने त्यजवानी इच्छाथी मास अर्धमासनो तर करवा बढे निश्रयथी पडे, शिष्य कहे छे के ठीक कर्मक्षय करवा माटे तप करे छे, पण ते पूजालाभ कीर्ति माटे करे तो शुं चाय ? गुरुकड़े के ते माटे करे तो शरीर पीडवानो तपरूप उपदेश निरर्थकज थयो. ते माटे बीजी रीते कहे छे. कर्म अथवा कार्मण शरी| रनेज पीडे (सूत्रपाठ थोडो रही गयो देखाय छे ) अहींया पण आपीड, प्रपीड, निष्पीड. कार्मण शरीर पीलवा माटे जाणवां. सूत्रपाठ आवो जोइए, “ आवीलए, पवीलए, निप्पीलए कम्मं " अथवा मंदबुद्धिवाळा माटे त्रणेनी अवस्था बतावे छे, के आपीडन ते चोथा गुणस्थानथी लइने सातमां सुधीमां थोडी थोडी तपास्या करे, अने आठमा नवमा गुणस्थानमां प्रपीडन ते मोटी तपास्या करे, अने १०मा गुणस्थानमां निष्पीडन ते मास क्षपण विगेरे मोटो तप करे अथवा उपशम श्रेणीमां आपीडन, क्षपक श्रेणिमां मपीडन, अने शैलेश अवस्थामा निष्पीडन तप जाणतो. शृं करीने तेवो तप बतावे छे, जहिता-विगेरे; पूर्वसंयोग ते पोतानी पासे जे कई धान्य धन सोनुं पुत्र स्त्री विगेरे हतुं, ते त्यागीने तप करे, अथवा असंयम जे अनादि भोना अभ्यासथी संबंधी हतो, तेने
অछন
सूत्रम्
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