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आचा०
॥५०८॥
॥५०॥
वावर
गुणकारी याय छ, तेथी तमारी 'शंका' नकामी हे.
प्राणीने अथवा आत्माने दुःख दे (दंडे) माटे दंड छे, ते मन वचन कायाए त्रण प्रकारनो छे, एत्रण दंडथी दूरययेला ते । उपरत दंड कडेवाय, ते बघा जीव उपर उपकारनी बुद्धिए उपदेश देवाय, एटले जेमणे दंड तज्यो थे, तेवा मुनिश्री संयममां स्थिरता
सूत्रम करे, अने नवा मुणो माप्त करे, अने बीजां दंड न तजेला (ग्रहस्थीओ) ते दंडने तजे, माटे तीर्थकर उपदेश आपे छे,
तथा संग्रहकराय ते उपधि छे, ते द्रव्यथी सोनुं विगेरे छे, अने भावथी कपट छे, ते राखनार उपधिवाला छे, ते सोपधिक छे, बाकीना तेथी उलटा अनुपधिक छे, तेओने माटे पण उपदेश छे, संयोग (संबंध) ते पुत्र स्त्री मित्र विगेरे उपर प्रेमनो छे, तेमा Hरक्त थयेला ते संयोगरत कहेवाय, अने तेथी उलटा एकत्व भावना भावनारा मुनि असंयोगरत कहेवाय; ते बनेने पण भगवाने
उपदेश आपेल छे, तेथी ते सत्य हे. (च शब्द नियम अर्थ बतावे छे, माटे) भगवाननुं वचन सत्य छे, तेम यथायोग्यपणे वस्तुनो सद्भाव कबाथी ते वाच्य पण छे. ते बतावे छे के, प्रभुए आ प्रमाणे का के:-"सर्वे जीवो हणवा न जोइए" विगेरे. आ प्रमाणे सम्यग्दर्शन श्रदान राखवू; अने ते श्रद्धान-जिनेश्वरनां प्रवचनमां छे. जे सम्यक्मोक्षमार्गने आपनार के. वळी, ते बघाH दंभना प्रबन्धची दुर होवाथी प्रकर्षथी बोलाय छे, (माटे ते प्रवचन.) पण, बीजा मतमा तेबो अहिंसा धर्म बताव्यो नथी. जेमके-४ अन्य मतवाला प्रथम कहे के, सर्व जीवोने न हणवा. ("न हिंस्यात्सव भूतानि") कहीने यड़यां पशुवधनी आज्ञा आपे से. एटले, प्रथमनां वचनने तेमनां पाछळनां वचनथी बाधा लामे छे. (माटे, ते प्रवचन नधी.) आ प्रमाणे सम्यक्त्वनुं स्वरुप कहीने तेनी में प्राप्तिमा भुकर ते बतावे छे.
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