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सूत्रम्
॥५११॥
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परिकमिजासि तिबेमि (सू० १२९) सम्यक्त्वाध्ययने प्रथमोदेशकः ॥४-१। दिवसे अने रात्रे मोक्ष मार्गमांज यत्न करतो, परिसह उपसर्गमां न डरनारो जे धीर पुरुष , तथा सर्व काळ जेणे सत् असत्नो विवेक स्वीकार्यो छे, तेने गुरु कहे छे, के तुं जो, ममत्त जीवो जे ग्रहस्थो छ, अथवा अन्य मतवाला जेओ धर्मथी बहार रहेला छे, तेमनी दुर्दशा देखीने तेवू दुःख तने न भोगवq पडे माटे तुं सर्वदा निद्रा विकथा विगेरेथी रहित बनी आंख फरकवा मात्र पण प्रमादी न थइश, अने कर्म शत्रुने जीतवामां अथवा मोक्ष मार्गे जवाथी पराक्रमी बनजे, आ प्रमाणे सम्यक्खनु स्वरुप बतावनार चोथा अध्यायनो पहेलो उद्देशो समाप्त थयो.
बीजो उद्देशा. पहेला उद्देशा साथे बीजानो आ प्रमाणे संबंध छे, के पहेला उद्देशामा सम्यक्त्ववाद बताव्यो, अने ते तेनो शत्रु मिथ्यावाद छे, ४ तेने दुर करवाथी आत्मा लाभ मेळवे छे, ते दूर करवो ज्ञान विना न थाय, अने विचारणा विना परिज्ञा न थाय, मिथ्यावादथी लं ययेल अन्य तीथिकोना मतनी विचारणा करवा आ कहेवाय छे, आ संबंधी आवेला उद्देशानुं आ पहेलुं मूत्र छे, जे (आसवा) विगेरे
के, अने अहिं जे सम्यक्त्व लीधुं ते सात पदार्थोनुं श्रद्धान करवातुं छे, तेमां मोक्षामिलापीए शस्त्रपरिज्ञा नामना पहेला अध्ययनमा
जीवाजीव पदार्थना ज्ञानवडे संसार तथा मोक्षनां कारणोनो निर्णय करचो एटले तेमां संसार कारण आसव अने निर्जरा, संसार ला मोक्षना अनुक्रमे कारणो छे, तेनुं सम्यक्स बरोबर विचारवा माटे कहे छे.
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