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सूत्रम्
IPापन करे ले अने कहे छे, असे आयु कहीए छीए, अने प्ररुपणा करीए छीए केः-वधा प्राण, जीव, भूत, सत्व ए चारे शरीरधारी आचा०
| जीवो छे, तेमने हणवा नहि, हुकम चलाववो नहि, संग्रह करवो नहि, संतापवा नहि, पीडा आपली नहि, उपद्रव करवा नहि. अ-18
होआज दोष नथी. (अर्थात् कोइपण जीवने कोइ पण रीते पीडा न आफ्नारं संयमज निर्दोष छे,) आ आर्य पुरुषोनुं वचन छे. ॥५२५॥ आवं कहेवाथी हिंसा पिय जैनेतर कहे छे, के अमने तमारु वचन अनार्य लागे छे..
An५२५॥ प्र जैनाचार्य:-तमा कहेवू तमारा एक दिलचाळा मित्रोज स्वीकारी शकशे. कारण के ते युक्ति रहित छे. तेने माटेज फरी16 कहे छे, के पोतानी वारु (वाणी) रुप यंत्र बडे बंधायला वादीयो पोतानी कुवाणीथी पाछा नहि फरे. ( आग्रह पकडी राखशे) तेवा वादी (जैनेतर) ने तेमना मानेला आगमनी व्यवस्था करीने तेनुं विरुप (अनुचित) पणुं बतावचा बडे जैनाचार्य प्रश्न पूछे ।
छ, अथवा प्रथम प्रश्न करनारा दरेक वादीओने व्यवस्थापीने जैनाचार्य तरफी प्रश्न पूछाय छे के-बोलो! वाद करनारा जैनेतर • बंधुओ तमने साता (मुख ) मनने आनंद उपजावनारा छे, के दुःख ? जो एम कहे के सुख बहाल छे, तो तमारा आगम (सिद्धांत)
ने प्रत्यक्ष तथा लोकना मानवा प्रमाणे वाधा थशे. ( तमारो सिद्धांत खोटो थशे.) कदी तेओं लुच्चाइथी जुटुं कहे के अपने दुःख प्रिय छे, तो तेवा वादीओने पोतानी वाक् जालमां बंधायलाने आ प्रमाणे कहेवू, के तमने जेम दुःख प्रिय छे तेम सर्वे प्राणी मात्रने । el दुःख प्रिय नथी, पण अप्रिय छे, अशांतिकर छे, महा भयरुप छे. छतां हठ ग्रहीने ते न माने तो कहेवू, के तमारं बोलवू सत्य । ६ क्यारे थाय, के ते प्रमाणरुप बने, पण तेवु प्रमाण मळ, दुर्लभ छे के मुखने बदले दुःख कोइ पण प्रिय माने! माटे तमारे अथवा न दरेक मोक्षामिलापी के सुखना अभिलापीए कोइपण जीवोने हणवा नहि, पीडबा नहिं तथा केदमां नाखवा नहिं विगेरे जाणवू. ते ।
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