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आचा०
सूत्रम् ॥५२८॥
॥५२८॥
सकुंडलं वा क्यणं न वत्ति ।। २३०॥ मालना विहारमा में आजे एक उपासिका (ते मतने माननारी वी) जोइ, ते सुवर्णना भूषणे भूषित हती. पण व्याक्षिप्त चित्त वडे में न जोयु, के कानमां कुंडळ छे के नहि.? ____ आ प्रमाणे बीजा तीर्थीओ ( वादीओ) ए पोतानु कही बतायु पण कोइ जैन साधु न आव्यो, त्यारे राजाए कयुं के तेने में बोलावी लावो. तेथी मंत्रीए एक नानो साधु हतो पण तेने वैराग्य दशाए परिणमेलो जाणी गोचरीमा आवेलो इतो, तेने प्रत्युप (उगता प्रभात) नी माफक राजा आगळ आण्यो तेथी राजाए ते चोथा पदने आपी उत्तर मागतां क्षुल्लक साधुए कह्यु,
खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स, अज्झप्पजोगे गयमाणसस्स। किं मज्झ एएण विचिंतएणं! सकुंडलं वा वयणं न वत्ति ॥ २३१ ।।
क्षमा धारण करनारा, काम दमन करनारा. इन्द्रिओने जीतनारा अने अध्यात्ममां रक्त एवा मारा जेवा मुनिने शा माटे चितव, के ते प्रमदाना कानमां कुंडळ छे के नहि ? आमां अजाणपणानुं कारण शांति विगेरे गुणो धारणY कारण बताव्यु, पण | चित्तना विक्षेपर्नु कारण न बताव्यु, तेथी राजाने तेनी निस्पृहता उपस्थी धर्म भावनानो उल्लास बध्यो, पछी राजाए धर्मतत्व पुछतां
क्षुल्लक साधुए माटीनो एक गोळो भींत तरफ उछाळी मूचना करीने चालवा मांडघु, त्यारे राजाए पूछ्य के आप पूछवा छतां धर्म 6 केम कहेता नथी? त्यारे तेणे का, हे भोळा राजा! आ भीना सुका गोळाओना फेंकबाथी में धर्म कयो छे, ते वेगाथायी बतावे छे.
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