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आचा
सूत्रम्
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॥५१२॥
जे आलवा ते परिस्सवा जे परिस्सवा ते आसवा; जे भणासवा ते अपरिस्सवा, जे अपरिस्सवा ते अणासवा; एए पए संबुज्झमाणे लोयं च आणाए अभिसमिचा पुढो पवेइयं (सू०१३०)
सूत्रमा जे इ.ब्द छे, ते सामान्यथी लीधेल छे, अने जे आरंभोवडे आठ प्रकारनां कर्मनो आश्रय करे छे, ते आत्रको छे, अने जे अनुष्ठानो करवाथी बधी रीते कर्म थाय ते परिसब छे, हवे पूर्वे जे आसवो कर्मबंधनां स्थान बताव्यां, ते पोतेज कर्मनी निर्जरानां कारण थाय छे, तेनो भावार्थ आ छे, के सामान्य बुद्धिवाळाने मोह करावे तेवो फुलनी माळा तथा सुंदर सो सुखकरण वास्ते मानवाथी ते वस्तुओं तेमने कर्मबंधनो हेतु थवाथी आस्रव छे पण तेज वस्तुओ तत्तने जाणनारा विषयसुखथी दर ४ रहेला महात्माओने फुलनी माळा विगेरे नकामी जेबी लागवाथी तथा संसार भ्रमण करावनारी जाणीने ते वस्तुओथी तेने वैराग्य | थाय छे, तेथी का के, जे आत्रब छे ते झानीने परिव एटले निर्जरानुं स्थान छे, वथा बधी वस्तुओर्नु अनेकांतपणुं बतावचा तेथी उलटुं सूत्र कहे छ, जे परिस्रवो के ते आत्रयो थाय छे, एटले अरिहंत साधु तप संयम दशविध चक्रवाळा समाचारी अनुष्ठान विमेरे द्र भव्यात्माने निर्जरानां स्थान ले, तेज उत्तम पदार्थो जेने अशुभ कर्मनो उदय होय तेवा अशुभ अध्यवसायवाला तथा दुर्गतिमा लइ । जाने आगेवान बनेला जंतुने ते उत्तम पदार्थोनी आशातना करवाथी तथा सातारिद्धिरसनो गर्व करवामां तत्पर मनुष्यने ते
आस्रवो थाय छ, एटले जेनाथी धर्म प्राप्ति थाय एका तीर्थंकरो पण तेबाने पापर्नु उपादानकारण थाय छे, तेनो परमार्थ 5 आ छे, जेटलां कर्मनी निर्जरा माटे संयम स्थान छे, तेटलांज बंधने माटे असंयमस्थान छे, काले के
-स्वरलाल
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