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प्रश्न:-कदाच एम पण होय, परंतु वधाए तेवा इच्छापणीत विगेरेथी दुर्गतिमा जइ दुःखनो स्पर्श भोगवनारा छे के कोइकज आचा०तेने योग्य कर्म करनारो दुःख भोगवे छे? ते बतावे छे.
सूत्रम् उत्तरः-वधा नहीं, पण जे अत्यंत क्रुर वधबंधन विगेरेनी क्रिया वडेज (चीकणा कर्म बांधी) वैतरणी तरण असिपत्र वनपत्र । २१॥ पडवानी तथा शाल्मली वृक्ष आलिंगन विगेरेथी थएल नरकनी भयंकर वेदनानी विरुप दशाने भोगवतो सातमी विगेरे नरकमा बसे1॥५२१॥
छे, पण जे अत्यंत हिंसाबाळा कर्मो न करे ते घणी पीडाबाळां नरकोमा उत्पन्न थतो नथी, ठीक, एम हशे, पण आबु कोण कहे 15 छे, 'एगे चयंती' त्यादि चौद पूर्वी विगेरे मुनिओ कहे छे, अथवा जेने सकळ (वधा) पदार्थोनुं बतावनाएं ज्ञान छे, ते ज्ञानी बोले |
तथा जेवू दिव्यज्ञानी केवळी बोले छे तेमज श्रुत केवळी बोले छे, तथा जे श्रुत (ज्ञान वाळा) केवळी बोले छे, तेज निरावरण A केवळज्ञानी बोले छे, (ते प्रत्यागत सूत्रवडे जाणवू के) 'नाणी' विगेरे-ज्ञानी केवळी जे बोले छे तेवु श्रुत केवळी यथार्थ बोलता। से होवाथी ते एकज छे, कारण के केवळी प्रभुने दरेक पदार्थ साक्षात् देखाय छे, अने श्रुत केवळी तेमना उपदेश प्रमाणे वर्ते छे. र तेथी बोलवामां पण एक वाक्यता (सरखापर्यु) छे; ते कहे थे, तथा वादीओनो विवाद तथा तेमनुं समाधान करे ..
आवंती केयावती लोयंसि समणा य माहणा य पुढी विवायं वयंति, से दिहं च णे सुयं च णे मयं च णे विण्णायं च णे उडूढं अहं तिरिय दिसासु सम्बओ सुपडिलेहियं च णे-सव्वे पाणा सव्वे जीवा सव्वे भूया सव्वे सत्ता हन्तव्वा अजावेयव्वा परियावेयव्या परिघेत्तवा
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