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आचा०
॥५१८॥
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जाणेला करुणायोग्य रागद्वेष विषयमा अभिलापने जडमूलथी उखेडवाने केम समर्थ न थाय, आ वातने बीजी रीते न माने, तेथी बतावे छे 'अहासच्च' विगेरे. आजे में कछु अने कहेवाय छे, ते सत्य छे, एवं हुं हुं हुं के जेवी रीते सम्पक्तत्व अथवा चारित्रनो | परिणाम जे दुर्लभ छे, ते पामीने प्रमाद न करवों, शिष्य कहे छे ठीक पण शुं आधार लइने प्रमाद न करवो ! ते कहे छे, 'नाणा गमो' विगेरे, एटले कोइ पण वखत संसारमा रहेलो जीव मृत्युना मोढामां न आवे एवं नयी, कहां के के:वद यदीह कश्चिदनुसंतत सुखपरिभोगलालितः । प्रयत्नशतपरोऽपि विगतव्यथमायुरवाप्तवान्नरः
कोड माणस पूछे के बोलो, के अहीं भा रोज सुखनां परिभोगथी लाड लडावेलो भने सेकडो प्रयत्न करीने राखेलो पण बगर व्यथाना आवाळी माणस कोइ पण के के ? (नथी)
न खलु नरः सुरौघसिद्धा सुरकिन्नर नायकोऽपि यः । सोऽपि कृतान्तदन्त कुलिशाक्रमेण कुशितो न नश्यति ॥
देवताओना समूह ने सिद्ध विद्यावालो तथा असुरकिन्नरनो नायक पण अथवा मनुष्य पण एत्रो कोइ नथी, के जे पुरुष जमना दांतरुपी वज्रना आक्रमणयी क्रश करेलो ते न नाश पाये ? बळी मृत्युना मोदामां गयेलो जे कोइ छे, नेने बचावचानो कोइ पण उपाय नथी कं छे, के नाशी जाय, नमी पढे, चाल्यो जाय विस्तार करे अथवा रसायम क्रिया करे अने मोटां व्रत करे जे वधारे बीकण छे, ते गुफामां पण पेसे, तप करे, मापसर वाय. मंत्र साधन करे तो पण जमना दांवरूप यंत्री कातरमां ते कपाइने चीराय छे ! अने जेओ विषय कसायना अभिलाषयी प्रमद बनेला धर्मने नथी जाणता तेओनी शुं दशा धाय छे, ते कई छे, इंद्रियो तथा मनना
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सूत्रम ॥५९८॥