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आचा०
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रूप होय अथवा क्षुल्लक एटले मनुष्यरूप होय ( देवांगना अथवा सुंदर रुपवाळी स्त्री देखीने) तेमां ललचाय नहिं, अथवा देव संबन्धी के मनुष्य संबन्धी मोढुं नानुं रुप एटले तेमां पण मध्यम रूपवाळी के घणा रूपवाळी देवी के स्त्री होय तो मां ललचावु नहि, अहिं "नागार्जुनीया" कहे छे.
विसयंमि पंचगंमीवि, दुविहंमि तियं तियं ॥ भावओ सुट्टु जाणित्ता से न लिप्पड़ दोसुत्रि ॥१॥
शब्द विगेरे पांचे प्रकारना विषयोभां तथा बन्ने प्रकारमां एटले जे इष्ट अनिष्ट छे, तेमां हीन मध्यम उत्कृष्टने भावथी एटले परमार्थथी जाणीने रागद्वेषवडे पाप कर्मयी न लेपाय, अर्थात् तेमां रागद्वेष न करे, तेमां शुं आलंबन ले के रागद्वेष न थाय ते कहे छे. आगमन तथा गमन ते तिर्येच अने मनुष्यने चारे गतिमां आवत्रा जत्रानुं छे. तथा देवता नारकीने तिर्येच मनुष्यमाथीज आवकुं जधुं छे, नारकी माफक देवने पण बेज गति अगति छे, फक्त मनुष्यने मोक्ष गतिनो सद्भाव होवाथी पांच गति छे, आममाणे जीवने गति आगति थाय छे ते विचारीने संसार चक्रचाळमां कुवाना अरटना न्याये भ्रमण छे, ते समजीने अने मनुष्यपणामां मोक्ष मळे छे ते जाणीने सुगतिनो अंत लावनार जे रागद्वेष के तेने दूर करीने आगति गतिने आपनार रागद्वेष जाणी | ते बन्नेने दूर करी कोइ पण जीवने पोते तरवार विगेरेथी छेदे नहिं, तथा भाला विगेरेथी भेदे नहि, तथा अनि विगेरेथी वाळे नहिं तथा नरकगति विगेरे अथवा अनुपूर्वी विगेरे धणी वार विचारीने पोते हणे नहि.
अथवा रागद्वेषनो अभाव थाय तो उपर कलां पाप पोतानी मेळे दूर धाय, एटले रागद्वेष छोडनारो मुनि छेदवा विगेरेना
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सूत्रम
॥ ४७१ ॥