________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आचा०
॥ ४८३ ॥ |
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
argest errorserat प्रत्याख्यानी तथा संजवलनी अंदर रहेल भेदो बताववाने माटे जुदा जुदा वतान्या छे, अने चशब्द मुकवाथी ते दरेकनी उपमा पर्वत पृथ्वी रेणु जळ राजीनी क्रोधनी छे, तथा शैल स्तंभ हाइकु लाकडं तिनिशलता माननी छे, तथा बांस कुडंगी (थडी) मेष अंग गोत्रिका अबलेखनीनी उपमा मायानी छे, तथा कृमीराग कर्दम खंजन हरिद्रानी उपमा लोभने छे, तथ आखी जींदगी सुधी एक वरस सुधी चार मास अने पंदर दिवसनी स्थिति अनुक्रमे दरेकनी छे, ( आ बधानुं वर्णन आज मूत्रमां पाने छे त्यांथी जो . )
आ प्रमाणे क्रोध, मान माया लोभ त्यागवाथी खरी रीते साधुपणुं छे पण क्रोध होय त्यां सुधी साधुपणं नथी; कां छे के:सामण्णमणुचरंतर कसाया जस्स उक्कडा हुंति । मन्नामि उच्छुपुष्कं व निष्फलं तस्स सामपणं ॥१॥ साधुपणुं पाळता साधुने जो कषायो वधारे प्रमाणमां होय तो शेरडीना फुल माफक तेनुं साधुपणुं हुं निष्फळ मानुं हुं ॥ जं अजिअ चरितं देसूणाएव पूर्वकोडीए । तंपि कसाइयमेतो हारेइ नरो मुहुतेणं ॥२॥
पूर्व डीम थोडा वर्षा एवं ( आटली लांबी मुदतनुं ) चारित्र पाळ्युं होय, ते जो उत्कृष्ट क्रोध करे तो ते माणस एक मुहुर्तमा साधुपणं हारी जाय छे. आ वधुं पोतानी बुद्धिथी नथी कां एवं बताववा गौतमस्वामी कहे छे के 'एय' विगेरे आ कषाय दूर करवा हमणा उपर बताच्यं, ते वधुं सर्वदर्शी पश्यक साक्षात् देखे छे, कारण के तेने निवारण (केवळ ) ज्ञानदर्शन छे, अने ते पश्यक तीर्थकृत् वर्धमना स्वामी छे, अने तेमनुं दर्शन (अभिप्राय मंतव्य आहे.
For Private and Personal Use Only
सूत्रम् ||४८३॥