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आचा०
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अणुवडिए वा उबर दंडेसु वा अणुवरयदंडेसु वा सोबहिएलु वा अणोवहिएसु वा संजो
रसुवा असंजोगरएसु वा, तज्रं चेयं तहा चेयं अस्ति चेयं पवुच्चइ (सू० १२६) गौतम (धर्मा) स्वामी कहे छे के:-जे हुं हुं हुं ते हुं पोते तीर्थकरनां कलां वचनना तत्खने जाणीने कहुं हुं, तेथी मारु | वचन मानवा योग्य छ, अथवा बौद्धभतमां मानेलुं क्षणिक दूर करवावडे कछु के, जे में पूर्वे कहां ते हमणां पण मुंज कहुं हूं, पण बीजो कहेतो नथी; अथवा 'से' शब्दनो अर्थ 'ते' थाय छे, एटले जे श्रद्धानमां सम्यक्त्व थाय छे, ते तस्यनेकहुं हुं
जेओ पूर्व काळमां थया जे वर्तमानयां है, अने भविष्यमा यशे; ते वधा तीर्थकरो एम कहे छे. वळी पूर्वकाळ अनादी होवाथी अनंता था; अने भविष्यकाळ अनंतो होवाथी अने सर्वदा तीर्थकर होवाथी अनंता थशे अने वर्तमानकाळ आश्रयी जे बखते आ प्ररूपणा थती होय; तेमां नक्की संख्या न होवाथी उत्कृष्ट अथवा जघन्य पदे कहेवाय, तेमां उत्सर्गथी अढी द्वीपनी अंदर एकसोने सीतेर थाय, ते आ प्रमाणे
५- महाविदेहमां एकेक विदेहमां ३२ श्रेणी होवाथी दरेकमां एकेक गणतां १६० थाय, अने ५ भरत ५ ऐरावतना मेळवतां कुल १७० वाय अने जघन्यथी २० धाय ते आ प्रमाणे ५ महा विदेहमां महाविदेहनी अंदर रहेली महा नदीना बने किनारे मळी पूर्व पश्चिम साथे लेतां चार चार होय ते पांचना मळी त्रीश थाय. अने भरत रावतयां तो एकांत सुखम विगेरे आरामां ! अभाव छे, वीजा आचार्य कहे कहे छे, के मेरुना पूर्व अने पश्चिम महाविदेहमां एकेक तीर्थकर होवाथी महाविदेहमां बेज छे, अने
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