SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ५०४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणुवडिए वा उबर दंडेसु वा अणुवरयदंडेसु वा सोबहिएलु वा अणोवहिएसु वा संजो रसुवा असंजोगरएसु वा, तज्रं चेयं तहा चेयं अस्ति चेयं पवुच्चइ (सू० १२६) गौतम (धर्मा) स्वामी कहे छे के:-जे हुं हुं हुं ते हुं पोते तीर्थकरनां कलां वचनना तत्खने जाणीने कहुं हुं, तेथी मारु | वचन मानवा योग्य छ, अथवा बौद्धभतमां मानेलुं क्षणिक दूर करवावडे कछु के, जे में पूर्वे कहां ते हमणां पण मुंज कहुं हूं, पण बीजो कहेतो नथी; अथवा 'से' शब्दनो अर्थ 'ते' थाय छे, एटले जे श्रद्धानमां सम्यक्त्व थाय छे, ते तस्यनेकहुं हुं जेओ पूर्व काळमां थया जे वर्तमानयां है, अने भविष्यमा यशे; ते वधा तीर्थकरो एम कहे छे. वळी पूर्वकाळ अनादी होवाथी अनंता था; अने भविष्यकाळ अनंतो होवाथी अने सर्वदा तीर्थकर होवाथी अनंता थशे अने वर्तमानकाळ आश्रयी जे बखते आ प्ररूपणा थती होय; तेमां नक्की संख्या न होवाथी उत्कृष्ट अथवा जघन्य पदे कहेवाय, तेमां उत्सर्गथी अढी द्वीपनी अंदर एकसोने सीतेर थाय, ते आ प्रमाणे ५- महाविदेहमां एकेक विदेहमां ३२ श्रेणी होवाथी दरेकमां एकेक गणतां १६० थाय, अने ५ भरत ५ ऐरावतना मेळवतां कुल १७० वाय अने जघन्यथी २० धाय ते आ प्रमाणे ५ महा विदेहमां महाविदेहनी अंदर रहेली महा नदीना बने किनारे मळी पूर्व पश्चिम साथे लेतां चार चार होय ते पांचना मळी त्रीश थाय. अने भरत रावतयां तो एकांत सुखम विगेरे आरामां ! अभाव छे, वीजा आचार्य कहे कहे छे, के मेरुना पूर्व अने पश्चिम महाविदेहमां एकेक तीर्थकर होवाथी महाविदेहमां बेज छे, अने For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥ ५०४ ॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy