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आचा०
AKINGERS
दुर थतां, ते सर्वदर्शी, तथा सर्वज्ञानी थाय छे,अने कर्मर हित थयलो, अथवा सर्वज्ञ बनेलो बीजु | मेळवे छे ते कहे छे:एस मरणा पमुच्चइ, से हु दिदृभए मुणी, लोगंसि परमदंसी विवित्तजीवी उवसंते समिए
सूत्रम सहिए सया जए कालखी परिवए, बहं च खलु पावं कम्मं पगडं (सू० १११)
B ॥४५६॥ ए सर्वज्ञ साधु मूळ अने अग्रनो रेचक कर्मने तोडनारो] बनीने निष्कर्मदर्शी कहेवाय छे, ते मरणथी मुकाय छे, कारणके घातीको दुर थवाथी अघातीकर्ममा रहेलु आयु नवा भवनुं बंधातुं नथी, अथवा वारंवार मरवू, अथवा क्षणे क्षणे मरवु ए मरणथी ते मुकाय छे | | अथवा बघोज आ संसार मरण युक्त छे तेथी पोते मुकाय छे चली ते, मुनि संसारमा रहेलो भय, अथवा संसार संबंधी सात प्रकारको भय तेने देखे छे. के (संसारीने आवा भयो आवे छे.) ते दृष्टभय कहेबाय छे, वळी ते छ द्रव्यना आधाररुप-लोक अथवा, चौदल जीवस्थानवाळो लोक छे तेमां परम जे मोक्ष छे. अथवा तेनुं कारण संयम छे तेने देखवाना स्वभाववाळो होय ते परमदर्शी छे तथा स्त्रीपशु नपुंसक साधुना ब्रह्मचर्यने घात करनार छे, तेनाथी रहित एवा मकानमा रहे छे, ते द्रव्यथी विविक्त कहेवाय. तथा रागद्वेषयी रहित निर्मळ चित्त राखवाथी भाषयी विविक्त कहेवाय, ते मुणवाळो होवाथी विविक्तजीवी कहेवाय छे. आवो मुनि इंद्रिय त्या मनने शांत राखवाथी उपशांत छे, अने ने पांच समितिथी युक्त होवाथी अथवा सरळ ते मोक्षमार्गे जबाथी समित छे, अने ज्ञान विगेरेथी युक्त छे, तेम अप्रमादि पण छे. वळी ते मुनि तेवीरीते आखी जींदगी सुधी उत्तम गुणकालो रहे; ते काळ आकांक्षी कहेवाय; भने ए प्रमाणे पंडित मरणनी आकांक्षावाळो संयम-अनुष्ठानमां रहे.
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