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आवू शामाटे करे ते कई छे. आचा मूळ उत्तरप्रकृतिना भेदवाळु तथा प्रकृति, स्थिति, अनुभाव, प्रदेश, एम चार प्रकारे बन्धवाळ, तथा बन्ध उदय-सत्तानी व्यव
प्रसुत्रम् स्थावाळु, तथा बांध, स्पर्श करचो जोडावं, एकपणे मळवू; विगेरे अवस्थावालु कर्म छे; अने ते थोडाक कालमा क्षय थाय; तेवू | ॥४५७॥ नथी, तेथी काळ आकांक्षी कधु के.
४॥४५७॥ __तेमां बन्धस्थाननी अपेक्षाए मूळ उत्तरप्रकृतिनुं बहुपणुं बतावीए छीए. जेमकेः
वधी मूळ प्रकृतिओ अंतर्मुहूर्त सुधी साये बांधे; ते आठ प्रकारनो कर्मबन्ध छे, अने आयुष्य न बांधे; तो, सात प्रकारनो के, अने ते आयुने काळ जघन्यथी अंतर्मुहुर्त छे, अने उत्कृष्टधी तेना शिवायनां ३३ सागरोपममा पूर्वकोडीनो श्रीजो भाग बधारे छे, A अने सूक्ष्मसंपरायनो मोहनीयकर्म नो बन्ध दूर थतां, नथा आयुना बन्धनो अभाव थवाथी छ प्रकारनो कर्मबन्ध छे, अने ते जघन्यथी। Pएक समयमो अने उत्कृष्टधी अंतर्मुहूर्त छे, तथा उपशांत क्षीणमोह तथा, संयोगी केवळीने सात प्रकारना कर्मना बन्धनो उपरम यतां | एक प्रकारचें सातावेदनीयकर्म बन्धाय छे. ते जयन्पथी एक समय अने उत्कृष्टथी पूर्वकोडीमां थोडं ओर्छ छे.
हवे, उत्तरप्रकृतिनां वन्धस्थान कहे छे:ज्ञान आवरण, अने अंतरापना पांचे मेदनुं ध्रुवबंधीपणुं होबाथी एकज बंधस्थान छे, तथा दर्शनावरणीयनां त्रण बंधस्थान कई छे:
(१) पांच निद्रा अने चार दर्शन साथे रहेबाथी ते नवेनुं ध्रुव बन्धीपणुं होवथी नवविधनुं एक स्थान छे, (२) तेमाथी थीणदि निद्रात्रिक अनंतानुबंधीनी चोकडी साथे दुर थवाथी ते णना बंधनो अभाव था छ प्रकृतिनो बन्ध ले (३) अपूर्व करणना संख्येय
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