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सच्चमि घिई कुवहा, एत्थोवरए मेहावी, सवं पावं कम्मं जोसह (सू० ११२) आचा० उत्तम जीवोने हित करनार ते सत्य छे, अने तेनेज संयम कहे छे. ते संयममा धैर्यता राख, अथवा यथावस्थित वस्तुनु स्वरूप मसूत्रम्
IM जिनेश्वरे बताववाथी तेमनु कहेलं मौनींद्र आगम (जैन सिद्धांत) सत्य (तत्व) छे. ते भगवंतना वचनमा उपरत [अतिशय रक्त] बनीने I ॥४६॥
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॥१६॥ मेघावी [तत्वदर्शी] साधु बर्षा पाप कर्म जे संसार समुद्रमा भ्रमण करावे छे तेने [संयम अनुष्ठान तथा तप बडे] क्षय करे छे. आ| प्रमाणे अप्रमादी साधुना उत्तम गुणो बताव्या ते अप्रमादनो शत्र प्रमाद छे, ते कषाय विगेरे ममादथी प्रमत्त बनेलो केवो दुर्गुणी थाय छे. ते कद्दे छे. ___अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे, से केयणं अरिहए पूरिण्णए, से अण्णवहाए अण्णपरियावाए
अण्णपरिग्गहाए जणवयवहाए जणवयपरियावाए जणवयपरिग्गहाए (सु० १९३)
खेति वेपार मजुरी विगेरे अनेक प्रकारना कार्यमां तेनुं चित्त लागवाथी ते संसारी जीव अनेक चित्तवाळोज छे. एटले सं-18 सार सुखनो अभिलाषी अनेक चित्त (चंचळ चित्त) वाळो होय छे. "आ पुरुष" एम कडेवाथी संसारी जीव बताव्यो. अहीं पूर्वे कहेल दधि घटिका अने कपिल दरिद्रीनो दृष्टांत कहेवो. (उत्तराध्ययन मूत्रमा कपिलनो दृष्टांत बतावेल छे.) हवे जे अनेक
चित्तवाळो छे ते शुं करे छे, ते बतावे छे. द्रव्य केतन एटले चालणी पूरनारो अथवा समुद्र छे. अने भावकेतन ते लोभनी। H इच्छा छे. एटले पूर्व कोइए पण भर्यु नथी, तेने पोते भरवा इच्छे छे, तेनो सार आ छे के पैसाना लोभमां शक्य अथवा ।
सम्बर
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