Book Title: Abhi Dharm Samucchaya Bhasyam Author(s): Nathmal Tatia Publisher: K P Jayswal Research InstitutePage 50
________________ 19 लक्षणससुच्चयः 2. य [Ms. 19B] त्र संक्लिश्यते व्यवदायते चेति सेन्द्रिये काये / येनानुभवेनेति सामिषनिरामिषाद्येन यथाक्रमम् / येन निमित्तग्रहणाभिसंस्कारेणेत्ययोनिशो योनिशश्च प्रवृत्तेन / यत्सं क्लिश्यते व्यवदायते चेति चित्त दौष्ठुल्यादौष्ठुल्योपपत्तितः // 616 A. [Ch. 704B, As. P.15] (i) एकादशविधात्तृष्णा प्रकाराद्पादीनामतीतादिप्रकारव्यवस्थानं वेदितव्यम् / सा पुनः (a) अपेक्षातृष्णा (b) अभिनन्दनातृष्णा (c) अध्यवसानतृष्णा (d) आमतृष्णा (e) विषयतृष्णा (f) कामतृष्णा (g) समापत्तितृष्णा (h) दुश्चरितदुःखतृष्णा (i) सुचरितसुखतृष्णा (j) [T. 18B] विप्रकृष्टतृष्णा (k) संनिकृष्टतृष्णा च। अस्याः तृष्णाया बालंबनत्वेन यथाक्रममतीतादयः प्रकारा योजितव्याः। अपरः पर्यायः / (a-c) उत्पन्नानुत्पन्नभेदतो (d-e) ग्राहकग्राह्यभेदतो (f-g) बहिर्मुखान्तर्मुखभेदतः (h-i) क्लिष्टाक्लिष्टभेदतो (j-k) विप्रकृष्टसंनिकृष्टभेदतश्चातीतादीनि यथायोगं वेदितव्यानि / तत्रोत्पन्नमतीतं प्रत्युत्पन्न च / अनुत्पन्नमनागतम् / बहिर्मुखमसमाहितभूमिकम् / अन्तर्मुखं समाहितभूमिकम् / शिष्टः सुगमत्वान्न विभक्तः / (ii) दुःखवपुल्यलक्ष[Ms. 20 A]णतामुपादायेति रूपादिसंनिश्रयेण जात्थादिदुःखप्रतानात् / (iii) संक्लेशभारोद्वहनं रूपाद्याश्रितत्वात् क्लेशादिसंक्लेशस्य / तद्यथा लोके येन शरीरप्रदेशेन भार उह्यते तत्र स्कन्धोपचारो दृष्टः, स्कन्धेन भारमुद्वहतीति / / ... $16 B (i) सर्वधर्मबीजार्थ इति हेत्वर्थमधिकृत्यालयविज्ञाने / (iii) कार्यकारण भावधारणमष्टादशसु धातुषु षण्णां विज्ञानधातूनामिन्द्रियार्थधातूनां, च यथाक्रमम् / [T. 19 A, Ch. 704c] (iv) सर्वप्रकारधर्मसंग्रहणेन सूत्रान्तरनिर्दिष्टानां पृथिवीधात्वादीनामन्येषामपि धातूनामेष्वेवाष्टादशसु यथायोगं संग्रहणाद्वेदितव्यम् / / 5 16 C. बीजार्थः सर्वप्रकारधर्मसंग्रहार्थश्चायतनार्थोऽपि वेदितव्यः / / $ 17. रूपादानां फेनपिण्डो' पमत्वमसतो रिक्तत: तुच्छतोऽसारतश्च 1. T. and Ch. आंदिना for आद्येन. 2. Ms. य सं for यत्सं. 3. Ms. चित्तं. 4. Ms. वि. 5. Here T. adds (2) स्वलक्षणधारणार्थः. 6, Ms. णा. 7. T. adds aifa 8. रि is illegible in MS. But रीक्तत: is supported by T. See . . PTSD & HSD.Page Navigation
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