Book Title: Abhi Dharm Samucchaya Bhasyam
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: K P Jayswal Research Institute

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Page 75
________________ 44 अभिधर्मसमुच्चयभाष्यम् 545 A. दुःखा वेदना दुःखात्मिका सती स्वेनैव लक्षणेन दुःखदुःखताः / [Ch. 716B] तदुत्पत्तिनिमित्तभूतास्त्विन्द्रियार्थास्तत्संप्रयुक्ताश्च दु:खवेदनीयत्वादुःखदुःखता द्रष्टव्या' / / 6 45 B. सुखाया वेदनायास्तद्वेदनीयानां च धर्माणां विपरिणामेन दौर्मनस्योत्पादात् तद्विपरिणतिविपरिणामदुःखता। तत्र चानुनयेन चित्तस्य विपरिणमनं विपरिणामदुःखता वेदितव्या। यथोक्त "मवदीर्णो विपरिणतेन चित्तेने"ति / / 645 C. अदुःखासुखा वेदनाऽऽलयविज्ञानसंप्रयुक्ता तद्वेदनीयाश्च संस्कारा दुःखविपरिणामदु:खतयोदौष्ठुल्येनानुगतत्वात्तेन दुःखताद्वयेनाविनिर्मुक्तत्वादेकदा दुःखावस्थां भजन्ते एकदा सुखावस्थां, न नित्यकालमदुःखासुखावस्था एव भवन्ति / तस्मादनित्यतानुबन्धार्थेनायोगक्षेमत्वात्संस्कारदुःखता वेदितव्या / [Ms. 40 B] स्कन्धानाम / त्रयाणां धातूनां मनोधर्ममनोविज्ञानधातूनाम् / द्वयोश्चायतनयोर्मनोधर्मायतनयोः। एकदेशं स्थापयित्वा[T. 41 A]ऽनास्रवलक्षणम्, तदन्यानि सर्वाणीत / / 5 46. अकुशलस्य कुशलसास्रवस्य चायत्या ससंप्रयोगमालयविज्ञानं विपाकः / अतस्तेन विपाकेन तदुभयं सविपाकमित्युच्यते / स्कन्धानाम् / दशानां धातूनां विज्ञानरूपशब्दधर्म[Ch. 716C]धातूनाम् / चतुर्णां चायतनानां रूपशब्दमनोधर्मायतनानाम् / एकदेशोऽव्याकृतानास्रववर्जः / आलयविज्ञानात्तदन्यत्तु चक्षुरादिकं च सुखदुःखादिकं च तद्विपाकजमित्याख्यां लभते ततो जातमिति / कृत्वा / -6 1. Ms. व्या. 2. अवदीर्णो is illegible in Ms. Cf. पातिमोक्खसूत्त (संधादिसेस No. 2) which has fauoit for meaning of anfauunt, see Pali English Dictionary (P.T.S.) . 3. Ms. inserts न. 4. T. adds here "आलयविज्ञाना..."जातामिति कृत्वा।" This portion is found here in the Ms. also, which, however, appears brecketed. In the bottom margin, this portion is repeated and at the end the numeral 4 is given to indicate that the portion should be added in line no 4 of the Ms. We have therefore placed it at the end of the para, which is supported by the Chinese version, vide fn. No. (1--)...(-1) on p. 144. T.& Ch. add सप्त. ...-6 "आलयं....कृत्वा / " is in the bottom margin of Ms. T. has this portion after सविपाकमित्युच्यते above. Vide fn. No. (4) on P. 143.

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