Book Title: Aagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 1554
________________ आगम आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः) अध्ययनं [७], मूलं [-] / [गाथा-], नियुक्ति: [१४७८] भाष्यं [२३१...], (४०) ANCE प्रत दीप अनुक्रम णामो' तत्परिणामो विवक्षितश्रुतपरीणामः, अथवा तत्परिणामो-योगत्रयपरिणामः स तथाविधः शान्तो योगत्रयपरिणामो! यस्यासी तत्परिणामः, भङ्गिकश्रुतं-दृष्टिवादान्तर्गतमन्यद् वा तथाविधं 'गुणंतो'त्ति गुणयन् वर्तते त्रिविधेऽपि ध्याने मनोवाक्कायव्यापारलक्षणे इति गाथार्थः ॥१४७८ ॥ अवसितमानुषङ्गिक, साम्प्रतं भेदपरिमाणं प्रतिपादयताऽध 3 उत्सृतोच्छ्रितादिभेदो यो नवधा कायोत्सर्ग उपन्यस्तः स यथायोगं व्याख्यायत इति, तत्रधम्म सुफ च दुवे झायइ झाणा: जो ठिओ संतो। एसो काउस्सग्गो उसिउसिओ होइ नायब्बो ॥१४७९॥ धम्म सुकं च दुवे नवि झायइ नविय अहरुद्दाई । एसो काउस्सग्गो दवुसिओ होइ नायब्वो ॥१४८०॥ पयलायंत सुसुत्तो नेव सुहं झाइ झाणमसुहं वा । अव्वावारियचित्तो जागरमाणोवि एमेव ॥ १४८१॥ अचिरोववन्नगाणं मुच्छियअव्वत्तमत्तसुत्साणं । ओहाडियमव्वत्तं च होइ पाएण चित्तंति ॥ १४८२॥ गाढालवणलग्गं चित्तं वुत्तं निरयणं झाणं । सेसं न होइ झाणं मउअमवत्तं भमतं वा ॥१४८३ ॥ |उम्हासेसोवि सिही होउं लद्धिंधणो पुणो जलइ । इय अवत्तं चित्तं होउं वत्तं पुणो होइ ॥ १४८४ ॥ पुव्वं च जं तदुत्तं चित्तस्सेगग्गया हवह झाणं । आवन्नमणेगग्गं चित्तं चिय तं न तं झाणं ॥ १४८५॥ आ० मणसहिएण उ कारण कुणइ वायाइ भासई जं च। एयं च भावकरणं मणरहियं दव्वकरणं च ॥१४८६॥ चो. जइते चित्तं झाणं एवं झाणमवि चित्तमावन्नं । तेन र चित्तं झाणं अह नेवं झाणमन्नं ते ॥१४८७॥ आ०नियमा चितं झाणं झाणं चित्तं न यावि भइयव्वं ।जह खइरो होइ दुमो दुमो पखइरो अखयरो वा ॥१४८८ 545-4560459456--%* [३६..] JanEaintinen REparorary.om मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] “आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति: ~15534

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