Book Title: Aagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

Previous | Next

Page 1721
________________ आगम आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [६], मूलं [सू.] / [गाथा-], नियुक्ति: [१६११] भाष्यं [२५३...] (४०) प्रत सूत्रांक आवश्यकहारिभ- द्रीया ॥८५९॥ 4-3 'विहिंगहियं विहिभुत्तं' गाहा व्याख्या-विधिगहितं णाम अलुद्धेण उग्गमितं, पच्छा मंडलीए कडपदरगसीहखइदेण प्रत्याख्या वा विधीए भुतं, एवंविधं पारिद्वावणियं, जाहे गुरू भणति-अजो इमं पारिद्वावणियं इच्छाकारेण भुजाहित्ति, ताहेमा सो कप्पति बंदणं दाउं संदिसावेत्ति भोतं, एस्थ चउभंगविभासा|चउरो य हुंति भंगा पढमे भंगमि होइ आवलिया । इत्तो अ तइयभंगो आवलिया होद नायव्वा ॥१६१२।। | 'चउरो य होंति भंगा' गाहा व्याख्या-विधिसहितं विधिभुक्तं विधिगहितं अविधिभुक्तं अविधिगहीतं विहिभुत्तं अविधिगहितं अविधिभुक्त, तत्थ पढमभंगो, साधू भिक्ख हिंडति, तेण य अलुद्धेण बाहिं संजोअणदोसे विष्पजढेण ओहारित भत्तपाणं पच्छा मंडलीए पतरगच्छेदातिसुविधीए समुद्दिई, एवंविधं पुववणियाण आवलियाणं कप्पते समुद्दिसिर, इदाणे बितियभगो तधेव विहीगहितं भुत्तं पुण कागसियालादिदोसदुई, एवं अविधिए भुतं, एत्थ जति उचरति तं| [सू.] -9 दीप अनुक्रम [८४-९२] . चिधिगृहीतं नामालुब्धेनोगामितं, पश्चात् मण्डल्या कटवतरकसिंहखादितेन विधिना भुक्तं एवंविधं पारिठापनिकं, यदा गुरुर्भगति-भाई ! इदं पारि& छापनिक इलाकारेग भुवेति, नदास कल्पते वन्दनं दया संदिशेति भोक्तुं अन चत्वारो भङ्गाः, विभाषा, विधिगृहीतं विधिभुकं विधिगृहीतमविधिमुक्त। अविधिगृहीतं विधिभुक्तं अविधिगृहीतमविधिभुक्तं, तब प्रथमो भङ्गः, साधुर्भिक्षा हिण्डते, तेन पालुब्धेन बहिः संयोजनादोषविप्रहीनेनावर्त भक्तपान पश्चात् मण्डल्या प्रतरकच्छेदादिसुविधिना समुद्दिष्ट, एवंविधं पूर्ववर्णितानामावकिकानां करते समुदेष्टुं, इदानी द्वितीयभङ्गः तयैव विधिगृहीतं भुकं पुनः काकझुगाला विदोषदुष्ट, पुत्रमविधिना भुक्तं, अत्र यदुदरति तत् ॥८५९|| M arayan मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] “आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति: ~ 1720 ~

Loading...

Page Navigation
1 ... 1719 1720 1721 1722 1723 1724 1725 1726 1727 1728 1729 1730 1731 1732 1733 1734 1735 1736