Book Title: Aagam 40 AAVASHYAK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 1686
________________ आगम आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [६], मूलं [सू.] / [गाथा-], नियुक्ति: [१५६७] भाष्यं [२४२...], (४०) प्रत सूत्रांक दिवसे असर होति, विजेण घा भासितं अमुगं दिवसं कीरहिति, अथवा सयं चेव सो गंडरोगादीहिं तेहिं दिवसेहि असह। भवतित्ति, सेसविभासा जथा गुरुम्मि, कारणा कुलगणसंघे आयरियगच्छे वा तथैव विभासा, पच्छा सो अणागतकाले काऊणं पच्छा सो जेमेज्जा पज्जोसवणातिसु, तस्स जा किर णिजरा पज्जोसवणादीहि तहेव सा अणागते काले भवति । गतमनागतद्वारम् , अधुनाऽतिक्रान्तद्वारावयवार्थप्रतिपादनायाह पजोसवणाइ तवं जो खलु न करेह कारणजाए। गुरुवेयावचेणं तवस्सिगेलन्नयाए वा ॥१५६८॥ दिसो दाइ तबोकम्म पडिवज्जतं अइच्छिए काले। एवं पञ्चक्खाणं अइकंतं होइ नायब्वं ॥१५६९ ॥ पट्ठवणओ अदिवसोपचक्खाणस्स निट्ठवणओ अ। जहियं समिति दुन्निवि तं भन्नइ कोडिसहियं तु ॥ १५७०॥ मासे २ अ तबो अमुगो अमुगे दिणंमि एवइओ । हटेण गिलाणेण व कायव्वो जाव ऊसासो ।। १५७१ ॥ दएयं पचक्खाणं नियंटियं धीरपुरिसपन्नतं । जंगिण्हंतणगारा अणि स्सि(भि)अप्पा अपडिबद्धा ॥१५७२ ॥ चउदसपुवी जिणकप्पिएसु पढमंमि चेव संघयणे । एयं विच्छिन्नं खलु धेरावि तया करेसी य ॥१५७३ ।। है। पर्युषणायां तपो यः खलु न करोति कारणजाते सति, तदेव दर्शयति गुरुवैयावृत्त्येन तपस्विग्लानतया घेति गाथासमा दिवसेऽसहिष्णुर्भवति, वैयेन वा भापितं अमुग्मिन् दिवसे करिष्यते, अथवा खयमेव स गण्डरोगादिभिस्तेषु दिवसेषु असहिष्णुभांगीति, शेषविभाषा यथा गुरौ, कारणात् कुलगणस शेष आचायें गच्छे वा तथैव विभाषा, पश्वासोऽनागतकाले कृत्वा पश्चात् स जेमेत् पर्युषणादिषु, तसा था किल निर्जरा पर्युपणादिभिस्तथैव साऽनागते काले भवति । दीप अनुक्रम [८१..] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] “आवश्यक" मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचित वृत्ति: ~1685

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