Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चसप्ततिशतस्थान चतुष्पदी. (गुजरातीभाषामा सारांश सहित) रचयिताजगत्पूज्य-परमयोगिराज-गुरुदेवश्रीमद विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीराजेन्द्रप्रवचनकार्यालय-सिरीय P LITIEI परमयोगिराज-जगत्पूजन-सुनना प्रभुश्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर सविता श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. (गुजराती सारांश अने श्रीविंशतिविहरमान जिनचतुष्पदी सहित) संशोधकव्याख्यानवाचस्पत्युपाध्यायमुनि-श्रीयतीन्द्रविजयजी महाराज । प्रकाशकशा. रतनचंद-हजारीमल-कस्तुरचंदजी पोरवाडजैन । मु० भेंसवाडा, पो० आहोर ( मारवाड़) वीरनिर्वाण सं. २४६१) प्रथमावृत्ति विक्रमाब्द १९९१ । ५०० राजेन्द्रसूरि सं. २९ । अमल्य-भेट. । सन् १९३५ इस्वी. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीराजेन्द्रप्रवचनकार्यालय-सिरीझ में प्रकाशित हिन्दी, गुजराती और गद्यसंस्कृत-ग्रन्थरत्न । १ कोराटाजी तीर्थ का इतिहास (सचित्र, रेशमी जिल्द)।) २ यतीन्द्रविहारदिग्दर्शन-द्वि० भाग ( सचित्र, ..ऐतिहासिक, रेशमी जिल्द) ... ३ कल्पसूत्रबालावबोध ( सचित्र, रेशमी जिल्द ) ४) ४ विद्याविनोद ( स्तवनादि संग्रह ) ...अप्राप्य ५ गद्यसंस्कृतभाषात्मकं कयवन्नाचरित्रम् (पत्राकार) -1) ६ गद्यसंस्कृतभाषात्मकं जगडूशाहचरित्रम् (पत्राकार)।) ७ गद्यसंस्कृतभाषात्मिका बृहद्विद्वद्गोष्ठी ( पत्राकार ) ।) ८ कल्पसूत्रार्थप्रबोधिनी ( पर्युषण में वाचने योग्य ___ सरल संस्कृत. टीका, सचित्र, सजिल्द ) ... ३॥) ९ जिनेन्द्रगुणगानलहरी ( रेशमी जिल्द ) ... अप्राप्य १० सविधिश्रीसाधुपंचप्रतिक्रमण सूत्र (सजिल्द) भेट ११ जिनेश्वरों के चोपन स्थान ... .... भेट १२ गद्यपद्यसंस्कृतात्मकं श्रीचम्पकमालाचरित्रम् ( शीलमाहात्म्य-दर्शक, पत्राकार ) १३ श्रीसिद्धाचलनवाणुंप्रकारीपूजा ... ... १४ श्रीयतीन्द्रजीवन ( गुजराती, सजिल्द) ... १५ श्रीजिनेन्द्रपूजा-संग्रह ( रेशमी-जिल्द ) ... १६ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी ( सजिल्द) भेट पोस्ट-पेकिंग खर्च श्रीराजेन्द्रप्रवचनकार्यालय । अलग। मु० खुडाला, पो० फालना, (मारवाड़)। मुद्रक-शा. गुलाबचंद लल्लुभाइ, श्रीमहोदय पी. प्रेस, दाणापीठ-भावनगर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जगत्पूज्य-प्रभुश्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज । पीयूषतुल्यरसमिश्रवचोविलासर्यस्तूतुषत्सकलभव्यजनानमन्दम् । प्रापीपवन्निजपदैरखिलां धरित्री, राजेन्द्रसूरिगणराजमहं तमीडे ॥१॥ श्री महोदय प्रीन्टींग प्रेस, दाणापीठ-भावनगर. Page #5 --------------------------------------------------------------------------  Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवश्यकीयोद्गार | संसार में जिस प्रकार आदर्श आत्माओं के जीवनचरित्र लोकोपकारक, शान्तिप्रदायक और योग्यता बर्द्धक हैं। उसी प्रकार उनके वचनामृत, उनके उपदेश और उनकी सुरम्य कृतियाँ भी सत्य - वस्तुस्थिति की द्योतक, मानवीय गुणों की विकाशक, कषायभाव की उपशामक और अज्ञानतिमिर की नाशक समझना चाहिये । आज सारे भारतवर्ष में अहिंसाधर्म की जो घोषणा हो रही है वो सब पूवाचार्यों की सुमधुर कृतियों का ही फल हैं । समय समय पर लोगों के बुद्धिबल को देखकर उनके हितार्थ दूरदर्शी बहुश्रुताचार्योंने भिन्न भिन्न विषयों के अनेक गद्य-पद्यमय संस्कृत और भाषा में अनेक ग्रन्थ बनाये हैं और वर्त्तमानयुग में भी बनाये जा रहे हैं, जिनको मनन करने से लोगों को अगाध फायदा पहुंच रहा है । "" ( खंडविचार ) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) इसी शिष्टजनाचरित वस्तुस्थिति को लक्ष्य में रखकर सुविहितसूरिकुलतिलक, आबालब्रह्मचारी, क्रियाशुद्धधुपकारक, सर्वतन्त्र स्वतन्त्र, जङ्गमयुग प्रधान, प्रातः स्मरणीय, परमयोगिराज - जगत्पूज्य - गुरुदेव प्रभु श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने भिन्न भिन्न विषयों के श्रीअभिधानराजेन्द्रकोशादि अनेक ग्रन्थ बनाये हैं, जो भारतवर्षीय विद्वानों में प्रशंसा की कसोटी पर चढ़ चुके हैं । प्रस्तुत ' श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थान। चतुष्पदी ' ग्रन्थ उन्हीं में से एक है। इसमें वर्त्तमानकालीन ऋषभादि चोवीस जिनेश्वरों के अलग अलग एकसो पिचहत्तर ( १७५) और सीमन्धरादि वीस विहरमान तीर्थङ्करों के बारह बारह स्थान सन्दर्भित हैं, जो हरएक जैन को मनन करने, जानने और सीखने लायक हैं । तपागच्छीय श्री सोमतिलकसूरि-रचित 'सत्तरिसयठाणापगरण ( सप्ततिशतस्थानप्रकरण ) ' नामका प्रन्थ है, जो ३५९ प्राकृत गाथामय है और उसकी राजसूरगच्छीय-श्रीदेवविजयजी रचित अतिसरल संस्कृत वृत्ति भी है। प्रस्तुत चतुष्पदी प्रायः उसीके आधार पर रची गई है। परन्तु चतुष्पदीकारने पांच स्थान इतर जैन प्रन्थों से उद्धृत कर इसमें अधिक रक्खे हैं 1 चतुष्पदी के आरंभ में चतुष्पदीकारने इसका गुजराती भाषा में सारांश भी लिख दिया है, जिससे सीखने और वांचनेवालों को इसके समझने में किसी प्रकार की संदिग्धता नहीं रह सकती। इसके सारांश में यंत्रों की गोठवण Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होने के कारण कतिपय स्थानों के क्रमाङ्क आगे पीछे हुए मालूम पडते हैं । परंतु यंत्रों में कर्ता की विवक्षा के अनुकूल ऐसा व्यत्यय हो जाना अनुचित नहीं, उचित ही है। सारांश के चतुर्थोल्लास में पृष्ट ३६, पंक्ति ५ में ( स्थान ९९ थी १४४) इसके स्थान पर ( स्थान ९९ थी १४५) और पृष्ठ ५२, पंक्ति १७ में 'पचास' की जगह पर 'सेंतालीस' ऐसा सुधार के वांचना सीखना चाहिये । प्रस्तुत चतुष्पदी में १९ वां स्थान 'चोपाई' की राह में, २०-२१-५७-९९-११३ वां स्थान 'वरस दिवसमां आषाढ चोमास, तेहमां वली भाद्रवो मास, आठ दिवस अतिखास । ' इस पर्युषण-स्तुति की राह में, २२-२३-२४ वां स्थान दिन ' एकादशी दीपतो ए, काटे भवनी कोड तो' इस एकादशी-स्तुति की राह में, २६-२७-१५८-१५९-१६०-१७२ वां स्थान ढालों की देशियों में, ३८-३९-४५-४६-४७-४८-८१-८२-१०८ १०९-११०-१११-१३०-१३१ वां स्थान 'मणि रचित सिंहासन, बेठा जगदाधार । पर्युषण केरो, महिमा अगम अपार' इस स्तुति की रह में, ८० वां 'सोरठा' की राह में, ४४-१०२-११२-१२५-१५३-१५४-१५५-१५६-१५७ वां स्थान ' हरिगीत' छन्द में, ३६-३७-८४-११४ वां स्थान 'वीसस्थानक तप विश्वमा मोटो, श्रीजिनवर कहे आपजी' इस वीशस्थानक-स्तुति की राह में और शेष सभी स्थान 'दोहा' छन्द में समझना चाहिये । Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) " " इस पुस्तक अन्त में शुभाशुभ कर्मों का फल दिखलानेवाला ' श्रीमहावीर - गौतम - प्रवचन ' दर्ज किया गया है। इसके २९१ दोहा हैं, जो - ' नियगुणदोसेहिंतो, संपयविवयाउ हुति पुरिसाणं " " सुरो वि कुकुरो होइ, रंको राया वि जायए । दिओ वि होइ मायंगो, संसारे कम्मदोसओ || " ' जे करशे ते भरशे ' ' जे खणशे ते पडशे ' जेवुं वावे तेवु लणे' और ' अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्' इत्यादि सूक्तियों के समर्थक, हरएक श्रावक श्राविका को कंठस्थ करने लायक और पापकर्म में प्रवृत्त आत्मा को दुर्गति से बचाने वाले हैं । दरअसल में ऐसे साहित्य के मनन करने से भक्ष्याsभक्ष्य, पेयाsपेय, आचरणीय और अनाचरणीय आदि आरंभ, या अनारंभ जनक कार्यों का ज्ञान होता है और आत्मा उनके इष्टानिष्ट फलों को समझ कर दुर्गति से बचने का प्रयत्न करता है । इसीसे महर्षियोंने भव्यजीवों के हितार्थ इस प्रकार के कर्म - साहित्य की रचना की है । इत्यलं विस्तरेण, ॐ शान्तिः ! ! ! मु० सिद्धक्षेत्र - पालीताणा विक्रमाब्द १९९९, श्रावण शुक्ला ५ बुधवार, व्याख्यानवाचस्पत्युपाध्यायमुनिश्रीयतीन्द्रविजय । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याख्यानवाचस्पत्युपाध्याय-मुनिश्रीयतीन्द्रविजयजी महाराज. जन्म संवत् १९४० धवलपुर (बुंदेलखंड ) दीक्षा संवत् १९५४ खाचरोद ( मालवा) श्री महोदय प्रेस-भावनगर. Page #11 --------------------------------------------------------------------------  Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-प्रदर्शनम्। प्रथम-उल्लास (स्थान १-२०) स्थाननंबर विषय चतुष्पदी सारांश पृष्ठाङ्क पृष्ठाङ्क गुजरातीभाषामां सारांश श्रीविंशतिविहरमाणजिन-स्तवः ६८-७० . १ भवसंख्या ७०-७४ श्रीऋषभदेवना तेर भव श्रीचन्द्रप्रभस्वामीना सात भव श्रीशांतिनाथप्रभुना बार भव श्रीमुनिसुव्रतस्वामीना नव भव श्रीनेमिनाथप्रभुना नव भव - श्रीपार्श्वनाथप्रभुना दश भव ___ श्रीमहावीरप्रभुना सत्तावीश भव शेष जिनेश्वरोना त्रण व्रण भव २ जिनेश्वरोना पूर्वभवना द्वीप ३ जिनेश्वरोना पूर्वभवना क्षेत्र ४ जिनेश्वरोना पूर्वभवनी क्षेत्रदिशा • जिनेश्वरोना पूर्वभवना विजय ७५ ६ जिनेश्वरोना पूर्वभवनी नगरीओ ७६ ५ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ ss oc c com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७-८ जिनेश्वरोना पूर्वभवना नाम अने राज्य ९ जिनेश्वरोना पूर्वभवना गुरु १० जिनेश्वरोना पूर्वभवनो श्रुत ११ जिननामकर्मोपार्जन हेतु १२ जिनेश्वरोना पूर्वभवना स्वर्ग १३ जिनेश्वरोना पूर्वभवनो आयु १४ जिनेश्वरोनी च्यवन-मास तिथी १५ जिनेश्वरोना च्यवन नक्षत्र १६ जिनेश्वरोनी च्यवन राशि १७ जिनेश्वरोनो च्यवन समय १८ जिनमाताओने आवेलां चौद स्वप्न १९ स्वप्नपाठक अने स्वप्नविचार ८१ १० २० जिनेश्वरोनो गर्भस्थितिकाल ८१ ८ . द्वितीय-उल्लास (स्थान २१-५५) २१ जिनेश्वरोना जन्मनी मास तिथी ८२ १० २२-२४ जन्मसमय, जन्मनक्षत्र अने जन्मराशि ८३ ११ २५ जिनेश्वरोना मानवादि गण ८३ ११ २६ जिनेश्वरोनी नकुलादि योनि ८४ ११ २७ जिनेश्वरोना गरुडादि वर्ग ८४ ११ २८ षडारकोना नाम, प्रमाण अने जिनजन्म ८५ १२ २९ जिनजन्मसमयमां आराओनो शेषकाल : ३० जिनेश्वरोना जन्मदेश ८८ १५ 9 9 w w 9 9 vuvaa ou Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९ ) ३१ जिनेश्वरोनी जन्मनगरीओ ३२ जिनेश्वरोनी माताओ ३३ जिनेश्वरोना पिताओ ८९ १५ ३४ जिनेश्वरोनी माताओनी गति ३५ जिनेश्वरोना पिताओनी गति ३६-३७ छप्पन्न दिकमारी अने तेओना कृत्य ९० ३८-३९ इन्द्रोनी संख्या अने तेना कृत्यो ९१ १७ ४०-४१ जिनेश्वरोना गोत्र अने वंश ९२ १८ ४२-४३ जिनेश्वरोना नामोनो सामान्य अने विशेषार्थ ४४ जिनेश्वरोना लंछन ४५ जिनेश्वरने फणनी संख्या ४६-४८ जिनेश्वरोना लक्षण, ज्ञान अने वर्ण ९५ २१ ४९-५० जिनेश्वरोर्नु रूप अने बल ९६ २१ ५१ जिनेश्वरोनो उत्सेधाङ्गुलथी देहमान ५२ जिनेश्वरोनो आत्माहुलथी देहमान ५३ जिनेश्वरोतुं प्रमाणाकुलथी देहमान ५४ गृहवासमां अने दीक्षानन्तर आहार ९८ २४ ५५ जिनेश्वरोनो कुमार-कालमान ९८. २५ तृतीय-उल्लास (स्थान ५६-९८) ५६ जिनेश्वरोनो विवाह ९९ २५ . ५७ जिनेश्वरोनो राज्यकाल अने चक्रीकाल ९९ २६ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) ५८ जिनेश्वरोना अपत्योनी संख्या १०० २६ ५९ नवलोकान्तिक देवाऽऽगमन १०१ २७ ६० जिनेश्वरोनो सांवत्सरिक दान १०१ २७ ६१ जिनेश्वरोनी दीक्षा-मास तिथिओ १०१ २७ ६२-६३ जिनेश्वरोनी दीक्षाना नक्षत्र अने राशि १०२ २८ ६४-६५ जिनेश्वरोनी दीक्षावय अने तप १०२ ६६ जीनेश्वरोनी दीक्षा-शिविका ६७ जिनेश्वरोनो दीक्षा-परिवार १०३ २९ ६८ जीनेश्वरोनी दीक्षा नगरी ६९-७३ दीक्षानो समय, ज्ञान, वृक्ष, वन अने लोंच १०३ २९ ७४-७५ देवदूष्यवस्त्र अने तेनी स्थिति १०४ ३० ७६-७७ पारणाद्रव्य अने पारणासमय १०४ ३० ७८ जिनेश्वरोना पारणा नगर १०४ ३१ ७९ जिनेश्वरोना प्रथम भिक्षादायक १०५ ३१ ८० जिनेश्वरोने भिक्षा देनाराओनी गति १०५ ३१ ८१-८२ वसुधारावृष्टि अने पंच दिव्योद्भव १०६ ३२ ८३ जिनेश्वरोनो उत्कृष्टतप १०६ ३२ ८४ जिनेश्वरोना अभिग्रह ८५ जिनेश्वरोनी विहारभूमि १०७ ३२ ८६ जिनेश्वरोनो छद्मस्थकालमान १०७ ३३ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ W ( ११ ) ८७ श्रीवीरप्रभुनी तपःसंख्या १०७ ३३ ८८-८९ जिनेश्वरोने प्रमाद अने उपसर्ग १०८. ३४ ९० जिनेश्वरोना केवलज्ञाननी मास तिथिओ १०८ ९१-९२ केवलज्ञान-नक्षत्र अने राशि १०९ ३४ ९३-९४ केवलज्ञान-स्थान अने वन १०९ ३४ ९५-९६ ज्ञानतरु अने तेनो मान ११० ३५ ९७-९८ केवलज्ञाननो समय अने तप ११० ३५ चतुर्थ-उल्लास ( स्थान ९९-१४५) ९९ जिनेश्वरोनी निर्दोषता १११ ३६ १०० जिनेश्वरोना चोंत्रीश अतिशय १११ ३६ १०१ जिनवाणीना पांत्रीश अतिशय ११३ ३९ । १०२ जिनेश्वरोना आठ प्रातिहार्य . ११४ ४० १०३ जिनेश्वरोनी तीर्थ-स्थापना ११४ ४० १०४ जिनेश्वरोनो तीर्थप्रवृत्तिकाल ११५ ४१ १०५ जिनेश्वरोनो तीर्थविच्छेदकाल ११५ ४१ १०६ जिनेश्वरोना प्रथम गणधरोना नाम ११६ ४२ १०७ जिनेश्वरोनी प्रथम साध्विओना नाम ११६ ४२ १०८ जिनेश्वरोना भक्तराजा ११६ ४३ १०९-११० जिनेश्वरोना प्रथम श्रावक-श्राविका ११७ ४२ १११ जिनाऽऽगमननी वधाई देनारने प्रीतिदान११७ ४३ ११२ जिनेश्वरोना अधिष्ठायक यक्ष ११८ ४४ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा (१२) ११३ जिनेश्वरोनी अधिष्ठायिका देवी ११८ ४४ ११४ जिनेश्वरोना गणधरनी संख्या ११९ ४४ ११५ जिनेश्वरोना साधुओनी संख्या ११९ ४४ ११६ जिनेश्वरोनी साध्विओनी संख्या १२० ४४ ११७ जिनेश्वरोना श्रावकनी संख्या १२१ ४५ ११८ जिनेश्वरोनी श्राविकाओनी संख्या १२१ ४५ ११९ जिनेश्वरोना केवलज्ञानीमुनिओनी संख्या १२२ ४५ १२० जिनेश्वरोना मनःपर्यवज्ञानधर मुनिवरोनी संख्या १२२ ४५ १२१ जिनेश्वरोना अवधिज्ञानी मुनियोनी सं० १२३ ४५ १२२ जिनेश्वरोना चौद पूर्वधर मुनियोनी सं० १२४ ४६ १२३ जिनेश्वरोना वैक्रियलब्धिधर मुनि संख्या १२४ ४६ १२४ जिनेश्वरोना वादी मुनियोनी संख्या १२५ ४६ १२५ जिनेश्वरोना सामान्य मुनियोनी संख्या १२५ ४६ १२६-१२८ अनुत्तरोपपातिकमुनि, प्रकीर्ण कान्थ अने प्रत्येकबुद्ध मुनिवरोनी संख्या १२६ ४६ १२९ जिनेश्वरोना आदेशनी संख्या १२६ ४७ १३०-१३१ साधु अने श्रावक व्रतनी संख्या १२७ ४८ १३२ जिनेश्वरोना साधुओना उपकरण १२७ ४८ १३३ जिनेश्वरोनी साध्विओना उपकरण १२७ ४८ १३४-१३५ चारित्र अने तत्त्वोनी संख्या १२८ ४९ १३६-१३७ सामायिक अने प्रतिक्रमण संख्या १२८ . ५० . Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) १३८ - १४० मूलगुण, स्थितिकल्प, अने अस्थितिकल्प १४१-१४२ आवश्यक अने मुनिस्वभाव( कल्पशुद्धि ) १४३ सतरे प्रकारनो संयम १४४ - १४५ धर्मप्ररूपण अने वस्त्रवर्ण १२९ १६१ जिनेश्वरोनी युगान्तकृद्भूभि १६२ जिनेश्वरोनी पर्यायान्तकृद्भूमि १६३ - १६४ मोक्षमार्ग अने मोक्षविनय १६५ पूर्वप्रवृत्तिकाल ५० १२९ ५० १२९ ५१ १३० ५२ पश्चम–उल्लास ( स्थान १४६ - १७५ ) १४६ - १४७ जिनेश्वरोनो गृहस्थ अने केवलीकाल १३१ ५३ १४८ जिनेश्वरोनो दीक्षापर्याय १३१ ५३ १४९ जिनेश्वरोनो सर्वायुष्प्रमाण १३२ ५४ १५० जिनेश्वरोनी मोक्षगमन मास - तिथि १३६ ५४ १५१ जिनेश्वरोना मोक्षगमन नक्षत्र १३३ .५५ १३४ ५५ ५५ ५५ १५२ जिनेश्वरोनी मोक्षगमन राशि १५३ - १५४ मोक्षगमनना स्थान अने आसन १३४ १५५ - १५६ मोक्षगमनाऽवगाहना अने तप १३४ १५७ जिनेश्वरोनो मोक्षगमन परिवार १५८ - १६० मोक्षगमनवेला, मोक्षारक, अने आरकशेष काल १३४ ५६ १३५ ५६-५७ १३७ ५७ १३७ ५७ १३७ ५७ १३८ ५८ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) १६६-१६७ पूर्वविच्छेद अने शेषश्रुतप्रवृत्तिकाल १३८ ५८ १६८ जिनेश्वरोनो परस्पर अन्तर १३९ ५८ १६९ तीर्थप्रसिद्ध जिन-जीव १४० ६० १७० जिनेश्वरशासनमां रुद्रमुनि १४० ६१ १७१ जिनतीर्थमां दर्शनोत्पत्ति १४१ ६१ १७२ जिनशासनमा दश आश्चर्य १४१ ६१ १७३ जिनशासनमा चक्रवर्तिराजा १४२ ६२ १७४ जिनशासनमां नव प्रतिवासुदेव १७५ जिनशासनमां नव वासुदेव जिनशासनमां नव बलदेव १४४ ६५ श्रीविंशतिविहरमाणजिन-चतुष्पदी. - षष्ठ-उल्लास ( स्थान १-१२) १ विहरमानजिनाऽभिधान २ विहरमानजिन-जननी नाम ३ विहरमानजिन-जनकनाम १४८ ६६ ४ विहरमानजिन-सहधार्मिणी( स्त्री) १४८ ६६ ५ विहरमानजिन-लंछन १४८ ६६ . ६ विहरमानजिनोनी विजय १४९ ६७ ७ विहरमानजिनोनी नगरीओ १४९ ६७ ८-१२ विहरमानजिन-तनुवर्णादि १५० ६० अन्त्यप्रशस्ति १५० श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन १५२ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ s ess-ssc-ses - - श्रीमद्-विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के परमोपासक ఉలిక 2020 న అతని అలా అలలతలతత అతనిత లత అఅఅఅఅఅఅఅఅy ఆకలి ? - త - 7.06 26 27 सुश्रावक-रतनचंद कस्तूरचंदजी । I. IIIcITT ( HTTATE ) లా అలా అలా అలా అలా అతిలలతజతల I Hav it. H, 7717-+T66. అ Page #21 --------------------------------------------------------------------------  Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमौसमणस्स भगवओ महावीरस्स । श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरनिर्मिता पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. (गुजराती भाषामा सारांश) प्रथम-उल्लास. (स्थानक १ थी २०) १ भवसंख्या, श्रीऋषभदेवना १३ भव १ धनसार्थवाह, २ उत्तरकुरुयुगलिक, ३ सुधर्मदेव, ४ महाबलराजा, ५ ललितांगदेव, (ईशानदेव) ६ वज्रजंघराजा, ७ उत्तरकुरुयुगलिक, ८सुधर्मदेव (प्रथमदेवलोके),९ जीवानन्द (केशव) वैद्य, १० अच्युतदेव (बारमा देवलोके), ११ बज्रनाभचक्री ( महाविदेहमां), १२ सर्वार्थसिद्धदेव (पंचमानुत्तरविमाने), अने १३ श्रीऋषभदेव. श्रीचन्द्रप्रभना ७ भव १ वर्मभूप, २ सुधर्मदेव, ३ अजितसेनचक्री, ४ अच्युतेन्द्र, ५ पद्मराजा, ६ विजयन्त (द्वितीयानुत्तरविमाने), अने ७ श्रीचन्द्रप्रभ. Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां श्रीशान्तिनाथना १२ भव १ श्रीषेणनृप, २ उत्तरकुरुयुगलिक, ३ सुधर्मदेव, ४ अमिततेजविद्याधर, ५ प्राणतदेव ( दशमा देवलोके), ६ बलभद्र ( पूर्वमहाविदेहमां), ७ अच्युतदेव, ८ वज्रायुधचक्री, ९ ग्रैवेयकदेव (त्रीजा अथवा नवमा ग्रैवेयके), १० मेघरथराजा, ११ सर्वार्थसिद्धदेव, अने १२ श्रीशान्तिनाथ. एमनी प्रथम भवनी स्त्रीना भवो-अभिनंदिता १, युगलिक २, सुधर्मदेव ३, विजयनृप ४, प्राणतदेव ५, वासुदेव ( पूर्वमहाविदेहमां ) ६, नरक ७, विद्याधर ८, अच्युतदेव ९, सहस्रायुध १०, ग्रैवेयकदेव ११, दृढरथ १२, सर्वार्थसिद्धदेव १३, अने चक्रायुध (प्रभुना पुत्र, सेनानी अने प्रथम गणधर ) १४. श्रीमुनिसुव्रतना ९ भव १ शिवकेतुनृप, २ सुधर्मदेव, ३ कुबेरदत्त, ४.सनत्कुमारदेव (त्रीजा देवलोके ), ५ वज्रकुंडलराजा, ६ ब्रह्मदेव ( पंचमदेवलोके ), ७ श्रीवर्मराजा, ८ अपराजितदेव ( चतुर्थानुत्तरविमाने ) अने ९ श्रीमुनिसुव्रत. श्रीनेमिनाथना ९ भव १ धनराजा, २ सुधर्मदेव, ३ चित्रगतिविद्याधर, ४ माहेन्द्रदेव (चोथा देवलोके), ५अपराजितनृप, ६आरणदेव Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश १ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. (ग्यारमादेवलोके), ७ सुप्रतिष्ठ, मतान्तरे शंख, ८ अपराजितदेव, अने ९ श्रीनेमिनाथ. प्रभुना साथे राजिमतिना थयेलां भवो-धनवती १, सुधर्मदेव २, रत्नवती ३, माहेन्द्रदेव ४, प्रीतिमती ५, आरणदेव ६, यशोमती, अपराजितदेव ८, अने राजिमती ९. श्रीपार्श्वनाथना १० भव १ मरुभूति, २ हस्ती, ३ सहस्रार ( आठमां देवलोके), ४ करणवेगविद्याधर, ५ अच्युतदेव, ६ नरनाथ ( वज्रनाभ ), ७ मध्यम ग्रैवेयकदेव ८ सुवर्णबाहुनृप, ९ प्राणतदेव, अने १० श्रीपार्श्वनाथ. एमना साथे थयेला कमठना भवो-कमठ १, कुर्कुटसर्प २, त्रीजी नरक ३, सर्प ४, पांचमी नरक ५, कुरंगभील ६, सातमी नरक ७, सिंह ८, चोथी नरक ८, अने कमठतापस १०. श्रीमहावीरप्रभुना २७ भव १ नयसार, २ सुधर्मदेव, ३ मरीचि ( भरतपुत्र ), ४ ब्रह्मदेव, ५ कौशिक तापस, ६ सुधर्मदेव, ७ पुष्पमित्रतापस, ८ सुधर्मदेव, ९ अग्निद्योततापस, १० ईशानदेव (बीजा देवलोकमां), ११ अग्निभूतितापस, १२ सनकुमारदेव, १३ भारद्वाजतापस, १४ माहेन्द्रदेव, १५ स्थावरतापस, १६ ब्रह्मदेव, १७ विश्वभूति, १८ शुक्रदेव Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां ( सातमा देवलोके ), १९ त्रिपृष्ठवासुदेव, २० सातमी नरक, २१ सिंह, २२ चोथी नरक, २३ प्रियमित्रचक्री, २४ शुक्रदेव, २५ नन्दननृपति, आ भवमा प्रभुए अग्यार लाख, एंशी हजार, छशो पेंतालीस (११८६४५) चोवीहार मास-खमण करेलां छे. २६ प्राणतदेव, अने २७ श्रीमहावीर. __ श्रीऋषभदेव, चन्द्रप्रभ, शान्तिनाथ, मुनिसुव्रत, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ अने महावीर ए सात तीर्थंकरो सिवायना सतरे जिनेश्वरोना द्वीप, क्षेत्र अथवा विजयतुं प्रथम भव, देवनुं बीजं. अने जिन अवस्थानुं त्रीजुं, एम त्रण त्रण भव जाणवा. २-५ पूर्वभवना द्वीप, क्षेत्र, दिशा अने विजय जम्बूद्वीपमां १-२-३-४-१६-१७-१८-१९-२० २१-२२-२३-२४, ए तेर, धातकीखंडद्वीपमां ५-६-७ ८-१३-१४-१५, ए सात अने पुष्करावर्त्तद्वीपमां९-१० ११-१२, ए चार प्रभु थया छे. पूर्वमहाविदेहक्षेत्रमा १-२-३-४-५-६-७-८-९ १०-११-१२-१६-१७-१८, ए पंदर, पश्चिममहाविदेहक्षेत्रमा मल्लिजिन, एरवतक्षेत्रमा अनंतजिन, अने भरतक्षेत्रमा १३-१५-२०-२१-२२-२३-२४, ए सात प्रभु थया छे. Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश १ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. सुमेरुगिरिना दक्षिणदिशामां १३-१५-२०-२१२२-२३-२४, ए सात, अने तेनी उत्तरदिशामांअनन्तजिन, शीतोदानदिनी उत्तरदिशामां १-५-९-१६-१७, ए पांच अने तेनी दक्षिणदिशामां २-३-४-६-७-८-१०-१११२-१८-१९, ए अग्यार प्रभु थया छे. पुष्कलावती-विजयमां १-५-९-१६, वत्सविजयमां २-६-१०-१८, रमणीयविजयमां ३-७-११, मंगलावती-विजयमां ४-८-१२, आवर्तविजयमां १७, एरवतक्षेत्रमा १४, सलिलावती-विजयमा १९, अने भरतक्षेत्रमा १३-१५-२०-२१-२२-२३-२४, ए सात जिनेश्वर थया छे. ६ पूर्वभवनगरी-- ऋषभ, सुमति, सुविधि अने शान्ति पुंडरीकिनीनगरीमां, अजित, पद्म, शीतल अने अर सुसीमानगरीमां, संभव, सुपार्श्व, अने श्रेयांस शुभापुरीमा, कुन्थुजिन खड्गीपुरीमा, अनंतजिन रिष्टा-नगरीमां, अभिनंदन चन्द्रप्रभ अने वासुपूज्य रत्नसंचया-नगरीमां, धर्मनाथ भदिलपुरमां, विमलनाथ महापुरीमां, मल्लिनाथ वीतशोका-नगरीमां, नमिनाथ कौशांबी-नगरीमां, मुनिसुव्रत चंपापुरीमां, नेमिनाथ राजगृही-नगरीमां, पार्श्वनाथ अयोध्या-नगरीमा अने वीरप्रभु अहिच्छत्रा-नगरीमां थया. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चसप्ततिशनस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां १० पूर्वभवमां श्रुतधरत्व__ पूर्वभवमां ऋषभदेव बार अंग, अने शेष जिनेश्वर अग्यार अंग भणेला हता. एम जिनागमग्रन्थोमां जिनवरोनो ' पूर्वभवश्रुतधरत्व' कहेलुं छे. ११ जिननामकर्मोपार्जनहेतु १ अरिहंत, २ सिद्ध, ३ प्रवचन, ४ गुरु, ५ स्थविर, ६ बहुश्रुत, ७ तपस्वी, ८ ज्ञान, ९ दर्शन, १० विनय, ११ आवश्यक, १२ शील, १३ व्रत, १४ तप, १५ त्याग, १६ वैयावृत्त्य, १७ समाधि, १८ अपूर्वज्ञान, १९ श्रुतभक्ति, अने २० प्रवचनप्रभावना. आप्रमाणे वीशपदनी आराधना पेला छेला तीर्थकरे, अने शेष जिनेश्वरोमां कोइए १, कोइए २, कोइए ३ अने कोइए २० पदनी आराधना करेल छे. एना पछी ७-८, ९-१२-१३-१४-१५-१६ अने २० नंबरवाला स्थानक कोष्टकमां गोठवेलां छे. माटे ते कोष्ठकथीज जाणवा १-आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थनांग, समवायांग, भगवति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग, अंतकृद्दशांग, अनुत्तरोपपातिक, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र, दृष्टिवाद, ए बार अंग अने एमांथी छेलो बाद करतां अग्यार अंग कहेवाय छे. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश १ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. पूर्वभवनाम, पूर्वभवगुरु पूर्वभवस्वर्ग पूर्वभवायु राज्य ७-८ १२ १३ जिन १ वज्रनाभचक्री वज्रसेन विमलवाहन अरिदमन ३ विपुलवल ४ महाबल ५ अतिबल ६ अपराजित ७) नन्दीषेण ८ पद्मराज ९ महापद्म १० पद्मनरपति ११ नलिनीगुल्म १२ पद्मोत्तर १३ पद्मसेन | १४ पद्मरथ १५ दृढरथ १६ मेघरथ १७ सिंहावह १८ धनपति १९ वैश्रमण २० श्रीवर्मा सवार्थसिद्ध विजयानुत्तर ७ ग्रैवेयक संभ्रान्त विमलवाहन | जयंतानुत्तर सीमन्धर पिहिताश्रव जयंतानुत्तर ९ ग्रैवेयक अरिदमन २१ सिद्धार्थ २२ सुप्रतिष्ठ २३ आनन्द २४ नन्दन युगन्धर सर्वजगानंद सस्ताघ वज्रदत्त वज्रनाभ सर्वगुप्त चित्ररथ विमलवाहन विजयानुत्तर सर्वार्थसिद्ध घनरथ सम्बर साधुसंवर वरधर्म सुनन्द नन्द अतियश दामोदर पोट्टिलक २८ सागर ६ ग्रैवेयक विजयंतानुत्तर ३३ सागर आनतदेवलोक १९ सागर प्राणतदेवलोक २० सागर अच्युतदेवलोक २२ सागर प्राणतदेवलोक २० सागर सहस्रारदेवलोक १८ सागर प्राणतदेवलोक २० सागर ३३ सागर ३३ सागर २९ सागर ३३ सागर ३३ सागर ३१ सागर सर्वार्थसिद्ध सर्वार्थसिद्ध ३२ सागर ३३ सागर ३३ सागर ३३ सागर ३३ सागर जयन्तानुत्तर अपराजितानुत्तर ३३ सागर प्राणतदेवलोक २० स्नागर अपराजितानुत्तर ३३ सागर प्राणतदेवलोक २० सागर प्राणतदेवलोक २० सागर Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां जिन पुनर्वसू सिंह I wg va Movwww . 9 वृश्चिक धन च्यवनमासादि च्यवननक्षत्र | व्यवनागर्भस्थिति २० | राशि | १६ मास दिन अषाढवदि ४ | उत्तराषाढा | धन २ वैशाखसुदि १३ रोहिणी | वृषभ ३ फाल्गुनसुदि ८ मृगशीर्ष मिथुन वैशाखसुदि ४ । | मिथुन ५ श्रावणसुदि २ मघा माघवदि ६ चित्रा कन्या ७ भाद्रवावदि ८ विशाखा | चैत्रवदि ५ अनुराधा फाल्गुनवदि ९ वैशाखवदि ६ पूर्वाषाढा ११/ ज्येष्ठवदि ६ श्रवण |मकर १२ ज्येष्ठसुदि ९ शतभिषक् | कुंभ १३ वैशाखसुदि १२ उत्तरभाद्रपद मीन १४ श्रावणवदि ७ रेवती १५ वैशाखसुदि ७ | पुष्य कर्कट १६ भाद्रवावदि ७ भरणी मेष श्रावणवदि ९ कृत्तिका फाल्गुनसुदि २ रेवती मीन फाल्गुनसुदि ४ । अश्विनी श्रावणसुदि १५ श्रवण मकर आसोजसुदि १५ । आश्विनी मेष २२ कार्तिकवदि १२ चित्रा कन्या चैत्रवदि ४ विशाखा तुल २४ आषाढसुदि ६ उत्तराफाल्गुनी कन्या 8 vovar a avoauvauda a aa a aa मीन वृषभ orv9 vvv ww 9 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश १ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १७ च्यवनसमय चोवीशे जिनवरोनो च्यवन अर्धी रात्रेज थाय छे. जेवी रीते आ भरतक्षेत्रमां सर्व जिनवरोना च्यवन, मास, च्यवनतिथि, च्यवननक्षत्र, च्यवनसमय अने च्यवनराशि कल छे तेवीज रीते पांच भरत अने पांच एरवत क्षेत्रमां पण समजवा जोइये. १८ जिनमाताओने आवेलां स्वप्न प्रभु च्यवीने माताना गर्भमां आवे छे त्यारे प्रभुनी माताओने १ हस्ती, २ वृषभ, ३ सिंह, ४ लक्ष्मी, ५ पुष्पमाला, ६ चन्द्र, ७ सूर्य, ८ ध्वजा, ९ कलश, १० पद्मसरोवर, ११ समुद्र, १२ विमान, अथवा भवन, १३ रत्नराशि अने १४ निर्धूमाग्नि. ए चौद महास्वमो आका - शथी उतरता अने मुखमां प्रवेश करता देखवामां आवे छे. मरुदेवीए प्रथम स्वममां वृषभ अने त्रिशलाए सिंह जोयो. तेमज नरकथी आवेल प्रभुनी माता भवन अने स्वर्गथी आवेल प्रभुनी माता विमान देखे छे. जिनेश्वरोनी १ प्रथम, द्वितीय, तृतीय नरकथी आव्या 'जिन' प्रथम नरकथी आव्या ' चक्रवर्त्ती. ' प्रथम द्वितीय नरकथी आव्या 'वासुदेव' अने 'बलदेव' तेमज बार देवलोक, प्रैवेयक अने अनुत्तर विमानथी आव्या 'जिन' स्वर्ग अने ग्रैवेयकथी आव्या वासुदेव. ' तथा भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क अने वैमानिक देवोमांथी आव्या ' चक्रवर्त्ती ' अने ' बलभद्र' थाय छे. 6 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां माताओ आ चौद स्वप्न अतिसुन्दर ने निर्मलपणे अने चक्रवर्तियोनी माताओ मलिनपणे देखे छे. आ चौद स्वमोमांथी कोइ पण प्रकारना वासुदेवमाता ७, बलदेवमाता ४, प्रतिवासुदेवमाता ३, अने मांडलिकनृपमाता? स्वप्न देखे छे. १९-२० स्वप्नविचार-- ___ मरुदेवीमाताने चौद स्वमोना अर्थ नाभिकुलकर अने शक्रेन्द्रे कहेलां छे. शेष जिनेश्वरोनी माताओने राजा अने स्वमपाठकोए कहेलां छे. सौना अर्थ विचारमा कोइ पण प्रकारनो अर्थभेद होतो नथी. भवसंख्याथी गर्भस्थिति लगण वीशस्थानकोवडे शोभायमान आ चतुष्पदीमा प्रथम उल्लास पूर्ण थयो. 4 द्वितीय-उल्लास, (स्थानक २१ थी ५५) . २१ जिनजन्म मास तिथि-- १ चैत्रवदि ८ । ९ मगसिरवदि ५ । १७ वैशाखवदि १४ २ माघसुदि ८ १० माघवदि १२ १८ मगसिरसुदि १०. ३ मगसिरसुदि १४११ फाल्गुनवदि १२ १९ मगसिरसुदि ११ ४ माघसुदि २ १२ फाल्गुनवदि १४ २० ज्येष्ठवदि ८. ५ वैशाखसुदि ८१३ माघसुदि ३ २१ श्रावणवदि ८ ६ कार्तिकवदि १२ १४ वैशाखवदि १३ २२ श्रावणसुदि ५ ७ ज्येष्ठसुदि १२ १५ माघसुदि ३ २३ पौषवदि १० ८ पौषवदि १२ १६ ज्येष्ठवदि १३ २४ चैत्रसुदि १३ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश २ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. २२-२४ जन्मसमय, नक्षत्र अने राशि-- च्यवनमां बतावेल समय, नक्षत्र अने राशि प्रमाणेज जन्ममां पण समय, नक्षत्र अने राशिओ जाणवी. २५-२७ जिनोना गण, योनि अने वर्ग-- ऋषभ, शीतल, विमल, शांति, महावीर, ए पांच प्रभुनो मानवगण, अजित, संभव, अभिनंदन, चन्द्रप्रभ, श्रेयांस, अनन्त, धर्म, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, ए अग्यार प्रभुनो देवगण, अने सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, सुविधि, वासुपूज्य, कुन्थु, नेमि, पार्श्व, ए आठ प्रभुनो राक्षसगण समजवू. __ऋषभदेवनी नकुल, वासुपूज्य, नमि, मल्लि, ए त्रणनी अश्व, अजित अने संभवनी सर्प, अभिनंदननी विलाड, सुमतिनी मूषक, विमल अने वीरप्रभुनी गो, चन्द्रप्रभनी मृग, सुविधिजिननी श्वान, शीतल, श्रेयांस, मुनिसुव्रत, ए त्रणनी वानर, धर्मनाथ अने कुन्थुनाथनी मेष (छाग), अनंत, शांति, अर, ए त्रणनी गज, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, नेमि, पार्श्व, ए चारनी व्याघ्र योनी जाणवी. १-२-४-१४-१८, ए चारनो गरुड, चन्द्रप्रभनो सिंह, ३-५-७-९-१०-११-१६, ए सात प्रभुनो मेष, १५-२१-२२, ए त्रण प्रभुनो सर्प, १२-१३-२४, ए Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां त्रण प्रभुनो मृग, ६-१९-२०-२३, ए चार प्रभुनो मूषक, अने कुन्थुनाथनो बिलाड वर्ग जाणवू. श्वानमेष, सर्प-गरुड, मृग-सिंह, अने विलाड-मूषकने परस्पर वैरभाव समजवू. एवीज रीते स्वगण अने स्वयोनिमां परस्पर मित्रता अने विरूपमां अमित्रता समजवी. २८ षडारक नाम प्रमाणचक्र-- सुषमसुषमा कोटा कोटी सागरोपमा २ दाषमदुःषमा कोटाको सुषमा सागर अवसर्पिणी कालषडारक चक्रम् नही २ कोटा दुःषमा २१ हजार / र सागर । MAषेप्रमाण सुषमदुषमा 9012280 ULAR २९ आरकशेषमां जिनजन्म त्रीजा आरानो संख्यातो काल शेष रहेतां ऋषभदेव, चोथा आराना मध्यभागमां अजितनाथ, पश्चिमार्द्धभागमां संभवादि १७ जिनेश्वर, अने अन्त भागमां अरनाथ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश २ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १३ आदि ७ सात जिनेश्वरोनो जन्म अने मोक्ष थयो छे. वीजा आराना नव्याशी पक्ष शेष रहेतां ऋषभदेव अने चोथा आराना नव्याशी पक्ष शेष रहेतां वीरप्रभु मोक्ष गया छे. जिनजन्म थयो त्यारे आरानो केटलो काल शेष हतो ?, ते आ प्रमाणे १-त्रीजा आराना ८४ लाखपूर्व ८९ पक्ष शेष रहेतां ऋषभदेव जन्म्या. २-चोथा आराना ७२ लाखपूर्व, ४२ हजारवर्षोन ५० लाखकोड सागरोपमं शेष रहेतां अजितनाथ जन्म्या. ३-साठ लाखपूर्व, ४२ हजारवर्षोन २० लाख क्रोड सागर शेष रहेतां संभवनाथ जन्म्या. ४पचास लाख पूर्व, अने ४२ हजारवर्षोन १० लाख क्रोड सागर शेष रहेतां अभिनंदन जन्म्या. ५-चालीश लाख पूर्व, अने ४२ हजारवर्षोन १ लाख क्रोड सागर शेष रहेतां सुमतिनाथ जन्म्या. ६-त्रीश लाख पूर्व, अने ४२ हजार वर्षोन १० हजार क्रोड सागर शेष रहेतां पद्मप्रभ जन्म्या . ७-वीश लाखपूर्व, अने ४२ हजारवर्षोन १ हजार क्रोड, सागर शेष रहेतां सुपार्श्वनाथ जन्म्या. ८-दश लाख पूर्व, अने ४२ हजारवर्षोन १०० क्रोड सागर शेष रहेतां चन्द्रप्रभ जन्म्या. ९-चे लाख पूर्व, अने ४२ हजारवर्षों १ सिंतेर लाख अने छप्पन हजार कोड वर्षनो एक पूर्व थाय छे. २ दश कोटाकोटी पल्योपमनो एक सागरोपम थाय छे. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां न १० क्रोड सागर शेष रहेतां सुविधिनाथ जन्म्या. १०एक लाख पूर्व, अने ४२ हजारवर्षोन १ क्रोड सागर शेष रहेतां शीतलनाथ जन्म्या. ११-एक क्रोड ४९ लाख, ८४ हजार वर्षाधिक १०० सागर शेष रहेतां श्रेयांसनाथ जन्म्या. १२-एक क्रोड, ३७ लाख, ८४ हजारवर्षाधिक ४६ सागर शेष रहेतां वासुपूज्य जन्म्या. १३-एकक्रोड, २५ लाख, ८४ हजार वर्षाधिक १६ सागर शेष रहेतां विमलनाथ जन्म्या. १४-पंचागुं लाख, ८४ हजार वर्षाधिक ७ सागर शेष रहेतां अनन्तनाथ जन्म्या १५-पंचोतर लाख, ८४ हजार वर्षाधिक ३ सागर शेष रहेतां धर्मनाथ जन्म्या. १६-छासठ लाख, ८४ हजार वर्षाधिक पोणपल्योपम शेष रहेतां शान्तिनाथ जन्म्या. १७-छासठ लाख, ७९ हजार वर्षाधिक पाव पल्योपम शेष रहेतां कुन्थुनाथ जन्म्या . १८-एक हजार क्रोड, ६६ लाख ६८ हजार वर्ष शेष रहेतां अरनाथ जन्म्या . १९छासठ लाख, ३९ हजार वर्ष शेष रहेतां मल्लिनाथ जन्म्या. २०-बार लाख, १४ हजार वर्ष शेष रहेतां मुनिसुव्रत जन्म्या . २१-पांच लाख, ९४ हजार वर्ष शेष रहेतां नमिनाथ जन्म्या. २२-पंचाशी ८५ हजार वर्ष शेष रहेतां नेमिनाथ जन्म्या. २३-साढ़ावणसो (३५०) वर्ष शेष रहेतां पार्श्वनाथ जन्म्या . अने २४-बहोतेर वर्ष ८९ पक्ष शेष रहेता श्रीवीरप्रभुजी जन्म्या. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - पूर्व उनाव मकर सारांश २ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १५ ३०-३४ जन्मदेश, नगरी, जननी जनक अने लंछनLE जन्मदेश | जन्मनगरी| जननी | जनक | लंछन १ कोशल इक्ष्वाकुभूमि मरुदेवी | नाभिकुल० वृषभ २ कोशल | अयोध्या | विजया |जितशत्र | गज ३ कुणाल श्रावस्ती सेना जितारी | अश्व कोशल अयोध्या | सिद्धार्था सम्बर मर्कट ५ कोशल अयोध्या | मंगला | मेघभूप | क्रौंच ६ वच्छ कौशांबी सुसीमा | धरनृप पद्मकमल ७ काशी वाराणसी पृथ्वी प्रतिष्ठ स्वस्तिक चन्द्रपुरी लक्ष्मणा महसेन चन्द्र काकन्दी रामा १०, मलय भदिलपुर नन्दा दृढरथ | श्रीवत्स सिंहपुर विष्णु विष्णुनृप खड्गी १२ अंग चंपापुरी | जयादेवी वसुपूज्य | महिष कांपिल्यपुर श्यामा | कृतवर्मा | वराह | अयोध्या | सुयशा |सिंहसेन | श्येन रतनपुर सुव्रता भानुभूप | वज्र कुरु | गजपुर | अचिरा | विश्वसेन | हरिण गजपुर | सूरनृप छाग गजपुर सुदर्शन नन्दावर्त १९/ विदेह मिथिला प्रभावती | कुम्भनृप कलश २० मगध राजगृह पद्मावती | सुमित्र कच्छप २१ विदेह मिथिला | वप्रादेवी | विजय नीलकमल २२ कुशार्त्त | सौर्यपुर | शिवादेवी समुद्रविजय शंख २३/ काशी वाराणसी | वामादेवी| अश्वसेन सर्प २४) पूर्व कुंडपुर | त्रिशला | सिद्धार्थ | सिंह I पंचाल १४ कोशल देवी Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां ३५ जिन जननी गति श्रीऋषभदेवथी चन्द्रप्रभ लगण आठ प्रभुनी माताओ मोक्षमां, सुनिधिनाथथी शान्तिनाथ लगण आठ प्रभुनी माताओ त्रीजा सनत्कुमार देवलोकमां, कुन्थुनाथथी पार्श्वनाथ लगण सात प्रभुनी माताओ चोथा माहेन्द्र देवलोकमां अने वीरप्रभुनी माता त्रिशला चोथा देवलोकमां मतान्तरे बारमां अच्युत देवलोकमां गई छे. तेमज देवानन्दा ब्राह्मणी मोक्षमां गई छे. ३६ जिनजनक गति ऋषभदेवना पिता नाभि नागकुमारदेवमां, अजितनाथथी चन्द्रप्रभ लगण सात प्रभुना पिताओ बीजा ईशान देवलोकमां, सुविधिजिनथी शान्तिनाथ लगण आठ प्रभुना पिताओ त्रीजा सनत्कुमार देवलोकमां, कुन्थुनाथथी पार्श्वनाथ लगण सात प्रभुना पिताओ चोथा माहेन्द्र देवलोकमां अने वीर प्रभुना पिता चोथा, मतान्तरे बारमा देवलोकमां, तेमज ऋषभदत्त ब्राह्मण मोक्षमां गया छे. ३७-३८ दिक्कुमारी अने तेना कृत्यो-- जिन जन्म थाय छे त्यारे छप्पन दिकुमारीओना आसन कंपायमान थाय छे. तेथी तेओ अवधिज्ञानथी प्रभुनो जन्म जाणीने सुमेरुना गजदन्तादिना अधोलोके वसनारी ८, सुमेरुना ऊपर नन्दनवनना ऊर्ध्वक्टोमां रह Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश २ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १७ नारी ८, रुचकाद्रिनी पूर्वदिशामां वास करनारी ८, रुचकाद्रिना दक्षिणमां वसनारी ८, रुचकाद्रिना पश्चिममां रहेनारी ८, रुचकाद्रिना उत्तरमां वसनारी ८, रुचकाद्रिना विदिशामां वसनारी ४ अने रुचकद्वीपना मध्यमां वसनारी ४, एवं छप्पन दिक्कुमारिओ प्रभुना जन्मस्थाने आवे छे. तेओ कदलीगृह १, भूमिशोधन करनार संवर्त्तक वायु २, सुरभिजलवृष्टि ३, जलपूर्ण अभिषेक कलश ४, आदर्श ५, बींजना ६, चामर ७, दीपक ८, अने नालच्छेद ९, आ नव कृत्य करवा पूर्वक अशुचि टाली, नाटक करी अने शुभाशीष आपीने पोत पोताना स्थानके जाय छे. आ देवीओमां दरेक देवीने चार महत्तरादेवी, चार हजार सामानिकदेव, शोल हजार अंगरक्षकदेव अने सात कटकाधिपति देवनो परिवार होय छे. तेओ एक हजार प्रमाण विमानमां सपरिवार बेशी प्रभुनो जन्मोत्सव करवा आवे छे. ३९-४० इन्द्रसंख्या अने तेओना कृत्य - भवनपतिना २०, व्यन्तरना ३२, ज्योतिष्कना २, १ - एक इन्द्रने पोताना आयुष्यमां बावीश कोटा कोटी, पंचाशी लाख इकोतेर हजार चारशो अठ्ठावीश क्रोड, सत्तावन लाख चौद दजार बशो पंचाशी इन्द्राणिओ होय छे एम ' रत्नसंचयप्रकरण ' मां कहेल ले. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषमा अने बार देवलोकना १०, ए चोसठ इन्द्र जाणवा. प्रभुना जन्मोत्सवमां इन्द्रोना दश कृत्य छे-१ जिनप्रतिबिंब बनाव, २ पांच रूप करी प्रभुने हस्तांजलिमां लेवा. ३ आठ हजार चोसठ जलकलशाओथी प्रभुनो अभिषेक करावयु, ४ प्रभुना शरीरे गोशीर्षचन्दननो विलेपन करवू. ५ अंग अग्रपूजा करवी, ६ प्रभुने वस्त्राभूषण पहेराववा ७ माता पासे मेली प्रतिबिंबने हरण करवू. ८ प्रभुना हस्तांगुष्ठे अमृत संचारवं, ९ बत्रीश क्रोड सोनैयानी वृष्टि करवी, अने १० अष्टाह्निका महोत्सव करवो. ४१-४२ जिनवरोना गोत्र अने वंश____ मुनिसुव्रत अने पार्श्वप्रभुनो ' गौतमगोत्र' तथा शेष जिनवरोनो 'काश्यपगोत्र' छे. तेमज मुनिसुव्रत अने नेमिनाथ 'हरिवंश' मां अने शेष जिनेश्वरो 'इक्ष्वाकुवंश' मां थया. ४३-४४ जिननामर्नु सामान्य अने विशेषार्थ__ व्रतधुरा वहन करवाथी, वृषभनुं लंछन होवाथी अने माताए प्रथम स्वप्नमां वृषभ जोवाथी 'वृषभ' तेमज धर्मनी आदिना कर्ता होवाथी 'आदिनाथ' १, रागादि शत्रुओने जीतवाथी, अने प्रभु गर्भमां हता १ ग्रेटब्लेक टाइप (अक्षर) वालोअर्थ छे ते 'सामान्य' अने सादा टाइपवालो ' विशेषार्थ' समजवु जोइए. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश २ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १९ त्यारे पाशक क्रीडामां मातानी जीत थवाथी' अजित' २, उत्तम अतिशयोनो संभव होवाथी, अने पृथ्वीमां घांस, धान्य, आदिनी वृद्धि थवानो संभव होवाथी 'संभव' ३, इन्द्रोए प्रशंसा करवाथी अने गर्भ छतां इन्द्रोवडे प्रशंसा पामेला होवाथी 'अभिनन्दन' ४, श्रेष्टबुद्धिवाला होवाथी, अने गर्भप्रभावे माताए सारी मतिवडे विवाद भांगवाथी 'सुमति' ५, पद्मकमल सरखो रक्तवर्ण-शरीर होवाथी, अने पनलंछन के माताने पद्मशय्यानुं डोहलो उपजवाथी 'पद्मप्रभ ' ६, शरीरना अवयव अति सुन्दर होवाथी, अने गर्भप्रभावे माताना तनुपाशा अतिमनोहर थवाथी 'सुपार्श्व' ७, चन्द्रसरखी शरीर कान्ति होवाथी, अने गर्भप्रभावे मातानो शरीर चन्द्रकान्तिवत् थवाथी, के माताने चन्द्र पाननो दोहलो उत्पन्न थवाथी 'चन्द्रप्रभ' ८, शुभ क्रियामा प्रवर्त्तवाथी, अने गर्भप्रभावे मातानी प्रवृत्ति शुभ आचार विचारवाली होवाथी 'सुविधि' ९, जगतनो ताप संहरवाथी, अने गर्भप्रभावे माताना हस्तस्पर्शमात्रथी राजानो दाहज्वर मटी जवाथी 'शीतल' १०, कल्याण करनार होवाथी, अने गर्भप्रभावे माताए देवी अधिष्ठित शय्यानो आक्रमण करवाथी ' श्रेयांस' ११, इन्द्रोना पूज्य होवाथी, अने वसुपूज्य भूपतिना पुत्र होवाथी 'वासु Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां पूज्य ' १२, अंतर अने बाह्य मलनो अभाव होवाथी, अने गर्भप्रभावे मातानी बद्धि निर्मल थवाथी 'विमल' १३, अनन्त ज्ञान दर्शन चारित्र गुणना धारक होवाथी, अने माताने अगणित मणिरत्नमय मालानुं स्वप्न आववाथी 'अनन्त' १४, धर्मनोज स्वभाव होवाथी, अने गर्भप्रभावे मातानी प्रवृत्ति धर्ममा विशेष होवाथी 'धर्म' १५, शांतिना प्रचारक होवाथी, अने गर्भमां आवतां वारज देशमा सर्वोपद्रव मटी जवाथी 'शान्ति ' १६, पृथ्वी ऊपर रहेवाथी, अने माताने भूमि स्थापित रत्नस्तूपनो स्वप्न आववाथी 'कुन्थु' १७, वंशवृद्धि करनार होवाथी, अने माताए स्वप्नमां रत्ननो आरक ( चक्र ) जोवाथी 'अर' १८, मोहरूप मल्लने जीतवाथी, अने माताए स्वप्नमां कुसुममाल्यनी शय्या देखवाथी 'मल्लि' १९, उत्तम व्रतवाला होवाथी, अने गर्भप्रभावे माता पण सारा व्रतवाली थवाथी 'मुनिसुव्रत' २०, रागादि शत्रुओने नमावनार होवाथी, अने गर्भप्रभावे मातानी दृष्टि पडतांज शत्रुराजाओ भागी जवाथी 'नमि' २१, पापवृक्षने नमाववाथी, अने माताने रिष्टरत्नमय नेमिनो स्वप्न आववाथी 'नेमि' २२, सर्व पदार्थोने जोवाथी, अने माताए शय्या पासे जता सर्पने घोर अंधारामां जोवाथी 'पार्श्व' २३, ज्ञानादिगुण अने कुलनी वृद्धि Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश २ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. करनार होवाथी 'वर्द्धमान ' अन्तरंग शत्रुओ, दुष्टदेवो, अने भय भैरवोनो दमन करवाथी 'वीर' अने अनुकूल के प्रतिकूल महा उपसर्गोने सहनार होवाथी 'महावीर' नाम थयुं छे २४. ४५-४७ फणसंख्या, लक्षण अने गृहे ज्ञान सुपार्श्वप्रभुने १।५।९ फण, पार्श्वप्रभुने ३ । ७।११, अने मतान्तरे १००० फण होय छे. प्रभुमाता स्वप्नमां उक्त फणवाला सर्पने जुवे छे तेथी तेमनी प्रतिमा ऊपर तेटला फणवाला सर्प बनाववानी मर्यादा चालु थई छे. सर्व जिनेश्वरोना शरीरमा एक हजार ने आठ शुभ लक्षण होय छे. अने पाछला भवथी लइ घरमां रहे त्यां सुधी १ मति, २ श्रुत, ३ अवधि, ए त्रण ज्ञान होय छे. दीक्षा लीधा पछी छमस्थ रहे त्यां लगण मनःपर्यव सहित चार ज्ञान समजवा. ४८ जिनवरोना शरीरनो वर्ण__ चन्द्रप्रभ अने सुविधिनाथना शरीरनुं 'श्वेतवर्ण' मल्लिनाथ अने पार्श्वनाथनुं नीलवर्ण, पद्मप्रभ अने वासुपूज्यनुं रक्तवर्ण, मुनिसुव्रत अने नेमिनाथनुं श्यामवर्ण, तथा शेष शोल जिनवर सुवर्णवर्णवाला जाणवा. ४९-५० रूप अने बलनी उत्कृष्टता. सर्वदेवो भेगा थइने अंगुष्ठ प्रमाण एक दिव्य रूप Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां बनावे तो पण ते जिनवरना चरणांगुष्ठना रूपना जोडे आवी शके नहि, चरणांगुष्ठ आगल ते कोलशा जेवो देखाय. जिनेश्वरोना रूपथी गणधर १, आहारकशरीरी २, अनुत्तरवासीदेव ३, ग्रेवेयकदेव ४, कल्पवासीदेव ५, ज्योतिष्कदेव ६, भवनपतिदेव ७, व्यन्तरदेव ८, चक्रवर्ती ९, वासुदेव १०, बलदेव ११, मांडलिक १२, आ बार ठेकाणा रूपमां हीन हीन समजवा. राजाथी बमणो बलदेवमां, तेथी बमणो वासुदेवमां, तेथी बमणो चक्रवर्तीमां बल ( पराक्रम ) होय छे. पण जिनेश्वरोमां अनन्त बल होय छे. तेना आगल सर्वेना बल हलका समजवा. जिनेश्वरो क्षमासागर होय छे तेथी तेओ वगर कारणे पोतानुं बल कोई काले फोरवता नथी. नवजात वीरप्रभुए चरणांगुष्ठवडे लाख योजन प्रमाणवाला सुमेरूपर्वतने कंपाव्यो हतो ते आश्चर्य मनायुं छे. ५१-५२ उत्सेधांगुल अने आत्मांगुलथी तनुमान-- उत्सेधांगुलथी ऋषभदेव प्रभुनु शरीरमान ५०० धनुषनो छे. त्यार पछी सुविधिनाथ लगण पचास पचास धनुष घटाडतां अजितनाथनो ४५०, संभवनाथनो ४००, अभिनंदननो ३५०, सुमतिनाथनो ३००, पद्मप्रभनो २५०, सुपार्श्वनाथनो २००, चन्द्रप्रभनो १५०, अने सुविधिनाथनो १०० धनुषनो शरीरमान होय. पछी अनन्तनाथ लगण दश दश धनुष हीन करतां शीतलनाथनो ९०, Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाथनो ८०, वासुमनुषनो तनुमान करतां सारांश २ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. २३ श्रेयांसनाथनो ८०, वासुपूज्यनो ७०, विमलनाथनो ६०, अने अनन्तनाथनो ५० धनुषनो तनुमान होय. त्यार बाद नेमिनाथ लगण पांच पांच धनुष ओछा करतां धर्मनाथनो ४५, शान्तिनाथनो ४०, कुन्थुनाथनो ३५, अरनाथनो ३०, मल्लिनाथनो २५, मुनिसुव्रतनो २०, नमिजिननो १५, अने नेमिनाथनो १० धनुषनो तनुमान होय. पार्श्वनाथनो ९ हाथ अने वीरप्रभुनो ७ हाथनो शरीरमान होय छे. आत्मांगुलना प्रमाणथी सर्व जिनवरोनो शरीरमान एकसो वीश (१२० ) अंगुलनो जाणवू. तेमां न्यूनाधिकपणुं होतो नथी. ५३ प्रमाणांगुलथी शरीरमान उत्सेधांगुल प्रमाणथी चार धनुष अने एक हाथनो प्रमाणांगुल होय छे तेवा १२० अंगुलनो ऋषभदेवनो शरीरमान जाणवू, तेमांथी सुविधिनाथ गण बार बार अंगुल घटाडतां अजितनाथनो १०८, संभवनाथनो ९६, अभिनंदननो ८४, सुमतिजिननो ७२, पनप्रभनो ६०, सुपार्श्वनो ४८, चन्द्रप्रभनो ३६ अने सुविधिनाथनो २४ अंगुलनो शरीरमान समजवू. त्यार पछी बे अंगुल अने एक १-एक धनुषना बार भाग ( अंश ) करवा. तेवा बारिया बे भाग (एक हाथ ) ग्रहण करवो. २-ऋषभदेवनो एक अंगुल समजवो. Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां अंगुलना ५० भाग करवा, तेवा वीस भाग हीन करता शीतलजिननो २१ अंगुल ने पचासिया ३० भाग, श्रेयांसनाथनो १९ अंगुल पचासिया १० भाग, वासुपूज्यनो १६ अंगुल पचासिया ४० भाग, विमलनाथनो १४ अंगुल पचासिया २० भाग, अने अनन्तनाथनो १२ अंगुलनो शरीरमान जाणवू. त्यार बाद नेमिनाथ लगण एक अंगुल ने पचासिया दश भागनी हानी करतां धर्मनाथनो १० अंगुल पचासिया ४० भाग, शान्तिनाथनो ९ अंगुल पचासिया ३० भाग, कुन्थुनाथनो ८ अंगुल पचासिया २० भाग, अरनाथनो ७ अंगुल पचासिया १० भाग, मल्लिनाथनो ६ अंगुल, मुनिसुव्रतनो ४ अंगुल पचासिया ४० भाग, नमिजिननो ३ अंगुल पचासिया ३० भाग अने नेमिनाथनो २ अंगुल पचासिया २० भाग, पार्श्वनाथनो पचासिया २७ भाग अने वीरप्रभुनो पचासिया २१ भागनो शरीरमान समजवु. ५४ गृहवासमां अने दीक्षानन्तर आहार बाल्यावस्थामां सर्व जिनेश्वरोने हस्ताङ्गुष्ठ-संचारित अमृतनो आहार होय छे. कुमार अवस्थामां ऋषभदेव प्रभुने उत्तरकुरुक्षेत्रना फलोनो आहार अने शेष जिनवरोने विशिष्टाननो आहार, तथा संयम लीधा पछी चोवीशे प्रभुने शुद्ध दोष रहित अनादिकनो आहार होय छे. Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश २ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ५५ कुमारवासकाल-- १ वीशलाख पूर्व । ९ पचास हजार पर्व २७ पोनाचोवीश २ अढार लाख पूर्व १० पश्चीसहजार २ अढार लाख पूर्व १० पश्चीसहजार पूर्वीसार हजार वर्ष ३ पंदर लाख पूर्व ११ इकवीशलाख वर्ष २० को वर्ष ४ साडीबारलाखपूर्व/१२ अढार लाख वर्ष २० पंचोतरशो वर्ष ५ दशलाख पूर्व १३ पंदर लाख वर्ष २१ पञ्चीशशो वर्ष ६साडीसातलाखपूर्व१४साडीसातलाखवर्ष २२ त्रणसो वर्ष ७ पांच लाख पूर्व १५ अढी लाख वर्ष२३ त्रीश वर्ष ८ अढीलाख पूर्व १६ पञ्चीस हजार वर्ष २४ त्रीश वर्ष जिनेश्वरोना जन्ममासतिथिथी लइ कुमारवासकाल लगण पांत्रीश स्थानकोवडे शोभायमान आ चतुष्पदीमां द्वितीय-उल्लास पूर्ण थयो. - REतृतीय-उल्लास, (स्थानक ५६ थी ९८) ५६ जिनेश्वरोनो विवाह____ मल्लिनाथ अने नेमिनाथ अपरिणीत ( अविवाहित ) अने शेष बावीश जिनवर परिणीत समजवा. बावीश जिनेश्वरोए भोग्य कर्मना उदयथी विशिष्ट दिव्यभोगो भोगव्या. नेमिनाथप्रभु जान लइने परणवा माटे गया, पण क्षीणभोगी होवाथी परण्या वगर पशुबन्धन छोडावी दीक्षा लीधी. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां ५७ जिनेश्वरोनो राज्यकाल अने चक्रीकाल ऋषभदेव ६३ लाख पूर्व, अजितनाथ ५३ लाख पूर्व १ पूर्वाङ्ग, संभवनाथ ४४ लाख पूर्व ४ पूर्वाङ्ग, अभिनन्दन साढ़ा ३६ लाख पूर्व ८ पूर्वाङ्ग, सुमतिनाथ २९ लाख पूर्व १२ पूर्वाङ्ग, पद्मप्रभ साढ़ा २१ लाख पूर्व १६ पूर्वाङ्ग, सुपार्श्वनाथ १४ लाख पूर्व २० पूर्वाङ्ग, चन्द्रप्रभ साढ़ा ६ लाख पूर्व २४ पूर्वाङ्ग, सुविधिनाथ ५० हजार पूर्व २८ पूर्वाङ्ग, शीतलनाथ ५० हजार पूर्व, श्रेयांसनाथ ४२ लाख वर्ष, वासुपूज्यने राज्यनो अभाव, विमलनाथ ३० लाख वर्ष, अनन्तनाथ १५ लाख वर्ष, धर्मनाथ ५ लाख वर्ष, शान्तिनाथ २५ हजार वर्ष, कुन्थुनाथ पोणा २४ हजार वर्ष, अरनाथ २१ हजार वर्ष, मुनिसुव्रत १५ हजार वर्ष, नमिजिन ५ हजार वर्ष, लगण राज्यपदे रह्या. अने मल्लि, नेमि, पार्श्व अने वीरप्रभुने राज्यनो अभाव जाणवू. ५८ जिनेश्वरोनी अपत्य संख्या ऋषभदेवने १०० पुत्र २ पुत्री, संभवनाथने ३, अभिनंदनने ३, सुमतिनाथने ३, पद्मप्रभने १३, सुपार्श्वने १७, चन्द्रप्रभने १८, सुविधिनाथने १९, शीतलनाथने १४, श्रेयांसने ९९, वासुपूज्यने १४, अनन्तनाथने ८८, धर्म नाथने १९, शान्तिनाथने १॥ क्रोड, कुन्थुनाथने १॥ क्रोड, अरनाथने १॥ क्रोड, मुनिसुव्रतने १९ पुत्र अने Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ३ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थान चतुष्पदी. २७ वीर प्रभुने १ पुत्री, ए अपत्यसंख्या जाणवी. शेष छ तीर्थकरोने पुत्र के पुत्री कोई थया नथी. ५९ लोकान्तिक देव पांचमा ब्रह्मदेवलोकनी कृष्णराजीना नव महाविमानमां वसनारा आठ सागरोपमा युवाला एकावतारी १ सारस्वत, २ आदित्य ३ वह्नि, ४ वरुण, ५ गर्दतोय, ६ तुषित ७ अव्यावाध, ८ आग्नेय (मारुत), ९ अरिष्ट, ए नवलोकान्तिक देवो जय जय नंदा जय जय भद्दा बोलता प्रभुने दीक्षावसर जणाववा माटे आवे छे. ६० सांवत्सरिक दान प्रातःकालथी भोजनवेला लगण जिनेश्वरो प्रतिदिन बार महीना सुधी एक क्रोड अने आठ लाख सोनैया दानमा आपे छे. एक वर्षमां त्रणसो अठ्यासी क्रोड, एंशी लाख सोनैया दानना थया समजवा. ६१ दीक्षानी मास अने तिथिओ जन्म समयमा जे मास पक्ष कहेलां छे तेज दीक्षामां जाणवा. पण एटलं विशेष छे के मुनिसुव्रतनो फाल्गुनसुदि, नमिजिननो : अषाढवदि अने वीरनो मगसिरवदि पक्ष छे. ते मास पक्ष तिथिओ नीचे प्रमाणे Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. २८ १ चैत्रवदि ८ २ माघसुदि ९ १० माघवदि १२ ३ मृगसिरसुदि १५ ११ फाल्गुनवदि १३ ४ माघसुदि १२ ५ वैशाखसुदि ९ ६ कार्त्तिकवदि १३ १२ फाल्गुनवदि ३० १३ माघसुदि ४ १४ वैशाखवदि १४ १५ माघसुदि १३ ७ ज्येष्ठसुदि १३ ८ पौषवदि १३ |१६ ज्येष्ठवदि १४ ६२-६५ दीक्षानक्षत्र, राशि, वय अने तप [ गुजराती भाषामां ९ मगसिरवाद ६ १७ वैशाखवदि ५ १ सुदर्शना २ सुप्रभा ३ सिद्धार्था ४ अर्थसिद्धा जन्ममां जे राशि, नक्षत्र बताववामां आव्यां छे तेज दीक्षामां जाणवा. वासुपूज्य, मल्लि, नेमि, पार्श्व अने श्रीवीर ए पांच प्रभु प्रथम कुमार अवस्थामां, तथा शेष १९ तीर्थंकरो पश्चिम अवस्थामां दीक्षित थया छे. दीक्षा वखते सुमतिनाथने नित्यभक्त, मल्लिनाथ अने पार्श्वनाथने अम (तेलो), वासुपूज्यने चतुर्थभक्त (उपवास) अने शेष २० जिनवरोने षष्ठभक्त ( बेला ) नी तपस्या हती. ६६ दीक्षानी शिबिका- ५ अभयंकरा ६ निर्वृतिकरी ७ मनोहरा ८ मनोरमिका ९ सूरप्रभा १० शुक्रप्रभा ११ विमलप्रभा १२ पृथिवी १३ देवदिना १८ मगसिरसुदि ११ १९ मगसिर सुदि ११ २० फाल्गुन सुदि १२ २१ आषाढवदि ९ २२ श्रावणसुदि ६ २३ पौषवदि ११ २४ मगसिरवाद १० १४ सागरदत्ता १५ नागदत्ता १६ सर्वार्था १७ विजया १८ वैजन्यती १९ जयन्ती २० अपराजिता २१ देवकुरु २२ द्वारवती २३ विशाला २४ चन्द्रप्रभा Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ३ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. २९ देव दानवेन्द्रो ए शिबिकाओने उपाडे छे अने जिनवरो तेओमां बेशी दीक्षा लेवा माटे उद्यानमां जाय छे. ६७ दीक्षापरिवार वासुपूज्यस्वामीए ६००, मल्लिनाथप्रभुए ३००, पार्श्वनाथप्रभुए ३००, ऋषभदेवस्वामीए ४०००, अने शेष उगणीश प्रभुए एक एक १००० पुरुषोना परिवारथी तथा वीरप्रभुए एकाकी दीक्षा ग्रहण करेल छे. ६८ दीक्षानी नगरिओ-- नेमनाथप्रभुए द्वारवती (द्वारिका) मां अने शेष जिनवरोए पोत पोतानी जन्म नगरीओमां दीक्षा लीधेल छे. ६९-७३ व्रत समय, वृक्ष, ज्ञान, वन अने लोंच सुमतिनाथ , श्रेयांसजिन, नेमिनाथ, मल्लिनाथ अने पार्श्वनाथ ए पांच प्रभुए पूर्वाह्न (बपोर पहेलां ) तथा शेष १९ प्रभुए पश्चिमाह्नमां (बपोर पछी) दीक्षा ग्रहण करेल छे. सर्वे जिनवरोनी अशोकवृक्षना हेठल दीक्षा थई छे अने दीक्षा लेतां वारज चोथो मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न १-त्रणसो पुरुष अने त्रणसो स्त्रियोना परिवारथी मल्लिनाथप्रभुए दीक्षा लीधी, ग्रन्थान्तरोमां एम पण कहेल छे. ते वाचनान्तर भेद समजवु. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां थयेल छे. ऋषभदेवे सिद्धार्थवनमां, मुनिसुव्रते नीलगुहावनमां, वासुपूज्ये विहारगेहवनमां, धर्मनाथे वप्रगावनमां, पार्श्वनाथे आश्रमपदवनमां, वीरप्रभुए ज्ञातखंडवनमां अने शेष जिनेश्वरोए सहस्राम्रवनमा कर्मपीडानो नाश करवा माटे संयम धारण करेल छे. तेमज ऋषभदेवप्रभुए चार मुष्टि अने शेष जिनवरोए पंचमुष्टि लोंच करेल छे, लोंच कर्यां पछी फरी केशोद्गम न होवाथी लोंच करवा नो क्लेश जिनवरोने होतो नथी. ७४-७५ देवदूष्य वस्त्र अने तेनी स्थिति दीक्षासमयमां जिनेश्वरोना स्कन्ध (खभा) ऊपर लक्ष मूल्यवालुं देवदूष्यवस्त्र शक्रेन्द्र मूके छे. ते त्रेवीश तीर्थकरोना खभा ऊपर सदाकाल रहे छे तेथी तेओ सचेल कहेवाय छे, अने वीरप्रभुए कांइक अधिक एक वर्ष पछी अनुकंपा लावीने देवदृष्य वस्त्र ब्राह्मणने आपी दी, तेथी ते अचेल कहेवाया. ७६-७७ पारणाद्रव्य अने पारणा समय ऋषभदेवजीए प्रथम पारणो इक्षुरसथी अने शेष जिनवरोए परमान (खीर) थी कर्यो. ऋषभदेवजीए बारमासे अने शेष प्रभुए बीजा दिवसेज पारणो कर्यो. सर्व जिनवर परीपहशूर, अचल, अमल, सहनशील अने क्षमाशूर होय छे. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ३ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ७८ प्रथम पारणा नगर १ हस्तिनापुर २ अयोध्या ३ श्रावस्ती ४ अयोध्या ५ विजयपुर ६ ब्रह्मस्थल ७ पाटलिखंड ८ पद्मखंड | ९ श्वेतपुर | १७ चक्रपुर | १० रिष्टपुर | १८ राजपुर ११ सिद्धार्थपुर | १९ मिथिला १२ महापुर २० राजगृह १३ धान्यकड | २१ वीरपुर १४ बर्द्धमानपुर | २२ द्वारवती १५ सौमनस्य २३ कोपकट । १६ मंदिरपुर । २४ कोल्लागसंनिवेश ७९ प्रथम भिक्षा आपनारना नाम १ श्रेयांस ९ पुष्प १७ व्याघ्रसिंह २ ब्रह्मदत्त १० पुनर्वसु १८ अपराजित ३ सुरेन्द्रदत्त ११ नन्द १९ विश्वसेन ४ इन्द्रदत्त १२ सुनन्द २० ब्रह्मदत्त ५ पन १३ जय २१ दिन ६ सोमदेव १४ विजय २२ वरदिन ७ महेन्द्र १५ धर्मसिंह २३ धन्य ८ सोमदत्त ।१६ सुमित्र । २४ बहुलद्विज ८० प्रथम भिक्षा देनाराओनी गति प्रथमना आठ दातार तेज भवमां दीक्षा लइने मोक्ष गया, संसारसमुद्रने तर्या अने सिद्धिवधूने वर्या. शेष दातारोमां केटलाक त्रीजा भवे मोक्ष जाशे अने केटलाक तद्भवेज सिद्ध थया छे. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां ८१-८२ वसुधारावृष्टि अने पंच दिव्योद्भव जिनेश्वरो ज्यां पारणो करे छे त्यां उत्कृष्टथी साढी बार क्रोड अने जघन्यथी साढी बार लाख सोनैयानी वर्षा थाय छे. तेमज त्यां १ जल-कुसुमवृष्टि, २ वसुधारा ( सोनैया ) वृष्टि ३ चेलोत्क्षेप ( वसनवृष्टि ) ४ दुन्दुभिध्वनि, ५ अहोदानंनी घोषणा, ए पंच दिव्य प्रगट थाय छ. जिनेश्वरोनो दान दुनियामां बहु आश्चर्य उत्पन्न करे छे. ८३-८५ उत्कृष्टतप, अभिग्रह अने विहारभूमि श्रीऋषभतीर्थमां १२ मासी, मध्यम जिनतीर्थमा ८ मासी अने श्रीवीरतीर्थमां ६ मासी उत्कृष्ट तप होय छे. सर्वे जिनवरोने द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव भेदवाला अनेक प्रकारना अभिग्रह होय छे. परन्तु वीरपरमात्माने १ अप्रीतिवाला स्थानमां न रहेवू, २ कायाने नित्य वोसिरावीने रहे, ३ मौन राख, ४ हाथमांज भोजन करवू, लेवं, ५ गृहस्थोनो विनय न करवू. ए पांच अभिग्रह अधिक समजवा. छमस्थ अवस्थामां ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ अने महावीर ए जिनवरोनो आर्य, अनार्य बन्ने देशोमां अने शेष प्रभुओनो आर्यदेशमांज विहार थयेल छे. केवलि अवस्थामां सर्व तीर्थकर आर्यदेशमांज विचरे छे. १-ए सोनैया तोल ( वजन ) मा एक लाख, त्रीश हजार, बशो मण, अने तेर सेर, चोवीश टांक होय छे. Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ३ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. . ८६ छद्मस्थकालमान___ ऋषभदेवनो १००० वर्ष, अजितनो १२ वर्ष, संभवनो १४ वर्ष, अभिनंदननो १८ वर्ष, सुमतिनो २० वर्ष, पद्मप्रभनो ६ मास, सुपार्श्वनो ९ मास, चन्द्रप्रभनो ३ मास, सुविधिनो ४ मास, शीतलनो ३ मास, श्रेयांसनो २ मास, वासुपूज्यनो १ मास, विमलनो २ मास, अनन्तनो ३ वर्ष, धर्मनो २ वर्ष, शान्तिनो १ वर्ष, कुन्थुनो १६ वर्ष, अरनाथनो ३ वर्ष, मल्लिनो १ अहोरात्रि, मुनिसुव्रतनो ११ मास, नमिजिननो ९ मास, नेमिनाथनो ५४ दिन, पार्श्वनाथनो ८४ दिन, अने वीरप्रभुनो १२ वर्ष साढा छे मासनो छमस्थ काल जाणवो. ८७ वीरप्रभुनी तपःसंख्या सर्व जिनेश्वरो उग्रतप करवावाला होय छे. परन्तु वीरप्रभुए सघन कर्मोनो नाश करवा माटे सौथी वधारे तप करेल छे. ते आ प्रमाणे दीक्षा दिवसे उपवास १, षण्मासी १, पंचदिनोनषण्मासी २, चतुर्मासी ९, त्रिमासी २, अढीमासी २, द्विमासी ६, दोढमासी २, मासक्षपण १२, पक्षक्षपण ७२, अट्ठम १२, षष्ठभक्त (बेला ) २२९, भद्रप्रतिमा उपवास २, महाभद्रप्रतिमा उपवास ४, सर्वतोभद्रप्रतिमा उपवास Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां १०, एवं साढीबार वर्ष एक पक्षमा प्रभुए ३४९ पारणाकर्या छे. शेष सर्वकाल चोविहारतपमां व्यतीत करेल छ अने पारणे पण एकज वार भोजन वापरेल छे. ८८-८९ प्रमाद अने उपसर्ग___ अस्थिग्राममा वीरप्रभुने अन्तर्मुहूर्त-मात्र अने ऋषभदेवने अहोरात्रि प्रमाद आव्यो. परन्तु ए मोटो विषवाद (आश्चर्य ) गणायो छे. पार्श्वनाथने कमठनो अने वीरप्रभुने अनेक उपसर्ग थया. शेष जिनवरोने कोइ प्रकारनो उपसर्ग के प्रमाद थयो नथी. ९० केवलज्ञानमास, तिथि१ फाल्गुनवदि११ | ९ कार्तिकसुदि ३/१७ चैत्रसुदि ३ २ पौषसुदि ११ १० पोषवदि १४ १८ कार्तिकसुदि १२ ३ कार्तिकवदि ५ ११ माघवदि ३० १९ मगसिरसुदि ११ ४ पौषसुदि १४ १२ माघसुदि २ २० फाल्गुनवदि १२ ५ चैत्रसुदि ११ १३ पोषसुदि ६ २१ मगसिरसुदि ११ ६ चैत्रसुदि १५ १४ वैशाखवदि १४ २२ आसोजवदि ३० ७ फाल्गुनवदि ६ १५ पोषसुदि १५ २३ चैत्रवदि १४ ८ फाल्गुनवदि ७ /१६ पोषसुदि ९ २४ वैशाखसुदि १० ९१-९४ ज्ञाननक्षत्र, राशि, ज्ञानस्थान अने ज्ञानवन १ वीरप्रभुए मरीचिना भवमां बांधेल निकाचित कर्मना बाकी रहेल भोगने नाश करवा माटे आटलो तप कर्यो छे. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ३ उल्लास ] पश्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. च्यवन समयमांजे नक्षत्र अने राशि बतावेलांछे तेज केवलज्ञानमां समजवा.ऋषभदेवने पुरिमतालनगरमां,नेमि. नाथने रैवताचलमां, अने वीरप्रभुने भिकानगरना बाहर, शेष जिनेन्द्रोने पोताना जन्मनगरमांज केवलज्ञान थयो छे. ऋषभप्रभुने शकटमुखवनमां, वीरप्रभुने ऋजुवालिका नदीना किनारे अने शेष जिनवरोने व्रतवनमां केवलज्ञान थयो. ९५-९६ ज्ञानतरु, अने तेनो मान__ज्ञानवृक्षो जिनेश्वरोना शरीरथी बारगुणा ऊंचा जाणवा. अने चैत्यतरुनो प्रमाण पण ज्ञानवृक्ष जेटलोज होय छे परन्तु एटलं विशेष छे के वीरप्रभुना चैत्यतरु ऊपर अग्यार धनुष मोटो शालवृक्ष होय छे. ज्ञानतरु१ न्यग्रोध ७ सिरीष १३ जम्बू १९ अशोक २ सप्तपर्ण ८ नाग- १४ अश्वत्थ २० चम्पक ३ शाल ९ मल्ली १५ दधिपर्ण २१ बकुल ४ प्रियाल १० पिलंखु १६ नन्दी | २२ वेतस ५ प्रियंगु ११ तिन्दुक १७ तिलक २३ धातकी ६ छत्राभ |१२ पाटलिका |१८ आम्र २४ साल ९७-९८ ज्ञानवेला अने तप___ ऋषभादि त्रेवीश तीर्थंकरोने प्रथम प्रहरमां, अने वीरप्रभुने पाछला प्रहरमां केवलज्ञान थयो. ऋषभ, मल्लि, नेमि अने पार्श्वनाथने केवलज्ञान उत्पन्न थती वखते Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां अष्टमभक्त, वासुपूज्यने चतुर्थभक्त अने शेष जिनेश्वरोने षष्ठभक्तनो तप हतो. विवाहथी लइ ज्ञानतप लगण तेंतालीशस्थानको वडे शोभायमान आ चतुष्पदीमां तृतीय उल्लास पूर्ण थयो. चतुर्थ-उल्लास ( स्थानक ९९ थी १४४ ) ९९ दोषराहित्यता दान १, लाभ २, वीर्य ३, भोग ४, उपभोग ५ (ए पांच अंतराय ) मिथ्यात्व ६, अज्ञान ७, अविरति ८ काम ९, हास्य १०, रति ११, अरति १२, शोक १३, भय १४, जुगुप्सा १५, राग १६, द्वेष १७ अने निद्रा १८ आ अढारदोष, अथवा प्रकारान्तरे-हिंसा १, मषावाद २, अदत्तादान ३, क्रीडा ४, हास्य ५, रति ६, अरति ७, शोक ८, भय ९, क्रोध १०, मान ११, माया १२, लोभ १३, मद १४, मत्सर १५, अज्ञान १६, निद्रा १७ अने प्रेम १८, आ अढार. उपरोक्त बन्ने प्रकारना बतावेलां दोषो जिनेश्वरोमां होता नथी, तेथी तेओ दोषरहित कहेवाय छे. १०० चोंत्रीश अतिशय जन्मथी ४, घनघातिकर्मना क्षय थवाथी ११ अने देवकृत १९, ए चोंत्रीश अतिशय जाणवा. १-शरीर अनंतरूपवाटु, सुगंधी, रोग, मल अने परसेवा रहित होय Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ४ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ३७ २-रुधिर मांस गायना दूध जेवां धोलां अने दुर्गध रहित होय. ३-आहार निहार अदृश्य होय. ४-श्वासोच्छ्वास कमल जेवो सुगंधी होय. आ चार अतिशय जन्मथी होय छे तेथी ते ' सहजातिशय ' कहेवाय छे. १-योजनप्रमाण समवसरणनी भूमिमां देव, मनुष्य अने तिर्यंचनी कोडाकोडी बाधा रहित पणे समाय छे. २-चारे दिशामां सवासो सवासो योजन सुधी पूर्वे थयेला रोगो शांत थाय अने नवा उत्पन्न थाय नहीं. ३-वैरभाव नाश पामे, ४-धान्यादिकने नाश करनार जीवोनी उत्पत्ति थाय नहिं. ५-मरकी आदि महारोगो नाश पामे. ६-घणी वर्षा थाय नहीं. ७-वृष्टि नज थाय एम बने नहीं. ८दुकाल पडे नहीं. ९-खचक्र के परचक्रनो भय थाय नहीं. १०-प्रभुनी योजनगामिनी वाणी देव, मनुष्य अने तिर्यच सर्वे पोत-पोतानी भाषामां समजे. ११-सूर्यथी पण अधिक तेजवालुं प्रभुना पृष्ठिभागमां भामंडल होय. आ अग्यार अतिशयो प्रभुने केवलज्ञान थाय त्यारे उपजे छ तेथी ते 'कर्मक्षयजातिशय' कहेवाय छे. १-प्रभु विहार करता होय त्यां पच्चीश योजन सुधी प्रकाश पाडतो आकाशमां धर्मचक्र चाले. २-चामरो अणवींज्या बींजाय. ३-पादपीठ सहित स्फटिकरत्ननु सिंहासन होय. ४-चारे दिशामां उपरा ऊपरी त्रण छत्र होय. ५-रत्नमय धर्मध्वज (इन्द्रध्वज ) होय. ६-स्वर्ण Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां कमल ऊपर चाले. तेमां बे ऊपर पग मूके अने सात पाछल रहे. तेमांथी अनुक्रमे बबे आगल आवता जाय. ७-मणि, सुवर्ण अने रूपाना त्रण प्राकार ( किल्ला) होय. ८-चार मुखे धर्मदेशना आपे. तेमांत्रण प्रतिविम्ब देवोना करेलां होय छे. ९-प्रभुना शरीरथी बारगुणो छत्र, घंटा अने पताकादिकथी युक्त अशोकवृक्ष होय. १०-मार्गमां चालतां कांटा अधोमुख थाय. ११-गमन करतां प्रभुने सर्ववृक्षो नमी प्रणाम करे. १२-आकाशमां देवदुन्दुभी वागे. १३-अनुकूल पवन चाले, १४-पक्षिओ प्रदक्षिणा देता जाय. १५-सुगंधी जलवृष्टि थाय.१६-ढींचण प्रमाण पंचवर्णा सुगंधी फूलोनी वर्षा थाय. १७-दीक्षा लीधा पछी केश, दाढी, मूछ वधे नहीं. १८-ओछामां ओछा चार निकायना एक क्रोड देवता साथे रहे. १९-छए ऋतुओ अनुकूल होय. समकाले फले. आ ओगणीश अतिशयो देवकृत छे. सर्वे मली ३४ अतिशय जाणवा. १-अपायापगम-विहारक्षेत्रमा चारे बाजु १२५ योजन सुधी रोगादि भय थाय नहीं. पोताने पण रोग अने दोषादि विघ्नोनो सर्वथा अभावज होय. २-ज्ञानातिशयलोकाऽलोकना संपूर्ण स्वरूपने जाणे देखे. ३-पूजातिशयप्राणिमात्रना पूजनीक थाय. ४-वचनातिशय-देव, मनुष्य अने तिर्यंचोने बोध आपनार वचन होय. आ चार अतिशयो पण सर्व जिनेश्वरोने सरखाज होय छे. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ४ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ३९ १०१ जिनवाणीना पांत्रीश अतिशय १-संस्कृतादि लक्षण युक्त होय.२-मेघ सरखी गंभीर होय. ३-ग्रामीण तुच्छ भाषाथी रहित होय. ४-ऊंचा स्वभाववाली होय. ५-प्रतिशब्द स्पष्ट संभलाय. ६-वक्रता दोष रहित सरल होय. ७-मालकोशादि राग युक्त होय. ८-महान् अर्थनी धारक होय. ९-पूर्वापर विरोधथी रहित होय. १०-सन्देह रहित होय. ११-शिष्टपुरुषोना वचननी सूचनारी होय. १२-देश कालानुसारिणी होय. १३-पर दूषणने प्रगट करनारी न होय. १४-श्रोताओना हृदयने आनंद आपनारी होय. १५-परस्पर पद अने वाक्योना अनुसंधानवाली होय. १६-प्रतिपाद्य ( कहेवा योग्य) विषयने ओलंघनारी न होय. १७-अमृतथी अधिक मधुर होय. १८-स्वप्रशंसा अने परनिन्दाथी रहित होय.१९-सारा संबन्ध अने अधिकारवाली होय, तथा अक्षर, पद, वाक्य अने वर्ण स्पष्ट जणावनारी होय. २०-सत्त्वप्रधान अने साहस युक्त होय. २१-कारक, काल, वचन, अने लिंगादि सहीत होय. २२-अखंडनीय विषयवाली होय. २३-प्रतिपाद्य अर्थ विशेषनी साधनारी होय. २४-अनेक वस्तु समुदायनो विचित्र वर्णन करनारी होय.२५-पर मर्मने उघाडनारी न होय. २६-विभ्रमादि दोष रहित होय. २७-विलम्ब रहित होय. २८-वक्तानी अनुपम शक्तिने प्रगट करनारी होय. २९-सांभलनाराओने खेद आपनार न होय. ३०-उत्सुकता ( उतावलियापणा )थी रहित होय. ३१-धर्मार्थरूप Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां पुरुषार्थने पुष्ट करनार होय. ३२-सर्व कोईने प्रशंसा करवा लायक होय. ३३-अद्भुत अर्थ रचनावाली होय, ३४अपेक्षा सहित होय. ३५-आश्चर्य पेदा करनारी होय. आमां प्रथमना सात अतिशय शब्द संबंधी अने पाछलना अट्ठावीश अर्थाश्रयी समजवा. १०२-१०३ आठ प्रातिहार्य अने तीर्थस्थापना जिनेश्वरोना शरीरथी बारगुणो किंकिल्लि ( अशोक) वृक्ष १, कुसुमवृष्टि २, दिव्यध्वनि ३, श्वेतचामर ४. स्वर्ण रत्नमय सिंहासन ५, भावलय ( भामंडल) ६, मेरी ( दुन्दुभि ) ७, अने छत्र ( आतपत्र ) ८, ए आठ प्रातिहार्य जाणवा. त्रेवीश जिनवरोए प्रथम समवसरणमां अने प्रभुवीरे द्वितीय समवसरणमां संघ, गणधर अने श्रुत ए त्रण तीर्थनी स्थापना करेल छे. . १-ऋषभदेवनो समवसरण ४८ कोशनो होय. त्यार पछी नेमिनाथ सुधी बबे कोश हीन करतां अजितनो ४६, संभवनो ४४, अभिनंदननो ४२, सुमतिनो ४०, पद्मप्रभनो ३८, सुपार्श्वनो ३६, चन्द्रप्रभनो ३४, सुविधिनो ३२, शीतलनो ३०, श्रेयांसनो २८, वासुपूज्यनो २६, विमलनो २४, अनंतनो २२, धर्मनो २०, शांतिनो १८, कुंथुनो १६, अरजिननो १४, मल्लिनो १२, मुनिसुव्रतनो १०, नमिनो ८, नेमिनाथनो ६, तेमज पार्श्वनाथनो ५, अने वीरप्रभुनो ४ कोशनो समवसरण होय छे. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवसरणमेतदर्हतां वीक्ष्य भव्याः , रविमितपरिषद्भिः शोभमानं समन्ताद् । सुरकृतमितिचित्रं दिव्यरत्नैर्महाहैरिहहि सुकृतयोगाद् बोधिलाभं लभन्ते ॥१॥ ७ IN 60 _" श्रीजिनेश्वरोनो देवरचित-समवसरण" श्री महोदय प्री, प्रेस-भावनगर. Page #63 --------------------------------------------------------------------------  Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ४ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १०४ तीर्थप्रवृत्ति— एक तीर्थंकरथी ज्यां सुधी बीजा तीर्थंकरनो तीर्थ नथाय त्यां सुधी पूर्व तीर्थंकरनो तीर्थ कायम रहे. अजितनाथनो तीर्थ प्रवत्यों नहीं त्यां सुधी ऋषभदेवनो तीर्थ चालु रह्यो. एवीज रीते दरेक जिनेश्वरनो तीर्थप्रवृत्ति काल समजवुं. जैनागम अने गुरुगमथी जणाय छे के श्रीवीर - प्रभुनो तीर्थ दुष्पमारक ( २१००० वर्ष ) पर्यन्त रहेशे. १०५ तीर्थविच्छेदकाल — सुविधिनाथथी धर्मनाथ लगण पल्योपमना चोथिया एक, एक, ऋण, एक, ऋण, एक, एक भाग गणतां तीर्थविच्छेद कील थाय छे. सर्व तीर्थविच्छेदना चोथिया अग्यार भाग ( पोणा त्रण पल्योपम ) जाणवा. केटलाक आचार्य अग्यार पल्योपम पूरा ग्रहण करे छे. तत्त्व केवलगम्य जाणवुं. सुविधिनाथथी धर्मनाथ पर्यन्त सात जिनेश्वरोनाज तीर्थमां विच्छेद काल होय छे, शेषना तीर्थमां नथी. जिनेश्वरोना तीर्थप्रवृत्तिकालना अन्ते असंयति, अविरति, अप्रत्याख्यानी, अने स्वार्थलोलुपीओनी प्रवृत्ति १ - सुविधिनाथनो पाव पल्योपम, शीतलनाथनो पाव पल्योपम, श्रेयांसनो पोण पल्योपम, वासुपूज्यनो पाव पल्योपम, विमलनाथनो पोण पल्योपम, अनन्तनाथनो पाव पल्योपम अने धर्मनाथनो पाव पल्योपमानो तीर्थविच्छेदकाल समजवुं. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. गुजराती भाषामां चालु थवाथी जिनतीर्थ मर्यादानो नाश थाय ते ' तीर्थविच्छेद ' कहेवाय छे. १०६ प्रथम गणधरोना नाम१ पुंडरीक ९ वराहक (१७ शम्ब २ सिंहसेन |१० नन्द १८ कुम्भ ३ चारूरु ११ कौस्तुभ १९ मिषज ४ वज्रनाभ १२ सुभूम २० मल्लि ५ चमरगणि १३ मन्दर २१ शुम्भ ६ सुद्योत १४ यश २२ वरदत्त ७ विदर्भ १५ अरिष्ट २३ आर्यदत्त ८ दिन १६ चक्रायुध २४ इन्द्रभूति १०७ प्रथम सध्विओना नाम१ ब्राह्मी । ९ वारुणी (१७ दामिनी २ फाल्गुनी |१० सुयशा १८ रक्षिका ३ श्यामा ११ धारिणी | १९ बन्धुमती ४ अजिता १२ धरणी २० पुष्पवती ५ काश्यपी १३ धरा २१ अनिला ६ रति १४ पद्मा २२ यक्षदत्ता ७ सोमा | १५ आर्यशिवा २३ पुष्पचूला ८ सुमनाः २४ चंदनवाला १०८-१०९ प्रथम श्रावक अने श्राविका ऋषभदेवने श्रेयांस, नेमिनाथने नन्द, पार्श्वनाथने सुद्योत अने वीरप्रभुने शंख प्रथम श्रावक जाणवा. तेमज ऋषभप्रभुने सुभद्रा, नेमिप्रभुने महासुत्रता, पार्श्वप्रभुने Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ४ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ४३ सुनन्दा अने वीरप्रभुने सुलसा प्रथम श्राविका जाणवी. शेष जिनेश्वरोना श्रावक श्राविकाना नाम अप्रसिद्ध छे. ११० भक्तराजाओना नाम१ भरतचक्री ९ युद्धवीर्य | १७ कुबेरनृपति २ सगरचक्री १० सीमन्धर १८ सुभूमचक्री ३ मृगसेन ११ त्रिपृष्ठवासुदेव १९ अजितराजा ४ मित्रवीर्य १२ द्विपृष्ठवासुदेव २० विजयमहनृप ५ सत्यवीर्य १३ स्वयंभूवासुदेव २१ हरिशेणचक्री ६ अजितसेन १४ पुरुषोत्तमवासुदेव २२ श्रीकृष्णवासुदेव ७ दानवीर्य १५ पुरुषसिंहवासुदेव २३ प्रसेनजित ८ मघवाचक्री ।१६ कोणालक २४ श्रेणिकनृप १११ जिनागमननी वधाइ लावनारने प्रीतिदान जिनवरोना आगमननी वधाइ लावनार नियुक्त, या अनियुक्त माणसने चक्रवर्ती जघन्यथी साढी बार लाख अने उत्कृष्टथी साढी बार क्रोड सोनैयानो, वासुदेव तेटलाज रजतनो, मांडलिकराजा लाख सोनैयानो, सामान्यराजा हजार सोनैया या रुपियानो अने सेठ, सेनापति, अमात्य वगेरे पोताना विभव प्रमाणे प्रीतिदान आपे छे. ११२-१२८ एना आगल__ यक्ष, यक्षिणी, गणधर, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, केवली, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, चौदपूर्वी, वैक्रियलब्धिधर, वादीमुनि, सामान्यमुनि,अनुत्तरोपपातिकमुनि, प्रकीर्णक अने प्रत्येकबुद्धनी संख्या कोष्टकथी जाणवी. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां नवर मुनि सख्या श्रमणी संख्या जा س س و رامي | ८१ १००००० जिनयक्ष | जिनयक्षिणी ११२ TEM १/ गोमुख | चक्रेश्वरी ८४००० २ महायक्ष अजिता १००००० | त्रिमुख दुरितारी १०२ २००००० यक्षेश काली ३००००० | तुम्बरु महाकाली १०० ३०००२० कुसुम अच्युता १०७ | ३०००३० जमातङ्ग হারা ३००००० 4 विजय ज्वाला ९३ | २५०००० ९/ अजित सुतारका २००००० २० ब्रह्मा अशोका मनुजेश श्रीवत्सा ८४००० १२ कुमार प्रवरा ७२००० १३/ षण्मुख विजया ६८००० २४ पाताल अंकुशा ६६००० १५ किन्नर पन्नगति ६४००० १६, गरुड निर्वाणी ६२००० १७ गन्धर्व अच्युता ६०००० १८ यक्षेन्द्र धरणी ५०००० वैरुट्या ४०००० वरुण दत्ता ३०००० गान्धारी २०००० गोमेध अम्बा १८००० पार्थ पद्मावती १६००० २४ मातङ्ग सिद्धायिका १४००० ३००००० ३३०००० ३३६००० ६३०००० ५३०००० ४२०००० ४३०००० ३८०००० १२०००० १००००६ १०३००० १००००० १००८०० ६२००० ६२४०० ६१६०० ६०६०० ६०००० ५५००० ५०००० ४१००० ४०००० ३८००० ३६००० १९/ कुबेर २२ भृकुटि Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ४ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ४५ जनवर श्रावक ११७ श्राविका केवलज्ञानी मनापर्यवी अवधिज्ञानी ११८ ११९ १२० । १२१ ३०५००० ५५४००० २ २९८००० ५४५००० २९३००० ६३६००० २८८००० ५२७००० २८१००० ५१६००० २७६००० ५०५००० २५७००० ४९३००० २५०००० ४९१००० २२२९००० ४७१००० १० २८९००० ४५८००० ११ २७९००० ४४८००० १२ २१५००० ४३६००० ૨૩ ૨૦૮૦૦૦ ४२४००० १४ २०६००० ४१४०००१५/ २०४००० ४१३००० १६ २९०००० ३९३००० १७ १७९००० ३८१००० १८) १८४००० ३७२००० १९ १८३००० ३७०००० २० १७२००० ३५०००० २१ १७०००० ३४८००० २२ १६९००० ३३६००० १६४००० ३३९००० १५९००० | ३१८००० २०००० २०००० १५००० १४००० १३००० १२००० ११००० १०००० ७५०० ७००० ६५०० ६००० ५५०० ५००० ४५०० ४३०० ३२०० २८०० २२०० १८०० १६०० १५०० १००० ७०० १२६५० १२५०० १२१५० ११६५० १०४५० १०३०० ९१५० ८००० ७५०० ७५०० ६००० ६००० ५५०० ९००० ९४०० ९६०० ९८०० ११००० १०००० ९००० ८००० ८४०० ७२०० ६००० ५४०० ४८०० ४३०० ३६०० ३००० २५०० २६०० २२०० १८०० १६०० १५०० १४०० १३०० ४५०० ३३४० २५५१ १७५० १५०० १२५० १००० ७५० Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां चौदपूर्वी वैक्रियलब्धि वादीमनि | सामान्य अने अनुत्तरो१२२ । १२३ । पपातिक वगेरानी संख्या __ १२४ - १२५-१२८ ४७५० | २०६०० | १२६५० | जिनश्वंरोना मुनिव२७२० २०४०० १२४०० | रोनी जुदी जुदी संख्या २१५० १९८०० १२००० कोठामां बतावेल छे. ते१५०० १९००० ११००० माथी १ गणधर, २ केवली, २४०० १८४०० १०४५० ३ मनःपर्यवज्ञानी, ४ अव२३०० १६१०८ ९६०० | धिज्ञानी, ५ चौदपूर्वी, ६ २०३० १५३०० ८४०० / वैक्रियलब्धिधर अने ७ २००० १४००० ७६०० | वादीमुनि,आसातनी संख्या १५०० १३००० ६०००/ काढी नाखवाथी जेटली १४०० १२००० ५८०० जेटली संख्या बाकी रहे १३०० ११००० ५००० | तेटला तेटला दरेक जिनव१२०० १०००० ४७०० रना सामान्य मुनि जाणवा. ९००० ३६०० | ऋषभदेवने २२ हजार १००० ८००० ३२०० / ९००, नेमिनाथने १६००, ९०० २८०० पार्श्वनाथने १२००, अने ८०० ६००० २४०० वीरप्रभुने ८००, अनुत्तरो ५१०० २००० पपातिक मुनि समजवा. ६१० ७३०० शेष जिनवरोना अनुत्तरो२९०० | पपातिक मुनि अप्रसिद्ध छे. ५०० २००० १२०० / जे जिनेश्वरने जेटला मुनि ४५० ५००० १००० होय तेटलाज प्रकीर्णक ४०० १५०० ८०० | अने प्रत्येकबुद्ध मुनि ११०० ६०० | जाणवा. गुणमां तो सर्वे ७०० ४०० | सरखाज होय छे. ७००० ६७० १६०० १४०० ६६८ ३५० ३०० Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ४ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ४७ आ कोठाओमां आचार्योना मतान्तरथी सुविधिनाथने त्रण लाख अंशी हजार, शीतलनाथने ३ लाख ८० हजार, श्रेयांसनाथने १ लाख २० हजार, वासुपूज्यने १ लाख ६ हजार, विमलनाथने १ लाख ३ हजार अने अनन्तनाथने १ लाख ८०० साध्विओनी संख्या जाणवी. तेमज धर्मनाथने श्रावकोनी संख्या २४००००, तथा अजितनाथने २२००० अने कुंथुनाथने २२०० केवलज्ञानियोनी संख्या जाणवी. ऋषभदेवने १२६५० अअितनाथने १२५५० अने नमिनाथने १२६० मनःपर्यवज्ञानी, तेमज ऋषभदेवने १२२५०, सुमतिनाथने १०६५० अने वासुपूज्यने ४२०० वादीमुनिवरोनी संख्या समजवी. १२९ आदेशानी संख्या __ अड्ग, उपाङ्ग आदि सूत्रोमां जे बाबतो कहेली नथी अने ते बहुश्रुतोए परंपरागमथी भाषेल छे. ते 'आदेशा' कहेवाय छे. जेम के कुरडकुरड (कुरुटोत्कुरुट ) मुनि नरके गया. वीरप्रभुए चरणांगुष्ठवडे सुमेरुने कंपाव्यो, अनंतकाय केलमांथी मरुदेवी थइने सिद्ध थया अने वलयाकार सिवाय सर्व आकारना मत्स्य (मच्छ ) होय. ए बावतो सूत्रोक्त नथी, परन्तु बहुश्रुत कथित छे. एवा आदेशा वीरप्रभुने ५००, अने शेष जिनवरोना शासनमां अनेक प्रकारना जाणवा. Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां १३०-१३१ साधु अने श्रावकना व्रतनी संख्या ऋषभ अने वीरप्रभुना वारे साधुने पंच महाव्रत, अने श्रावकने अणुव्रत, गुणव्रत, तथा शिक्षाबत मलीने बार व्रत होय छे. शेष बावीश जिनेश्वरोना वारे साधुने चार महाव्रत अने श्रावकने बारव्रत होय छे. मुनिवरो स्त्री अने परिग्रह एकज माने छे तेथी चारज महाव्रत कह्यां छे. १३२ साधुओना उपकरणनी संख्या जिनकल्पी मुनिने पात्र १, पात्रबंधन २, पात्रस्थापवा कंबलखंड ३, पूंजनी ४, पडला, ५ रजत्राण ६, गुच्छा ७, ए सात पात्रना अने त्रणवस्त्र ८-१०, रजोहरण ११, मुखवस्त्रिका १२, ए बार अने स्थविरकल्पीने १३ मात्रक तथा १४ चोलपट्ट मली चौद उपकरण होय छे. ए संयमना साधक होवाथी परिग्रहमां गणाता नथी. १३३-साध्वीओनी उपकरणनी संख्या १ अवग्रहानन्तक (गुप्तस्थान ढांकवानुं वस्त्र) २ पट्ट ( केड बांधवानो वस्त्र ) ३ अधोरुक ( अवग्रहानंतक अने पट्टने ढांकवानो वस्त्र ) ४ चलनीक (ढींचणसुधि लांबो कसोथी बांधवानो वस्त्र)५अभ्यंतरनिवसनी ( अर्धी जंघा ढंकाय तेवू घाघराना आकार वालं वस्त्र ) ६ बहिर्निवसनी (केडथी पगनी धुंटी सुधी लांबु Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ४ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ४९ नाडीथी बंधाय तेवू घाघराकार वस्त्र ) ७ कंचुक (छाती ढांकवानो वस्त्र) ८ उपकक्षिका (स्तनभाग अने जमणुं पडय़ ढांकवानो वस्त्र )९ वैकक्षिका (पाटाना आकारे उपकक्षिका अने कंचुकने ढांकवाने डावे पडखे पहेरवानो वस्त्र ) १० संघाटी (बे हाथ, त्रण हाथ अने चार हाथ पहोली तथा चार हाथ चोडी चादरो ते १ उपाश्रयमां, १ गोचरीमां अने १ स्थंडिल जती वखते, एम जुदा जुदा समये ओढवा वास्ते) ११ स्कंधकरणी (खंभे राखवानी कांबली) अने चोलपट्टा विना तेर उपकरण स्थविरकल्पीवाला तथा साडलो मली साध्वीने २५ उपकरणो होय छे. १३४-१३५ चारित्र अने तत्त्वोनी संख्या १ सामायिक, २ छेदोपस्थापन, ३ परिहारविशुद्धि, ४ सूक्ष्मसंपराय, अने ५ यथाख्यात; आ पांच चारित्र छे. ऋषभ अने वीरप्रभुना शासनमां ५, तथा शेष जिनेश्वरना शासनमां छेदोपस्थापन अने परिहारविशुद्धि विना ३ चारित्र होय छे. देव १, गुरु २ अने ३धर्म ए त्रण. अथवा जीव १, अजीव २, पुन्य ३, पाप ४, आश्रव ५, संवर ६, बंध ७, मोक्ष ८, अने निर्जरा ९. ए नव. बन्ने प्रकारना तत्त्वोना अवान्तर भेद सर्व जिनेश्वरोना शासनमां कांइ पण फेर फार विना सरखाज मनाय छे. Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां १३६-१३७ सामायिक अने प्रतिक्रमण १ सम्यक्त्व, २ श्रुत, ३ देशविरति, अने ४ सर्वविरति, ए चार प्रकारना सामायिक सर्व जिनवरना शासनमां सरखा जाणवा. पेला छेला जिनवरना शासनमां दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक अने सांवत्सरिक ए पांच प्रतिक्रमण, तथा शेष बावीश जिनवरना शासनमां दैवसिक, रात्रिक एबे प्रतिक्रमण कारणे जाणवा, अकारणे नहीं. १३८-१४२ मूलगुण, स्थितकल्प, अवस्थित-अस्थितकल्प, आवश्यक अने स्वभावप्रथम चरम तीर्थपतिना वारे रात्रिभोजन मूलगुणमां अने बावीश जिनेश्वरना वारे उत्तरगुणमां गणाय छे. १ आचेलक्य, २ औदेशिक, ३ शय्यातर, ४ राजपिंड, ५ कृतिकर्म, ६व्रत, ७ ज्येष्ठ, ८ प्रतिक्रमण, ९ मास कल्प, १० पर्युषण, ए दश प्रकारनो स्थितिकल्प प्रथम चरम जिनेश्वरना शासनमां होय छे. एमांथी शय्यातर, चातु र्याम, पुरुषज्येष्ठ, अने कृतिकर्म ए चार प्रकारनो अवस्थितकल्प बावीश जिनवरोना शासनमां होय छे. तेमज बावीश प्रभुना शासनमा आचेलक्य, औदेशिक, राजपिंड, प्रतिक्रमण, मास अने पर्युषण, ए छ अस्थितकल्प होय छे. प्रथम जिनवरना शासनमां मुनिवरोने साध्वाचारनो बोध बहु कठिनाइथी थाय छे. चरम जिनपतिना शास Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ४ उल्लास] पश्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. नमां साध्वाचारनो पालन घणी मुस्केलीथी थाय छे. बावीश प्रभुना शासनमां साध्वाचारनो बोध अने पालन सहेलाइथी थाय छे. प्रथम चरम प्रभुना तीर्थमां सामायिक १, चतुर्विंशतिस्तव २, वन्दनक ३, प्रतिक्रमण ४, कायोत्सर्ग ५ अने प्रत्याख्यान ६, ए छ आवश्यक सांझ सवारे बने टाइम नियमथी कराय छे अने बावीश प्रभुना शासनमां कारणपरत्वे कराय, अकारणे नहीं. प्रथम जिनतीर्थमा साधुओ ऋजुजड, चरम जिनना तीर्थमां वक्रजड अने बावीश प्रभुना तीर्थमां ऋजुप्राज्ञ ( सरल अने महाबुद्धिवाला ) होय छे. १४३ सतरे प्रकारनो संयम प्राणातिपात आदि ५ आश्रवनो त्याग, ५ इन्द्रिओनो निग्रह, ४ कषायनो जय अने ३ दंडनी विरति, ए १७ प्रकारनो संयम. अथवा प्रकारान्तरे १ पृथ्वीकाय, २ अपकाय, ३ अग्निकाय, ४ वायुकाय, ५ वनस्पतिकाय, ६ द्वीन्द्रिय, ७ त्रीन्द्रिय, ८ चतुरिन्द्रिय, ९ पंचेन्द्रिय ए नवना संघट्टादिनो परिहार, १० पनकादि जीवोनी यतना, ११ प्रेक्षासंयम ( चक्षुथी जोइने कार्य करवू ), १२ उत्प्रेक्षा संयम (साधु के गृहस्थने हितकर प्रेरणा करवी) १३ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां प्रमार्जना संयम (वस्त्र, पात्रादिनी पडिलेहन उपयोग पूर्वक करवी ) १४ परिष्ठापना संयम (विधि सहित आहारादि परठवो) १५ मन संयम (खोटो विचार न करवो) १६ वचन संयम (पापकारी भाषा न बोलवी ) १७ काया संयम ( उपयोग पूर्वक गमनाऽऽगमन करवू ) ए बन्ने प्रकारना संयम सर्व तीर्थंकरोना शासनमा समान जाणवा. एमां कोइने कोइ जातनो भेद होतो नथी. १४४-१४५ धर्मप्ररूपणा अने वस्त्रवर्ण दान १, शील २, तप ३, भावना ४ ए चार प्रकारनो, अथवा श्रुतधर्म अने चारित्रधर्म ए बे प्रकारनो धर्म सर्व तीर्थकर सरखी रीते प्ररूपण करे छे. प्रथम अने अन्तिम तीर्थपतिना शासनमां वर्णथी सकेद, मूल्यथी एक आंकना मूल्यवाला तथा प्रमाणथी ओघनियुक्तिमां बताव्या प्रमाणवालां वस्त्रज धारण करवा कह्यां छे, अने शेष जिनेश्वरोना शासनमा वर्ण के प्रमाणनो काइ नियम नथी, यथाप्राप्त ( जेवां मले तेवां) ग्रहण कर लिये छ. निर्दोषताशी नववर्ण लगण पचास स्थानकोवडे शोभायमान यमितिकदीमा चोथो उल्लास पूर्ण थयो. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ५ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ५३ पंचम-उल्लास (स्थानक १४६ थी १७५) १४६-१४७ गृहस्थ अने केवलीकाल कुमार, राज्य अने चक्रीपणानो जे जिनवरनो जेटलं काल कहेलुं छे तेने भेगो गणवाथी गृहस्थकाल थाय छे. तेमज जै जिनेश्वरनो जेटलुं व्रतकाल बतावेल छ तेमांथी छमस्थकाल ओछो करतां शेष जे काल रहे, ते केवलि काल समजवु. १४८ जिनवरोनो दीक्षापर्याय ( व्रतक्राल )___ ऋषभदेवनो १ लाख पूर्व, अजितनाथनो एक पूर्वाङ्गहीन १ लाख पूर्व, संभवनाथनो चार पूर्वाङ्गहीन १ लाख पूर्व, अभिनंदननो आठ पूर्वाङ्गहीन १ लाख पूर्व, सुमतिनाथनो बार पूर्वाङ्गहीन १ लाख पूर्व, पद्मप्रभनो शोल पूर्वाङ्गहीन १ लाख पूर्व, सुपार्श्वनाथनोवीश पूर्वाङ्गहीन १ लाख पूर्व, चन्द्रप्रभनो चोवीश पूर्वाङ्गहीन १ लाख पूर्व, सुविधिनाथनो अट्ठवीश पूर्वाङ्गहीन १ लाख पूर्व, शीतलनाथनो २५ हजार पूर्व, श्रेयांसनाथनो २१ लाख वर्ष, वासुपूज्यनों५४ लाख वर्ष, विमलनाथनो १५ लाख वर्ष, अनन्तनाथनो साढी ७ लाख वर्ष, धर्मनाथनो अढी लाख वर्ष, शान्तिनाथनो २५ हजार वर्ष, कुन्थुनाथनो पोणा. २४ हजार Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां वर्ष, अरनाथनो २१ हजार वर्ष, मल्लिनाथनो ५४ हजार ९०० वर्ष, मुनिसुव्रतनो साढी ७ हजार वर्ष, नमिजिननो अढी हजार वर्ष, नेमिनाथनो ७०० वर्ष, पार्श्वनाथनो ७० वर्ष अने प्रभुवीरनो ४२ वर्षनुं दीक्षापर्याय जाणवू. १४९ जिनेश्वरोनो सर्वायुष्य१ आदिनाथनो ८४ लाख पूर्व १३ विमलनाथनो ६० लाख वर्ष २ अजितनाथनो ७२ लाख पूर्व १४ अनन्तनाथनो ३० लाख वर्ष ३ संभवनाथनो ६० लाख पूर्व १५ धर्मनाथनो १० लाख वर्ष ४ अभिनंदननो ५० लाख पूर्व १६ शांतिनाथनो १ लाख वर्ष ५ सुमतिनाथनो ४० लाख पूर्व १७ कुंथुनाथनो ९५ हजार वर्ष ६ पद्मप्रभनो ३० लाख पूर्व १८ अरनाथनो ८४ हजार वर्ष ७ सुपार्श्वनो २० लाख पूर्व १९ मल्लिनाथनो ५५ हजार वर्ष ८ चन्द्रप्रभनो १० लाख २० मुनिसुव्रतनो ३० हजार वर्ष ९ सुविधिनाथनो २ लाख पूर्व २१ नमिनाथनो १० हजार वर्ष १० शीतलनाथनो १ लाख पूर्व २२ नेमिनाथनो १ हजार वर्ष ११ श्रेयांसनाथनो ८४ लाख वर्ष २३ पार्श्वनाथनो १०० वर्ष १२ वासुपूज्यनो ७२ लाख वर्ष २४ वीरप्रभुनो ७२ वर्ष १५० मोक्षगमन मास पक्ष तिथि-- १ माघवदि १३ । ४ वैशाखसुदि ८ । ७ फाल्गुनवदि ७ २ चैत्रसुदि ५५ चैत्रसुदि ९८ भाद्रवावदि ७ ३ चैत्रसुदि ५ ६ मगसिरवदि ११ ९ भाद्रवासुदि ९ ५ आदिनाथना सर्वायुष्यमा ५९ लाख कोटाकोटी, २७ हजार कोटाकोटी अने ४० कोटाकोटी वर्ष जाणवा. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ५ उल्लास ] १० वैशांखवदि २ ११ श्रावणवदि ३ १२ अषाढसुदि १४ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १५ ज्येष्ठदि ५ १६ ज्येष्ठवदि १३ १७ वैशाखवदि १ १८ मगसिरसुदि १० १९ फाल्गुनसुदि १२ १३ अषाढवदि ७ १४ चैत्रदि ५ १५१ मोक्षगमन नक्षत्र १ अभिजित् । ७ अनुराधा | १३ रेवती ८ ज्येष्ठा २ मृगशिर ३ आर्द्रा १४ रेवती ९ मूल १० पूर्वाषाढा ११ धनिष्ठा १२ उत्तराभा. १५२ मोक्षगमन राशि -- ४ पुष्य ५ पुनर्वसू ६ चित्रा २० ज्येष्ठवदि ९ २१ वैशाखवदि १० २२ अषाढसुदि ८ २३ श्रावणसुदि ८ २४ कार्त्तिकवदि ३० १५ पुष्य १६ भरणी १७ कृत्तिका १८ रेवती ५५ १९ भरणी २० श्रवण २१ अश्विनी २२ चित्रा २३ विशाखा २४ स्वाति ५ कर्कट, १ मकर, २ वृषभ, ३ मिथुन, ४ कर्कट, ६ कन्या, ७ वृश्चिक, ८ वृश्चिक, ९ धन, १० धन, ११ कुंभ, १२ मीन, १३ मीन, १४ मीन, १५ कर्कट, १६ मेष १७ वृषभ, १८ मीन, १९ मेष, २० मकर, २१ मेष, २२ तुल, २३ तुल, २४ तुल. ए अनुक्रमथी जिनवरोनी मोक्षगमन राशि समजवी. १५३ - १५६ मोक्षस्थान, आसन, अवगाहना अने तप - ऋषभदेव अष्टापदोपरि, नेमनाथ रैवताचलोपरि, वासुपूज्य चम्पापुरीमां, वीरप्रभु पावापुरीमां अने शेष २० Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां जिनेश्वर सम्मेतशिखरोपरि मोक्ष गया, प्रथम चरम जिन पर्यङ्कासने, अने शेष २२ जिन कायोत्सर्गासने मोक्ष गया छे. सर्व जिनवरोनी निज निज आसन प्रमाणथी त्रण भागोन अवगाहना जाणवी. आदिनाथने चौदभक्त, वीरप्रभुने षष्ठभक्त, अने शेष जिनवरोने मासक्षपणतप मोक्षगमन वखते हतो. १५७-१५८ मोक्षपरिवार अने मोक्षसमय. ऋषभजिन १० हजार, पद्मप्रभ ३०८, सुपार्श्व ५००, वासुपूज्य ६००, विमल ६ हजार, अनन्तजिन ७ हजार, धर्मजिन १०८, शान्तिजिन ९००, मल्लिजिन ५००, नेमिजिन ५३६, पार्श्वजिन ३३, अने शेष जिन हजार हजार मुनिराजोना परिवारथी तथा वीरप्रभु एकाकी मोक्ष गया छे. मोक्षगमन परिवारनी कुलसंख्या अडतीश हजार चारशो पंचाशी समजवी. ___ संभव, पद्मप्रभ, सुविधि, अने वासुपूज्य ए चार प्रभु पश्चिम प्रहरमां. ऋषभ, अजित, अभिनंदन, सुमति, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, शीतल अने श्रेयांस, ए आठ प्रभु प्रथम प्रहरमां. धर्म, अर, नमि, अने वीर, ए चार प्रभु अपररात्रि (पाछली रात्र ) मां, अने विमल, अनन्त, शांति, कुंथु, मल्लि, मुनिसुव्रत, नेमि, अने पार्थ, ए आठ प्रभु पूर्वरात्रिमा मोक्ष गया छे. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ५ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ५७ १५९-१६० मोक्षारक अने मोक्षारकशेषकाल आदिनाथ त्रीजा आराना अन्तमा अने शेष जिनपति चोथा आरामां मोक्ष गया छे. जिनवरोनो निज निज आयुष्य जन्मारकशेषकालमांथी ओछो करतांजे काल वाकी रहे ते मोक्षारकशेषकाल जाणवो. जेमके ऋषमदेवजी त्रीजा आराना ८४ लाख पूर्व ८९ पक्ष शेष रहेतां जन्म्या छे, तो तेमांथी निजायु ८४ लाख पूर्वनो बाद करतां त्रीजा आराना ८९ पक्ष शेष रह्या ते मोक्षारकशेषकाल समजबु. एज प्रमाणे दरेक जिनेश्वरमां भावना करवी. १६१-१६२ युगान्तकृत् अने पर्यायान्तकृभूमि आदिनाथ मोक्षगमनानन्तर असंख्याता पाट, अजितनाथथी नमिजिन सुधी संख्याता पाट, नेमिनाथ मोक्ष गयां पछी आठ पाट, पार्श्वनाथ मोक्ष गयां पछी चार पाट, अने वीरप्रभु मोक्ष गयां पछी त्रण पाट लगण मोक्षमार्ग चालतो रह्यो. ऋषभजिनने केवलज्ञान उपन्यां वाद बे घडी पछी, नेमिनाथने केवल थयां पछी बे वर्षे, पार्श्वनाथने केवल थयां पछी त्रण वर्षे, वीरप्रभुने केवल उपन्यां पछी चार वर्षे, अने शेष जिनेश्वरोने केवलज्ञान थयां पछी एकादि दिवसना अन्तरे मोक्षगमन चालु थयो. १६३-१६४ मोक्षमार्ग अने मोक्षविनय साधुधर्म अने श्रावकधर्म ए बे, अथवा सम्यग्ज्ञान, Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां सम्यग्दर्शन अने सम्यग्चारित्र ए त्रण प्रकारे मोक्षमार्ग. तेमज दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप अने उपकारिता ए पांच अथवा साधुक्रिया अने गृहस्थक्रिया रूप बे प्रकारनो मोक्षविनय सर्व जिनेश्वरोए भाव सहित सेवन करवा सरखी रीते फरमावेल छे. १६५-१६७, पूर्वप्रवृत्ति, शेषश्रुतप्रवृत्ति, अने पूर्वविच्छेदकाल ऋषभदेवथी कुन्थुजिन पर्यन्त असंख्याता, अने अरनाथथी पार्श्वनाथ पर्यन्त संख्याता काल लगण तथा वीरप्रभुना शासने हजार वर्ष लगण पूर्वप्रवृत्ति रही. तेमज पूर्वविच्छेदकाल पण एवी रीतेज समजवू. परन्तु एटलो विशेष छे के वीरशासनमां वीश हजार वर्षनो पूर्वविच्छेद काल छे. पार्श्वप्रभुने पूर्वविच्छेद काल होय अथवा न पण होय. जे जिनेश्वरनो जेटला कालपर्यन्त शासन (तीर्थ ) कायम रहे त्यां सुधी शेषश्रुतप्रवृत्तिकाल जाणवू. शेषश्रुतनो ज्यां विच्छेद थयो छे त्यां अच्छेरो ( आश्चर्य ) मानवामां आव्युं छे. १६८ जिनेश्वरोनो परस्पर अन्तर १-एक जिनेश्वरना जन्मथी बीजा जिनेश्वरनो जन्म, २-एक प्रभुना जन्मथी बीजा प्रभुनो मोक्ष,३-एक जिनेन्द्रना मोक्षथी बीजानो जन्म अने ४-एक प्रभुना मोक्षथी बीजा प्रभुनो मोक्ष. ए चार प्रकारनो अन्तर छे. परन्तु अत्रे चोथो अन्तर ( मोक्षथी मोक्ष ) जाणवू जोइए. Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९ सारांश ५ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १ - ऋषभदेवना निर्वाणथी पचास लाख कोटी सागरोपम पछी अजितनाथनो निर्वाण थयो. २ - अजितनाथना निर्वाणथी त्रीश लाख क्रोड सागरोपम पछी संभवनाथनो निर्वाण थयो. ३ – संभवनाथना निर्वाणथी दश लाख क्रोड सागर पछी अभिनन्दननो निर्वाण थयो. ४ - अभिनंदनना निर्वाणथी नव लाख क्रोड सागर पछी सुमतिनाथनो निर्वाण थयो. ५ - सुमतिनाथना निर्वाणथी नेऊ हजार क्रोड सागर पछी पद्मप्रभनो निर्वाण थयो. ६ - पद्मप्रभना निर्वाणथी नव हजार क्रोड सागर पछी सुपार्श्वनाथनो निर्वाण थयो. ७-सुपार्श्वनाथना निर्वाणथी नवशो क्रोड सागर पछी चन्द्रप्रभनो निर्वाण थयो. ८ - चन्द्रप्रभना निर्वाणथी नेऊ क्रोड सागर पछी सुविधिनाथनो निर्वाण थयो. ९ - सुविधिनाथना निर्वाणथी नव क्रोड सागर पछी शीतलजिननो निर्वाण थयो. १० - शीतलनाथना निर्वाणथी १०० सागरोपम ६६ लाख २६ हजार वर्ष कम एक क्रोड सागर पछी श्रेयांसनाथनो निर्वाण थयो. ११ - श्रेयांसनाथना निर्वाणथी चोपन सागर पछी वासुपूज्यनो निर्वाण थयो. १२ - वासुपूज्यना निर्वाणथी त्रीश सागर पछी विमलनाथनो निर्वाण थयो. १३ - विमलनाथना मोक्षथी नव सागर पछी अनन्तजिननो निर्वाण थयो. १४ - अनन्तजिनना मोक्षथी चार सागरोपम पछी धर्मनाथनो निर्वाण थयो. १५ - धर्मनाथना मोक्षथी पोणपल्योपम कम श्रण सागर पछी शांतिनाथनो Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [ गुजराती भाषामां निर्वाण थयो. १६-शांतिनाथना मोक्षथी अर्धापल्योपम पछी कुंथुनाथनो निर्वाण थयो. १७-कुंथुनाथना निर्वाणथी एक क्रोड हजार वर्ष कम पावपल्योपम पछी अरनाथनो मोक्ष थयो. १८-अरनाथना निर्वाणथी एक क्रोड हजार वर्ष पछी मल्लिजिननो मोक्ष थयो. १९-मल्लिजिनना मोक्षथी चोपनलाख वर्ष पछी मुनिसुव्रतनो निर्वाण थयो. २०-मुनिसुव्रतना मोक्षथी छ लाख वर्ष पछी नमिजिननो निर्वाण थयो. २१-नमिजिनना मोक्षथी पांच लाख वर्ष पछी नेमिनाथनो निर्वाण थयो. २२-नेमिनाथना मोक्षथी पोणा चोराशी हजार वर्ष पछी पार्श्वनाथनो निर्वाण थयो. २३-पार्श्वनाथना मोक्षथी अढीशो वर्ष पछी वीरप्रभुनो निर्वाण थयो. अन्तरनो सर्वकाल बेंतालीस हजार वर्ष कम एक कोटाकोटी सागरोपमनो जाणवो. १६९ तीर्थप्रसिद्ध-जिनजीव ऋषभशासनमां मरीचि प्रमुख, सुपार्श्वशासनमां श्रीवर्मनृपादि, शीतलशासनमा १ हरिषेण अने २ विश्वभूति, श्रेयांसजिन शासनमां श्रीकेतु १, त्रिपृष्ठ २, मरुभूति ३, अमिततेज ४, अने धन ५, वासुपूज्यशासनमां नन्दन १, नन्द २, शंख ३, सिद्धार्थ ४, अने श्रीवर्मा ५, मुनिसुव्रतशासनमां १ रावण अने २ नारद, नेमिनाथशासनमां श्रीकृष्ण प्रमुख, पार्श्वनाथ शासनमां अम्बड १, सत्यकी २ अने नन्द ( आनंद ) ३, श्रीवीरशासनमां श्रेणिक १, Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ४ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ६१ सुपार्श्व २, पोट्टिल ३, उदायी ४, शंख ५, दृढायु ६, शतक ७, सुलशा ८ अने रेवती ९, जिननामकर्म बांधनार जीव समजवा. १७० जिनशासनमां रुद्रमुनि ऋषभशासने भीमावली, अजितशासने जितशत्रु २, सुविधिशासने रुद्र ३, शीतलशासने विश्वानल ४, श्रेयांसशासने सुप्रतिष्ठ ५, वासुपूज्यशासने अचल ६, विमलजिन शासने पुंडरीक ७, अनन्तशासने अजितधर ८, धर्मजिनशासने अजितनाभ ९, शान्तिजिनशासने पेढाल १० अने वीरशासने सत्यकी ११, ए अग्यार रुद्रमुनि निरतिचार संयमना पालनार, महाघोरतपना करनार अने एकादशाङ्गीना धारण करनार जाणवा. १७१ जिनशासनमां दर्शनोत्पत्ति ऋषभशासनमां जैन १, शैव २ अने सांख्य ३, ए त्रण. शीतलशासनमां वेदान्तिक ४ अने नास्तिक ५, ए बे. पार्श्वशासनमां बौद्ध ६, अने वीरशासनमां सप्तपदार्थ प्ररूपक वैशेषिक ७, ए सात दर्शन उत्पन्न थयां. १७२ जिनशासनमां दश आश्चर्य श्री ऋषभतीर्थमां पांचशो धनुषनी उत्कृष्ट अवगाहनावाला एक समये १०८ सिद्ध थया - मोक्ष गया १, सुविधितीर्थमां असंयतिओनी पूजा चालु थई २, शीतलनाथतीर्थमां हरिवंशनी उत्पत्ति थह ३, मल्लिजिन तीर्थमां Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [ गुजराती भाषामां स्त्रीपणे तीर्थंकर थया ४, नेमिनाथतीर्थमां कृष्णवासुदेव द्रौपदी माटे धातकीखंडद्वीपनी अपरकंका नगरीमां गया अने शंखोशंखथी बे वासुदेव मल्या ५, वीरतीर्थमां गर्भापहार ६, उपसर्ग ७, चमरोत्पात ८, देशनानी निष्फलता ९, चन्द्रसूर्यनो मूलविमानथी प्रभुने वंदनमाटे आगमन १०, ए दश आश्चर्य ( अच्छेरा ) जाणवा. अनन्त उत्सपिणी अने अवसर्पिणी काल व्यतीत थयां पछी आवा आश्चर्यो लोकमां थाय छे. १७३ जिनशासनभां बार चक्रवर्ती चक्रवर्ती चक्रवत्ता आयुष्य तनमान नध्य जनक । जननी नगरी १भरत लाखपूर्व ५०० ऋषभदेव सुमंगला विनीता रसगर ७२लाखपूर्व ४५० सुमित्र यशोमती अयोध्या ३मघवा ५लाखर्वष ४२॥समुद्रविजय भद्रादेवी श्रावस्ती ४सनत्कुमार३लाख , ४१॥अश्वसेन सहदेवी हस्तिनापुर ५शान्ति १लाख ,.४० विश्वसेन अचिरा गजपुर ६कुन्थु ९५हजार ,, ३५ सूरराज श्रीदेवी गजपुर अर८४हजार |३० सुदर्शन देवी गजपुर सुभूम ६०हजार ,, २८ कृतवीर्य तारादेवी हस्तिनापुर ९महापद्म ०हजार ,,२० पद्मोत्तर ज्वालादेवी वाराणसी १०हरिषेण १०हजार ,, १५ महाहरि मेरादेवी कांपिल्यपुर ११जय ३हजार ,, १२ विजय वप्रादेवी राजगृह १२ब्रह्मदत्त ७०० , ब्रह्मराज चुलनी कांपिल्यपुर Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ५ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. __ ऋषभना वारे भरत, अजितना वारे सगर, धर्म अने शांतिनाथना वचमां मघवा अने सनत्कुमार, पोत पोताना शासनमां शांति, कुन्थु अने अर, अरनाथ अने मल्लिनाथना वचमां सुभूम, मुनिसुव्रतना वारे महापद्म, नमिजिनना वारे हरिषेण, नमिनाथ अने नेमिनाथना वचमां जय, नेमिनाथ अने पार्श्वनाथना वचमां ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती थयो. १७४ जिनशासनमां नव प्रतिवासुदेव १ अश्वग्रीव, २ तारक, ३ मेरक, ४ मधुकैटभ, ५ निशुम्भ, ६ बलि, ७ प्रह्लाद, ८ रावण, ९ जरासंध, ए नव प्रतिवासुदेव कहेवाय छे एओने मारीनेज वासुदेवो राज्यासने बेशे छे. १७५ जिनशासनमां नव वासुदेव श्रेयांसनाथना वारे त्रिपृष्ठ, वासुपूज्यना वारे द्विपृष्ठ, विमलनाथना वारे स्वयम्भू, अनन्तनाथना वारे पुरुषोत्तम, धर्मनाथना वारे पुरुषसिंह, अरनाथ अने मल्लिनाथना वचमां पुरुषपुण्डरीक अने दत्त, मुनिसुव्रत अने नमि १ सुभूम अने ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती सातमी नरके, मघवा अने सनत्कुमार चक्रवर्ती त्रीजा स्वर्गे तथा शेष चक्रवर्ती संयमग्रही अने कर्मक्षय करी मोक्षे गया छे. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां नाथना वचमां लक्ष्मण, नेमिनाथना वारे श्रीकृष्ण वासुदेव थया. एमां त्रिपृष्ठ ७ मी नरके, दत्त ५ मी नरके, लक्ष्मण ४ थी नरके, श्रीकृष्ण ३ जी नरके अने वाकीना वासुदेव ६ ट्ठी नरके गया छे. पूर्वभवमां निदानकर्म बांधेल होवाथी वासुदेवो नियमा नरकेज जाय छे. चक्रवतीथी वासुदेवने बल, पराक्रम अने राज्यादि ऋद्धि अर्धी होय छे. माता | वासुदेव । पिता | माता आयुर्वर्ष नगरी त्रिपृष्ठ प्रजापति मृगावती | ८० ८४लाख पोतनपुर रद्विपृष्ठ ब्रह्मराज पद्मादेवी | ७० ७२लाख द्वारिका ३स्वयंभू भद्रराज पृथ्वीदेवी | ६० ६०लाख द्वारिका ४पुरुषोत्तम | सोमराज शीतादेवी | ५० ३०लाख द्वारिका ५पुरुषसिंह शिवराज अमृतादेवी ४५ १०लाख अम्बपुर ६पुरुषपुंडरीक महाशिर लक्ष्मीदेवी | २९ ६५हजारचक्रपुर अग्निसिंह शेषवती । २६ ५६हजारकाशी टलक्ष्मण दशरथ सुमित्रादेवी १६ १२हजारअयोध्या ९श्रीकृष्ण | वसुदेव देवकी १०१ हजारमथुरा वासुदेव अने बलदेवना पिता एकज अने माता जुदी जुदी होय छे. तेमज तनुमान अने नगरी पण सरखीज जाणवी. बलदेवोमां बलभद्र पांचमा देवलोकमां अने शेष संयमपाली केवलज्ञान पामी मोक्षमां गया छे. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ५ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. बलदेवना नाम, माता अने आयु१ अचल भद्रादेवी ८५ लाखवर्ष २ विजय सुभद्रा ७५ लाखवर्ष ३ भद्र सुप्रभा ६५ लाखवर्ष ४ सुप्रभ सुदर्शना ५५ लाखवर्ष ५ सुदर्शन विजया १७ लाखवर्ष ६ आनन्द विजयन्ती ८५ हजारवर्ष ७ नन्दन अपराजिता । ५० हजारवर्ष ८ रामचन्द्र अपराजिता .१५ हजारवर्ष । ९ बलभद्र रोहिणी . १२ हजारवर्ष चोवीश तीर्थकर, बार चक्रवर्ती, नव वासुदेव, नव बलदेव, नव प्रतिवासुदेव, ए त्रेसठ शलाकापुरुष पुरुषोत्तम कहेवाय छे. एमां जीव ५९, काया ६०, पिता, ५२ अने माता ६१ समजवा, केमके बार चक्रवर्तिमां शांति, कुन्थु, अर, ए त्रणे तीर्थंकर अने चक्रवर्ती बन्ने पदवीना धारक होवाथी त्रण ओछा थया. तेमज त्रिपृष्ठवासुदेव अने महावीरनो जीव एकज होवाथी एक ओछो थयो माटे त्रेसठमांथी चार जीव बाद करतां जीव ५९ रह्या. शांति, कुंथु, अर, ए त्रणेना चक्रवर्ती अने जिन संबंधी शरीर एकज होवाथी त्रेसठमांथी त्रण बाद करतां काया ६० थइ. ___ नव वासुदेव अने बलदेवना पिता एकज, तथा शांति कुंथु अने अरनाथ ए बबे पदवीवालाना पिता एकज होवाथी त्रेसठमांथी बार ओछा थतां ५१, मतान्तरे महावीरना पिता ऋषभदत्तने मेगा गणतां पिता ५२ थया. शांति, कुंथु अने अरनाथनी तीर्थकर अने चक्रीपणानी एकज Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूर्य ६६ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां माता होवाथी त्रण ओछी करतां अने वीरप्रभुनी देवानन्दा अने त्रिशला ए बे माता गणतां ६१ माता थइ. गृहस्थकालथी बलदेव लगण त्रीश स्थानकोवडे शोभायमान आ चतुष्पदीमां पांचमो उल्लास पूर्ण थयो. श्रीविंशतिविहरमाणजिन-चतुष्पदी । विहरमानजिन जनक | जननी लंछन सहचरी-स्त्री १ सीमंधर | श्रेयांस | सत्यकी वृषभ रुक्मिणि २ युगमंधर | सुदृढ सुतारा गज प्रियंगुदेवी ३ बाहु सुग्रीव विजया हरिण मोहिनी ४ सुबाहु निसढ भूनन्दा किंपुरुषा ५ सुजात देवसेन देवसेना जयसेना ६ स्वयंप्रभ मित्रप्रभ सुमंगला चन्द्र वीरसेना ७ ऋषभानन | कीर्ति वीरसेना जयावती ८ अनंतवीर्य | मेघ मंगलावती विजयावती ९ सूरप्रभ नागराज भद्रादेवी विमलादेवी १० विशाल विजय विजयावती सूर्य नन्दसेना ११ वज्रंधर | पद्मराज सरस्वती | वृषभ विजयवती |१२ चंद्रानन | वल्मीक पद्मावती वृषभ लीलावती १३ चन्द्रबाहु | देवानंद | रेणुकादेवी | कमल सुगंधादेवी १४ ईश्वर कुलसेन | यशोज्ज्वला | कमल भद्रावती १५ भुजंग | महाबल | महिमादेवी | चन्द्र गंधसेना १६ नेमिप्रभ वीरसिंह | सेनादेवी सूर्य मोहिनी १७ वीरसेन | भूमिपाल | भानुमती हस्ति रायसेना २८ महाभद्र | देवराज उमादेवी वृषभ सूरिकांता १९ देवयशा | सर्वभूति | गंगादेवी चन्द्र पद्मावती २० अजितवीय राजपाल | कनीनिका | सूर्य रत्नमाला सिंह गज Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारांश ५ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ६७ ६-१२ विजय, नगरी, शरीरवर्ण, आयु, शरीरमानादि पुष्कलावतीविजय अने पुंडरीकिनी नगरीमा १-५९-१३-१७, वप्रविजय अने विजया नगरीमा २-६-१० १४-१८, वत्सविजय अने सुसीमा नगरीमा ३-७-११ -१५-१९, तथा नलिनावतीविजय अने वीतशोका नगरीमा ४-८-१२-१६-२०, एवं पंच पांच विहरमाण जिन समजवा. वीश विहरमाण जिनेश्वरोने शरीरनो वर्ण स्वर्ण सरखो, आयु ८४ लाख पूर्वनो, शरीरमान ५०० धनुष्यनो, केवलज्ञानी संख्या १० लाख, मतान्तरे २ क्रोड, सामान्य मुनिवरोनो परिवार १०० क्रोड, मतान्तरे २००० क्रोडनो समान समजवू. १ अंचलगच्छीय हर्षनिधानसूरि संग्रहित 'रत्नसंचय ग्रन्थमां कहेलुं छे के-महाविदेहक्षेत्रमा रहेला साधुओने पण बत्रीश कवलनो आहार होय छे. तेमनो बत्रीश मुंडानो एक कवल थाय छे तेथी ३२ कवलनुं प्रमाण बत्रीशने बत्रीशे गुणवाथी एक हजार चोवीश मुंडा थाय छे, एटलो एक साधुने एक वखतनो आहार होय छे. त्यां साधुना मुखy प्रमाण उत्सेधांगुलथी ५० हाथर्नु छे. तेना पात्रना तलीयानुं प्रमाण १७ धनुष लांबु होय छे अने तेमनी एक मुखवत्रिकामां भरतक्षेत्रना साधुओनी एक लाख, ६० हजार मुखवत्रिकाओ थाय छे. ( अहीं करता ४०० गणी लांबी अने ४०० गणी पहोली होवाथी आ माप घटी शके छे ) Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभुश्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर-सङ्कलितश्रीविंशतिविहरमाणजिन-स्तवः । सकलैश्वर्यवस्थानमास्थानं श्रेयसः शुभम् । प्रभूतपुण्यसंसक्तमार्हन्त्यं समुपास्महे ॥१॥ सुप्रतीतश्चतुर्भिश्च, निक्षेपैः पुनतो जिनान् । विश्वलोकं सदात्मानं, त्रिकालं प्रणमाम्यहम् ॥ २॥ अज्ञानतिमिरान्धाग्राह्यो निष्परिग्रहः । भवभीनाशकृन्मेऽस्तु, श्रीमत्सीमन्धरैः प्रभुः ॥३॥ शुक्लोपलेव गीर्याऽस्ति, ज्ञानामकृतिनां समा। श्रीयुगमन्धरस्याऽति, सा सदा शिवदाऽस्तु मे ॥४॥ भवाब्धेर्भव्यजन्तून् सः, बाहुभ्यामुद्धरन्निव । श्रीबाहुभगवाञ्छास्ता, भूयान्मे केवलप्रदः ॥५॥ सर्वेषामुपकाराय, तीर्थकुन्नाम संवहन् । सुंबाह्रर्हन् विदेहेऽस्मि-अम्बूद्वीपे सुखप्रदः ॥६॥ देशनावसरे सम्यक्, तचाप्तिादृशी सताम् । श्रीसुजाताऽऽसतो जाता, भूयान्ममापि तादृशी॥७॥ श्रेयोवल्ली नवाम्भोदः, श्रीस्वयम्प्रर्भ ईश्वरः । नवीनश्रीप्रदाता मे, भन्यानां भयहानिकृत् ॥८॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. कर्मभारैर्भरश्रान्तान् , जनानिर्वाहयन्नसौ । मोक्षाऽध्वनि श्रिये मेऽस्तु, तीर्थकृषभाननः॥९॥ अनन्तभ्रमतप्तानां, स्याद्वादामृतसन्निभा । अर्हदनन्तवीर्यस्य, गीर्जयति जगत्त्रये ॥१०॥ मिथ्यात्वध्वान्तनाशाय, राजतीव दिवामणिः । अर्हन् सूरप्रभुः श्रीमान् , भविनां श्रेयसेऽस्तु नः।११॥ विशालकीर्तिभूल्लोके, श्रीविशालो जिनेश्वरः । विशालज्ञानदो मेऽस्तु, भवसन्ततिवारकः ॥१२॥ कर्मपर्वतभेदार्थ, तपोवज्रः करे धृतः। श्रीवज्रन्धरजैनेन्द्रो, भूयात्पापार्तिवारकः ॥१३॥ भव्यहत्कञ्जबोधाय, नूतनोदयचन्द्रमाः। जीयाच्छीधातकीखण्डे, श्रीचन्द्राननजैनपैः ॥१४॥ चतुर्धाऽमलवाक्येनाऽनेकान्तमतधारिणे । नतेन्द्रोष्णीषपादाय, नमः श्रीचन्द्रबाहवे ॥१५॥ मूढा मतान्तरे लोका, वदन्ति स्त्रीविलासिनम् । ईश्वरं हदि मे नैवाऽन्यदीश्वराहतं विना ॥१६॥ भुजङ्गस्वामिनः कीर्तिहंसीव स्वर्णदीतटे । क्रीडाकलरवे मत्ताऽन्यभवे बोधिदाऽस्तु मे ॥ १७ ॥ आर्तिगर्तगतान् भव्या-नाकर्षन्तं जिनाधिपम् । कन्तुप्रपञ्चनिर्मुक्तं, स्तुवे नेमिप्रभुं सदा ॥१८॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. भद्रं श्रीवीरसेनस्य, कर्मसैन्यप्रणाशिनः । संसाराब्धौ सुपोतस्य, सच्चिदानन्ददायिनः ॥ १९ ॥ महाभद्रप्रदातारं, जैनशासनवर्तिने ।। श्रीमहाभद्जैनेन्द्र, विश्वाध्यक्षं वयं स्तुमः ॥२०॥ कृतोपकारः सर्वेषां, कीर्तिर्येन च विस्तृता । स्तुवन्ति निर्जरास्तं श्रीदेवयशीऽऽप्तनायकम् ॥२१॥ अर्हदजितवीर्यस्य, श्रद्धा मेऽस्तु हृदि स्थिरा । पुष्करार्धे स्थितस्यापि, मोहमल्लजया वरा ॥२२॥ सर्वान् गणधरान् वन्दे, केवलिनोऽपि निर्मलान् । आज्ञाधरान् वरान् साधून् , शिरसा मनसा सदा ।२३॥ रसगुण वचन्द्रे वत्सरे गोलपुर्या ममुमकृत सुभक्त्या श्रीलराजेन्द्रसूरिः। सकलजिनवराणां सुस्तवं पापनाशं, भवतु सकलसिद्धिप्रापकं पाठकानाम् ॥२४॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ णमो समणस्स भगवओ महावीरस्स। श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी। सर्वज्ञ सर्वदर्शी विभु, बुद्धिविवर्द्धक जेह । चोवीसी जिनने नमुं, आणी मनमें नेह ॥१॥ ज्ञाननयन दाता सदा, गुण गिरुवा गुरुदेव । तस पदपंकज प्रणमतां, बढ़े बुद्धि स्वयमेव ॥ २॥ लौकिकभाषा छन्दमें, भविजन के हितकार । पंचसप्ततिशतस्थाननु, सुगम रचुं अधिकार ॥३॥ १ भवसंख्या, श्रीऋषभदेवना तेर भवऋषभ भव तेरस कह्या, धरिये हृदय मझार । धनसार्थप पहले भवे, बीजे युगल सुधार ॥१॥ सुर तीजे महबल तुरिय, ललितांग पण जोय । वज्रजंघ छ8 मिथुन, आठमें सोहम होय ॥२॥ वैद्यपुत्र नवम अच्युत, चक्री ग्यारम जाण । सर्वार्थसिद्ध विमान में, तेरम ऋषभ प्रमाण ॥३॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. श्रीचन्द्रप्रभस्वामीना सात भव- श्रीवर्म्मराजा प्रथम, सोहम बीजे देव । अजितसेनचक्री थया, चोथे अच्युत सेव [ प्रथम 118 11 पद्मराज पंचम भवे, षष्ठ विजयंत जान । सातमे चन्द्रप्रभ थया, ओपे गुणि गण थान श्रीशांतिनाथप्रभुना बार भव श्रीषेण पहले भवे, बीजे युगल सुजाण । देव तीजे अमिततेज, तुरिय थया गुणखाण ॥ ६॥ प्राणत पंचम बलहरी, छट्ठे अच्युत सात । वज्रायुध भव आठमे, नवम गेविज जात 114 11 ॥७॥ मेघरथ दशमा भवे, कपोत रक्षक जेह | सर्वार्थसिद्ध विमानसुं, बारम शांति सुलेह ॥ ८ ॥ श्रीमुनिसुव्रतस्वामीना नव भव शिवकेतु पहले भवे, बीजे सोहम थाय । कुबेरदत्त तीजे भवे, तुरिय स्वर्ग - तिय जाय ॥ ९ ॥ वज्रकुंडल भव पंचमे, छट्ठे ब्रह्म विचार । श्रीवर्मनृपति सातमे, अपराजित अड धार ॥ १० ॥ मुनिसुव्रत नवमे थया, तीर्थंकर जयकार । वीसम जिनपति वदतां नाशे पाप प्रचार ॥ ११ ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. श्रीनेमिनाथप्रभुना नव भव धनराजा सोहमदेव, चित्रगति खेचरेन्द्र । चोथे माहेन्द्र सुर थया, अपराजित देवेन्द्र ॥१२॥ आरणदेव छट्ठा भवे, सुपइट्ठ अहवा शंख । अपराजित विमाने जइ, नवमे नेमि निशंक ॥१३॥ श्रीपार्श्वनाथप्रभुना दश भवमरुभूति पहले भवे, कमठनो जे लघुभ्रात । हाथी भव बीजो थयो, सहस्रार तिय जात ॥१४॥ चोथो भव खेचरेन्द्र, अच्युत पंचम जोय । छढे नरपति सातमे, अवेयक सुर होय ॥१५॥ आठमे राजा प्राणते, दशमे पारसनाथ । फणिधर लंछन जेहनो, शोभे सुंदर साथ ॥१६॥ श्रीमहावीरप्रभुना सत्तावीस भवनयसार सोहम सुरा, मरीचि बीजे जाण । ब्रह्मसुर चोथे भवे, पंचम कौशिक माण ॥१७॥ १ धनवती सुधर्मदेव, रत्नवती माहेन्द्र । . प्रीतिमती आरणसुरा, यशोमती गुणकेन्द्र ॥ १ ॥ अपराजित राजीमती, नेमि प्रिया सुखरेह । . प्रभुसंगे भव नव कर्या, राजिमती सुसनेह ॥ २ ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [प्रथम सोहमसुर छटे भवे, भवभ्रमण करि जेह । पुष्पमित्र सप्तम लहो, अष्टम सोहम तेह ॥ १८ ॥ अग्निद्योत नवमे दशम, ईशाने सुर होय । अग्निभूति इग्यारमें, बारम तिय-देवलोय ॥१९॥ भारद्वाज भव तेरमें, माहेन्द्र भमे संसार । स्थावर पंदर सोलमें-ब्रह्मदेव अवतार ॥२०॥ भवभमीने सतरमें, विश्वभूति द्विज नाम । शुक्रे सुर अट्ठारमें, तिविठ्ठ-केशव धाम ॥२१॥ वीसम भव सप्तम नरक, इकवीसे सिंह होय । बावीसमें नरके गया, संसार भमिया सोय ॥२२ ।। प्रियमित्र चक्री थया, सप्तमकल्प चोवीस ।। नंदननृप पचवीसमें, दशमकल्प छबीस ॥२३॥ ग्यार लाख एंसी सहस, छेसो पेंतालीस । मासखमण नंदन भवे, कीधा वीर जगीश ॥ २४ ॥ सत्तावीसम भवे हुवा, त्रिशलानंदन वीर । चरम जिनपति मानिये, जगमें जे महावीर ॥२५॥ शेष जिनेश्वरोना त्रण त्रण भवऋषभ चन्द्र शांति सुव्रत, नेमि पार्श्व ने वीर । वरजी सातने शेष जिन, भव तीजे हरि पीर ॥ २६ ॥ द्वीप-क्षेत्र-विजयादिनु, देव भव बीय जाण । तीजे जिन भव शेष जिन, त्रिभव संख्या माण ॥ २७॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. उल्लास ] २ जिनेश्वरोना पूर्वभवना द्वीप - ७५ ऋषभादिक चारे वली, शांति प्रमुख नव धार । जम्बुद्वीपे भव पाछले, थया जग जयकार ॥ २८ ॥ सुमति प्रमुख चउ जिना, विमलादिक अरु तीन | धातकिखंडे सुविधि चउ, पुष्करद्वीपे लीन ॥ २९ ॥ ३ जिनेश्वरोना पूर्वभवना क्षेत्र - ऋषभादिक बारे विभ्रू, शांति कुन्थु अरनाथ | पूर्वविदेहे, मल्लिजिन - पश्चिमविदेहज थात ॥ ३० ॥ विमल धर्म सुव्रत नमि, नेमि पार्श्व ने वीर । भरतक्षेत्र भव पाछिले, अनंतैरवत धीर ॥ ३१ ॥ ४ जिनेश्वरोना पूर्वभवनी क्षेत्रदिशा विमल धर्म सुव्रत नमि, नेमि पार्श्व अरु वीर । मेरुथी दक्षिण दिशा, उत्तर अनंत सुधीर ॥ ३२ ॥ ऋषभ सुविधि सुमति तहा, शांति कुंथु जिनराज । शीताथी उत्तर - दिशा, शेष दश दक्षिण साज ॥ ३३ ॥ ५ जिनेश्वरोना पूर्वभवना विजय - ऋषभ सुमति शांति सुविधि, पुष्कलविजये जात । अजित पद्म शीतल अरा, वच्छविजय विख्यात ॥ ३४ ॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [प्रथम संभव सुपार्श्व श्रेयांस, रमणीयविजय माय । चोथा अष्टम बारमा, मंगलावतिए थाय ॥ ३५ ॥ विजयावर्ने कुंथुजिन, अनंतैरवत होय ।। सलिलावतिए मल्लिविभु, विजय पूर्वभव जोय ॥ ३६ ॥ मुनिसुव्रत नमि नेमिजिन, पार्श्व अन्तिम वीर । विमल धर्म साते प्रभू, थया भरत वड़वीर ॥३७॥ ६ जिनेश्वरोना पूर्वभवनी नगरीओवृषभ सुमति शांति सुविधी, पुंडरीकणी जान । अजित पद्म शीतल अरा, सुसीमा नयरि मान ॥ ३८॥ संभव सुपार्श्व श्रेयांस, शुभापुरी अवतार । कुंथुनाथ खड्गीपुरी, रिष्टा अनंत निहार ॥३९॥ अभिनंदनाऽष्टम बारमा, रत्नसंचया होय । भदिलपुर श्रीधर्मजिन, विमल महापुरि जोय ॥ ४० ॥ वीतशोका मल्लिजिन, कोशांबी नमि जान । मुनिसुव्रत चंपापुरी, राजगृह नेमि प्रमान ॥ ४१ ॥ अयोध्या पार्श्वप्रभु, अहिच्छत्रा जिनवीर । पूर्वभवों की नगरियाँ, समझो थइ मन थीर ॥ ४२ ॥ ७ जिनेश्वरोना पूर्वभवना नाम अने ८ राज्यवज्रनाभ पूरव भवे, शेष अनुक्रम जान । विमलवाहन विपुलबलं, महबल अतिबल मान ॥ ४३॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास ] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. अपराजित नंदी पद्म, महापद्म अरु पद्म । नलिनीगुल्म पद्मोत्तर, पद्मसेन - गुणसद्म ७७ 11 88 11 पद्मरथ दृढरथ मेघरथ, सिंहावह नर - ईश | धनपति वैश्रमण श्रीवर्म, सिद्धारथ - सुगुणीश ॥ ४५ ॥ सुप्रतिष्ठ आनंदनृप, नंदन नाम महंत | प्रथम चक्री मानिये, शेष नृपति मतिवंत ॥ ४६ ॥ ९ जिनेश्वरोना पूर्वभवना गुरु पूर्वभवे जे गुरु थया, अनुक्रम तेना नाम । वज्रसेन अरिदमन अरु, संभ्रांत ततिय साम ॥ ४७ ॥ विमलवाहन सीमन्धरा, पिहिताश्रवजी जान | अरिदमन युगन्धर तथा, सर्वजगानंद मान सस्ताघ वज्रदत्त पुनि, वज्रनाभ सर्वगुप्त । चित्ररथ विमलवाहन, घनरथ संवर सुप्त बारे अङ्ग पेला भण्या, शेषा ग्यारे अङ्ग । श्रुतरत्व इम जानिये, जिनवाणी परसङ्ग 11 86 11 1188 11 साधुसंवर वरधर्म हु, सुनंद नंद विचार | अतियश दामोदर गुरु, पोट्टिल चरम निहार ॥ ५० ॥ १० जिनेश्वरोना पूर्वभवनो श्रुत ॥ ५१ ॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [प्रथम ११ जिननामकर्मोपार्जन हेतु अरिहंत सिद्ध प्रवचन गुरु, स्थविर बहुश्रुत जान । तपस्वी ज्ञान दर्शन अरु, विनयाऽऽवश्यक मान ॥५२॥ अखंडशील क्रियाशुद्ध, क्षणलवतप ने त्याग । वैयावृत्य समाधिचऊ, अपूर्वज्ञान से लाग ॥५३ ॥ श्रुतभक्ति प्रवचनप्रभाव, तीर्थकरण ए बीस । प्रथम चरम जिन फरसिया, शेष इगदो ति बीस ॥५४॥ १२ जिनेश्वरोना पूर्वभवना स्वर्गसर्वार्थसिद्धथी ऋषभ, शांति कुंथु अरनाथ । अजित चन्द्र ने धर्मजिन, विजयविमानसुंथात ॥५५॥ संभव मुनि-ग्रैवेयथी, पद्म नवमथी जोय । सुपार्श्व छट्ठाथी थया, श्रेयांस अच्युत होय ॥५६॥ तुरिय सुमति मल्लिप्रभू, जयंतथी आवंत । सुविधि आनत स्वर्गथी, जिनपद पाम्या संत ॥ ५७ ॥ मुनिसुव्रत नेमी विभू, अपराजित अवतार । सहस्रार स्वर्गथी चवी, विमलजिन जयकार ॥ ५८ ॥ शीतल वासुपूज्य नमी, पार्श्व वीर अनंत । प्राणत स्वर्गसुं आवीया, अवनीतल जयवंत ॥५९ ॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १३ जिनेश्वरोना पूर्वभवनो आयुअयर तेंतीस सर्वार्थमें, अपराजित जयंत । आयु प्राणत बीसनो, दुवीस अचुय महंत ॥६० ॥ सहस्रारे अढारनो, उगणिस आनत जान । छडे गेविज अडविसर्नु, सप्तम गुणतिस मान ॥ ६१ ॥ नवमे इकतीस कह्यो, उत्कृष्ट थिति छे एह । धर्मनाथ बत्तीसनो, मध्यम आयु सुलेह ॥ ६२॥ १४ जिनेश्वरोनी च्यवन-मासतिथी आषाढ वदि चोथे ऋषभ, चवे सुदि वैशाख । तेरस अजित फाल्गुनसुदि, आठम संभव भाख ॥ ६३॥ वैशाखसुदि चोथे चवे, श्रावणसुदिनी बीज । पद्म महावदि छट्टमें, आठम भाद्रव लीज ॥ ६४ ॥ चन्द्र चैत्रवदि पंचमी, फाल्गुनवद नोमि जान। वैशाखवदि छठे शीतल, वदि ज्येष्ठ छठ मान ॥ ६५ ॥ ज्येष्ठसुदि नवमी तहा, सुदि बारस वैशाख । अनंत श्रावणवदि सातमे, सातम सुदी वैशाख ॥ ६६ ॥ भाद्रववदि सातम दिने, श्रावणवदि नोमि सार । अर फागुणसुदि बीजको, चोथ में मल्लि धार ॥ ६७ ॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. | श्रावणसुदि पूनम सुव्रत, आसो पूनम तेम । नेमि कातिवद बारसे, चोथ चैत्र वदि जेम ॥ ६८ ॥ आषाढसुदि छट्ठे चवे, चरम जिनेश्वर वीर । चवन तिथि मासा कला, शास्त्रे जिनपति वीर ॥ ६९ ॥ १५ जिनेश्वरोना च्यवन नक्षत्र ८० [ प्रथम उत्तराषाढा रोहिणी, मृगशिर पुनर्वसु जान । मघा चित्रा विशाखा अरु, अनुराधा मुल मान ॥ ७० ॥ पूर्वाषाढा श्रवण शतभिषग् उत्तरभद्द रेवर पुष्य । भरणी कृत्तिका रेवती, अश्विनी श्रवण प्रशस्य ॥ ७१ ॥ अश्विनी चित्रा जानिये, च्यवन नक्षत्र विचार | विशाखोत्तरफाल्गुनी, क्रमसे चउवीस धार ॥ ७२ ॥ १६ जिनेश्वरोनी च्यवन राशि धन वृष मिथुन मिथुन सिंह, कन्या तुल अलि धन्न । धन मकर घट मीन मीन, कर्क मेष वृष मन्न ॥ ७३ ॥ मीन मेष ने मकर मेष, कन्या तुल क्रम जान | कन्याराशी च्यवन में, ऋषभादिकनी मान ॥ ७४ ॥ १७ जिनेश्वरोनो च्यवन समय अर्द्धरात्रि में सहु चव्या, चोवीसे जिनराज । एक समय भरहेरवंय, सरखो एह समाज ॥ ७५ ॥ १ मास समय रिख चवनना, भाष्या छे जिम एह । तिम भरतादि दश क्षेत्रमां सरखा जाणी लेह ॥ १ ॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १८ जिनमाताओने आवेलां चौद स्वप्नगज वृषभ सिंह लक्ष्मी, पुष्पदाम शशि सूर । ध्वजा कुंभ ने पद्मसरः, समुद्र सजले पूर ॥ ७६ ॥ विमान-भवन रत्नराशि, अग्निपुंज जिन माय । मरुदेवी वृषभ आदि में, सिंहादि त्रिशला माय ॥७७॥ नरकागत जिननी प्रसू, सुपन भवननो देख । स्वर्गागत जिनवर तणी, माता विमानज पेख ॥७८ ॥ जिन जननी सुनिर्मल जुवे, सुपना चौदे सार । चक्री माता मलिनपने, मर्म ए चित धार ॥ ७९ ॥ केशव माता सात अरु, बलदेव चउ वखान । प्रतिवासुदेव प्रसू तिय, इक मांडलिक सुजान ॥ ८०॥ १९ स्वप्नपाठक अने स्वप्नविचार अजितादिकनी सुपन विचार, तात सुपनपाठक कहे सार। ऋषभने नाभि इन्द्र वखाण,पिण सरिखो शुभ अर्थप्रमाण८१ २० जिनेश्वरोनो गर्भस्थितिकाल___ मास आठ गर्भस्थितिना कहिये, सुविधि अजित अभिनंदन लहिये, वासुपूज्य विमल सद्दहिये । धर्मनाथ हवे शेष जिणिंदा, महीना नव रहे गर्भ दिणिंदा, प्रणमुं अढारे मुणिंदा ॥ मास उवरि हवे चोवीस जिनना, वधता Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [प्रथम दिन कहूं तेहनी गणना, चउ पण वीस छ भणना। अडबीस छ छ ने गुणवीस, सग छवीस छ छ पुनि बीस, इगवीस छ छवीस ॥ छ पण अड सत अड अड लहिये, अड षट् सप्त अरु क्रमसुं गहिये, सूरीशराजेन्द्र सद्दहिये ॥ ८२ ॥ द्वार वीसे अलंकर्यो, पूरण प्रथमोल्लास । भवसंख्याथी गर्भलग, जिनवर ठाण प्रकाश ॥८३ ॥ इति श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छावतंसाऽऽबालब्रह्मचारि-विशुद्धतमचारित्राऽऽरामविहारि-कलिकालसर्वज्ञकल्प-जङ्गमयुगप्रधान-शासनम्राट्-परमयोगिराज-जगत्पूज्य-गुरुदेव-प्रभुश्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर-विरचितायां पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पद्यां विंशतिस्थानवर्णनो नाम प्रथमोल्लासः । २१ जिनेश्वरोना जन्मनी मास तिथी__ ऋषभ चैत्रवदि आठम जाया, माघसुदि आठम अजित सुहाया, सुदि मृग चउदसि आया। माघसुदि बीज चोथ वैशाखे, सुदि आठम सुमइ कार्तिक भाखे, वदि बारस छठ आखे ॥ ८४ ॥ सुदि बारस जेठ सप्तम जाणो, चन्द्र पौषवदि बारस माणो, सुविधिनो कहुं ठाणो। मृगसिरवदि पंचमि वदि माघ, बारस शीतल श्रेयांस सुलाग, फागुणवदि बारस थाग ॥ ८५ ॥ फागुणवदि Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास ] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ८३ चउदसि वसु जाणो, माघसुदि त्रीजे विमल वखाणो, तेरस वैशाख वदि ठाणो । धर्म माघसुदि त्रीजे जाया, शांति जेठवदि त्रीजे आया, चौदसि वैशाखवदि पाया ॥ ८६ ॥ मृगसिरसुदि दशमी अरनाथ, तिम इग्यारस मल्लि विख्यात, जेठवदि आठम थात । श्रावणवदि आठम नमि जाया, तिम सुदि पंचमि नेमि कहाया, बावीसम जिनराया । पार्श्व पोसवदि दशमी पूजे, चैत्रसुदि तेरस वीर विभूजे, नमतां पातिक धूजे ॥ ८७ ॥ २२-२४ जन्मसमय, जन्मनक्षत्र अने जन्मराशि जन्मसमय सहु जिनतणो ए, अर्धरात्रि सुखकार तो । जन्मनक्षत्र जे चवननो ए, तेहिज इहां विचार तो ॥ राशि पण तेहिज लहो ए, जे कही चवन मझार तो । सूरिराजेन्द्रजी भाषिया ए, लहिये दिल माहें धार तो ॥८८॥ २५ जिनेश्वरोना मानवादि गण ऋषभ शीतल विमल शांति, वीर गण- मानव होय । अजित संभव अभिनंदन, चन्द्र इग्यारम जोय ॥ ८९ ॥ अनंत धर्म अर मल्लिजिन, वीसम नमि सुजाण । देवगण एहनो को, जो इस ग्रन्थ प्रमाण 1180 11 सुमति पद्म सुपास सुविधि, वासुपूज्य अरु कुंथु । नेमि पार्श्व राक्षसगणी, जोईसर ए पन्धु ॥ ९१ ॥ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [द्वितीय पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. २६ जिनेश्वरोनी नकुलादि योनि सिद्धचक्रपद वंदो रे भविका, ए राह जिनवर योनि वखाणो रे भविका जि० ॥ टेर ॥ योनि नकुल श्रीप्रथमजिनेश्वर, वासुपूज्य नमि मल्लि । एत्रण जिननी घोटक योनी,संभव अजित अहि वल्लि रे भ०१ बिलाडो अभिनंदन जाणो, सुमति मूषक गो वीर । चंद्र हरिण सुविधिजिन श्वान, दशमैकादश कपि धीर रे भ०२ मुनिसुव्रतने पण वानर योनी, विमल धर्म ने छाग । कुंथु छाग अर शांति अनंत, गज ए तीनने लाग रे ॥भ०॥३॥ पद्म सुपास ने नेमि पारस, योनि एहनी व्याघ्र । सूरिराजेन्द्रजी सांचो भाषे, जोइ लेजो ग्रन्थान रे ।।भ०॥४॥ २७ जिनेश्वरोना गरुडादि वर्ग अजब महेलने अजब झरोखे, ए राह ऋषभ अजित ने श्रीअभिनंदन, अनंतनाथ अरजिनजी। वर्गए पांचनोगरुड वखान्यो. मृगपति चंद्र भगवनजी॥२॥ ___ भवि तमे मानो, ए छे शास्त्र प्रमाणो भ० ॥ टेर ॥ संभव सुमति सुपार्श्व जिनेश्वर, सुविधि शीतल श्रीशांति । वर्ग ए सातनुं मेषज लहिये, मेटी मननी भ्रांति ॥०॥२॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ८५ धर्म नमीजिन नेमि फणिधर, वासुपूज्य विमल ने वीर । वर्ग मृगतणो एहनो कहिये, अडग थई महाधीर ॥भ०॥३॥ पद्म मल्लि मुनिसुव्रत पारस, मूषक वर्ग सुचंग । कुंथुजिननोवर्ग बिलाड़ो, इम चोवीसे जिन रंग ॥०॥४॥ श्वान मेष ने सर्प गरुडनु, मृग सिंहर्नु वलि होय । बिलाड मूषक, माहो माहें, वैरभाव नित जोय ॥०॥५॥ २८ षडारकोना नाम, प्रमाण अने जिनजन्मप्रथम आरो सुषम-सुषम, दजो सुषमा जान । सुषमदुषम तीजो चउ, दुःषमसुषमा मान ॥९२ ॥ दुष्षमा पांचमो दुषमदुषम, छट्ठो महा विकराल । चार तीन दोय सागरा, कोडाकोडि निहाल ॥ ९३ ॥ एक कोडाकोडि ऊन कर-सहस वयालिस वर्ष । चोथो आरो जानिये, पंचम इगविस सहस ॥९४ ॥ छट्ठो इकवीस सहस्रनो, वर्षतणो ए जाण । सूरिराजेन्द्रे भाषियो, सूत्र थकी परमाण ॥९५॥ तीजा आरा अन्तमें, शेष संख्यातो काल । जन्म मोक्ष श्रीऋषभनो, थइयो जय जयकार ॥ ९६ ॥ चतुर्थ आरक मध्ये अजित, अर आइ वीरान्त । संभवाइ कुन्थु जिना, पश्चिम भाग महन्त ॥ ९७ ॥ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [द्वितीय२९ जिनजन्मसमयमां आराओनो शेषकालत्रीजा तुरिय आरातणा, पक्ष नव्यासी शेष । ऋषभ वीर मोक्षे गया, काटि कर्म किलेश ॥९८॥ लाख चोरासी पूर्वपर, पक्ष नव्यासी शेष । तीजे आरे जनमिया, पेला ऋषभ जिनेश ॥९९॥ सहस वयाली ऊनकर, बोत्तर पूरव लाख । पचास लाख कोटि अयर, शेष अजित जनु भाख ॥१०॥ वीस लाख कोटी अयर, अधिका पूरव साठ । शेष दुचउ ऊन सहस, संभव जन्म सुठाठ ॥१०१॥ दश लाख कोटि अयरोपरि, पचास पूरव लाख । अभिनंदनजी जनमिया, ऊना तेहिज भाख ॥१०२॥ सहस बयाली हीन कर, लाख पूर्व चालीश । इगलख कोटी अयर शेष, सुमति जन्म जगईश ॥१०३॥ दश कोटी अयर सहस, लाख पूरव तीश । सहस वयाली हीन शेष, पद्म जन्म जगदीश ॥१०४॥ एक सहस कोटी अयर, अधिक पूर्व लख वीस । सहस वयालि वरस हीन, सुपार्श्व प्रसव गुणीस ॥१०५॥ शतकोटी सागर अधिक, दश लख पूरव जान । सहस बयाली हीन शेष, चन्द्र जन्म सुख मान ॥१०६॥ सुविधि दशकोटी अयर, अधिक पूर्व लख दोय । सहस वयाली हीन कर, जनम शेषमें होय ॥१०७॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. एक कोटि सागर ऊपरे, इकलख पूरव शेष । वर्ष वयाली सहस गत, शीतल जन्म विशेष ॥१०॥ शतसागर इक क्रोड अरु, लाख गुणपच्चास । सहस चोरासी ऊपरे, कहो जन्म श्रेयांस ॥१०९॥ छियाली अयर क्रोड इक, लख सेंतीस सुजान । सहस चोरासी जब रहे, वासुपूज्य जनु मान ॥११०॥ सागर सोले क्रोड इक, ऊपर लाख पचीस । सहस चोरासी शेषमें, जन्में विमल जगीस ॥१११॥ सात सागर ऊपर वरस, लाख पंचा' जान । चोरासी सहस रहे छते, अनंत जन्म प्रमान ॥११२॥ तीन सागर ऊपर वरस, लाख पंचोतर होय । सहस चोरासी शेष जब, धर्मजिन जन्मज लोय॥११३॥ पौन पल्योपम ऊपरे, छासठ लख वलि वर्ष । सहस चोरासि रहे जव, शांतिजिन जन्म प्रकर्ष ॥११४॥ पाव पल्योपम ऊपरे, छासठ लाख प्रमाण । सहस उनासी शेषमें, कुंथुनाथ जनु जाण ॥११५॥ कोटिसहस वर्ष ऊपरि, छासठ लाख प्रमाण । सहस अडसठ रहते जब, अरजिन जन्म वखाण ॥११६॥ छासह लाख ऊपर अरु, सहस उगुणचालीस । चोथो आरो शेष जब, मल्लि जन्म जगदीस ॥११७॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. बारलाख सहस्र चौद, तुरिय आरो शेष । मुनिसुव्रत जब जनमिया, वीसम जिनवर ईश ॥ ११८ ॥ पांचलाख चोराणुं सहस, तुरिय आरक शेष । नमिजिन एकवीसमां, जन्म्या तेजधरेश ॥ ११९ ॥ पिचासी सहस शेषमें, नेमि जन्म परकाश । साढीतीनसो वरस शेष, पार्श्व जन्म उल्लास ॥ १२० ॥ वर्ष बहोतर नवासि पख शेष रहे चउ आर । वीरजिन त्रिशला नंदनो, थयो जन्म सुखकार ॥१२१॥ ३० जिनेश्वरोनां जन्मदेश ८८ [ द्वितीय ॥ १२२ ॥ पेला दूजा पांचमां, चोथा चौदम एह । कोशलदेशे ऊपना, कुणाल तीजा लेह पार्श्व सुपार्श्व काशीमां, छट्टानो वछ देश । चन्द्र वीर दो पूर्वना, शीतल मलय कहेस ॥ १२३ ॥ बारमा अंग तेरमा - पंचालदेशे जाण । शांति कुंथु अर कुरुदेश, सुव्रत मगध सुठाण ॥ १२४ ॥ मल्लि नमी विदेहना, नेमी कुशार्त्त देश । सुविधि श्रेयांस धर्मना, सूत्रे छे नहिं लेश ॥ १२५ ॥ ३१ जिनेश्वरोनी जन्मनगरीओ- इक्ष्वाकुभूमि अयोध्या, श्रावस्ति अयोध्या जान । अयोध्या कौशांबी अरु, वाराणसी शुभ ठान ॥ १२६ ॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. चन्द्रपुरी काकंदी ने, भदिल सिंहपुर होय । चंपापुरी कांपिल्यपुर, अयोध्या वली जोय ॥१२७॥ रत्नपुर गजपुर गजपुर, गजपुर मिथिला जान । राजगृह मिथिलापुरी, सौरीपुर प्रियमान ॥१२८ ॥ वाराणसी कुंडपुर वा, क्षत्रियकुंडज होय ।। ऋषभादि जिन अनुक्रमे, नगरी जन्मनी जोय ॥१२९॥ ३२ जिनेश्वरोनी माताओऋषभादिक माता क्रम, मरुदेवी परसिद्ध । विजया सेना सिद्धार्था, मंगला पंचम लिद्ध ॥ १३० ॥ सुसीमा पृथिवी लक्ष्मणा, रामा नंदा जान । विष्णु जया श्यामा वलि, सुयशा सुव्रता मान ॥१३१॥ अचिरा श्री देवी अरू, प्रभावती सुखकार । पद्मावती वप्रा शिवा. वामा त्रिशला धार ॥१३२ ॥ ३३ जिनेश्वरोना पिताओनाभि जितशत्रु जितारि, संवर मेघरथ-राय । धर प्रतिष्ठ महासेन हु, सुग्रीव दृढरथ पाय ॥१३३ ॥ विष्णु वसुपूज्य कृतवर्म, सिंहसेन भानु-भूप । विश्वसेन सूर सुदर्शन, कुंभ सुमित्र-अनूप ॥१३४ ॥ विजय समुद्रविजयनृप, अश्वसेन-भूपाल । सिद्धार्थ भूपति नरवइ, जिनवर जनक विशाल ॥१३५॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [द्वितीय३४ जिनेश्वरोनी माताओनी गतिऋषभादिक जिन आठनी, माता मुगती जाय । सुविधिथी अड जिन तणी, तृतीय कल्प सिधाय ॥१३६॥ कुंथु प्रमुख जिन सातनी, मात गई माहेन्द्र । चोथे बारमे वीरनी, भाषे सूरिराजेन्द्र ॥१३७ ॥ ३५ जिनेश्वरोना पिताओनी गतिनाभी नागकुमार में, अजितादिक जिन सात । जनक ईशाने गया, धारो शास्त्र दिल बात ॥ १३८ ॥ सुविधि आदि अड तीसरे, कुंथु सात माहेन्द्र । सिद्धारथ चोथे बारमे, मतांतर एह मुनीन्द्र ॥१३९ ॥ ३६-३७ छप्पन दिक्कुमारी अने तेओना कृत्यमेरु अधो गजदंता चारने, अधोलोकनी अड़ कुमारीजी। ऊर्ध्वलोके मेरुनंदन कूटा,अष्टनी आठो वसनारी जी॥१४०॥ चारो दिशिना रुचकगिरिनी, आठ आठ ए लीजे जी । विदिगुरुचकनी चार तिम मध्यनी, सात आठ गुणी कीजेजी॥ ए छप्पन दिक्कुमारीना कारज, आठ कह्या ते जाणो जी संवर्त्तवायु मेघनी वृष्टि, कांच भंगार वरवाणो जी ॥१४२॥ बींजना चामर दीपकधारी, रक्षा करे इम जाणो जी। सहु जिनवरना जन्मना टाणे, काम करी गीत गाबे जी ॥१४३॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ९१ सूतक टाली नाटक करीने, निज निज ठामे जावे जी । सूरिराजेन्द्रनी भक्ति करती, अनहद मोद मनावे जी ॥ १४४॥ ३८-३९ इन्द्रोनी संख्या अने तेना कृत्यो चोसठ सुरपतिनी, संख्या जाणो एह । वीस भुवनपतिना, बत्तीस व्यंतर लेह || दो चंद ने सूरज, दश देवलोकना सर्व । सहु जिन जन्मोत्सव, करता दिल गत- गर्व ॥ १४५ ॥ दश कारज करता, जिन प्रतिबिंब निवेसे । पंच रूप करीने, जिन अंक करी बेसे ॥ अडसहस ने चोसठ, कलशे स्नान कराय । गोशीर्ष सुचंदन, लेपे जिनवर गाय अंग अग्र बे पूजा, वस्त्र आभूषण चंग | मेली जननी पासे, अमृत अंगूठे संग || बत्ति सक्रोड सोनइया, वृष्टि अठाई कराय | दश कृत्य करे सहु, जिनना इन्द्र महाराय ॥ १४७ ॥ ॥ १४६ ॥ १ कोटाकोटी बावीश, पंचाशी लख कोडि । सहस इकोतर चारसो, अरु अट्ठाविस कोडि लख सत्तावन चौद सहस, दो शत पंचासि जान । इन्द्र एकना जन्ममें, भोग्यदेवी परिमान ( भोग्य इन्द्राणी संख्या ) ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [द्वितीय४०-४१ जिनेश्वरोना गोत्र अने वंशमुनिसुव्रत पारस प्रभु, गौतम गोत्रे होय । शेष जिनवर काश्यप-गोत्रे जगमें जोय ॥१४८ ॥ बावीश इक्ष्वाकुवंशमें, हरिवंशे दो जान । मुनिसुव्रत ने नेमिजिन, नमतां होय कल्यान ॥ १४९ ।। ४२-४३ जिनेश्वरोना नामोनो सामान्य अने विशेषार्थव्रतधुरा वहवाथी वृषभ, सामान्ये ए नाम । सुपन प्रथम लंछन वृषभ, ऋषभ नाम सुधाम ॥१५०॥ रागादि जीत्यां अजित, नाम सहुनो धराय । पिण गर्भे राय हरावियो, तेथी अजित मनाय ॥१५१॥ शुभ अतिशय संभव थकी, संभव कोण विशेष । भू बहु रस-कण संभवे, संभव नाम जिनेश ॥१५२॥ चोसठ इन्द्राभिनंदने, अभिनंदन जिनराय । गर्भ इन्हें नित स्तव्या, अभिनंदन कहिवाय ॥ १५३ ॥ शुभमति देवाथी सुमति, सामान्ये ए जान । गर्भानुभावे माता हणे, विवाद सुमति प्रमान ॥१५४॥ पद्मसम निर्मल देहथी, सामान्ये जिन नाम । दोहलो पद्म शय्यातणो, उपन्यो पद्म सुनाम ॥१५५॥ शोभन पाशा जेहथी, गर्भ मातना दाव । तनुपाशा रूडा थया, सुपार्श्व नाम दे जाव ॥१५६॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ९३ शीतल शुक्ल लेश्या थकि, चन्द्रप्रभ जिन नाम । चन्द्रद्युति पीवा दोहलो, माता उपन्यो ताम ॥१५७॥ शुभ क्रिया पोते करी, सुविधि नाम सुहाय । गर्भछते माता तणो, आचार सम्यग् थाय ॥ १५८ ॥ जगत्ताप हरे शीतलजिन, गर्भावासे मात । हस्तस्पर्शे दाह शम्यो, तातनुं शीतलनाथ ॥ १५९ ॥ कल्याणकारि श्रेयांसनु, गर्भ छतां जिनमाय । देवाधिष्ठित शय्या चढे, श्रेयसुं श्रेयांस थाय ॥ १६० ॥ वसु नाम सुर इन्द्रनो, पूज्यां वासुपूज्य । पुत्र वसुपूज्य. रायनो, नामसुं वासुपूज्य ॥१६१ ॥ अंतर बाहिर गत मला, विमल थया जिन भाण । गर्भ माता निर्मल मति, तातें विमल वखाण ॥ १६२॥ अनंत ज्ञान दर्शन चरित, अनंतनाथ महंत । मणिदाम सुपनो मातने, तातें जिनप अनंत ॥१६३॥ धर्मस्वभावथी धर्मनाथ, अन्वर्थ नाम विशेष । सुतगर्भे अति धर्मिणी, माता थई अशेष ॥१६४ ॥ शांति करण शांतिप्रभू, सहु जिन एहवा जाण । देशमें सर्वत्र शांति थइ, शांति नाम सुख ठाण ॥१६५॥ कुपृथिवी ऊपर रह्या, निजुत्ति कुंथुनाह । भूस्थिर रत्न स्तूपनो, सुपन तणो उच्छाह ॥ १६६ ॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. द्वितीयवंशादिक वृद्धि कारणे, अरनाथ अरिहंत । रत्नारक महासुपनसे, नाम ठव्यो मतिवंत ॥१६७ ॥ मोहमल्ल जीत्यो तिणे, मल्लि नाम परसिद्ध । वरमल्ल शय्या दोहलो, तिणसुं मल्लि सुकिद्ध ॥ १६८॥ जे अवस्था त्रिकालनी, माने ते मुनि मान । भला व्रत सुव्रत कह्या, मुनिसुव्रत ते जान ॥ १६९ ॥ मुनिसुव्रत सहु जिन हुवे, पण माता उदरेह । मुनि जिम सुव्रता थई, मुनिसुव्रत सुधरेह ॥ १७० ॥ रागरिपु बल नामे नमि, गर्भावास मझार । माता दुर्ग चढ़ि देखने, नम्या नृप बहु वार ॥ १७१ ॥ चक्रनेमि पापवृक्ष में, चक्रधाराऽवनेमि । माता रिष्टमणि नेमि सुपन, तातें जिनवर नेमि ॥१७२॥ संसार पदारथ देखवे, पार्श्व नाम सामान्य । निशितमसि अहिगमन सुपन, पार्श्वनाम प्राधान्य ॥१७३॥ ज्ञानादिक बढ़वा थकी, वर्द्धमान अभिधान । धनकणादिक वृद्धि थई, विशेष अर्थ प्रमान ॥ १७४ ॥ भावारि जीते वीरजी, आमलि क्रीडा जाम । दुष्टदेवने चापियो, धर्यो वीरजी नाम ॥१७५ ।। भय भैरवथी अचल रह्या, अरु निष्प्रकंप शरीर । संयम तप दृढ देखने, वासव ठव्यो महावीर ॥१७६॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ४४ जिनेश्वरोना लंछन वृषभ गय हय पउम स्वस्तिक, शशी मकर महमहे । श्रीवच्छ खग्गि महिष सूकर, श्येन पवि मृग छगल हे ॥ नंदावर्त कलश ने कूर्म उत्पल, शंख सर्प सिंह क्रम हे । ऋषभादि जिनना चिह्न जाणो,सूरिराजेन्द्र इम कहे १७७ ४५ जिनेश्वरने फणनी संख्याइक पांच ने नव फण, सुपार्श्व जिनने राजे । सुमिणो शय्या में, दीठो माय तिण काजे ॥ तीन सात इग्यारे, पार्श्वने अहिफण मानो । फण सहस मतंतर, सूरिराजेन्द्र वरवानो ॥१७८ ॥ ४६-४८ जिनेश्वरोना लक्षण, ज्ञान अने वर्णलक्षण सहु जिनने, सहस इक अड जोय । जिन सर्व गृहवासे, गर्भे ज्ञान तिय होय ॥ चन्द्र सुविधि धोला, नीला मल्ली पास । पउम वासुपूज राता, नमतां पूरे आस ॥१७९ ॥ मुनिसुव्रत नेमी, श्याम वरण सुहाय । सोले सोवन वरणा, इम चोवीस कहाय ॥ सूत्र सिद्धान्तमें जोइ, बोले मुनीसर वाणी । सूरिराजेन्द्र दाखी, लीजे भवियण प्राणी ॥ १८० ॥ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ४९-५० जिनेश्वरोनुं रूप अने बल सुरवर सगलाई रचे, रूप अंगुष्ठ प्रमाण । जिनपद अंगुष्ठ आगले, लेहाला सम जाण ॥। १८१ ॥ [ द्वितीय ॥ १८२ ॥ तीर्थङ्करना रूपथी, क्रमते रूप छे हीन । गणधर आंहारिक वली, अनुत्तर ग्रैवेकीनें कॅल्पवासि जोइसदेर्वं, भवनपति वितर देव । चक्री हरि बैल मंडलिक, एकेक हीन गणेव ।। १८३ ॥ ए सहुथी रूपऋद्धि अधिक, अनंत गुणि जिन होय । सूरिराजेन्द्र कहे इस्यो, तामें फरक न कोय ॥ १८४ ॥ तुलना जिनवर बलतणी, सहुथी अधिक विचार | राजासे बलदेवनो, वमणो हरि संभार ।। १८५ ॥ कोटिशिला लीला करी, उपाडे केशव जेह | दुगुन बल चक्री भयो, अनंतबली जिन लेह ॥ १५६ ॥ इन्द्र संशयकुं छेदवा, वीर मेरु कंपाय । हेतु विन बल नवि करे, क्षमावंत कहिवाय ॥ ९८७ ॥ ५१ जिनेश्वरोनो उत्सेधांगुलथी शरीरमान पांचसो धनुष देहमान, ऋषभजिनेश्वर जाण । अजितथी सुविधिजिन लगे, पचास धनु हीयमाण ॥ १८८॥ जाव शतधनु सुविधिनो, तेमां दश दश हीन । जिम अनंत पचास धनुष, पण पण घटे प्रवीन ॥ १८९ ॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ९७ जाव नमीनुं दश धनुष, नव कर पारसनाथ । सात हाथ श्रीवीरजिन, शरीरमान विख्यात ॥१९०॥ ५२ जिनेश्वरोनो आत्मांगुलथी देहमानदेहमान आत्मांगुले, इक शत वीस प्रमाण । सहु जिनपतिनो जानिये, न्यूनाधिक मत जाण ॥१९१॥ ५३ जिनेश्वरोर्नु प्रमाणांगुलथी देहमानउत्सेधांगुल प्रमाणसे, चार धनुष निरधार । धनुष अंश बारे कर्यां, अंश दो उपरि धार ॥ १९२ ।। दो अंश चउ धनुषनो, ऋषभर्नु अंगुल जाण । एहवा एकसो वीसनो, ऋषभ देह परिमाण ॥ १९३ ।। अंगुल वारे हीन कर, सुविधिजिन परियंत । जाव अंगुल चोवीसनु, देह सुविधिजिन मंत ॥ १९४ ॥ एक प्रमाणांगुल तणा, पचास भाग तो कीध । वीसभाग दो-अंगुला, अनंत लग हानि लीध ॥१९५॥ १ एकसो-आठ छिन्नुं वलि, चोरासि बहोतेर । साठ अडताली छत्तीस, अंगुल एम अवेर २-इगविस अंगुल तीशांश; उन्नीस ने दशांश । सोल ने चालीस अंश, वली चौद वीशांश ॥१॥ अंगुल बारह जानिये, अनंतजिन भगवान । शीतलथी अनंत लगे; प्रमाणांगुल ए मान ॥२॥ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [द्वितीयबारे अंगुल माहेसुं, इक दशांश कर हीन । धर्मजिनसु नेमि लगण, एहिज मारग चीन ॥१९६॥ अंश सगवीस पार्श्वनो, इगविस अंशनुं वीर । प्रमाणांगुले मान इम, गणि लीजे मन थीर ॥१९७॥ ५४ गृहवासमां अने दीक्षानन्तर आहार गृहवासे ऋषभेशने, उत्तरकुरु फलाऽऽहार । संयम में जिन शेषने, सदा अन्न आधार ॥ १९८ ॥ ५५ जिनेश्वरोनो कुमार-कालमानवीश अढारे पंचदश, साड़ि-बार दश जाण । सादी-सात पण अढि क्रमे, पूरव लाख वखाण ॥१९९॥ पचास पचीस पूरव सहस, वर्ष लाख इगवीस । अढारे पंदरे साढिसत, अढ़ी लाख जगदीश ॥ २०० ॥ सहस वर्ष पचवीस अरु, पौने चोवीसीश । इकवीश एकसो वत्सर, पिचोतरशत पचवीश ॥२०१॥ १-दशांगुले चालीस अंश, नवांगुल त्रिंशांश । अष्टांगुल विंशति अंश, सप्तांगुल दश अंश ॥१॥ अंगुल छ मल्लिजिनेश, पूरण करिने मान । चतुरंगुल चालीस अंश, व्यंगुल त्रिंशांशान ॥२॥ दो अंगुल वीश अंश, धर्मजिनसुं क्रम होय । नेमि परियंत जानिये, जैनागमथी जोय ॥३॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. तीनसो तीस तीस वर्ष, पार्श्व वीर कुमार । कुमरपदे इतना रह्या, जिनवर जग सरदार ॥ २०२॥ द्वार पेंतीसे सोहतुं, पूर्ण द्वितीयोल्लास । जन्ममाससुं कुमार लग, जिनपति स्थान प्रकाश ॥२०३॥ श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छावतंसाऽऽबालब्रह्मचारि-विशुद्धतमचारित्राऽऽरामविहारि-कलिकालसर्वज्ञकल्प-जङ्गमयुगप्रधान-शासनसम्राट्-परमयोगिराज-जगत्पूज्य-गुरुदेव-प्रभुश्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर-विरचितायां पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पद्यां पश्चत्रिंशत्स्थानवर्णनो नाम द्वितीयोल्लासः। ५६ जिनेश्वरोनो विवाह मल्लि नेमि दो अपरिणीत, परण्या जिनवर शेष । भोग्यकर्मोदयथी भला, भोगव्या भोग विशेष ॥२०४॥ ५७ जिनेश्वरोनो राज्यकाल अने चक्रीकाल वेशठलाख पूरव ऋषभेश, त्रेपन चुम्माली सढ-छत्तीस, गुणतिस साढा-इगवीश । चउदश साढी-छ वलि आधो, पूर्व ऊपर पूर्वांगज साधो, इग चउ अड बारे लाधो ॥ सोले वीश चउवीश अठवीस, अजित लेइ सुविध्यंत कहीस, Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [ तृतीय शीतल अरध सुणीस । वर्ष लाख वेतालिस राजा, श्रेयांस जिनवर सौख्य- समाजा, विमलथी अनंत लग ताजा ॥ २०५ ॥ वर्षलाख तीस पनरे पण जानो, सहस पचविस पोणा चोवीश मानो, इकवीस क्रमते ठानो । वर्ष सहस पनरे पंच वखाणो, मुनिसुव्रत नमीराजनो टाणो, शेष कुमर जिनभाणो || शांति कुंथु अर राज प्रमाणे, चक्रीपद भोगी चो गुणठाणे, षट्खंड राज्य सुजाणे । राज्यकाल ए जिनवर जानो, जैनागमथी दिलमें आनो, सूरिराजेन्द्र वखानो ॥ २०६ ॥ ५८ जिनेश्वरोना अपत्योनी संख्या- शत- पुत्र दो पुत्रिका, ऋषभदेवने होय । अजित विमल मल्लि नमी, नेमि पार्श्व नवि कोय ॥२०७॥ संभवजिनथी जानिये, तीन तीन ने तीन । तेरह सप्तदशाऽष्टदश, उगणिस चौदह लीन ॥ २०८ ॥ निन्यानवें चौदह सही, वासुपूज्य लग मान । अनंत अठ्यासि धर्मजिन, उगणिस लीजे तान ॥ २०९ ॥ शांतिनाथ डेक्रोड, एहिज कुन्थु वखान । सवाक्रोड अरनाथने, उगणिस वीसम जान ॥ २१० ॥ श्रीवीरने एक पुत्रिका, अपत्य संख्या एह । सूरीश्वरराजेन्द्रनी, जाणो आगम लेह ॥ २११ ॥ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ५९ नवलोकान्तिक देवाऽऽगमन ब्रह्मलोके कृष्णराजि में, नव छ महा विमान । आठ सागर आयु भवि, लोकान्तिक सुर जान ॥२१२॥ सारस्वत आदित्य अरु, वह्नि वरुण गर्दतोय । तुषित अव्याबाध पुनि, आग्नेय-मारुत जोय ॥ २१३ ॥ अरिष्ट नवमो जानिये, बोधकरण जिनराय । जय जय नंदा भद्दा कही, अवसर दिक्ष जनाय ॥२१४॥ ६० जिनेश्वरोनो सांवत्सरिक दानप्रातराश लग दान दे, इक कोटी लख आठ । सुहु जिनपति वर्ष एक लग, दान दिये नित ठाठ ॥२१५॥ तीनसो अठ्यासि क्रोड, ऊपर अस्सी लाख । सोनइया वर्ष एकना, मेल करीने भाख ॥२१६ ॥ ६१ जिनेश्वरोनी दीक्षा-मास तिथिओ जन्म समय जे मास पख, तेहज व्रतमें जान । पिण इतनो अधिक इहाँ, सर्व जिनमें पेचान ॥ २१७ ॥ फाल्गुनसुदि मुनिसुव्रते, कृष्णाऽऽषाढ़ नमि होय । वीरने मृगसरवदि भली, तिथि विशेष ते जोय ॥२१८॥ अष्टमि नवमी पूर्णिमा, वारसि नवमी जान । तेरस तेरस तेरसी, छट्ठी बारसि मान ॥२१९ ॥ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [तृतीयतेरसी अमावस चोथ, चउदसि तेरसि तंत । चउदस पंचमि ग्यारसी, ग्यारसि बारसि मंत ॥ २२०॥ नवमी छठ एकादशी, दशमी क्रमसे जाण । मास पक्षना ऊपरे, तिथि भाषी परमाण ॥२२१ ॥ ६२-६३ जिनेश्वरोनी दीक्षाना नक्षत्र अने राशिनक्षत्र राशि जन्मनी जे, व्रतमें पिण ते होय । मर्म एहज पहचानिये, जिन आगमने जोय ॥ २२२ ॥ ६४-६५ जिनेश्वरोनी दीक्षा वय अने तपवासुपूज्य मल्लि नेमि पास, वीर ए पंच कुमार । वय प्रथमे व्रत आदरे, शेष वय पश्चिम धार ॥२२३॥ व्रतमें सुमति नित्य भक्त, अट्टमे मल्लि पास । चोथतप वासुपूज्यने, छट्ठ शेष जिन खास ॥ २२४ ॥ ६६-जिनेश्वरोनी दीक्षा-शिबिकासुदर्शना सुप्रभा अरु, सिद्धार्था जस नाम । अर्थसिद्धा अभयंकरा, निवृतिकरि शुभ धाम ॥ २२५ ॥ मनोहरा मनोरमिका, सूरप्रभा वलि जान । शुक्रप्रभा विमलप्रभा, पृथ्वी पण शुभ मान ॥ २२६ ॥ देवदिन्ना सागरदत्ता, नागदत्ता सुजान । सर्वार्था विजया भली, वैजयंती मन आन ॥ २२७ ॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास ] श्री पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. जयंती अपराजिता, देवकुरु जगञ्जान | द्वारवती विशाला अरु, चन्द्रप्रभा सुख मान ॥ २२८ ॥ चोवीसे जिनवर तणी, दीक्षा शिबिका जाण । देव दानव उपाडे थके, संयम ले जग भाण ॥ २२९ ॥ ६७ जिनेश्वरोनो दीक्षा-परिवार 19 दीक्षा चार सहस्र के साथे ऋषभ जिणिंद । वासुपूज्य छसो संयुत, तीनसो मेलि मुणिंद ॥ २३० ॥ पार्श्व तीनसो संगमें, वीर एकाकी जान । शेष जिन एक सहस्र से, व्रत परिवार बखान ॥२३१॥ ६८ जिनेश्वरोनी दीक्षा नगरी - १०३ नेमि व्रतनी द्वारिका, नयरी कारण होय । शेष जिनजी व्रत ग्रह्मो, जन्म नगरिमां जोय ॥ २३२ ॥ ६९-७३ दीक्षानो समय, ज्ञान, वृक्ष, वन अने लोंच पूर्वाह्न दीक्षा लहे, सुमति श्रेयांस नेमि । मल्ली पार्श्व शेष सहु जिन, पश्चिमाहें लेमि ॥ २३३ ॥ अशोकवृक्ष तले सहू, जिननी दीक्षा जाण । दीक्षा सहु जिनवर ग्रहे, मनपर्यव तब नाण ॥ २३४॥ १ - त्रिशत नर त्रिशत कुमरी, साथे दीक्षा लीध । ग्रन्थांतरे इम कह्यो, वाचनान्तर प्रसीध ॥ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. सिद्धार्थ वन में ऋषभ, नीलगुहा सुव्रत । विहारगेह वासुपूज्य, वप्रगा धर्म सुवृत्त ॥ २३५ ।। [ तृतीय आश्रमपद में पार्श्वजिन, ज्ञातखंडवन वीर । सहस्रावने शेष जिन, लीनो व्रत तजि पीर ॥ २३६ ॥ चउमुष्टि ऋषभदेवनी, पंचमुष्टि जिन शेष । लोंच कर्यां पछी वलि, न रहे लोंच किलेश ॥२३७॥ ७४-७५ देवदूष्य वस्त्र अने तेनी स्थिति-— लाख मूल्यनो देवदृष्य शक्र ठवे जिन खंध । सदा तेवीस जिनने रहे, सचेल एह मुणिंद ॥ २३८ ॥ वर्ष एक अधिको धरे, अनुकंपा लहि वीर । आयो दयालुए विप्रने, राख्यो न पासे चीर ॥२३९॥ ७६-७७ पारणाद्रव्य अने पारणासमय ऋषभ इक्षुरस पारणे, परमान्ने तेवीस । प्रथम पारणे ए सही, जाणो विश्वा वीस ॥ २४० ॥ वरसे ॠषभने पारणं, दिन दूजे जिन शेष । परीषहशूरा जानिये, अडग अमल हमेस ॥ २४१ ॥ ७८ जिनेश्वरोना पारणा नगर जिनवर पारणा ज्यां कर्या, नगर अनुक्रम एह । हस्तिनापुर ने अयोध्या, श्रावस्ती ससनेह ॥ २४२ ॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास ] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. अयोध्या ने विजयपुर, ब्रह्मस्थल जयकार | पाटलिखंड अरु पद्मखंड, श्वेत रिष्ट पुर धार ॥ २४३ ॥ सिद्धार्थपुर ने महापुर, धान्यकड वर्द्धमान | सौमनस्य मंदिर चक्रपुर, राजपुर मिथिला जान ॥ २४४॥ राजगृह ने वीरपुर अरु, द्वारवती शुभ होय । कोपकट कोल्लाग ए, सन्निवेश कहे लोय ।। २४५ ।। ७९ जिनश्वरोना प्रथम भिक्षादायक -- जिनवर किया पारणा, प्रथम भिक्षा दातार । तेहना नाम क्रमसे कहुं, जिनभक्ती आधार ॥ २४६ ॥ श्रेयांस ब्रह्मदत्त सुरेन्द्र-दत्त इन्द्रदत्तेश | पद्म सोमदेव माहेन्द्र, सोमदत्त पुष्येश पुनर्वसु नन्द सुनन्द, जय विजय धर्मसह । सुमित्र व्याघ्रसिंह अरु, अपराजित गुण लीह ॥ २४८ ॥ विश्वसेन ने ब्रह्मदत्त, दिन अरु वरदिन्न । ।। २४७ ॥ धन्य बहुलवित्र इम ए, नाम लहो भिन्न भिन्न ॥२४९॥ ८० जिनेश्वरोने भिक्षा देनाराओनी गति ---- १०५ एकादि अड दातार, तेहिज भव सिध्धि गया । शेष तीजे भव धार, अहवा तद्भव जानिया ॥ २५० ॥ दीक्षा ग्रही जिन पास, ते सिद्धिबधुने वर्या । अविचल पाम्या वास, संसार - सागरने तर्या ॥२५१ ॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [ तृतीय ८१-८२ वसुधारा वृष्टि अने पंच दिव्योद्भवसोनइया तणी वृष्टि, साढ़ी बारे कोड़ें । उत्कृष्टी ए मानिये, सुर कृत होडा होड़ ॥२५२ ॥ साढी बारे लख जघन, लीजे मनमां धार । करे पारणो जिन जिहाँ, होवे त्यां निरधार ॥ २५३ ॥ इमहिज पंचदिव्य प्रगट, जल कुसुमतणी वृष्टि । वसुधारा ने चेलोत्क्षेप, सुरदुन्दुभि तणि सृष्टि ॥२५४॥ अहोदाननी घोषणा, जय जयकार समेत । जिनवर दान जिहां लिये, थावे अचरिज देत ॥२५५॥ ८३ जिनेश्वरोनो उत्कृष्ट तपमास बारे तप ऋषभने, छमासी तप वीर । अडमासी बावीसने, तप उत्कृष्ट सधीर ॥२५६ ॥ ८४ जिनेश्वरोना अभिग्रहद्रव्य क्षेत्र काल भाव अभिग्रह, सर्व जिणंदने जाणोजी । वीर प्रभुने पांचए अधिका, तेहना नाम वखाणो जी ।२५७। अप्रीतिमयस्थानक वसवू, नहिं हवे लो दूजो जी। काया वोसिरावीने रहेg, मौनपणे ए तीजोजी ॥२५८॥ १ इकलख तीस सहस दुशत, मण तेर सेरज जान । टांक चोवीस ऊपरे, तोल्यां वजन प्रमान ॥ १ ॥ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास ] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १०७ करपात्रे भोजन ए चोथुं, गृही विनय न करवो जी । ए पांचो अभिग्रह वीरप्रभुजी, थिर करि मन धरिवो जी २५९ ८५ जिनेश्वरोनी विहारभूमि - ऋषभ नेमि पार्श्व वीरनो, अनार्यदेश विहार । शेष वीस जिनरायनो, आर्यदेश संभार ८६ जिनेश्वरोनो छद्मस्थकाल मान छद्मस्थकाल सहु जिन तणो, क्रमसे लीजे धार । वरस सहस बारे चौद, अढार वीश विचार ॥ २६१ ॥ मास षट् नव तीन चऊ, तीन दोय इक दोय । वर्ष तीन दो इक सोल, तीन अहोरति होय ॥ २६२ ॥ ॥ २६० ॥ मास इग्यारे नव दिना - चोपन चुलसी जान | साढी - बारे पक्ष अधिक, वरस वीर पेचान ॥ २६३ ॥ ८७ श्री वीरप्रभुनी तपःसंख्या ॥ २६४ ॥ उग्र तपोकर्म तीर्थपा, विशेषे वर्द्धमान | बहुकर्म हवा भणी, तेहनो कहुं प्रमान दीक्षा दिन उपवास में, छमासी थई एक । पणदिन ऊनी दूसरी, नव चउमासी लेख ॥ २६५ ॥ तीनमासी दोय जानिये, अढ़ि-मासी वलि दोय । दोमासी पद मानिये, दो डोढमासी होय ॥ २६६ ॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [तृतीय बारमासी बारे लहो, पक्ष बहोतर सार । अट्ठम वारे प्रतिमातणा, महाकठिन अधिकार ॥२६७ ॥ भद्रप्रतिमा उपवास दु, महाभद्रना चार । सर्वभद्रना दश बली, पारणो एकज धार ॥२६८॥ दोशत उगुणतीस छठ, तिमहि पारणा जान । शत इकतालीस छासठ, सर्व तपोदिन मान ॥ २६९ ॥ छद्मस्थकाले पारणा, तीनसो गुनपचास । पण इग पण चउ सुहदिने, केवल ज्ञान प्रकास ॥२७० ॥ ८८-८९ जिनेश्वरोने प्रमाद अने उपसर्गअस्थिग्रामे श्रीवीरने, अंतरमुहूर्त प्रमाद । अहोरात्रि ऋषभेशने, मोटो ए विषवाद ॥२७१ ॥ उपसर्ग पार्श्वने कमठनो, सह्या वीर अनेक । निरुपसर्गे शेष जिन, वीरनी जबरि टेक ॥२७२ ॥ ९० जिनेश्वरोना केवलज्ञाननी मास तिथिओकेवलज्ञान जिन पामिया, ते पख तिथि ने मास । क्रमसे कहुं ते जाणजो, ऋषभादिकने खास ॥ २७३ ॥ फागुणवदि एकादशी, पौपी ग्यारस शुद्ध । कार्तिकवदिनी पंचमी, पौषसित चोदसि बुद्ध ॥ २७४॥ चेतसुदि एकादशी, तिमहिज पूनिम जान । फागुणवदि छठ सप्तमी, कातिसुदि तिय मान ॥ २७५ ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. पौषकृष्ण चतुर्दशी, माघ अमावस तेम । माघसुदि बीज पौषमें, सित छट्ठी दिन नेम ॥ २७६ ॥ वैशाखकृष्ण चतुर्दशी, पौषी पूनिम नोम । चेतसुदि तीज सुदि कार्तिकी, बारिस दिन छे सोम।२७७। मृगसिरसुदि एकादशी, फागुण बारसि श्याम । शुक्लैकादशी मृगसिरे, आसु अमावस ताम ॥ २७८ ॥ चोथ चैत्रकृष्णनी अरु, सुदि दशमी वैशाख । सूरिराजेन्द्र भाषिया, सूत्रतणी दे शाख ॥२७९ ॥ ९१-९२ केवलज्ञान नक्षत्र अने राशि नक्षत्र राशि जन्म जिम, जानो हृदय विचार । वार वार कहतां थकां, बड़े छे ग्रन्थ अपार ॥ २८० ॥ ९३-९४ केवलज्ञान स्थान अने वन केवल उपन्या ठाण कहुं, वीर जूंभिका व्हार । ऋषभ पुरिमताल नयर, उर्जित नेमि निहार ॥२८१॥ शेष जिन जन्म्या जिहाँ, तेहिज नगरे ज्ञान । शकटमुखवने ऋषभने, उपन्यो केवलज्ञान ॥२८२ ॥ ऋजुवालिका नदीतटे, वीरने ज्ञान वखान । शेष जिनने व्रतवन विषे, ज्ञानोत्पत्तिस्थान ॥ २८३ ।। Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [ तृतीय ११० ९५ - ९६ ज्ञानतरु अने तेनो मान न्यग्रोध ने सप्तपर्ण, शाल प्रियाल प्रियंगु । छत्राभ सिरीष नाग रु, मल्लि जाणो पिलंखु ॥ २८४ ॥ तिन्दुक पाटलिका तरु, जम्बु अश्वत्थ दधिपूर्ण | नन्दी तिलक आम्रवृक्ष, अशोक चंपक वर्ण ॥ २८५ ॥ वकुल वेतस धातिकी, सालवृक्ष जिनवीर । चोवीस जिनना क्रम थकि, ज्ञानतरू मति धीर ॥ २८६ ॥ चैत्यवृक्षोपरि वीरने, सालतरु हुवे जेह । धनुष ग्यारेनो कह्यो, प्रसंगे समझो एह ज्ञानतरू ऊंचो हुवे, जे जिनतनुनो मान । तेथी बारगुणो अधिक, सहु जिनवर ने जान || २८८ ॥ ॥ २८७ ॥ ९७-९८ केवलज्ञाननो समय अने तप ॥ २८९ ॥ पूर्वाह्ने प्रथम प्रहर में, तेवीस जिनने नाण । पश्चिम प्रहरे वीरने, उदयो केवलनाण ऋषभ मल्लि नेमि पार्श्वने, अट्टम तप में नाण । चउत्थतपे वासुपूज्यने, केवल थयो प्रमाण ॥ २९० ॥ शेष जिनवर उन्नीसने, केवल छड में होय । सूरिराजेन्द्रे भाषियो, धारो दिलमें सोय ॥ २९९ ॥ द्वार तियाली सोहतुं, पूर्ण तृतीयोल्लास । विवाहसुं ज्ञानतप लगण, जिनपति स्थान प्रकाश ॥ २९२॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास ] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छावतंसाऽऽबालब्रह्मचारि - विशुद्धतमचारित्राऽऽरामविहारि - कलिकालसर्वज्ञकल्प - जङ्गमयुगप्रधान-शासनसम्राद्-परमयोगिराज - जगत्पूज्य - गुरुदेव - प्रभु श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर - विरचितायां पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पद्यां त्रिचत्वारिंशत्स्थानवर्णनो नाम तृतीयोल्लासः । -- १११ ९९ जिनेश्वरोनी निर्दोषता दोष अढारे रहित जिन भाण, दान लाभ वीर्य भोग ए जाण, उपभोग अंतराय माण । मिच्छत्त अज्ञान ने अविरति होवे, काम भोग अरु इच्छा जोवे, हास्यादिक षट् खोवे || हास्य रति अरति भय शोकज कहिये, जुगुप्सा राग द्वेष निद्रा लहिये, विन दोषे जिन सद्दहिये ॥ २९३ ॥ हिंसा मृषा चोरी क्रीडा ने रत्ति, अरति हास्य शोक भय कोह मानत्ति, माया लोभ मदत्ति । मत्सर अज्ञान ने निद्रा प्रेम, प्रकारान्तरे ए पिण तेम, दोष रहित जिन नेम | सूरिराजेन्द्र सहु भाव दयालु, दोष न लेश जिनमें कछु भालु, शरणागत जन पालु ॥ २९४ ॥ १०० जिनेश्वरोना अतिशय चार अतिश्य जन्मथी, घनघाति गये ग्यार । उगणिस देव कर्या हुवे, चतुत्रिंशदतिशय धार ॥ २९५॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. चतुर्थस्वेदमलाऽऽमय रहित देह, सुगंध रूप संजुत्त । रूधिर मांस गोक्षीर सम, दुर्गन्ध भयकर मुत्त ॥२९६॥ चर्मचक्षु देखे नहीं, जिनाऽऽहार निहार । स्वास कमलगंध समो, जन्ममुं जाणो चार ॥२९७॥ समवसरण योजनमयी, कोटाकोटि प्रमाण । तिरि सुर नर भावे सहु, बाधा नहिं तिण ठाण ॥२९८॥ सुर तिरि नरने परिणमे, स्खभाषा जिनवाच । पूठे भामंडल रहे, सूर्य ते आगे काच ॥२९९ ॥ रोग वैर ईति मरि डमर, दुर्भिक्ष अति वृष्टि ।। अवृष्टि पण होवे नहीं, सवासो जोयण पुष्टि ॥ ३०० ॥ इग्यारे कर्म खप्यां कह्यां, हिवे सुरकृत विचार ।। समवसरण सुरवर रचे, रूडा तीन प्राकार ॥३०१॥ अशोकवृक्ष सिंहासन, पादपीठ ते होय । धर्मचक्र चले गगनमें, जिनसम रूप चउ जोय ॥३०२॥ छत्र तीन चामर ढुले, दुन्दुभिरव आकाश । रत्नमय इन्द्रध्वज चले, कनक-पद्म पद न्यास ॥३०३॥ कुसुमवृष्टि वर्ण पांचनी, सुगंधि जल वरसात । अनुकूल पवन संचरे, तेरम ए विख्यात ॥३०४ ॥ इन्द्रियार्थ अनुकूल ऋतु, प्रदक्षिणा पंखि देय । नख रोम वृद्धि ना हुवे, अधोमुख कंटक लेय ।।३०५॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ११३ विचरे जिहाँ जिन तरु नमे, अनहुंता सुर कोड़। ए उगणिस देवे कर्या, कुण करे एनी होड़ ॥ ३०६ ॥ अपायाऽपगम ज्ञान अरु, पूजा वचन ए चार । सर्व जिनना ए अतिशया, सरिखे सरिखा धार ॥३०७॥ १०१ जिनवाणीना अतिशयवाणीगुण पेंतीस छे, तेमां शब्दना सात । अर्थतणा अडवीस मिल, समवायांग विख्यात ।। ३०८॥ संस्कृतादि लक्षण सहित, वचन जिनना जाण । गंभीरघोष उपचारयुत, उदात्तयुत मन आण ॥३०९॥ प्रतिनाद कर ते प्रतिरवे, दाक्षिण्य सरल समेत । देशना राग-मालकोश में, वचनना सात कहेत ॥३१०॥ सुमहार्थ अव्याहत, पूर्वाऽपर अविरुद्ध । असंदिग्ध संशय रहित, तत्त्वनिष्ट वदे बुद्ध ॥३११ ॥ शिष्ट-शिष्टता सूचकी, प्रस्तावोचित सार । प्रतिहत पर उत्तर भलो, हृदय प्रीति करनार ॥ ३१२॥ अन्योऽन्यपद सापेक्षता, अभिजात भुवि देख । अतिस्निग्ध अमृत जिसो, सुखकारी ते लेख ॥ ३१३ ॥ स्वप्रशंसा परनिन्दना, वर्जित सहुने होय । अप्रकीणे प्रसरयुत वदे, प्रगट स्वर-पद जोय ॥ ३१४ ॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. चितुर्थसाहसोपेत कारक रु, काल वचनादि जुत्त । स्थापितविशेषोदार हु, अनेक जाति विचित्त ॥३१५॥ पर मर्मोद्घाटन रहित, विभ्रमादि निर्दोष । विलंब व्युच्छेद खेदता, रहित ए गुण पोष ॥३१६॥ अद्भुत अत्युत्सुक विना, धर्मार्थयुत तेंतीस । प्रशंसनीय ने चित्रकर, वाणिगुण पेंतीस ॥३१७॥ १०२ जिनेश्वरोना आठ प्रातिहार्यजिनराज तनुथी बारे गुणो, वृक्ष किंकिल्लि जाणिये। अपर नामें अशोक तरूवर, कुसुमवृष्टि पहिचाणिये ॥ दिव्यध्वनि सित चामराऽऽसन, भावलय भेरी सुर करे । शिर छत्र जिनना प्रातिहारज, सूरिराजेन्द्र सुपद वरे ३१८ १०३ जिनेश्वरोनी तीर्थ-स्थापनासंघ पेलो गणधर, श्रुत ए तीरथ जान । एहनी उत्पत्ति, जिन तेवीसने मान ॥ पहिले समोसरणे, वीरने बीजे वखान । सूरिराजेन्द्र वंदे, तीरथ ए गुणखान ॥३१९ ॥ १ कोश अडतालि प्रथमजिन, ते पछि गणिये एम। बे बे कोश हीन कर, नेमि लगन ए नेम ॥ १ ॥ पांच गाउ श्रीपार्श्वनो, चार कोश महावीर । चार निकायदेव रचित, देखत नाशे पीर ॥२॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास ] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १०४ जिनेश्वरोनो तीथप्रवृत्ति काल तीर्थ तीर्थकर एकनो, वरते काल प्रमाण । बीजो तीर्थ उपने नहीं, त्यां लग तेनी आण ॥ ३२०॥ ऋषभ-तीर्थ वरत्यो सहि, जाव अजितनो तीर्थ । उपनो नहीं तावल्लग, पीछे बीजो तीर्थ ॥३२१ ॥ इमहिज सर्व जिनराजनुं, वीरनो दुष्षम आर । जैनागमथी जानिये, गुरुगम लीजे धार ॥ ३२२ ॥ १०५ जिनेश्वरोनो तीर्थविच्छेद काल इग एक तिग एक तिग, इग एक क्रमसुं भाग । पल्योपम चउभागना, कालविच्छेद सुलाग ॥ ३२३ ॥ सुविधिजिनसुं लेयके, धर्मनाथ लग जाण । केइ इगादिकने कहे, पल्पसंख्य परिमाण ॥ ३२४ ॥ सर्व तीर्थ विच्छेदनो, ग्यार पल्यना भाग । ग्यार पल्य पूरा केई, केवलि जाणे थाग ॥ ३२५ ॥ १ पावपल्य सुविधिजिनेश, इमही शीतल मान । पौनपल्य श्रेयांसजिन, पावपल्य वासु वखान ॥१॥ श्रीविमलजिन पौनपल्य, पावपल्य अनन्त । पावपल्य धर्मजिनंद, ग्यारे भाग भणन्त ॥ २ ॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [चतुर्थ ११६ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १०६ जिनेश्वरोना प्रथम गणधरोना नाम पुंडरीक सिंहसेन, चारुरू वज्रनाभ कहीजे । चमरगणि सुद्योत, विदर्भ दिन्न वराहक ए लीजे । नन्द कौस्तुभ सुभूम, मन्दर यशोनाम अरिठ्ठो । चक्रायुध शम्ब कुंभ, भिषज मल्लि शुम्भ सिट्ठो॥ वरदत्त आर्यदत्त इन्द्रभूति, प्रथम गणधर नाम । क्रमसे ऋषभादिक तणा, सूरिराजेन्द्र गुणधाम ॥३२६॥ १०७ जिनेश्वरोनी प्रथम साध्वियोना नामब्राह्मी फाल्गुनी श्यामा, अजिता काश्यपी कहिये । रति सोमा सुमना, वारुणी सुयशा तो लहिये ॥ धारणी धरणी धरा, पद्मा आर्यशिवा जाणो । श्रुति दामिनी रक्षिका, बंधुमती पुष्पवती ठाणो । अनिला यक्षदत्ता अरु, पुष्पचूला प्रवर्तिणी । चन्दनबाला क्रम जान, प्रथम आर्या जिन भणी ॥३२७॥ १०८ जिनेश्वरोना भक्तराजाश्रीऋषभजिणंदने, भक्त राजा भरतेश । अजितादिक जिनना, क्रमसे जानो अशेष ।। सगर मृगसेनजी, मित्रवीर्य तिम होय । सत्यवीर्य अजितसेन, दानवीय अरु जोय ॥ ३२८ ॥ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ११७ मघवा युद्धवीर्यनृप, सीमंधर त्रिपृष्ठ । द्विपृष्ठ स्वयंभू ने, पुरुषोत्तमविष्णु इष्ट ॥ ३२९ ॥ पुरुषसिंह कोणालक, नृपति कुबेर सुभूम । अजित विजयमह, चक्री हरिषेण अदूम ॥३३० ॥ मुरारी प्रसेनजित, श्रेणिक वीरनो भक्त । भरत सगर मघवा सुभूम, हरिषेण चक्रि फक्त ॥३३॥ ग्यारथी पंदर लगण, बावीसम अरु जान । वासुदेव पदवीधरा, जानो शेष राजान ॥३३२ ॥ १०९-११० जिनेश्वरोना प्रथम श्रावक-श्राविकाजिन चारना श्रावक, श्राविका छे परसिद्ध । ऋषभ नेम ने पारस, वीरने क्रमसे लिद्ध ॥ श्रेयांस नंद सुद्योत, शंख श्राद्ध कहुं सड्डी । सुभद्रा महासुव्रता, सुनंदा सलसा समिडी ॥ अप्रसिद्ध शेष जिनने, श्रावक श्राविका जानो । सूरिराजेन्द्र सरधा, श्रावक सांची मानो ॥३३३ ॥ १११-जिनाऽऽगमननी वधाई देनारने प्रीतिदानजिनराजनो आगम, आय कहे ततकाल । चक्री तब देवे, प्रीतिदान उजमाल ॥ साडिबारे कोटी, सोनइयानी वृत्ति । रजतनी वासुदेवा, सहस लख नृप शक्ति ॥ ३३४ ॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [चतुर्थ श्रेष्टी सेनापति, निज निज विभव प्रमाणे । जिन आगम सुणिने, दिये वधाई तिण टाणे ॥ नियुक्त पुरुषने तथा, अनियुक्तने देवे । आनंद पामी सो पिण, प्रीतिए लेवे ॥ ३३५ ॥ ११२ जिनेश्वरोना अधिष्ठायक यक्ष-- जिनराज शासन भक्ति कारक, यक्षनायक जे थया । तेहना क्रम नाम भापुं, आदिजिन से जे कह्या ॥ गोमुख महायक्ष त्रिमुख यक्षेश, तुंबरु कुसुमो तथा । मातंग विजयाजित ब्रह्म मनुजेश्वर कुमरो यथा ॥३३६॥ षण्मुख पाताल किन्नर वलि, गंधर्व गरुड सुजानिये । यक्षेन्द्र कुबेर बरुण भृकुटि, गोमेध मन आनिये ॥ पार्श्वयक्ष मातंग अपर ब्रह्मशांति अभिधानिये । चोवीस जिनना तीर्थरक्षक, सूरिराजेन्द्र वखानिये॥३३७ ११३ जिनेश्वरोनी अधिष्ठायिका देवी जैनशासन सुरी चउवीस, मात चक्रेश्वरी छे गुण ईश, अजिता दुरितारी जगीस । काली महाकाली अच्चुया, शांता ज्वाला ने सुतारा असोया, श्रीवत्सा पण होया ॥ प्रवरा विजया अंकुशा कहिये, प्रज्ञप्ती निर्वाणी अच्युतालहिये, धरणी वैरुट्या गहिये । दत्ता गंधारी अंबा जाणो, पद्मावती सिद्धायिका माणो, ऋषभादि क्रमसे वखाणो॥ ३३८ ॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ११४ जिनेश्वरोना गणधरनी संख्यागणधर संख्या सहु जिनवरनी, ऋषभादिक्रमसे जानो जी। चोरासी पंचा' एकसो दो अरु, एकसो सोले ठानोजी॥ शत एकसो-सात ने पंचागुं, तिराणुं अठयासि एकासी जी। छियंतर छासठ सतवन पचास, तियाली छत्तीस विकासी जी पेंतीस तेंतीस अडविस अढार, सतर ग्यारे दश नंदाजी । एहिज संख्या गणधरकेरी, पिण ग्यारे वीरजिणंदा जी ॥ सर्व गणधर चौदेसो वावन, दोय हीन गणसंख्या जी । सूरिराजेन्द्रना शासन माहीं, धारक प्रवचन बहु वंका जी ११५ जिनेश्वरोना साधुओनी संख्याऋषभादिक मुनिवरतणी, संख्या क्रम इम जान । सहस चोरासि लाख इक, दोय तीन वलि मान ॥३४३॥ तीनलाख ने वीससहस, सहस तीस लख तीन । लाख तीन अढी दोय इक, शीतलजिन लग लीन ॥३४४॥ चोराशी बहोत्तर सहस, अडसठ छासठ मान । चोसठ वासठ साठ अरु, पचास चालिस जान ॥३४५॥ तीस वीस अढार सहस, सोले चौद हजार । सर्वमुनि अडवीस लख, सहस अडयालि सार ॥३४६॥ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [ चतुर्थ १२० ११६ जिनेश्वरोनी साध्वियोनी संख्या लाख तीन साधवी, ऋषभजिदिने जोय । अजितादि लइने, श्रेयांस लग कहुं सोय ।। तिति छ पण चउ चउ, ति इर्ग एक ने एक । लाख - संख्या ऊपर, क्रमसे सहसनी पेख ॥ ३४७ ॥ तीस छत्तीस तीस, तीस वीस तीस जान । एंसी वीस षट् त्रण इग - वासुपूज्य लख मान । इग लाख ने आठसो, विमलनाथने होय । सहस बासठ अनंतने, सहस बासठ चारसो जोय ॥ ३४८ ॥ सहस इगसठ छेसो, एहीज सहस कर हीन । कुंथुने जाणो, अरथी सहस लहो चीन ॥ साठ पचावन पच्चा, इगतालिस चाली मान । अडतीस छत्तीसा, वीर परियंत बखान ॥ ३४९ ॥ सूरिराजेन्द्र जानो, साधवी संख्या सर्व । लाख चुम्माली, सहस छियाली पर्व ॥ शत चार छे अरु, ऊपर अधिकी मान । सर्व अंकी संख्या, मेलतां बहु गुणखान ॥ ३५० ॥ १ ऋण ऋण लख असि असि सहस, इग लख वीश हजार । इग लख षट् इग लख त्रि सहस, इग लख अडसय धार ॥ १ ॥ सुविधिजिनसुं अनंत लगण, समणीसंख्या जान । ए आयरिय मतान्तरे, कर लीजो परमान ॥ २ ॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १२१ सुविधि जिनवरथी, अनन्त लगे छ एम । लाख ति ति इक इक, इक इक उपरी नेम । सहस असी असी, वीस षद् तीन शत आठ । एहवो पिण दीसे, ग्रन्थांतर में पाठ ॥३५१॥ ११७ जिनेश्वरोना श्रावकनी संख्यातीनलख श्रावक ऋषभने, अजित शांति परियंत । दो लख कुंथु वीरलग, एक लख जानो तंत ॥ ३५२ ॥ लख ऊपर कहुं सहस क्रम, चोवीस जिननुं सार। पण अठाणुं तिराणुं अशी, इकासि छियंतर धार॥ ३५३ ॥ सत्तावन पचास वली, उगणी नव्यासि जाण । उनासी पनर अड छ चऊ. चालिस मतंतर माण ॥ ३५४ ॥ नेउ उनासी चोरासी, तिरासि बहोतर होय । सित्तर एकोन-सप्तति, चोसठ उनसठ जोय ॥ ३५५ ॥ सर्वाङ्क संख्या मेलतां, लाख पचपन जान । अडतालीस सहस अधिक, सर्व श्राद्धनो मान ॥ ३५६ ।। ११८ जिनेश्वरोनी श्राविकाओनी संख्याऋषभादि संभव लगे, पण पण छे लख धार । अभिनंदन सुमति पाने, पांच लाख निरधार ॥३५७॥ सुपार्श्वथी श्रीधर्म लग, लाख चार चित लाय । शांतिनाथ से वीर लग, त्रिलख श्राद्धी थाय ॥ ३५८ ॥ ८४०००० Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [ चतुर्थ उपरि सहस्र इम जानिये, ऋषभादि लख धार । चोपन पैंतालीस अरु, छत्तिस सगविस सार ॥ ३५९ ॥ सोल पण तिराणुं इकाणुं, इकोतर वली जान । अट्ठावन अडताली अरु, छत्तीस चउविस मान ॥ ३६० ॥ चौद तेर तिराणुं इकासि, बहोतर सित्तर होय । पचास अडताली वली, छत्तीस सुंदर जोय || ३६१ ॥ उनचालीस अढार अरु, सर्वसंख्या इम मान । एक कोटि पांच लाख, सहस अड़तीस जान || ३६२ ॥ ११९ जिनेश्वरोना केवलज्ञानि मुनियोनी संख्याकेवलनाणी जिनतणा, क्रमसे वीस हजार । वीस वा बावीस अजित, पनरे चौदे धार ॥ ३६३ ॥ तेर बार इग्यार दश, साठि - सात ने सात | साढिछ अरु साढिपांच, पण ए सहस सुजात ॥ ३६४ ॥ पेंताली - शत तियालि-शत, बत्तीस वा बावीस । अठावीस दुवीस अढार, सोले पनर जगीस || ३६५ ॥ दशसो सातसो ए सवि, इक लख ऊपर धार । सहस छियोतर एकसो, सब केवली परिवार ॥ ३६६ ॥ १२० जिनेश्वरोना मनः पर्यवज्ञानी मुनियोनी संख्या - मनपर्यवज्ञानी थया, तीर्थंकरना जेह । ऋषभादि क्रमसे कहुं, जेती संख्या तेह ॥ ३६७ ॥ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १२३ बारसहस साढ़ीसात वा, साढी छेसो जान । बारसहस साढिपांचसो, अथवा पांचसो मान ॥३६८॥ बारहजार ने दोढसो, तिम इग्यार हजार । साढी छेसो सहस दश, अरु सार्द्ध शत चार ॥ ३६९ ॥ दश हजार ने तीनसो, इका[सो पचास । एंशीसो पचोतरसो, पंचोतरसो खास ॥३७० ॥ साठ साठ पंचावन अरु, पचास पेंतालीस । चालीस ए सवि सेकडा, तेंतीससो चालीस ॥ ३७१ ॥ पचीससो एकावन तथा, सतरेसो पच्चास । पंदरसो साढी-तेरशत, इक हजार उल्लास ॥ ३७२॥ साढिसातसो पांचसो, सरवाले इम जान । एकलख पेंतालि सहस, पणसय इकाणुं मान ॥ ३७३॥ १२१ जिनेश्वरोना अवधिज्ञानी मुनियोनी संख्या-- ओहिनाणी ऋषभादिना, क्रमसे सेकडा चार। नेउ चोराणुं छिन्नु अरु, अठ्थाणुं लो धार ॥ ३७४ ॥ सहस ग्यारे दश नव अड़, चोरासीसो लेह । बहोतरसो साठ चोपन, शत वलि भाष्या.एह ॥ ३७५ ॥ शत-अडताली तियालीशत, छत्तीससो अरु होय । पनरसो चौदसो तथा, तेरसो अंतिम जोय ॥३७६ ॥ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. चतुर्थएक लाख तेंतीस सहस, चारसो ऊपर जान । चोवीसे जिनवर तणा, अवधिनाणि मुनि मान ॥ ३७७॥ १२२ जिनेश्वरोना चौदपूर्वधरमुनियोनी संख्या-- चौदहपूर्वी जिनतणा, ऋषभादि क्रम जेह । साढि संतालीससो, सेंतीससो वीस गणेह ॥३७८ ॥ साढि इगवीससो पनरशत, चोवीससो सुलेख । तेवीसशत दोसहस तीस, सहस दो गणिये देख ।। ३७९ ।। पनरसो चौदसो तेरसो, बारसो ग्यार शतेय । हजार नवसो आठसो, छेसो सित्तर लेय ॥ ३८०॥ छेसो-दश छसो-अडसठ, पांचसो वली धार । साढी-चारसो चारसो, साढ़ि तीनसो सार ॥३८१॥ तीनसो चरम जिनतणा, सह संख्या इम चीन । चोंतीस सहस सब सही, तेमां दो कर हीन ॥३८२ ।। १२३ जिनेश्वरोना वैक्रियलब्धिधर मुनियोनी संख्यावीसहजार छेसो अरु, सहस वीस शतचार । सहस उन्नीस आठसो, वलि उगणिस हजार ॥ ३८३ ॥ अढारसहस ने चारसो, आठसो सोल हजार । पनर सहस ने तीनसो, सहस चौद मन धार ।। ३८४ ॥ सहस तेर ने बार सहस, सहस ग्यार अरु थाय । दश नव अड शत एवलि, धरो सहस दिलमाय ॥३८५॥ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० । उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १२५ साठ इकावन तिमोतर, उगुणतीस ने वीस । पचास पनर ग्यार सात, शतका एह गणीस ॥ ३८६॥ दोलाख पेंताली सहस, वलि दोयसो आठ । संख्या सर्व इम जाणवी, देखी आगम पाठ ॥ ३८७॥ १२४ जिनेश्वरोना वादीमुनियोनी संख्यासाढिछेसो बारसहस, बारसहस शत चार । सहसबार ने ग्यारसहस, धरिये चित्त मझार ॥ ३८८ ॥ दशसहस साढे चारसो, वा सार्द्धषट् शत होय । छिन्नुसो चोरासीसो, छियंतरसो जोय ॥३८९ ॥ साठ अट्ठावन पचास, संताली शतका जोड । अथवा बेतालीससो, मतांतर लेवो दोड ॥ ३९० ॥ छत्तीस बत्तिस अडवीस, चोविस वीसने सोल । चौद बार दस अड छ चउ, शतका दिलमें तोल ॥३९१।। सर्वांके सहु जिन तणा, वादी संख्या जान । इक लख छबीस सहस, दोयसो मुनिवर मान ॥३९२॥ १२५ जिनेश्वरोना सामान्यमुनियोनी संख्यागणधार केवलि चतुर्थज्ञानी, अवधिनाणी मुनिवरा । वलि चौदपूर्वी वैक्रियलब्धि, वादी सहु जीतन खरा ॥ ए सात विन जे शेष संयति, सामान्य मुनि कर संग्रहा। तेहनी हुं कहुं संख्या, सर्व मलिने जे कह्या ॥३९३॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. _ [चतुर्थउगणीस लाख अरु सहस छियासी, इकावन ऊपर धरो। इक इक जिना करण एसे, कह्या सात धडो संकरो ॥ एहने मुनिसंख्य माहेसुं शोधिये शेषहु जे रहे । सामान्यमुनि एह संख्या, सूरिराजेन्द्र मुख कहे ।३९४। १२६-१२८ अनुत्तरोपपातिकमुनि, प्रकीर्णकग्रन्थ अने प्रत्येकबुद्धमुनि संख्यासहस बावीस रु नवशत, ऋषभने सोल हजार । नेमी बारसो पार्श्वने, आठसो वीर विचार ॥ ३९५ ॥ अनुत्तरोपपाति चारने, शेष जिन अप्रसिद्ध । मुनि जेताही प्रकीर्णक, सिद्धान्ते परसिद्ध ॥ ३९६ ॥ निज निज शिष्य प्रमाणसुं, प्रत्येकबुद्ध पण जान । गुणेकरी सहु सारिखा, लेश न खींचातान ॥३९७ ॥ १२९ जिनेश्वरोना आदेशनी संख्याआदेश पांचसो वीरने, शेषने जाण अनेक । आदेश अरथ एम छे, जाणे श्रुतधर छेग ॥ ३९८ ॥ सूत्रमें जे वद्या नहीं, भाष्या ज्ञानी जेह । कुरुड कुरुड नरके गया, नरके मुनि किम तेह ॥३९९॥ वीर अंगुष्ठे कंपियो, मेरु मरुदेवी सिद्ध । अनंतकायसुं आयने, कदलीसुं परसिद्ध ॥ ४०० ॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास.] श्री पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १२७ वलयाकारने छोडिने, सर्वाकारे मीन । एहवा अवद्धश्रुत सूत्रमें, आदेशा लो चीन ॥४०१॥ १३०-१३१ साधु अने श्रावक व्रतनी संख्याऋषभ वीरना वारे, साधुने व्रत पांच । अणु गुण शिक्षा श्राद्धने, बारे संख्या जांच ।। शेष जिनना साधुने, जाणवा व्रत चार । स्त्री परिग्रह सारिखो, श्रावकने तिम बार ॥४०२ ॥ १३२ जिनेश्वरोना साधुओना उपकरणसर्व जिनोना साधुने, उपकरण चौद बार । ओधिक चौदह भेद छे, औपग्रहिकने धार ॥ ४०३ ॥ पात्र पात्रनो बंधनो, पात्र ठवण अरु होय । पात्र केसरी पडला तथा, रजस्त्राण गुच्छा जोय ॥४०४॥ पात्रना ए साते कह्या, वसन तीन वलि लेह । रजोहरण मुखवस्त्रिका, जिनकल्पि मुनि एह ॥४०५॥ मात्रक वली चोलपढ़, दो मिल चौट प्रकार।। स्थविर कल्पीने कह्या, परिग्रह ए न लिगार ॥ ४०६॥ १३३ जिनेश्वरोनी साध्वियोना उपकरणअवग्रहानन्तक पट्ट, अधोरुक चलनीक । अभ्यंतर-बाहिर निवेसनि, कंचुक उपकक्षीक ॥ ४०७ ॥ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. चतुर्थ वैकक्षिका संघाटिका, स्कंधकरणी इग्यार । मुनि उपकरण चोलपट्ट विन, साडीयुत निरधार ॥४०८॥ उपकरण साध्वी तणा, पच्चीस नियमा जान । प्रमाण एहनो जानिये, शास्त्रतणे अनुमान ॥४०९ ॥ १३४-१३५ चारित्र अने तत्वोनी संख्यासामायिक छेदोपस्थापन परिहारविशुद्ध । सूक्ष्मसंपराय तिम वलि, यथाख्यात गुण लुद्ध ॥४१०॥ चारित्र पांच ए ऋषभने, अने वीरने होय । छेद परिहार विन शेषने, तीन कहे जिन जोय ॥४११॥ तीन नव तत्त्व सर्वने, देव गुरू ने धर्म । जीव अजीव पुन्य पाप, आश्रव बंध सुमर्म ॥ ४१२॥ संवर निर्जरा मोक्ष अरु, नवधा तत्त्वज होय । अवांतर भेद अनेक छ, फेर-फार नहीं कोय ॥ ४१३॥ १३६-१३७ सामायिक अने प्रतिक्रमण संख्या सम्यक्त्व श्रुत सामायिक, देश सर्वविरति चार । सहु जिनवरना तीर्थमें, सरिखा एह विचार ॥४१४ ॥ देवसि राइ पाक्षिक अरु, चातुर्मासिक जान । सांवत्सरिक पांच ए, प्रतिक्रमण परमान ॥४१५ ॥ प्रथम चरमने पांच हु, अजितादिकने दोय । ते पण कारणे प्रथम दो, अकारणे नवि होय ॥४१६॥ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्राप उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १३८-१४० मूलगुण, स्थितिकल्प, अने अस्थितिकल्प-. रात्रिभोजन मूलगुण, प्रथम चरमने होय । उत्तरगुण बावीसने, मरम खरो ए जोय ॥ ४१७ ॥ प्रथम चरमने कल्प दश, स्थितिकल्पे ए मान । आचेलुक्क उद्देशिक, शय्यातर छे ठान ॥४१८ ॥ राजपिंड कृतिकर्म व्रत, ज्येष्ठ प्रतिक्रमण जोय । मास पर्युषण नियत छे, स्थितिकल्प ते होय ॥ ४१९ ॥ शय्यातर चउव्रत अरु, पुरुषज्येष्ठ कृतिकर्म । चउ अवस्थित छ अस्थित, शेष जिनेशनुं धर्म ॥ ४२० ॥ १४१-१४२ आवश्यक अने मुनिस्वभाव ( कल्पशुद्धि)छ आवश्यक जे कह्या, प्रथम चरमने नित्य ।। उभयकाल बावीसने, कारणे ए पण कृत्य ॥४२१॥ ऋषभतीर्थ मुनि ऋजुजडा, वीर वक्रजड जोय । ऋजुप्राज्ञ बावीसना, मुनिस्वभाव ए होय ॥ ४२२॥ कल्पदुर्विशोध्य ऋषभने, वीरने दुरनुपाल । सुविशुद्ध बावीसने, पाले दुरमति टाल ॥ ४२३ ॥ १४३ सतरे प्रकारनो संयमसंयम सतरे भेदनो, सहुने सरखो जान । एहमां कांइ न फेर है, अनंत तीर्थकर वान ॥ ४२४ ॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [ चतुर्थ तज पण आश्रव इंदि पण, निग्रह चार कषाय । जीते त्रिदंड विरति कर, संयम सतरे थाय ॥ ४२५ ॥ भू दग अगनि पवन वण, बि ति चउ पणिंदि प्रेक्षोत्प्रेक्ष प्रमार्जना, परिठवण अरु जीव ॥ अजीव । ४२६ ॥ मन वच काया संवरे, ए पण सतरे भेद | संयम सहु जिनतीर्थ में, पाले न लावे खेद ॥ ४२७ ॥ १४४ - १४५ धर्मप्ररूपणा अने वस्त्रवर्ण— दान शील तप भावना, धर्मना चार प्रकार । श्रुत चारित्र दो भेदसे, सहु जिन भाषे सार ॥ ४२८ ॥ प्रथम चरम जिनशासने, ओघनियुक्ति प्रमाण । श्वेत वस्त्रधर मुनिवरा, शेषने वर्ण न मान ॥ ४२९ ॥ द्वार सैंतालिस शोभतुं, पूर्ण चतुर्थोल्लास । निर्दोषसुं वसनवर्ण लग, जिनपति स्थान प्रकाश ॥ ४३०॥ श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छावतंसाऽऽबालब्रह्मचारि - विशुद्धतमचारित्राऽऽरामविहारि—कलिकालसर्वज्ञकल्प- जङ्गमयुग - प्रधान-शासनसम्राट् - परमयोगिराज - जगत्पूज्य - गुरुदेव - प्रभु श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरविरचितायां पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पद्यां सप्तचत्वारिंशत्स्थानवर्णनो नाम चतुर्थोल्लासः । w Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास ] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १३१ १४६-१४७ जिनेश्वरोनो गृहस्थ अने केवली कालकुमार नृपति चक्रीत[, जे जिननो जे काल । सरबालो कर जानिये, कहिये गृहस्थाकाल ॥ ४३१ ॥ व्रतकाल जे जिनतणो, छअस्थकाले हीन । शेष रहे ते केवली-काल लहो परवीन ॥४३२॥ १४८ जिनेश्वरोनो दीक्षापर्यायएक लाख पूरव तणो, ऋषभर्नु दीक्षा काल। अजितने पण इक लाख में, पूर्वाङ्ग इक दे टाल ॥ ४३३॥ संभवसे सुविधि लगण, लख इक पूरव माहिं । चउ चउ पूर्वाङ्ग हीन कर, शेष काल उच्छाहिं ॥ ४३४ ॥ पचविस सहस पूरवनो, शीतल दीक्षा पर्याय । इकवीस लाख वर्ष, श्रेयांसजिन- थाय ॥ ४३५ ॥ चोपन लाख वरसां तणो, वासुपूज्य जिनराज । . पनर लाखनुं विमलजिन, जानो सयल समाज॥ ४३६ ॥ सादिसात लख अनंतनो. अढ़ीलाख धर्मेश । सहस पचवीस वर्षनो, लीजे शांतिजिनेश ॥ ४३७ ॥ पोने चोबीस सहस, कुंथुजिन वर्ष गणाय । सहस वर्ष इकवीसनो, अरनाथ महाराय ॥ ४३८ ॥ १ चउ अड बार सोल वीस, चोविस अडविस चीन । क्रमे पूर्व लख एकमें, पूर्वाङ्ग करहु हीन ॥ १ ॥ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [पंचमसहस चोपन नवशत अरु, मल्लिजिन जयवंत । साढीसात सहस्र वर्ष, मुनिसुव्रतजिन मंत ॥४३९ ॥ अढी सहस नमिनाथनु, सातसो नेमिजिनेश । सित्तर वर्ष श्रीपार्श्व, वयाली वीर गिणेश ॥४४०॥ चोवीसे जिनरायनो, गणिये इम व्रतकाल । सूरिराजेन्द्र भाषियो, धरिये हृदि उजमाल ॥ ४४१ ॥ १४९ जिनेश्वरोनो सर्वायुष्प्रमाणचोरासि बहोत्तर साठ, पचास चालिस तीस । वीस दश अरु दो एक, एता लख पूर्व धरीस॥ ४४२ ॥ चोरासि बहोत्तर साठ, तीस दश वली एक । एता लाख वर्ष समझ, नियम एहीज पेख ॥ ४४३ ॥ पंचागुं चोरासी अरु, पचपन तीस सुजोय । दश एक ए वर्ष सहस, गणिये क्रमसे होय ॥ ४४४ ॥ पार्थजिन आयु वर्षशत, बहोत्तर महावीर । चोवीस जिन आयु इम, भाषे मूरि बडवीर ॥ ४४५ ॥ १५० जिनेश्वरोनी मोक्षगमन मास तिथिमाधवदि तेरस ऋषभ, मधुसुदि पंचमि दोय । वैशाखसुदिनी अष्टमी, मधुसुदि नवमी होय ॥४४६॥ १ वर्ष लाख चोरासिनो, पूर्वाङ्ग एकज होय । एने एता गुणा कर्यां, एक पूर्व दिल सोय ॥ १ ॥ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १३३ मगसिरवदि एकादशी, सप्तमि फाल्गुन किण्ह । भाद्रववदिनी सप्तमी, तिम सुदि नवमी दिण्ह ॥४४७॥ वैशाखवदि बीजे तथा, श्रावणवदिनी तीज । अषाढ सुदी चतुर्दशी, तिम वदि सप्तमि लीज ॥४४८॥ चैत्र ज्येष्ठ सुदि पंचमी, जेठ वदि तेरस होय । वैशाखवदिनी प्रतिपदा, मगसिरवद दशमि जोय।।४४९॥ फाल्गुन शुक्ल वारस दिन, ज्येष्ठवद नवमि जोय । वैशाखवदि दशमी दिन, शुचिवद आठम होय ॥४५०॥ श्रावणसुदि आठम सरस, काति अमावस वीर । मोक्ष मास पख तिथि कही, सूरिराजेन्द्र सुधीर ॥४५१॥ १५१ जिनेश्वरोना मोक्षगमन नक्षत्रअभीचि मृगशिर आर्द्रा, पुष्य पुनर्वसु जान । चित्रा अनुराधा ज्येष्ठ, मूल पूर्वाषाढान ॥४५२ ॥ धनिष्ठा उत्तराभाद्रपद, रेवति रेवति पुष्य । भरणी कृत्तिका रेवति, भरणी श्रवण सुमुख्य ॥ ४५३॥ अश्विनी चित्रा विशाखा, स्वातिऋक्ष प्रमाण । ऋषभादिक क्रमे मानिये, सूरिराजेन्द्र सुवाण ॥४५४॥ सितर कोटि लख ऊपर, छप्पन्न कोटि हजार। • एता वर्ष मिलाय के, एक पूर्व दिल धार ॥२॥ - - Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [पंचम१५२ जिनेश्वरोनी मोक्षगमन राशिमकर वृषभ मिथुन कर्क, कर्क कन्या अलि जाण । वृश्चिक धन धन कुंभ मीन, मीन मीन ककटाण ॥४५५॥ मेष वृषभ मीन मेष, मकर मेष तुल होय । तुल तुल ऋषभादि क्रमे, मोक्षगमन इम जोय ॥४५६॥ १५३-१५४ मोक्षगमनना स्थान अने आसनवासुपूज्य चंपा वीर पावा, नेमि रैवत-गिरिवरे । अष्टापदे श्रीऋषभ सिद्धा, शेष संमेतगिरि ऊपरे ।। वीर उसह नेमि परियंक, आसने सिद्धी गया । काउसग्ग आसन शेष जिनपति, मोक्ष ठाणे संचा।४५७॥ १५५-१५६ मोक्षगमनाऽवगाहना अने तप अवगाहना सहु तीर्थपतिनी, तिभाग ऊणी जानिये । निज आसन परमाण सेती तिभाग ओछे मानिये ॥ चउत्थ भक्ते ऋषभ मुक्ति, छट्ठ भक्ते वीरजी। मास भक्ते शेष जिनवर, शिव लही तजि पीरजी ।४५८॥ १५७ जिनेश्वरोनो मोक्षगमन परिवारदशसहस्र मुनिसुं ऋषभ शिवगति पद्म तीनसो आठसुं। वासुपूज्य छ शत विमल सहसषद् वीर गत परिवारसुं॥ . सात सहखें अनंत जिन, धर्म इक शत आठसुं । पण शतसुं मल्लि सुपार्श्व, सिद्धा पार्श्व तेंतीस धारसुं।४५९॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १३५ नव शत संघाते शांति नेमि पांचसो छत्तीस जानिये । इग सहस साथे शेष जिनपति मुक्ति पहोता मानिये ।। सहस अडतीस चारसो अरु पांच एंशी ऊपरे । सर्व जिनना सकल मुनिवर सिद्धि ठाणे संचरे ॥४६०॥ १५८-१६० मोक्षगमनवेला, मोक्षारक अने आरक शेषचोवीस जिननो मोक्ष के जे वेला थयो, - मारा लाल के जे वेला थयो। तेहनो कहुं विरतंत के सूत्रमा जे लह्यो, मारा लाल के सूत्रमा जे लह्यो । दिवसनो पेलो भाग के पूरव अहन में, मारा लाल के पूरव अह न में ॥ अवर अहन में केवाय के पाछला पहर में, मारा लाल के पाछला पहर में ॥ चो० ॥१॥ इमहिज रात्रिना भाग के बेइ मानिये, मारा लाल के बेइ मानिये । संभव ने पउमाभ के सुविहि जानिये, मारा लाल के सुविहि जानिये ॥ वासुपूज्य ए चार के अपराह्ने शिव गया, मारा लाल के अपराह्ने शिव गया। शेष जिनेश्वर आठ के पूर्वाह्ने सिध थया, ...... मारा लाल के पूर्वाह्ने सिधथया ॥ चो० ॥२॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [पंचमऋषम जाव श्रेयांस के ए शेष जानिये, मारा लाल के ए शेष जानिये । । धरम अर नमि वीर के अपर रात्रिये, मारा लाल के अपर रात्रिये ॥ शेष विमल जाव पास के आठ ए जिन सही, मारा लाल के आठ ए जिन सही । पूरवरात्रे मोक्ष के पाम्या दुख नहीं, मारा लाल के पाम्या दुख नहीं। चो० ॥३॥ तीजे आरे अंत के ऋषभ शिववधु वर्या, ____ मारा लाल के ऋषभ शिववधु वर्या । शेष तेवीस जिनेन्द्र के चोथे दुख हर्या, मारा लाल के चोथे दुख हो । प्रणमो सरिराजेन्द्र के सहु संकट हरे, मारा लाल के सहु संकट हरे । एकसो उनसठ ठाण के मनमां ए घरे, मारा लाल के मनमां ए धरे ॥ चो० ॥४॥ नदी जमुना के तीर उडे दो पंखिया, ए राहमोक्ष आरानो शेष, जनम आरा जिस्यो। पिण जे जेनो आयुष्य, हीन करलो तिस्यो ॥१॥ जिम तीजो आरो शेष, ऋषभ जन्म्या यदा। ! चोरासी पूरव लाख, नव्यासी पख तदा ॥२॥ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महास] श्रीपश्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. आयु कर्यों जिन हीन के, शेष नव्यासी रहे । तीजो आरो रह्यो शेष, ऋषभ मुगति लहे ॥३॥ आरक चोथा माहीं, सहु जिनजी शिववर्या । सूरिराजेन्द्र प्रमाण, सकल सुखे संचर्या ॥४॥ १६१ जिनेश्वरोनी युगान्तकृद्भूमिमोक्ष मारग वह्यो ते कहुं, सहु जिनपतिनो जेह । ऋषभ मोक्ष गयां पछी, असंख्य पट्ट लग लेह ॥४६१॥ अजित संख्याता पाट लग, जावत नमिजिणंद। अड नेमि चउ पार्श्वनाथ, त्रिपाट वीरजिणंद ॥ ४६२ ॥ १६२ जिनेश्वरोनी पर्यायान्तकृद्भूमि-- 'परियायान्तर भूमिका, ऋषभ केवलसुं जाण । अन्तर्मुहूर्ते पछी गया, मरुदेवी शिव ठाण ॥ ४६३ ॥ दु ति चउ वरसां पछी, नेमि पार्श्व ने वीर । शेष इकादि दिनान्तरे, मुक्ति गया कइ धीर ॥ ४६४ ॥ १६३-१६४ मोक्षमार्ग अने मोक्षविनयसहु जिनवरनो मोक्षपथ, सुमुनि श्रावक दोय । दर्शन ज्ञान चारित्र कर, अथवा वैविध होय ॥ ४६५॥ मोक्षविनय पण मेदसुं, भाषे सहु जिनराय । दर्शन ज्ञान चारित्र तप, उपकारिता गवाय ॥ ४६६॥ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [पंचमअथवा दोय प्रकारनो, गृहि मुनि क्रिया स्वरूप । भाव सहित सेवे भविक, मूंदे भवभयकूप ॥ ४६७ ॥ १६५ पूर्वप्रवृत्ति काल असंख्य काल पूरव रह्या, क्रम सतरेना जाण । संख्यकाल षद् जिनतणा, वीर सहस वासाण ॥ ४६८॥ १६६-१६७ पूर्वविच्छेद अने शेषश्रुतप्रवृत्ति काल पर्वनो विच्छेद काल. ऋषभथी कंथ जाव । असंख्य अरथी पार्श्व लग, संख्यकाले अभाव ॥ ४६९ ॥ वीस सहस वरसां लगे, पूर्वविच्छेद विचार । वीरशासन में जानिये, शेष श्रुत आधार ॥ ४७० ॥ शासन वरते जिहाँ लगे, सहु जिनेन्द्रनो जाव । शेष श्रुत रहे .तिहाँ लगे, पार्श्वने छेद अभाव ॥ ४७१ ॥ पूरव रह्या जिम छेद छे, पिण विशेष ए जाण । वीस सहस वरसां लगे, शासन वीर प्रमाण ॥ ४७२ ॥ केड कहे विच्छेदनो, पारसने नहिं होय । शेषश्रुत तीरथ लगण, वरते साधु विलोय ॥४७३ ॥ शेषश्रुत विच्छेदथी, अच्छेरो इह जान । सुरिराजेन्द्र भाषे इसो, धारी सूत्र प्रमान ॥ ४७४ ।। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. उल्लास ] १६८ जिनेश्वरोनो परस्पर अन्तर १३९ एक जिनना जन्म थकी, बीजा जन्मे जाण । एक जन्मथी दूसरा, मुक्त थया जिणभाण || ४७५ ।। एकना मोक्षथी दूसरा, जन्म मोक्षथी मुक्त | चार भेद अंतरतणा, चोथो इहाँ छे उक्त ॥ ४७६ ॥ पचास लाख कोटि वली, तीस लख कोटि होय । दश लाख नव लाख कोटी, अयरा एता जोय ||४७७ || नेउ सहस कोटि नव सहस, नव शत कोटि सुजाण । नेउ कोटि नवकोटि वली, शीतल लग ए मान ॥ ४७८ ॥ शतसागर छासठ लख, वर्ष छब्बीस हजार । इक कोटि सागर में हीन, श्रेयांसजिननुं धार ॥ ४७९॥ चोपन तीस ने नव चउ, सागर क्रमसे होय । पूणपलि ऊण तिसागरा, शान्ति लगे इम जोय || ४८० || अर्धपल्य अरु पावपल्य, कोटिसहस वर्ष हीन । कुंधु अरजिननुं निर्वाण, जाणो दिलमें चीन ॥ ४८१ ॥ एक कोटि सहस वर्ष, मल्लिनिर्वाण सुहाय । चोपन लाख वर्षां पछी, मुनिसुव्रत जिनराय ॥ ४८२ ॥ १ - ऋषभमोक्षसुं ए अंतर, गणिये इह सुखदाय | अजितादी क्रमसे गणी, धर लीजो दिल माय ॥ १ ॥ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. छलाखे नाम जिनपती, पांचलाख वलि वर्ष । नेमिजिननो मानिये, निरवाण बहु प्रकर्ष पोने चोराशी सहस, वर्षनुं पार्श्व सुनाथ । अढ़ीसो वर्षे वीरजी, पाम्या शिवपुर पाथ [ पंचम ॥ ४८३ ॥ 11 868 11 १६९ तीर्थप्रसिद्ध जिनजीव जे जे तीर्थकर वारमें, तीर्थंकर परकाश । जे जीवोनो जिम थयो, नाम कहुं उल्लास ॥ ४८५ ।। मरीचि प्रमुख ऋषभेशने, सुपार्श्व शासन जाण । श्रीवर्मनृपादिक हुवा, शीतल तीर्थ वखाण ॥ ४८६ ॥ हरिषेण ने विश्वभूति, श्रीकेतु ने त्रिपृष्ठ | मरुभूति अमिततेज धन, पंच श्रेयांस श्रेष्ठ ॥ ४८७ ॥ वासुपूज्ये नंदन नन्द, शंख सिद्धारथ वर्म । मुनिसुव्रते रावण नारद, कीना सुकृत कर्म ॥ ४८८ ॥ 11869 11 कृष्ण प्रमुख नेमीशने, अंबड सत्यकी नंद | पार्श्वतीर्थ में त्रण थया, वीरतीर्थ में नंद 'श्रेणिक सुपास ने पोट्टिल, उदाइ शंख दृढायु । शतकदो सुलसा रेवती, करे बंधन जिनायु ।। ४९० ॥ १७० जिनेश्वरशासनमां रुद्रमुनि रुद्रतप अंग धारका, मुनि रुद्र इग्यार । मीमावलि ऋषमेशने, अजित जितशत्रु धार ॥ ४९१ ॥ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १४१ सुविधिशासने रुद्रमुनि, शीतले विद्यानल होय। सुप्रतिष्ठ श्रेयांसने, अचल वापुज जोय ॥ ४९२ ॥ पुंडरिक विमलेशने, अनंत अजितधर जान । अजितनाम धर्मजिन, शांति पेढाल पिछान ॥ ४९३ ।। वीरशासने सत्यकी, रुद्र इग्यारे एह । मुनिपदधारी महागुणी, वंदीजे गुण गेह ॥४९४ ॥ १७१ जिन तीर्थमां दर्शनोत्पत्तिजैन शैव ने सांख्यमत, ऋषभतीर्थ में जाण । वैदान्तिक नास्तिकमती, शीतलतीर्थ वखाण ॥ ४९५ ॥ पार्श्व तीर्थमें बौद्धमत, क्षणिकवादि ते होय । वीर वारे वैशेषिका, सप्त पदारथ जोय ॥४९६ ॥ १७२ जिनशासनमा दश आश्चर्य साहिब शांति जिनेश्वर देव के, ए राहसाहिबा इण चोवीसी माहिं के, आश्चर्य दश थयारे लो। सा० अष्टोत्तर शत साधु के, इक समये शिव लह्यारे लो॥ सा० अवगाहना उत्कृष्ट के, पांच शत धनुष्यनीरे लो। सा० नवाणुं ऋषभना पुत्र के, भरतसुत आठनीरे लो इ०।१। सा० ऋषभ सहित आठ के, सिद्धिबधु वर्यारे लो। सा० आश्चर्य पहिलो एह के, उत्कृष्ट मुनि तारे लो॥ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानच तुष्पदी. [ पंचम सा० सुविधिजिनना तीर्थ के, असंयत पूजियारे लो । सा० शीतलजिनवर वार के, हरिवंशी थयारे लो ||३०||२|| सा० स्त्रीपणे मल्लिजिणंद के, तीर्थंकर थयोरे लो | सा० धातकीखंडे कृष्ण के, शंख पूरण कर्योरे लो ॥ सा० नेमीवारे शंख मेल के, पांचमो जाणियेरे लो । सा० उपसर्ग गर्भापहार के, चरमनो मानियेरे लो | इ० | ३ | सा० परखदा पुरुष अभाव के, शशि रवि आवियारे लो । सा० मूलविमाने आय के, वीरने वांदियारे लो || सा० ए पांचो वीर वार के, इम दश मेलियेरे लो । सा० सुणिने आतम पाप के, सघला ठेलियेरे लो ||३०||४|| सा० उत्सर्पिण्यवसर्पिणी काल के, बीते ए हुवेरे लो । सा० काल अनंतो जाय के, लोक में ए जुवेरे लो ॥ सा० अच्छेरा कहे लोक के, अरथ ए जाणज्योरे लो । सा० सूरिराजेन्द्र कहे सत्य के, मत मति ताणज्योरे लो १७३ जिनशासनमां चक्रवर्ती राजा चक्री बारे जिनवार में, ते कहुं क्रमसे जाण । ऋषभसमे भरतेश्वरु, अजित सगर वखाण ॥ ४९७ ॥ धर्म - शांतिना अंतरे, मघवा सनतकुमार | शांति कुंथुं अर तीन ए, जिनचक्री सुविचार ॥ ४९८ ॥ अर - मलि अंतर सुभूम, मुनिसुव्रत जिन वार । महापद्मचक्री थयो, हरिषेण नमि सुधार ॥। ४९९ ।। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १४३ नमि-नेमिना अंतरे, चक्री जय नृपराय।. . नेमि-पार्श्व के मध्यमें, ब्रह्मदत्त कहिवाय ॥५०० ॥ आयु एहनो इम कह्यो, लख चोरासी पूर्व । लाख बहोत्तर पूर्वनो, आगल वर्ष अपूर्व ॥५०१ ॥ पांच तीन इक लाखनो, पंचाणुं वर्ष हजार । चोरासि साठ तीस दश, तीन सहस ए धार ॥ ५०२॥ अंतिम वर्ष सातसो, आयु वदे जिनराय । सूरिराजेन्द्रना शासने, पुरुषोत्तम ए थाय ॥ ५०३ ॥ १७४ जिनशासनमा नव प्रतिवासुदेव अश्वग्रीव तारक अरु, मेरक मधुकैटभ । निशुंभ बली प्रहलाद, रावण जरासंधेम ॥५०४ ॥ 'जिनतीर्थमें ए सहि, प्रतिविष्णु कहिवाय । एने मारीने गादिपे, वासुदेव ते थाय ॥५०५ ॥ १.७५ जिनशासनमां नव वासुदेव- .... त्रिपृष्ट द्विपृष्ट स्वयंभू, पुरुषोत्तम पुरुषसिंह । वासुदेव श्रेयांसथी, धर्म लग पण अवीह ॥५०६ ॥ पुरुषपुंडरीक ने दत्त, अर-मल्लि मध जाण । मुनिसुव्रत नम्यंतरे, लछमन छे परमाण ॥५०७ ॥ .. १ पांचसो साढी चारसो, साढी बेंतालीस । Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [पंचककृष्ण थया नेमी समे, हिवे आयु कहिवाय । चोरासि बहोत्तर साठ, तीस दश लक्ष गणाय ॥५०८॥ पेंसठ छप्पन बार इक, सहस ए क्रमे जान । सूरिराजेन्द्र भाषे सहि, देखो शास्त्र परमान ॥५०९॥ निदानकर्म प्रभाव से, थाय छे वासुदेव । आयु पूर्ण थयां नरकमां, जाय छे इ ततखेव ॥ ५१० ॥ वासुदेव बलदेवना, पिता एकज थाय । प्रजापति ने ब्रह्मराज, भद्रराज नृपराय ॥५११॥ सोमराज शिवराज अरु, महाशिर अग्निसिंह । दशरथ ने वसुदेवजी, जनक ए पुरुषसिंह ।। ५१२ ॥ मृगावति पद्मादेवि, पृथ्वी सीता देवि । अमृता लक्ष्मीवती, शेषवति सुमित्रा लेवि ॥ ५१३ ॥ सादि-इकतालि चालीस, ती त्रिंश अठवीस ॥१॥ वीस पंदर बार सात, धनुष ए क्रमे जान । बारे चक्री राजनो, गणिये इम तनुमान ॥२॥ सुभूम ब्रह्मदत्तजी, सातमि नरके लेव । मघवा सनतकुमारजी, त्रीजा स्वर्गे देव ॥ ३ ॥ शेष चक्री संयम ग्रही, करी कर्मनो नाश। ... मोक्षे जई विराजिया, सादि अनंत थितिवास ॥४॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १४५ देवकी ए जननी कही, वासुदेव क्रम मात । हवे अवगाहना कहुं, सुणजो मोरी बात ॥ ५१४ ॥ एंशी सित्तर साठ अरु, पचास पेंतालीस । गुणतीस छवीस सोल, दश ए धनुष गणीस ॥ ५१५ ॥ पोतनपुर ने द्वारिका, द्वारिका नगरि जान । द्वारिका अंबपुर चक्रपुर, काशि अयोध्या मान ॥५१६॥ मथुरा ए नगरियाँ कही, वासु बलदेव सुजान । बने तो भेगा रहे, प्रतिदिन प्रेमी वान ॥५१७ ॥ जिनशासनमां नव बलदेव अचल विजय भद्र सुप्रभ, सुदर्शन आनंद । नंदन रामचंद्र बलभद्र, वलदेव नाम महंद ॥ ५१८॥ भद्रा सुभद्रा सुप्रभा, सुदर्शना विजया होय । विजयंति जयंती अरु, अपराजिता सुजोय ॥५१९ ॥ रोहिणी जननी बलदेवनी, भाषी ग्रन्थ मझार । अवगाहना पण एहनी, लो केशव सम धार ॥५२०॥ पिचासि पिचोतर पेंसठ, पचपन सतरे होय । लाख ए क्रमसुं जानिये, प्रथमसुं पंच लग जोय ॥५२१॥ पिचासि पचास पनर बार, सहस्र हायन जान । छट्ठा से नवमा लगण, बलदेव आयुर्मान ॥ ५२२ ॥ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. बलभद्र संयम लही, पाम्या पंचम स्वर्ग । शेष बलदेव कर्मक्षये, पाम्या सुख अपवर्ग || ५२३ ॥ [ पंचम जिन चक्री वासु बलदेव, प्रतिवासुदेव थाय । पुरुष शलाका ए सभी, तिरसठ श्रेष्ठ गणाय ।। ५२४ ॥ उगणसाठ जीव जनक, वावन काया साठ | जननी इकसठ मानिये, देखी ग्रन्थ सुपाठ ॥ ५२५ ।। द्वार त्रीशथी शोभतुं, पूर्ण पंचमोल्लास । गृहकालसुं बलदेव लग, जिनवर स्थान प्रकाश ॥ ५२६ ॥ श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छावतंसाऽऽबालब्रह्मचारि -- विशुद्धतमचारित्राऽऽरामविहारि-कलिकालसर्वज्ञकल्प-जङ्गमयुगप्रधान-शासनसम्राद्-परमयोगिराज - जगत्पूज्य-गुरु देव- प्रभु - श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वर-विरचितायां पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पद्यां त्रिंशत्स्थानवर्णनो नाम पञ्चमोल्लासः । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ अर्हम्नमः । श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर - सङ्कलिता श्रीविंशतिविहरमानजिन - चतुष्पदी । १ - विहरमानजिनाऽभिधानादि, ( चोपाइमां ) विहरमान जिनवर के नाम, सीमन्धर युगमंधर स्वाम | बाहु सुबाहु सुजात विख्यात, स्वयंप्रभ ऋषभानन तात ॥ १॥ अनंतवीर्य सूरप्रभ श्रीविशाल, वज्रधरजिन जगत दयाल | चन्द्रानन चन्द्रबाहु नाथ, ईश्वर ने श्रीभुजंग सुसाथ ||२|| नेमिप्रभ ने श्रीवीरसेन, महाभद्र कहे श्रुतधर वेन । देवयशा त्रिजगना राय, अजितवीर्य जिन नाम कहेवाय ॥३॥ २ - विहरमानजिन - जननी, ( हरिगीत - छन्दमां ) विहरमान वीसकी माताओं का नाम अनुक्रमसुं कह्या, श्रीसत्यकी सुतारादेवी विजया के उदरे रह्या । भूनंदादेवी देवसेना वलि सुमंगला जानिये, वीरसेना ने मंगलावती प्रभु मात को पहिचानिये ॥ ४ ॥ जिनजननी भद्रादेवी विजयावती अरु सरस्वती, पद्मावती रेणुकादेवी यशोज्ज्वला जननी सती । प्रभुमात महिमादेवी सेना भानुमती अमनी सही, अरु उमादेवी गंगादेवी मात कनीनिका कही ॥५॥ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ विंशतिविहरमानजिनचतुष्पदी. षष्ठ ३-विहरमानजिन-जनक-नाम, ( हरिगीत-छंदमां ) श्रीविहरमान के तातकी नामावली इणविध कही, श्रेयांस सुदृढ सुग्रीव ने वलि निसढ सहु जाणो सही । देवसेन मित्रप्रभ और कीर्ति नाम अनुक्रमसे लहो, मेघ नागराज ने विजय जाणो निश्चय निज हृदये ग्रहो ।६। पद्मराज वल्मिक देवानंद है नाम जिनवर तातनो, कुलसेन महाबल वीरसिंह शंसय नहीं कोई जातनो। है नाम तातनो भूमिपाल ने देवराज सोहामणा, पिता सर्वभूति नामना राजपाल पण रलियामणा ॥ ७ ॥ ४-विहरमानजिन-सहधर्मिणी, (हरिगीत-छंदमां ) रुक्मिणी देवी प्रियंगु मोहिनी देवी किंपुरुषा तथा, जयसेना ने वीरसेना क्रमसुं नाम भार्या का यथा । पत्नी जयावती विजयावती ने विमलादेवी शुद्धमति, श्रीनंदसेना विजयावती पुनि लीलावती नामे सति ॥८॥ सुगंधादेवी नामे पत्नी वलि भद्रावती भली, अरु गंधसेना मोहनीदेवी रायसेना रंगरली । सूरिकांता श्रीपद्मावती ने रत्नमाला अनुपमा, इम नाम विंशति विहरमान की पत्नियों का अनुक्रमा ॥९॥ ५-विहरमानजिन-लंछन, (हरिगीत-छंदमा) लंछन वृषभ त्रिहुं विहरमान के पढम द्वादश सतरमा, छट्ठा ने दशमा चौदमा उगणीसमा के चन्द्रमा । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास] श्रीविंशतिविहरमानजिनचतुष्पदी. १४९ बीजा अढारमा विहरमान के चरण कुंजर सोहता, प्रभु नवम पंचम सोलमा के भानु जन मन मोहता ॥१०॥ प्रभु तेरमा ने पंदरमा के पद्म लंछन राजतो, बाहु प्रभु के हरण ने सुबाहु के कपि छाजतो । प्रभु सातमा ने आठमा इग्यारमा के अनुक्रमे, सिंह छार शंखहवे अजितवीर्य के स्वस्तिक जानो भवि तमे। ६-विहरमानजिनोनी विजय, ( हरिगीत-छंदमां) प्रथम पंचम नवम जिनवर विहरमानजी तेरमा, ए चार जिनजी पुष्कलावती पुष्कलावती सतरमा । है वप्रविजये पांच जिनवर जुदा जुदा जानिये, दूजा ने छट्ठा चौद दशम अढारमा मन आनिये ॥१२॥ जीजा ने सत्तम ग्यारमा बलि पंदरमा उगणीसमा, ए पांच प्रभुजी वत्सविजये नलिनावति जिन वीसमा। सुबाहु चोथा आठमा ने बारमा वलि सोलमा, ए चार पण नलिनावति शंसय नहीं इण बोलमां ।५३४॥ ७-विरहमान जिनोनी नगरीओ, ( इकतीसा-छंद ) विंशति विहरमान जन्मतणी नगरीना, न्यारा न्यारा नाम इम क्रमसे पेचानिये । विजया सुसीमा पुंडरीकिनी नगरी, . वीतशोका चारो माहे पांच पांच जिन जानिये ।। Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० श्रीविंशतिविहरमानजिनचतुष्पदी. षष्ठ श्रीमंधर श्रीसुजात सूरप्रभ चन्द्रबाहु, वीरसेन पांच पुंडरीकिनी वखानिये । ऋषभानन श्रीबाहु वज्रधर भुजंग ने, देवयशा नगरी सुसीमा मन आनिये ॥१४॥ दूजा युगमंधर ने स्वयंप्रभजी छट्ठा, विशाल ईश्वर महाभद्र तणा धाम की। नगरी विजया तथा पांच जिनराज तणी, एकहीज नगरी है वीतशोका नाम की । श्रीसुबाहु चन्द्रानन अनंतवीर्यने वली, नेमिप्रभ चार जिनराज अभिराम की । जिनजी अजितवीर्य विहरमानजी छेला, पांचुही की नगरी गिणाइ जन्म ठाम की ॥१५॥ ८-१२ विहरमान जिन तनुवर्णादि, ( हरीगीत-छंदमां) सुवर्ण वर्ण शरीर सुंदर वीसो श्रीविहरमान का, वीसों का आयु लख चोरासी पूर्व वचन प्रमाण का । है धनुष पांचसो शरीरमान समान भाष्यो सहु तणो, ज्ञानी मुनि दशलाख ने सामान्य शतकोटी गणो ॥१६॥ अन्त्यप्रशस्ती, राग धन्याश्रीगाया गाया श्रीजिनवर स्थानक गाया ॥ टेर ॥ जुजुआ जिनना जुजुआ स्थानक, शत पंचोतर गाया। विहरमानजिन वीशतणा वलि,रविस्थानक सह भायारे गा०१ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उल्लास ] श्रीविंशतिविहरमानजिनचतुष्पदी. १५१ पूर्वाचार्यों के ग्रंथ अनुसारे, गुरुगम इह दरसाया । पंचसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी, निर्माण करी हरसायारे सोहमबृहत्तपगच्छ परंपर, रत्नसूरि सुखदाया । प्रवृद्ध क्षमा श्रुत संयम धारक, वृद्धक्षमा मुनिराया रे गा०३ सूरिदेवेन्द्र कल्याणसूरीश्वर, समयप्रवेदी कहाया । विजयप्रमोदसूरि जग चावो, तदन्तेवासी सुहाया रे गा०४ तत्पदपंकजसेवी क्रियोद्धारक, संयमी भाव जगाया। विजयराजेन्द्रसूरीशनी रचना, भविकजनके मनभायारे। विक्रम उगणी छेताला अब्दे, कार्तिक मास ओपाया । सौभाग्यपंचमी दिन एह भाव सुन, सकल संघ हुलसायारे मरुधरदेश सीयाणा नगरे, मुविधिनाथ जिनराया । सुरनरवंदित तदंघी पसाये, मंगल महोदय पायारे।गा०७॥ श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छावतंसाऽऽबालब्रह्मचारि-विशुद्धतमचारित्राऽऽरामविहारि-कलिकालसर्वज्ञकल्प-जङ्गमयुगप्रधान-शासनसम्राट्-परमयोगिराज-जगत्पूज्य-गुरु देव-प्रभु-श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर-विरचितायां श्रीविंशतिविहरमानजिनचतुष्पद्यां द्वादशस्थानवणनो नाम षष्ठोल्लासः समाप्तः। Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमहावीर - गौतम - प्रवचन । ( शुभाशुभकर्मफलोनो दृश्य ) कथा करम विपाकनी, संभलावुं आवार । श्रवण करो सज्जन सदा, आनंद अपरंपार ॥ १ ॥ कया करमथी कई गति, जीवतणी जे थाय । ए वर्णन आ स्थल लखुं, मद मानवीनो जाय ॥ २ ॥ जीव अनादिकालनो, भटके भुंडे वेश । पार न आव्यो तेहनो, बहु वर्णन छे वेश ॥ ३ ॥ १ गौतम पूछे प्रेमथी, श्रीमहावीर समीप । उत्तर भगवंत ! आपजो, देखूं आपने दीप ॥ ४ ॥ कया करम कीधां थकी, काणो जन को होय । ए उत्तर देवो घटे, मद राखे नहीं कोय श्रीमहावीर तो बोलीया, हे गौतम - गणधार ! | फल बीज झाझां बींधिया, पूर्व भवे प्रियकार ॥ ६ ॥ ए परतापे थाय छे, काणो जन तो होय । मद मानवीनो ना रहे, करम करे ते होय ॥ ७ ॥ २ गौतम पूछे प्रेमथी, हेमहावीर ! सुखदाय । कया करम कीधां थकी, बन्ने आंखो जाय ॥ ८ ॥ ॥५॥ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर - गौतम-प्रवचन. जल माहीं झबोलिया, त्रस थावर ने पाय । ए परतापे आंधलो, आ भवमां थई जाय ॥९॥ ३ गौतम पूछे प्रेमथी, हे भगवंत ! सुखदाय । अंधो बहिरो शा थकी, जीव एकलो थाय ॥ १०॥ पूर्वभवे मध पाडिया, नांखी छीता ज्यार । अज्ञाने अक्कल नहीं, मले दशा दुख दार ॥ ११ ॥ ४ गौतम पूछे प्रेमथी, हे महावीर ! भगवान | जनमतें आंखे न देखतो, शाथी ए नुकशान ॥१२॥ पूर्वभवे तो परखिया, स्त्रीना झाझां रूप । ए परतापे पामियो, खोटी कोडी कूप ५ गौतम पूछे प्रेमथी, कुल सिद्धारथ सार । ॥ १३ ॥ १५३ ॥ १५ ॥ कया करमथी कूबडा, जीव थाय आवार ॥ १४॥ चूरण कीधां सांवटा, एकेन्द्री जीव धार । ए परतापे कूबडा, जीव थाय आ वार ६ गौतम पूछे प्रेमथी, कहो हवे प्रभुराय ! | थंबडो नर शाथी थयो, शाथी ए निंदाय ॥ १६ ॥ चौपद पशुने बहु करी, भार भर्यो नर अंध । ए परतापे थंबड, कर्यो कर्मनो बंध ॥ १७ ॥ ७ गौतम पूछे प्रेमथी, हेप्रियकर - प्रभुराय ! | ठूंठो शाथी नीपजे, एनी कहो कथाय पूर्वभवे बींध्या घणा, पशुना नाकज कान । पामर पांखो तोडीने, जीवनुं करीयुं ज्यान ॥ १९॥ ॥ १८ ॥ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. [भाऽशुभकर्मदया दिल राखी नहीं, दाखी दुष्टता दील । ढूंठो भव तेथी ठरे, बहु जे होय बखील ॥२०॥ ८ गौतम पूछे हे प्रभो !, पंगु शाथी थाय । कया करम कीधां थकी, न मले तेने पाय ॥२१॥ घात करी पशु जीवनी, मन मलकातो जाय । एकेन्द्री हणतो घणो, एथी पंगू थाय ॥२२॥ ९ गौतम गुरुने पूछता, गूगो बोबडो होय । भोग लागिया शा थकी, जीव घणेरा जोय ॥ २३ ॥ संजमधारी चीडवे, बोले अवरणवाद । को गति एहनी शी हवी, अंते एवा स्वाद ॥ २४ ॥ १० गौतम पूछे प्रश्न आ, बधिर सूजलो थाय । शा पापे परगट थशे, एवा दुख दिल मांय ॥ २५ ॥ वेदकपणुं बोरे वली, करम करेज अपार । जीव हिंसा थाये घणी, अंते एमज धार ॥२६॥ ११ गौतम पूछे भावथी, हे मुझ प्राणाधार !। बधिर पांगलो नीपजे, कया करमनो सार ॥२७॥ वनस्पति कापी घणी, हाथे छेदे छेक । पूर्व भवे परिणाम ए, रहे न कोनी टेक ॥ २८ ॥ १२ गौतम पूछे हे प्रभो!, गांडो गूगो होय । कया करम कीधां हशे, संकट मलियुं सोय ॥ २९॥ तीर्थ चतुरनो मूर्खथी, बोले अवरणवाद । ए परतापे भोगवे, अंगे एवी व्याध ॥३०॥ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. १५५ १३ गौतम पूछे प्रेमथी, गलत कोढीयो कोय । शाथी ए संकट आहे, सुक्ख न स्वग्ने जोय ॥ ३१ ॥ सोनाने रूपातणी, भट्टी भरावे जेह ।। ए परतापे ऊपजे, गलत कोढियो एह ॥ ३२ ॥ १४ को स्वामी ! सुकृती घणो, पण जश नांशे जोय । करवा जावे पाधलं, पण अपकीर्ति होय ॥३३॥ सचित्त घणा ओसडतणो, साधे बहु संजोग । एथी अपजश ऊपजे, जेवा करमना जोग ॥ ३४ ॥ १५ हे महाप्रभो ! जन मंजरो, शाथी कोई थाय । कया करम कीधां हशे, समझ्यां शाता थाय ॥३५॥ पापतणो उपदेश दे, मद मनमां नवि माय । माटेज थयो मंजरो, कर्मनाज फल थाय ॥ ३६ ।। १६ बहुजन बीकण तो हुवा, शा करमे ते थाय । अरिहंत! उत्तर आपजो, शंका मननी जाय ॥ ३७ ॥ पापतणो तो पार ना, काया मद ना माय । बीकण एहथी तो बने, ठाले हाथे जाय ॥ ३८ ॥ १७ सालं नहीं शरीर तो, स्वामी! शाथी थाय । कुरूप हुओ काया विषे, मर्म कहो मुनिराय ॥३९॥ रुको आव्यो हाथमां, करे आकरा दंड । दया न होवे दिलविषे, जीव करे आक्रंद ॥४०॥ १८ गौतम पूछे गुरुप्रति, रोग भगंदर थाय । कया पाप कीधां हशे, सुख न कदी सुहाय ॥४१॥ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ श्रीमहाधीर-गौतम-प्रवचन. [ शुभाऽशुभकर्म जीव पंचेन्द्री तो हण्या, हाथे करी हलाल । रोग भगंदर पामियो, होवे एज हवाल ॥ ४२ ॥ १९ गणधर पूछे हे गुरो, दमडी द्रव्य न होय । इच्छा अधिकी थाय पण, जाय तमाशो जोय ॥४३॥ शा पापे संकोच छे, समझावो ए सार । अति हूं मानिश आपनो, आज खरो उपकार ॥४४॥ धर्मतणी अंतराय तो, पाडी परभव मांय । इच्छीयुं न मले एहथी, थाय दुःख मन माय ॥४५॥ २० को स्वामी ! वली नीपजे, कंठमालनो रोग । जीव साथे लागी रह्यो, कया करमनो जोग ॥४६॥ मच्छ मार्या बींध्या घणा, कर्म घणोज कठोर । ए परतापे रोग ए, हिंसा करतो ठोर ॥४७॥ २१ को स्वामी ! आ दर्द छ, हरसतणुं अंग मांय । कया करम कीधां हशे, जंपे जरा न ज्यांय ॥४८॥ धूणी बहू धखावी ने, जीव संतापे जेह । ' हर्ष नहीं आ हरसमां, अन्ते आपदा एह ॥४९॥ २२ गौतम पूछे हे प्रभो, प्रगटे पित्तज रोग। शा परतापे संचरे, एवो अंगनो योग ॥५०॥ सेवे मैथुन साम?, अति आणी उल्लास । पाप तणुं ना माप छे, पित्त प्रगटे छे खास ॥५१॥ २३ बोले मीटुं पण बहु, लागे कडवो केण ।। शाथी स्वामिन् ! ए कहो, विरमा लागे वेणं ॥५२॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर - गौतम - प्रवचन. आहार पंचेन्द्री तणा, छोडावे जन कोय । एनुं बोल्युं ना गमे, अन्य जनोने जोय ॥ ५३ ॥ २४ कहो स्वामिन्! शरीरमां, बल न अतिशय होय । कया करम कीधां हशे, संकट एवं जोय ॥ ५४ ॥ वनस्पती कापी घणी, बनारी शोभा वेश । जीव कर्या ज करे घणा, एथी दु:ख अशेष || ५५ ॥ २५ गौतम पूछे हे गुरो !, रोग रहित आ देह | रहे नहीं को दी वली, शा करमे संदेह ॥ ५६ ॥ असत्य झाझुं आचरे, लिये लोकनी लांच | १५७ एथी कदी न भांगशे, अंग मांहींथी आंच ॥ ५७ ॥ २६ को स्वामी ! संजोगिनो, वलि क्यम थाय वियोग । मलेलं गुमावे मानवी, शा करमे ए भोग ॥५८॥ घणा कर्या माया कपट, धूर्तपणुं धर्यु अंग । मित्र कपट बहु आचर्यो, एथी थाये अभंग ॥ ५९ ॥ २७ गौतम पूछे प्रभुप्रति, एक प्रश्न आ वार । कुरूप शा करमे थशे, जीव घणां ज्यार ॥ ६० ॥ कुसुम फलादिक त्रोडियां, प्रतिदिन राखी प्रीत | रूपे झाझुं राचियो, मले कुरूपनी रीत ॥ ६१ ॥ २८ डरतो थरथरतो घणो, अल्प हुओ अपराध । कया करमथी को वली, मटे न मननो व्याध ॥ ६२ ॥ पूर्व भवे कर्यां वली, कोटवालना काम । araण ए परतापथी, कर्या कर्म परिणाम ॥ ६३ ॥ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. [ शुभाऽशुभकर्म२९ को स्वामिन् ! जन केटला, पामे झाझा रोग । कया करमथी एहने, एवो मलशे योग ॥६४॥ कूआ तलाव गलाविया, वलि झाझी तो वाव । कूडज कीधां कोडथी, अन्य भवे उमराव ॥ ६५ ॥ पाप तणो तो पुंज छे, ए कामोमां यार । रोगज न मटे एहथी, आ भवनी मोझार ॥६६ ॥ ३० को स्वामिन् ! जन कोई तो, बोले मीठं वेण । गमे न बीजा ने जरा, कडवू लागे केण ॥ ६७ ॥ अन्य भवे ईर्षा करी, जीव पंचेन्द्री जाण । एथी आ भव अन्यने, प्रिय न पड़े परमाण ॥ ६८ ॥ ३१ काया मांहि कपूटणी, खाजखूजना रोग । चाले शाथी नाथवी, यथा कहो ने जोग ॥ ६९ ॥ पूर्व भवे प्राणी जनो, त्रीन्द्रिजीवने लेइ । जलमां नांखी मारिया, मोटा संकट सेइ ॥ ७० ॥ कोई कलेडामां वलि, नाखी शेके जाण । । एथी तो नव पामसे, अरोग देह सुजाण ॥ ७१ ॥ ३२ गौतम पूछे हे गुरो !, कोई अनाडी लोक । भणे मिथ्यात्विसूत्रने, प्ररूपणाना थोक ॥७२॥ कया करम कीयां थकी, एवी बुद्धी थाय । समझायो स्वामि! मने, जेथी चित हुलसाय ॥७३॥ अन्य भवे बहु आलतो, खोटां दीधां होय । क्रोध कीधो छ कारमो, जेथी ए फल जोय ॥ ७४ ॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. १५९ ३३ भणी सूत्र भंडं वदे, शिक्षकनुं जन केम । कया करम कीधां थकी, ए मति पामे एम ॥ ७५ ॥ पूर्वभवे प्राणी जनो, तेल अने घृत ठाम । मूकी खुल्ला जीवडा, मार्याना परिणाम ॥७६ ॥ ३४ को स्वामिन् ! स्त्रीजातमां, कोई नपुंसक थाय । स्त्री सुख पामे नहीं पछी, कया करम उभराय ॥७७॥ कीयां माया-कपटने, द्रव्य हयुं बहु दीन । पूर्व भवे परितापथी, नपुंसक थाय अदीन ॥ ७८ ॥ ३५ को स्वामी ! कोई कोढियो, जन शा करमे थाय । मुज मन चोखुं तो करो, सारी ए शंकाय ॥ ७९ ॥ पृथ्वीकाय तणो वली, कों छेद ने भेद । एज प्रतापे पामीयो, रोग तणो ए खेद ॥८॥ ३६ गौतम पूछे हे प्रभो !, एवा झाझा अंग । जूं लीख झाझा जीवडा, शाथी पडता रंग ॥८१॥ पूर्व भवे मध अहार तो, जे कीधां जन कोय ।। तेना ए परिणाम छे, जूं लीख जीवडा जोय ॥८२॥ ३७ को स्वामी ! ए शा थकी, तप जप करे सदाय । . पण बीजाने नवि गमे, शा कर्मे ए थाय ॥ ८३॥ पूर्व भवे कपटी थई, करी विश्वासु घात । ए परतापे अन्यने, लागे न प्रिय संघात ॥८४ ॥ ३८ को स्वामी ! तप जप नहीं, उदये आवे आज । कया करम कीयां हो, कहो भने महाराज ॥ ८५॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमहावीर - गौतम-प्रवचन. [ शुभाशुभकर्म मद तपनो करी मानवी, कपटो कीधां होय । आवे नहीं लो ए थकी, तप जप उदये सोय ॥ ८६ ॥ ३९ बोल्युं न गमे अन्यने, ए शा करमे आज । कया करम स्वामी ! हो, मने कहो महाराज || ८७|| वाक्य कलानो तो कर्यो, अतिशय जे अहंकार । ए परतापे अन्यने, रुचे नहीं शुभकार ॥ ८८ ॥ ४० को स्वामी ! जीव शा थकी, पामे अशुभो वर्ण । कया करम कीधां थकी, सेवे एवो शर्ण ॥ ८९ ॥ रूपतणो मद मानवी, करीयुं वारंवार । शुभरूप तेथी नव मल्युं, कर्मतणोज प्रकार ॥ ९० ॥ ४१ आल अचानक आवतुं, खोडुं जन पर जाण । को स्वामी ! ए शा थकी, केम होय परमाण ॥ ९१ ॥ पूर्व भवे तो सेवियुं तेरमुं पापज स्थान । एज प्रतापे आवतुं, खोडं आल जन मान ॥ ९२ ॥ ४२ विण कीधे अपजश वधे, अति अपकीर्ति थाय । पूर्व भवे शा करम तो, कर्या होशे ज्यांय ॥ ९३ ॥ स्त्री भव जीव तो पामीने, अति करी ईर्षा आम । सासु नणंद जेठाणी सह, करी ईर्षा ने ठाम ॥ ९४ ॥ भ्रात वली भोजाई ने, देराणीनी साथ । लडती वारंवार तो, आवे बाथम - बाथ ४३ गौतम पूछे हे गुरो !, एक एक जन कोय । बेसे उठे नव गमे, बीजाने ते सोय ।। ९५ ।। ॥ ९६ ॥ १६० Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर - गौतम-प्रवचन. १६१ सुबे उठे पण नव गमे, जाणे क्यारे जाय । को स्वामी ! अलखामणो, छेकज शाथी थाय ॥९७॥ पूर्व भवे जिन बोलनी, करि उथापना भाई । अन्यवचन धिक्कारतो, अति करे अंतराई ॥ ९८ ॥ सुवास पोतानी वली, वधारवा बहु धाय । ईर्षा करतो राचतो, अंत दशा ए थाय ४४ को स्वामी ! क्रोधी जनो, घणा घणा तो थाय । क्रोध शमावे नहीं कदी, शा कर्मे थई जाय ॥ १००॥ पूर्व भवे जो लोभियो, थई न खरचे दाम । ॥ ९९ ॥ ए कृत्यना परिणामथी, थयो कोधियो ठाम ॥ १०१ ॥ ४५ को स्वामी ! ए शा थकी, अलाभ झाझो थाय । मूल मूडी कां जाय छे, ए.शी छे अंतराय ॥ १०२ ॥ भवे प्राणी जनो, पडाबी छे अंतराय । लाभ मले जो कोईने, मलवा दीध न भाय ॥ १०३ ॥ ४६ शब्द कठोर शा - कारणे, पामे जन तो कोम । मीठो न लागे मानवी, शा संजोगे होय ॥ १०४ ॥ आपी फांसी जीवने, मुख मूंगो दई घात । ए परतापे कंठ शुभ, मले नहीं साक्षात ॥ १०५ ॥ ४७ अवाज पामे खोखरी, केई जनोज खराब । कया करम कीधां हंशे, द्यो स्वामी ! जबाब ॥ १०६ ॥ सुकंठतणो मद बहु कर्यो, पूर्वभवे परमाण । हसा हसी पण बहु करी, मले सुस्वर ना जाण । १०७ ११ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. [शुभाऽशुभकर्म४८ को स्वामी ! जन कोई तो, पामे सुस्वर भेद । शुं शुभ कर्मो तो कर्या, शुं नहीं करियो खेद ॥१०८॥ परजीव प्रति मीठं वदे, करे रक्षा दई दील । पापपंथ छोडी दिये, शुभ थातां शी ढील ॥१०९॥ ४९ शाथी बलहीण थाय छे, जीव पंचेन्द्री जाण । रती नहीं शक्ति मिले, समझावो सुखवाण ॥११०॥ आहार कर्या मच्छना वलि, आणी तीव्रज भाव । पूर्व भवे परिणाम ए, बलहीणनो उठाव ॥ १११ ॥ ५० पुरुष जातमांथी वली, पामे स्त्रीनी जात । शा पाप कीधां हशे, तुरत कहो ते वात ॥ ११२ ॥ पापतणुं स्थानक वली, सत्तरमुं जे सोय । मायामोसो सेवियो, एथी स्त्रीजन होय ॥११३ ॥ ५१ मनवंछित फल ना मले, आशा न पडे पार । कया करम कीधां हशे, को स्वामी ! आ वार ॥११४॥ पूर्वभवे प्राणी जनो, जीव पंचेन्द्री जाण । पडाविया विजोग कई, एथी फल परमाण ॥११५॥ ५२ अति निद्रा तो आवती, कईक जीवोने आज । पूर्वभवे शा कर्म तो, कीधां छे महाराज! ॥११६॥ दारू पीधा दश गणा, कर्याज मदिरा पान । भाव तीव्र आण्या घणां, बहु निद्रा परमाण ।११७/ ५३ बलहीन जन तो थाय छ, कया करमथी आज । अतिको अपराध श्यो, समझावो महाराज ॥११८॥ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. १६३ आपजातनो तो कयों, अतिशय बल अभिमान । एज प्रतापे पामियो, बलहीण काया जान ॥११९॥ ५४ को स्वामी! श्या कर्मथी, बाल गूंगो जन थाय। बोली को समझे नहीं, शुं कारण समझाय ॥१२०॥ खार सिंच्या छे बहु करी, नाख्या भाखसी मांय । एज प्रतापे थाय छ, कर्म मूके नहीं क्यांय ॥१२॥ ५५ को स्वामी! को जीवने, बहु व्याधि तो थाय । कया कर्म कीधां हशे, केजो प्रिय प्रभुराय ॥१२२॥ अनंत कायना अहार तो, कीधां पूर्वे जाण । एथी व्याधि ऊपजे, वारंवार प्रमाण ॥१२३॥ ५६ हास्य बहु आवे वली, रीत वगर आ वार ।। कया करम कीधां थकी, ए फल प्रभु प्रियकार ॥१२४॥ हण्या असनिय जीवने, वली हणाव्या ज्यार । . एथी हांसी बहु हवी, कर्मज फल दातार ॥१२५॥ ५७ तप जनथी तो ना बने, कीधां केवा कर्म । - अति अंतराय पाडी छे, तपमां तेनो मर्म ॥१२६।। ५८ साधु साधवी ने नहीं, गमेज कोई जन्न । ए फल केवा कर्मथी, संभलायो शुभमन्न ॥१२७॥ मनुष्य पंचेन्द्री जीवनी, विराधना जब होय । - एथी प्रिय लागे नहीं, एवो करमी कोय ॥१२८॥ ५९ संसारी जीवने नहीं, गमेज कोई जन्न । ए फल केवा कर्मथी, संभलावो शुभतन्न ॥१२९॥ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ महावीर-गौतम-प्रवचन. [शुभाऽशुभकर्मविकलेन्द्रि जीव तो वध्या, पूर्व भवे जन मान । ए परतापे पुरुषने, व्हालो नहीं सुजाण ॥१३०॥ ६० तरुण पणे तरुणी तणो, केम थाय वियोग । बांढो बहु वगोवाय छे,शा करमे ए भोग ॥१३॥ स्पर्शेन्द्रियना वश थकी, कंदर्प सेव्यां सार । तेथी तरुणी जाय छे, करमज फल दातार ॥१३२॥ ६१ को स्वामी ! जन कोई तो, लूलो पांगलो थाय। शा करमे ए गतिमले, पाय बिना दुख दाय ॥१३३॥ वनस्पति बहु वाढी छे, मोली तोडी जाण । चांपी बहु चूंपे करी, एथी ए परमाण ॥१३४॥ ६२ स्त्रीने पुरुष बिजोग छ, तरुणपणामां केम । ए दुख शाथी ऊपजे, अंतरथी को एम ॥१३५॥ स्त्री पुरुष संजोगमां, ओसड भेसड यार । मेल्या बहु ममता करी, कर्म तणो ना पार ॥१३६॥ ६३ गौतम पूछे गुणनिधे ! पुरुष प्रसेवा गंध । अतिगमतो ना अवरने, कया करमनो बंध ॥१३७॥ पीधां पायां बहु करी, मनुष्य मदिरा पान । एथी छे अलखामणो, कुगंधि देह मिलान ॥१३८॥ ६४ बोले सांचुं बहु करी, करे प्रतीत न कोय। झूठो जन लागे सदा, शा करमे ए होय ॥१३९॥ पूर्व भवे पूरी वली, असत्य साक्षी अपार । एथी सांचो नव गणे, सारो नहीं तल भार ॥१४०॥ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलोनो दृश्य ] महावीर-गौतम-प्रवचन. ६५ दालीदरपणुं पामियो, जीव शाथी जिनराय । आलस दिल अपार छे, शा करमे फलदाय ॥१४१॥ दान पुण्य सुपात्रने, नहिं दीधां नादान । दया न पाली दीलमां, करणीना फल जान ॥१४२॥ ६६ मात तात ने भ्रातनो, वली थाय विजोग । स्त्री भगनी ने पुत्रनो, शाथी नहिं संजोग ॥१४३॥ कुगुरु ने कुदेवता, मानी हिंसा होय । सरधे नहीं जो सत्यने, ए फल आखर सोय ॥१४४॥ ६७ को स्वामी! पामी धरम, वामे कोई सुजाण । कारण एनुं तो कहो, प्रिय करूं हुं परमाण ॥१४५॥ सित्तेर कोडाकोडी वली, सागर थिति छे जाग । दुकृत मोहिनी कर्मनी, खपवे चोथो भाग ॥१४६॥ करम मोहिनी जोडीयु, पूर्वभवेज अथाग । त्रण हिस्सा बाकी रहे, धर्म वामवा लाग?॥१४॥ ६८ बोले समकित साथ तो, आराधक सह बंध । बांध्यां पछी शंका पड़े, एवो शाथी अंध ॥१४८॥ कुवा निवाण खणाविया, जीव कर्या दुःखी अपार । एज प्रतापे पामियो, विराधक पणुं ए सार ॥१४९।। ६९ को स्वामी ! आ प्रश्न छे, खाय पीए जन कोय। जन बीजो दुस्ख आपतो, एशा करमे होय ॥१५०॥ दुखिया जन को जगतमां, नांखे छे निश्वास । कया करम कीयां हशे, दुरिक्यो बारे मास ॥१५१॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ महावीर-गौतम-प्रवचन. [ शुभाऽशुभकर्म तीव्र भावथी सेवियां, मैथुन झाझा मान । सेवरावियां अन्यने, मानी शुभ नहीं वान ॥१५२॥ विष फांसी दीधां वली, जीवने वारंवार । एथी प्राणी नवलहे, सुख पण स्वमे सार ॥१५३॥ ७० चौदे थानक मनुष्यना, जीव संमूर्छिम थाय । कया करम कीधां हशे, जंपे नहींज जराय ॥१५४॥ भरी तेल कोठी वली, भर्या कुडला मांय । जीव संमृर्छिम ए थकी, काया विषेज थाय ॥१५५॥ ७१ रोग वली तो पित्तनो, मनुष्य ने जे थाय । को स्वामी! शा करमथी, ए दुखडुं ना जाय ॥१५६॥ पूर्व भवे प्राणी जने, कीधां सलाट कर्म । पित्त प्रगटीयु ए थकी, धर्या न जेणे धर्म ॥१५७।। ७२ मरजादा ऊपर वली, लागे जनने भूख । कया करम संजोगथी, ए सारूं नहीं सुक्ख ॥१५८॥ पूर्व भवे प्राणी जनो, खेडे खेतर यार । करणीना फल एह तो, पामे छे निरधार ॥१५९॥ ७३ को स्वामी! को मनुष्यनी, आंगली छेदन थाय । हस्त अने वलि पायनी,शा करमेथी जाय॥१६०॥ वृक्ष रूख छेदिया घणा, अति कुमला मूल | ए परतापे आखरे, अंगे लागी मूल ॥१६१॥ ७४ मल्युं मनुष्य अवतार पण, वदे तोतला वेण । ' धूणे मस्तकथी वली, शा करमे ए केण ॥१६२॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७ फलोनो दृश्य ] महावीर-गौतम-प्रवचन. पूर्वभवे प्राणी करे, रंग रेडना कर्म । सांध्या बहु संजोगथी, ए फलना छ मर्म ॥१६३॥ ७५ मले रोग मरकी तणो, मरगी जालो मान ।। शाथी को स्वामी ! थशे, धरूं हूँ एकज कान ॥१६४।। धमण धमी लुहारनी, तीव्र रसथी जाण । .. पूर्व भवे प्राणी जनो, लहे फल आखर मान ॥१६५॥ ७६ लींट लालने धुंकतो, केइक मनुष्यने थाय । वृद्धि शा करमे थई, शाथी ए निंदाय ॥१६६॥ पूर्वभवे प्राणी करे, कचरो छाणज लाद । बहु दिन भेलु राखियुं, थाप्या छाणां खाद ॥१६७॥ ७७ जल मांही जन तो मरे, बूडी जाये केम । कया करम कीधां थकी. ए गति मलशे एम॥१६८॥ पेसाबमां पेशाब तो, करियुं वारंवार । एथी जन बूडी मरे, पर भवनी मोझार ॥१६९॥ ७८ मरे जीव बालक दशा, जरी न पामे सुक्ख । कया करम कीधां हशे. कोने दीना दुःख ॥१७०॥ आकर खान खणे घणा, पूर्व भवे को जन्न । एथी जनमे ने मरे, मात्र नाम छे तन्न ॥१७१॥ ७९ वहे नाक मोढुं घj, खेल घणोज खराब । कया करम कीधां हशे, जिनवर द्योज जबाब ॥१७२॥ कूवा वावडीना वली, जल उलेच्यां जान । . लाल लींट ने खेल छे, एथी आ भव मान ॥१७३॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ श्रीमहावीर - गौतम-प्रवचन [ शुभाशुभकर्म ८० बालपणे कम्मर कले, शीश सूलना रोम । कया कस्म कीधां थकी, एवो थाशे योग ॥ १७४॥ पूर्व भवे प्राणी करे, एकेन्द्री ना घात । भुंजाव्या शेकाविया, इणना फल ए थात ॥ १७५॥ ८१ मनुष्य मरी भूमि विषे, उपजे थोडे काल । सूक्ष्म आयु दुःख बहु, शा करमे जंजाल ॥ १७६ ॥ पूर्व भवे प्राणी करे, बोले झूठा बोल । सांचु खोढुं बहु करे, तेवो तेनो तोल ॥१७७।। ८२ अपकायनो आउखु, बांधे दुख बहु थाय । कहोज केवा कर्मथी, जीव सुखे नहीं जाय ॥ १७८ ॥ हिंसा करी झुंटुं बढ़े, हांसी करी दे आल | ते परतापे जीवडो, तेवी ले संभाल ॥ १७९॥ ८३ खोजो जन शाथी करे, अवतरतो अवतार । कया करम कीधां थकी, पामे जात संसार ॥ १८० ॥ पूर्व भवे प्राणी करे, वनस्पतीनी वेल | कढवी झाझी कोडथी, खोजानो ए खेल || १८१ ॥ ८४ जन्म लिये गणिका तणो, कया कीधेलां कर्म । असतीपणुं जे थाय छे, अतिशय होय अधर्म ॥ १८२ ॥ कपासिया लोडाविया, पील्या शेरडी वाड । पापतणुं परिणाम ए, अति कर्या छे आङ ॥ १८३॥ ८५ बालपणे बोस्रो थशे, धरेज धोला केश । कया करम कीधां थकी, वीरज एवो वेश ॥ १८४॥ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फोमो दृश्य ] श्रीमहावीर - गौतम-प्रवचन. वनस्पति कुणी वली, हाथे चूंटी होय । ए परतापे दांत विण, काया कष्टे कोय ॥ १८५ ॥ ८६ भरनिंगल भारे ग्रहे, गडगुंमड जन कोय । १६९ कया करम कीधां हशे, ए स्थिति जन सोय । १८६ | पूर्वभवे प्राणी करे, आखुं फल लई हाथ । चीरी मीटुं बहु भरे, छेवट फल ए साथ || १८७ ॥ ८७ को स्वामी ! आ कालमां, दासीपणुं धरनार । कया करम कीधां थकी, गोलापन करनार | १८८ । मांखण बहु दिननो लइ, तावे आणी तोर । पामे दासीपण पछी, वलोवाय बहु जोर ।। १८९ ॥ ८८ रोग नाकसूर नीपजे, स्वामी ! शाथी आज । शा करमे ए सुख नहीं, अमने को महाराज ॥ १९०॥ पूर्वभवे प्राणी जनो, करे कसाई व्यापार । ए परतापे ऊपजे, नाकवर दुखदार ॥ १९१ ॥ ८९ कीडीनुं नगरो वली, व्याधि शाथी थाय । समझावो स्वामी ! मने, सुख रहित ना काय ॥ १९२॥ हस्ति घोडा गायने, भेंस तणो आ वार । पेसाब भेलो तो कर्यो, नाखे मीटुं खार ॥ १९३ ॥ अल्प कई अपराधने, सींचे एवा खार | दयाहीण ले दंड तो, ए फल अंसे सार ॥ १९४॥ ९० रोग बली उषासिनो, स्त्रीने शाथी थाय । एथी पीडा बहु बधे, कया करम फल दाय ॥ १९५ ॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमहावीर - गौतम-प्रवचन [ शुभाशुभकर्म बाग-बगीचा बहु कर्या, पूर्व भवे परमाण । फल बीज रूख ज छालने, त्रोडी फल ए मान । १९६ ॥ वृक्ष घणा उपाडीने, वावे फरिने जोय | रोग मोटको ए थकी, काया पामे कोय ॥ १९७ ॥ ९१ तप करतो जन बहु वली, बहु.न वखाणे जान । कया करम कीधां थकी, शोभे नहिं जस वान ॥ १९८ ॥ फल आदिकना आथणां, झबोलियां जल मांय । ताजे ताजां तो कर्या, स्वाद लागियुं ज्यांय ॥ १९९॥ नील फूल स जीवने, विराधिया नित वार | ते परतापे तप करे, लेखे न लागे यार ॥ २०० ॥ ९२ जन को खवरावे घणुं, पण अवगुण ले अन्य । कया करम कीधां थकी, केवाये नहिं धन्य ॥२०१॥ पूर्वभवे प्राणी करे, रांध्या रांधण भाई । १७० ए परतापे अन्यने, अवगुण आवे दाई || २०२ ॥ ९३ जीव गर्भमां ऊपजे, जन्मे ज्यारे यार । आडो आवे कापतां, कया कर्म ए धार ॥ २०३ ॥ कसाईना धंदातणुं, हांसल दान हजार । ले छे लोको कैक जन, ए फलनो दातार ॥ २०४ ॥ ९४ चाडी खाये कैक जन, लई वस्तु वचमांय । एशा करमे चाडीयो, एवो न मले क्यांय ॥ २०५ ॥ नील फूल काची लई, दीघां दुःख अपार । अखाडा आकर विषे, दाट्यां ए फल सार ॥ २०६ ॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. ९५ को स्वामी! शा कर्मथी, प्रगटे सोले रोग। पूर्वभवे शुं ए कर्यु, एवो आवे योग ॥२०७॥ सेलडी कटका करी वली, पील्या घांणी मांय । गाम नगर ऊजड कर्यां, लोको मार्यां ज्यांय ।२०८। जन वाल्या के जोरथी, जुलम जुलमर्नु जोर । एथी जनने आ भवे, सोल रोगनो सोर ॥ २०९ ॥ ९६ उपजे गर्भ माहीं वलि, गली जाय पण त्यांय । शा पापे ए संचरे, जीव जन्मे नहीं ज्यांय ॥२१०॥ आल दीधां अणगारने, दीधो अशुभाऽऽहार । एथी गलq तो पडे, गर्भ मांहिथी यार ॥२११॥ ९७ वरस बारनुं छोडतो, स्त्रीने शाथी थाय । खोटा वंशनी छे खरे, शा करमे सुहाय ॥२१२॥ पूर्वभवे प्राणी जनो, पेसाब भेलो कीध । राखी झाझो कालने, पछीज ढोली दीध ॥ २१३ ॥ ९८ छोड बरस चोबीशनु, स्त्रीने शाथी थाय । . मर्भ चवीने छोड रहे, उपजे जीव तो त्यांय ॥२१४॥ सेव्या मैथुन सांमटा, आणी तीव्रज भाव । कर्यां करम बहु तो वली, अंते न मले लाव ॥२१५॥ ९९ दिलमां दाझगरो लहे, बलुं बलं तो थाय । कीधां शाजन कर्म तो, जरा न जंपे ज्यांय ॥२१६॥ पूर्वभवे प्राणी जनो, पाक फूलना कीध । मर्दन कीधा तो वली, अंते ए फल लीध ॥२१७॥ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ श्रीमहावीर-गौतम प्रवचन. [शुभाशुभकर्म १०० कैक जीवो तो जममिया, कमाई माठी कीध । दिये दंड घर घर भमे, दुःख झाझे लीध ॥२१८॥ गले हांडली बांधतो, शा करमे छे बंध। स्वमे सुख ना पामतो, एवो शाथी अंध ॥२१९॥ कराविया सिसरा वली, संचित एवां थाय । एथी दुःख बहु पामतो, मले न सुखनी साय ।२२० १०१ को स्वामी! स्त्री जात तो, वंध्या शाथी थाय । मेणुं दे छे मानवी, कया कर्म फल दाय ॥२२१॥ फल केरी अंतराई करी, प्राणी जन परमाण । एज प्रतापे आ भवे, वंध्या मनथी मान ॥२२२॥ १०२ मृतक वांझणी स्त्री थशे, ए शा करमे एम । पुत्रतणुं सुख ना लहे, कहो थाय एकेम ॥२२३॥ ऊगता अंकूर चूंटिया, वनस्पतिना जाण । एथी जीव जन्म्यो नहीं, नांखी पापनी खाण ।२२४॥ १०३ को स्वामी! शा कर्मथी, पुरुष वांझीयो होय । कया पाप लाग्या हशे, कष्ट सहे छे कोय ॥२२५।। घणां बीजना मींजतो, शेकी तलीज सार । ए परतापे आ भवे, एवो छ अवतार ॥ २२६ ।। १०४ पुरुष एकने स्त्री घणी, सर्वे वंध्या होय । कया करम कीधा हशे, संकट एवं सोय ॥२२७॥ पूर्वभवे कीधा धणा, हलाल खोरी कर्म । सारं थाये शा थकी, विना एक तो धर्म ॥२२८॥ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. १०५ चोरी करतो जन वली, पाडे गांठडी सार । कया कर्म कीयां थकी, ए मलशे अवतार ॥२२९॥ वनस्पती वीणी घणी, काढ्या रस बहु यार । ए परतापे तेहवो, चोर नाम आ ठार ॥ २३० ॥ १०६ को स्वामी! शा कर्मवी, जन फांसीए जाय । कया पाप कीधां हशे, एले आयुष थाय ॥२३॥ पूर्वभवे कीधी घणी, बहु बोकडा घात । . ए कर्मे सुख तो नहीं, विणसे फांसी जात ॥२३२॥ १०७ जन्म मरण जीव बेहुमां, देखे एवो दाव । कया कर्म कीधां हो, पूरो न मले लाव ॥२३३॥ वनस्पतिना पानडा, फल बीज छेद्यां छेक । हाथे करी खेंची लिये, न मले काइ विवेक ॥२३४॥ चूंटे बहु ते चोपथी, दया अरा नहीं दील । ' ए परतापे आ भवे, सुखनी राखे ढील ॥ २३५ ॥ १०८ मात पिता दुख पामता, संतति काजे आज । कया कर्म कीयां हो, मुझने कहोमहाराज ॥२३६॥ वनस्पतिनी वेलियो, छेदे भेदे छेक । राची प्रशंसा बहु करे, एवा दुःखनी टेक ॥२३७॥ १०९ श्रावकजन साधूतणो, लहे नहीं कांई लाभ । कया करम कीधां हशे, एवो दुखनो आम ॥२३८॥ पूर्वभवे प्राणी जनो, बोले मर्मी बोल । गुह्य वात खुल्ली करे, तेथी तेवो तोल ॥२३९ ।। Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ श्रीमहावीर-गौतम प्रवचन. [शुभाऽशुभकर्म११० बलवीरज झाझो हवो, पण झाझो परमाद । सामायिक पडिकमणा तणो, लही शके नव स्वाद२४० पोसो पण ना थई शके, एवा जनने केम । कया करम कीधां हशे, एथी गती छे एम ॥२४१॥ मनुष्य थई ममाईनो, अति कर्यो आहार । एथी अंतराई थई, धर्मतणी प्रियकार ॥२४२ ॥ १११ मनुष्य दिलने मेल बहु, केम झाझेरो थाय । कया कर्म कीधां थकी, चोखो नव कहेवाय ॥२४३॥ अनेक रस प्रियकार तो, पीधा प्राणी जन्न । ए परतापे आ भवे, मेलो प्राणी मन्न ॥२४४ ॥ ११२ नाकतणुं जल मूहमां, आवे केमज आज । कया कर्म कीधां हशे, मुझने को महाराज ॥२४५॥ खाधुं पीधुं तो वली, एक द्वारथी जाय । कया कर्म कीधां हशे, एवो शो अन्याय ॥२४६॥ धमण धमी सोनारनी, पूर्व भवे परमान । एथी एवो नीपजे, मनथी साचं मान ॥ २४७ ।। ११३ ऊंचे कुल जन्मी करी, भला भोगवे भोग । पछी माठी चाले चले, एवो शाथी योग ।।२४८।। पकडे नृपति एहने, मारे झाझो मार । ठार करे ते पुरुषने, कर्या कर्म बिचार ॥२४९ ॥ अनंतकायनां मूलियां, काढी चूरण कीध । ए परतापे आ भवे, दुख करमे तो दीध ।। २५० ।। Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर - गौतम - प्रवचन. १७५ ११४ अणकीधुं अणजाणियुं, उर पर आवे आल । कया कर्म कीधां हशे, खोटी बेठे गाल ॥ २५१ ॥ पूर्वभवे प्राणी जनो, गर्भ पडाव्या यार । छूपा ते संताडिया, एथी आल अपार ।। २५२ ॥ ११५ नर कोई नृपति सभा, जीते झाझे जोर । वालो लागे ते वली, कया कर्म छे मोर ॥ २५३ ॥ पूर्वभवे जीव तो वली, नारकी मांहि जाण । वली तिर्यंच मांही थई, आवुं कीधुं मान ॥ २५४ ॥ अकाम निरजरा अरु, कधी झाझी कोड । आ भवमां तो ए थकी, जशनी वाधी जोड ॥ २५५ ॥ ११६ को स्वामि ! किण कर्मथी, नरकज वेदना धाय ? | पूछे गोयम प्रेमथी, तब भाषे जिनराय || २५६॥ दश प्रकारनी वेदना, सहता नारकी जीव । माहों माहिं झुंझता, पाता दुःख सदीव || २५७|| पाप कर्म कीधां घणां, बहुज जीव संहार । पीडा न जाणी पर तणी, जीव बडोज गमार ॥ २५८ ॥ परनारी सेवी घणी, बांध्या पाप अपार । बहु परिग्रह मेलव्यो, निशी भोजन अंधार ॥ २५९ ॥ अलीकवचन मुख बोलिया, परनो चोर्यो माल । जीवहिंसा कधी घणी, नरक गयो तत्काल ॥ २६०॥ गरीब जीवने मारता, करता बहु अन्याय । जूं अरु लीख मारी घणी, पीले घाणी मांय ॥२६१ ॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७६ श्रीमहाबीर-गौतम-प्रवचन. [शुभाशुभकर्म गाडी रथमां बेशीने,बलद दोडाव्या बाट। ' अगने तपावी धूसरा, देई दोडावे घाट ॥२६२॥ रागतणा रसिया घणा, सुण सुण करता तान । धर्मकथा नहीं सांभली, तेहना काटे कान ॥२६३॥ पर नारीना रूपनो, विषय वखाण्यो जोय । देव गुरु निरख्या नहीं, काढे आंखो दोय॥२६४॥ झूठ वचन बोल्या बहु, कूड कपटनी खाण । परमाधामी तेहनी, जीभ काढे झट ताण ॥२६५॥ कुहाडे करी कापियां, नाना मोटा झाड । 'परमाधामी तेहना, मस्तक छेदे फाड ॥२६६॥ पूज्य कही पूजावता, करता अनरथ मूल । कामिनी गर्भ गलावता, तेहने प्रोवे शूल ॥२६॥ अमाचार अति सेवियां, कीयां बहुत अन्याय । वज्रतणा कांसकरी, पीलण लाग्या तांय ॥२६८॥ साधु जन संतापिया, निंदा किधी अपार । लाते थांभे गांधीने, दे मुद्गरनी भार॥२६९।। रस्ते लूट्या रांकने, करी कोप अन्याय । निर्दयता किधी घणी, पीले घाणी मांय ॥२७॥ झूठा सोगन खावता, करता चुगली चाड । जोरावर यमदूत ते, करत पछाड पछाड ॥२७॥ अनुचित कारज जे करे, तेहना एह हवाल । सांभली धर्म जे आदरे, पामे सुक्ख रसाल ॥२७२।। Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलोनी दृश्य ] श्रीमहावीर - गौतम प्रचवन. १७७ ॥२७५।। करी अंगार अनि तणा, चलम भरी चकडोल । गांजा तमाकुं जे पिये, भोगे कष्ट अडोल ॥ २७३॥ विष देई नर मारियां, कर कर क्रोध प्रचंड | परमाधामी तेहनो, शरीर करे शतखंड || २७४॥ डूंगर देव धाल्या घणा, बाल्या वनचर जेह | परमाधामी तेहनी, बाले अग्नि देह दृष्ट पिंड करी मोहियो, संग कियो परनार अग्नि तपावी पूतली, चांपे हृदय मझार ॥ २७६॥ जलं जलं महाराजजी, मत द्यो मोटो त्रास । छोडो फांसो कंठनो, जिम लेबुं थोडो सास ॥ २७७॥ राजदंड होवे घणा, जगमें होय फजेत । जेहने चंदों बारमो, परनारीसुं करे हेत ॥२७८॥ धन हाणी हाँसी घणी, सुखे न सोवे आय । जेहने चंदो बारमो, परनारी घर जाय दान दियंता वारता, करता राग ने द्वेष । परमाधामी तेहना, मुखमां मारे मेष ॥ २८० ॥ पंखी पाड्या पाशमां, तीतर मोर चकोर । जई नरकमां ऊपन्यो, सहेतो कष्ट अघोर ॥ २८९ ॥ कर्म अशुभ भारे करी, जीव अधोगति जाय । छेदन भेदन बहु सहे, कोइ सहाय न थाय ॥ २८२ ॥ सप्त व्यसन सेव्यां घणा कीधां मोटा पाप । ज़ाई नरकमां ऊपन्या, तेहने वींट्या सांप ॥ २८३॥ || ॥२७९॥ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. [शुभाऽशुभकर्म अहर्निश परनिंदा करे, धर्मवचन न सुहाय । परपरिवादना योगथी, मरी नरकमां जाय ॥२८४) अणदीठी अण सांभली, करे पराई बात । आप पिंड पापे भरे, मरी नरकमें जाय ॥२८५॥ ताकी मार्या तीरडां, बींध्या वनचर जीव । हिंसा करीने ऊपन्यो, नरके करतो रीव ॥२८६॥ पूरव पाप प्रभावथी, उपन्या नरक मझार । विविध प्रकारे वेदना, सहता कष्ट अपार ॥२८७॥ लडती पीयर सासरे, देती सबल सराप । कूडा कलंक चढावती, अवगुण वाली आप ॥२८८।। घात करे विसवास दे, छल करती छकमांह । मरी नरके जायने, भोगे दुक्ख अथाह ॥२८९॥ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- _