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उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १४५
देवकी ए जननी कही, वासुदेव क्रम मात । हवे अवगाहना कहुं, सुणजो मोरी बात ॥ ५१४ ॥ एंशी सित्तर साठ अरु, पचास पेंतालीस । गुणतीस छवीस सोल, दश ए धनुष गणीस ॥ ५१५ ॥ पोतनपुर ने द्वारिका, द्वारिका नगरि जान । द्वारिका अंबपुर चक्रपुर, काशि अयोध्या मान ॥५१६॥ मथुरा ए नगरियाँ कही, वासु बलदेव सुजान । बने तो भेगा रहे, प्रतिदिन प्रेमी वान ॥५१७ ॥ जिनशासनमां नव बलदेव
अचल विजय भद्र सुप्रभ, सुदर्शन आनंद । नंदन रामचंद्र बलभद्र, वलदेव नाम महंद ॥ ५१८॥ भद्रा सुभद्रा सुप्रभा, सुदर्शना विजया होय । विजयंति जयंती अरु, अपराजिता सुजोय ॥५१९ ॥ रोहिणी जननी बलदेवनी, भाषी ग्रन्थ मझार । अवगाहना पण एहनी, लो केशव सम धार ॥५२०॥ पिचासि पिचोतर पेंसठ, पचपन सतरे होय । लाख ए क्रमसुं जानिये, प्रथमसुं पंच लग जोय ॥५२१॥ पिचासि पचास पनर बार, सहस्र हायन जान । छट्ठा से नवमा लगण, बलदेव आयुर्मान ॥ ५२२ ॥