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श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. [ शुभाऽशुभकर्म२९ को स्वामिन् ! जन केटला, पामे झाझा रोग ।
कया करमथी एहने, एवो मलशे योग ॥६४॥ कूआ तलाव गलाविया, वलि झाझी तो वाव । कूडज कीधां कोडथी, अन्य भवे उमराव ॥ ६५ ॥ पाप तणो तो पुंज छे, ए कामोमां यार ।
रोगज न मटे एहथी, आ भवनी मोझार ॥६६ ॥ ३० को स्वामिन् ! जन कोई तो, बोले मीठं वेण ।
गमे न बीजा ने जरा, कडवू लागे केण ॥ ६७ ॥ अन्य भवे ईर्षा करी, जीव पंचेन्द्री जाण ।
एथी आ भव अन्यने, प्रिय न पड़े परमाण ॥ ६८ ॥ ३१ काया मांहि कपूटणी, खाजखूजना रोग ।
चाले शाथी नाथवी, यथा कहो ने जोग ॥ ६९ ॥ पूर्व भवे प्राणी जनो, त्रीन्द्रिजीवने लेइ । जलमां नांखी मारिया, मोटा संकट सेइ ॥ ७० ॥ कोई कलेडामां वलि, नाखी शेके जाण । ।
एथी तो नव पामसे, अरोग देह सुजाण ॥ ७१ ॥ ३२ गौतम पूछे हे गुरो !, कोई अनाडी लोक ।
भणे मिथ्यात्विसूत्रने, प्ररूपणाना थोक ॥७२॥ कया करम कीयां थकी, एवी बुद्धी थाय । समझायो स्वामि! मने, जेथी चित हुलसाय ॥७३॥ अन्य भवे बहु आलतो, खोटां दीधां होय । क्रोध कीधो छ कारमो, जेथी ए फल जोय ॥ ७४ ॥