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________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर - गौतम - प्रवचन. १७५ ११४ अणकीधुं अणजाणियुं, उर पर आवे आल । कया कर्म कीधां हशे, खोटी बेठे गाल ॥ २५१ ॥ पूर्वभवे प्राणी जनो, गर्भ पडाव्या यार । छूपा ते संताडिया, एथी आल अपार ।। २५२ ॥ ११५ नर कोई नृपति सभा, जीते झाझे जोर । वालो लागे ते वली, कया कर्म छे मोर ॥ २५३ ॥ पूर्वभवे जीव तो वली, नारकी मांहि जाण । वली तिर्यंच मांही थई, आवुं कीधुं मान ॥ २५४ ॥ अकाम निरजरा अरु, कधी झाझी कोड । आ भवमां तो ए थकी, जशनी वाधी जोड ॥ २५५ ॥ ११६ को स्वामि ! किण कर्मथी, नरकज वेदना धाय ? | पूछे गोयम प्रेमथी, तब भाषे जिनराय || २५६॥ दश प्रकारनी वेदना, सहता नारकी जीव । माहों माहिं झुंझता, पाता दुःख सदीव || २५७|| पाप कर्म कीधां घणां, बहुज जीव संहार । पीडा न जाणी पर तणी, जीव बडोज गमार ॥ २५८ ॥ परनारी सेवी घणी, बांध्या पाप अपार । बहु परिग्रह मेलव्यो, निशी भोजन अंधार ॥ २५९ ॥ अलीकवचन मुख बोलिया, परनो चोर्यो माल । जीवहिंसा कधी घणी, नरक गयो तत्काल ॥ २६०॥ गरीब जीवने मारता, करता बहु अन्याय । जूं अरु लीख मारी घणी, पीले घाणी मांय ॥२६१ ॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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