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८२ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [प्रथम दिन कहूं तेहनी गणना, चउ पण वीस छ भणना। अडबीस छ छ ने गुणवीस, सग छवीस छ छ पुनि बीस, इगवीस छ छवीस ॥ छ पण अड सत अड अड लहिये, अड षट् सप्त अरु क्रमसुं गहिये, सूरीशराजेन्द्र सद्दहिये ॥ ८२ ॥ द्वार वीसे अलंकर्यो, पूरण प्रथमोल्लास । भवसंख्याथी गर्भलग, जिनवर ठाण प्रकाश ॥८३ ॥ इति श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छावतंसाऽऽबालब्रह्मचारि-विशुद्धतमचारित्राऽऽरामविहारि-कलिकालसर्वज्ञकल्प-जङ्गमयुगप्रधान-शासनम्राट्-परमयोगिराज-जगत्पूज्य-गुरुदेव-प्रभुश्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर-विरचितायां पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पद्यां विंशतिस्थानवर्णनो नाम प्रथमोल्लासः ।
२१ जिनेश्वरोना जन्मनी मास तिथी__ ऋषभ चैत्रवदि आठम जाया, माघसुदि आठम अजित सुहाया, सुदि मृग चउदसि आया। माघसुदि बीज चोथ वैशाखे, सुदि आठम सुमइ कार्तिक भाखे, वदि बारस छठ आखे ॥ ८४ ॥ सुदि बारस जेठ सप्तम जाणो, चन्द्र पौषवदि बारस माणो, सुविधिनो कहुं ठाणो। मृगसिरवदि पंचमि वदि माघ, बारस शीतल श्रेयांस सुलाग, फागुणवदि बारस थाग ॥ ८५ ॥ फागुणवदि