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उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १८ जिनमाताओने आवेलां चौद स्वप्नगज वृषभ सिंह लक्ष्मी, पुष्पदाम शशि सूर । ध्वजा कुंभ ने पद्मसरः, समुद्र सजले पूर ॥ ७६ ॥ विमान-भवन रत्नराशि, अग्निपुंज जिन माय । मरुदेवी वृषभ आदि में, सिंहादि त्रिशला माय ॥७७॥ नरकागत जिननी प्रसू, सुपन भवननो देख । स्वर्गागत जिनवर तणी, माता विमानज पेख ॥७८ ॥ जिन जननी सुनिर्मल जुवे, सुपना चौदे सार । चक्री माता मलिनपने, मर्म ए चित धार ॥ ७९ ॥ केशव माता सात अरु, बलदेव चउ वखान । प्रतिवासुदेव प्रसू तिय, इक मांडलिक सुजान ॥ ८०॥ १९ स्वप्नपाठक अने स्वप्नविचार
अजितादिकनी सुपन विचार, तात सुपनपाठक कहे सार। ऋषभने नाभि इन्द्र वखाण,पिण सरिखो शुभ अर्थप्रमाण८१ २० जिनेश्वरोनो गर्भस्थितिकाल___ मास आठ गर्भस्थितिना कहिये, सुविधि अजित अभिनंदन लहिये, वासुपूज्य विमल सद्दहिये । धर्मनाथ हवे शेष जिणिंदा, महीना नव रहे गर्भ दिणिंदा, प्रणमुं अढारे मुणिंदा ॥ मास उवरि हवे चोवीस जिनना, वधता