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उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ११७ मघवा युद्धवीर्यनृप, सीमंधर त्रिपृष्ठ । द्विपृष्ठ स्वयंभू ने, पुरुषोत्तमविष्णु इष्ट ॥ ३२९ ॥ पुरुषसिंह कोणालक, नृपति कुबेर सुभूम । अजित विजयमह, चक्री हरिषेण अदूम ॥३३० ॥ मुरारी प्रसेनजित, श्रेणिक वीरनो भक्त । भरत सगर मघवा सुभूम, हरिषेण चक्रि फक्त ॥३३॥ ग्यारथी पंदर लगण, बावीसम अरु जान । वासुदेव पदवीधरा, जानो शेष राजान ॥३३२ ॥ १०९-११० जिनेश्वरोना प्रथम श्रावक-श्राविकाजिन चारना श्रावक, श्राविका छे परसिद्ध । ऋषभ नेम ने पारस, वीरने क्रमसे लिद्ध ॥ श्रेयांस नंद सुद्योत, शंख श्राद्ध कहुं सड्डी । सुभद्रा महासुव्रता, सुनंदा सलसा समिडी ॥ अप्रसिद्ध शेष जिनने, श्रावक श्राविका जानो । सूरिराजेन्द्र सरधा, श्रावक सांची मानो ॥३३३ ॥ १११-जिनाऽऽगमननी वधाई देनारने प्रीतिदानजिनराजनो आगम, आय कहे ततकाल । चक्री तब देवे, प्रीतिदान उजमाल ॥ साडिबारे कोटी, सोनइयानी वृत्ति । रजतनी वासुदेवा, सहस लख नृप शक्ति ॥ ३३४ ॥