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श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी.
श्रीचन्द्रप्रभस्वामीना सात भव-
श्रीवर्म्मराजा प्रथम, सोहम बीजे देव । अजितसेनचक्री थया, चोथे अच्युत सेव
[ प्रथम
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पद्मराज पंचम भवे, षष्ठ विजयंत जान । सातमे चन्द्रप्रभ थया, ओपे गुणि गण थान
श्रीशांतिनाथप्रभुना बार भव
श्रीषेण पहले भवे, बीजे युगल सुजाण । देव तीजे अमिततेज, तुरिय थया गुणखाण ॥ ६॥ प्राणत पंचम बलहरी, छट्ठे अच्युत सात । वज्रायुध भव आठमे, नवम गेविज जात
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॥७॥
मेघरथ दशमा भवे, कपोत रक्षक जेह | सर्वार्थसिद्ध विमानसुं, बारम शांति सुलेह ॥ ८ ॥
श्रीमुनिसुव्रतस्वामीना नव भव
शिवकेतु पहले भवे, बीजे सोहम थाय । कुबेरदत्त तीजे भवे, तुरिय स्वर्ग - तिय जाय ॥ ९ ॥
वज्रकुंडल भव पंचमे, छट्ठे ब्रह्म विचार । श्रीवर्मनृपति सातमे, अपराजित अड धार ॥ १० ॥ मुनिसुव्रत नवमे थया, तीर्थंकर जयकार । वीसम जिनपति वदतां नाशे पाप प्रचार ॥ ११ ॥