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सारांश ४ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ४९ नाडीथी बंधाय तेवू घाघराकार वस्त्र ) ७ कंचुक (छाती ढांकवानो वस्त्र) ८ उपकक्षिका (स्तनभाग अने जमणुं पडय़ ढांकवानो वस्त्र )९ वैकक्षिका (पाटाना आकारे उपकक्षिका अने कंचुकने ढांकवाने डावे पडखे पहेरवानो वस्त्र ) १० संघाटी (बे हाथ, त्रण हाथ अने चार हाथ पहोली तथा चार हाथ चोडी चादरो ते १ उपाश्रयमां, १ गोचरीमां अने १ स्थंडिल जती वखते, एम जुदा जुदा समये ओढवा वास्ते) ११ स्कंधकरणी (खंभे राखवानी कांबली) अने चोलपट्टा विना तेर उपकरण स्थविरकल्पीवाला तथा साडलो मली साध्वीने २५ उपकरणो होय छे.
१३४-१३५ चारित्र अने तत्त्वोनी संख्या
१ सामायिक, २ छेदोपस्थापन, ३ परिहारविशुद्धि, ४ सूक्ष्मसंपराय, अने ५ यथाख्यात; आ पांच चारित्र छे. ऋषभ अने वीरप्रभुना शासनमां ५, तथा शेष जिनेश्वरना शासनमां छेदोपस्थापन अने परिहारविशुद्धि विना ३ चारित्र होय छे. देव १, गुरु २ अने ३धर्म ए त्रण. अथवा जीव १, अजीव २, पुन्य ३, पाप ४, आश्रव ५, संवर ६, बंध ७, मोक्ष ८, अने निर्जरा ९. ए नव. बन्ने प्रकारना तत्त्वोना अवान्तर भेद सर्व जिनेश्वरोना शासनमां कांइ पण फेर फार विना सरखाज मनाय छे.