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________________ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. बारलाख सहस्र चौद, तुरिय आरो शेष । मुनिसुव्रत जब जनमिया, वीसम जिनवर ईश ॥ ११८ ॥ पांचलाख चोराणुं सहस, तुरिय आरक शेष । नमिजिन एकवीसमां, जन्म्या तेजधरेश ॥ ११९ ॥ पिचासी सहस शेषमें, नेमि जन्म परकाश । साढीतीनसो वरस शेष, पार्श्व जन्म उल्लास ॥ १२० ॥ वर्ष बहोतर नवासि पख शेष रहे चउ आर । वीरजिन त्रिशला नंदनो, थयो जन्म सुखकार ॥१२१॥ ३० जिनेश्वरोनां जन्मदेश ८८ [ द्वितीय ॥ १२२ ॥ पेला दूजा पांचमां, चोथा चौदम एह । कोशलदेशे ऊपना, कुणाल तीजा लेह पार्श्व सुपार्श्व काशीमां, छट्टानो वछ देश । चन्द्र वीर दो पूर्वना, शीतल मलय कहेस ॥ १२३ ॥ बारमा अंग तेरमा - पंचालदेशे जाण । शांति कुंथु अर कुरुदेश, सुव्रत मगध सुठाण ॥ १२४ ॥ मल्लि नमी विदेहना, नेमी कुशार्त्त देश । सुविधि श्रेयांस धर्मना, सूत्रे छे नहिं लेश ॥ १२५ ॥ ३१ जिनेश्वरोनी जन्मनगरीओ- इक्ष्वाकुभूमि अयोध्या, श्रावस्ति अयोध्या जान । अयोध्या कौशांबी अरु, वाराणसी शुभ ठान ॥ १२६ ॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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