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श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी.
[ चतुर्थ
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११६ जिनेश्वरोनी साध्वियोनी संख्या
लाख तीन साधवी, ऋषभजिदिने जोय । अजितादि लइने, श्रेयांस लग कहुं सोय ।। तिति छ पण चउ चउ, ति इर्ग एक ने एक । लाख - संख्या ऊपर, क्रमसे सहसनी पेख ॥ ३४७ ॥
तीस छत्तीस तीस, तीस वीस तीस जान । एंसी वीस षट् त्रण इग - वासुपूज्य लख मान । इग लाख ने आठसो, विमलनाथने होय । सहस बासठ अनंतने, सहस बासठ चारसो जोय ॥ ३४८ ॥ सहस इगसठ छेसो, एहीज सहस कर हीन । कुंथुने जाणो, अरथी सहस लहो चीन ॥
साठ पचावन पच्चा, इगतालिस चाली मान । अडतीस छत्तीसा, वीर परियंत बखान ॥ ३४९ ॥ सूरिराजेन्द्र जानो, साधवी संख्या सर्व । लाख चुम्माली, सहस छियाली पर्व ॥
शत चार छे अरु, ऊपर अधिकी मान । सर्व अंकी संख्या, मेलतां बहु गुणखान ॥ ३५० ॥
१ ऋण ऋण लख असि असि सहस, इग लख वीश हजार । इग लख षट् इग लख त्रि सहस, इग लख अडसय धार ॥ १ ॥ सुविधिजिनसुं अनंत लगण, समणीसंख्या जान । ए आयरिय मतान्तरे, कर लीजो परमान ॥ २ ॥