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सारांश २ उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. करनार होवाथी 'वर्द्धमान ' अन्तरंग शत्रुओ, दुष्टदेवो, अने भय भैरवोनो दमन करवाथी 'वीर' अने अनुकूल के प्रतिकूल महा उपसर्गोने सहनार होवाथी 'महावीर' नाम थयुं छे २४. ४५-४७ फणसंख्या, लक्षण अने गृहे ज्ञान
सुपार्श्वप्रभुने १।५।९ फण, पार्श्वप्रभुने ३ । ७।११, अने मतान्तरे १००० फण होय छे. प्रभुमाता स्वप्नमां उक्त फणवाला सर्पने जुवे छे तेथी तेमनी प्रतिमा ऊपर तेटला फणवाला सर्प बनाववानी मर्यादा चालु थई छे. सर्व जिनेश्वरोना शरीरमा एक हजार ने आठ शुभ लक्षण होय छे. अने पाछला भवथी लइ घरमां रहे त्यां सुधी १ मति, २ श्रुत, ३ अवधि, ए त्रण ज्ञान होय छे. दीक्षा लीधा पछी छमस्थ रहे त्यां लगण मनःपर्यव सहित चार ज्ञान समजवा. ४८ जिनवरोना शरीरनो वर्ण__ चन्द्रप्रभ अने सुविधिनाथना शरीरनुं 'श्वेतवर्ण' मल्लिनाथ अने पार्श्वनाथनुं नीलवर्ण, पद्मप्रभ अने वासुपूज्यनुं रक्तवर्ण, मुनिसुव्रत अने नेमिनाथनुं श्यामवर्ण, तथा शेष शोल जिनवर सुवर्णवर्णवाला जाणवा. ४९-५० रूप अने बलनी उत्कृष्टता. सर्वदेवो भेगा थइने अंगुष्ठ प्रमाण एक दिव्य रूप