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फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. १६३
आपजातनो तो कयों, अतिशय बल अभिमान ।
एज प्रतापे पामियो, बलहीण काया जान ॥११९॥ ५४ को स्वामी! श्या कर्मथी, बाल गूंगो जन थाय।
बोली को समझे नहीं, शुं कारण समझाय ॥१२०॥ खार सिंच्या छे बहु करी, नाख्या भाखसी मांय ।
एज प्रतापे थाय छ, कर्म मूके नहीं क्यांय ॥१२॥ ५५ को स्वामी! को जीवने, बहु व्याधि तो थाय ।
कया कर्म कीधां हशे, केजो प्रिय प्रभुराय ॥१२२॥ अनंत कायना अहार तो, कीधां पूर्वे जाण ।
एथी व्याधि ऊपजे, वारंवार प्रमाण ॥१२३॥ ५६ हास्य बहु आवे वली, रीत वगर आ वार ।।
कया करम कीधां थकी, ए फल प्रभु प्रियकार ॥१२४॥
हण्या असनिय जीवने, वली हणाव्या ज्यार । . एथी हांसी बहु हवी, कर्मज फल दातार ॥१२५॥ ५७ तप जनथी तो ना बने, कीधां केवा कर्म । - अति अंतराय पाडी छे, तपमां तेनो मर्म ॥१२६।। ५८ साधु साधवी ने नहीं, गमेज कोई जन्न ।
ए फल केवा कर्मथी, संभलायो शुभमन्न ॥१२७॥
मनुष्य पंचेन्द्री जीवनी, विराधना जब होय । - एथी प्रिय लागे नहीं, एवो करमी कोय ॥१२८॥ ५९ संसारी जीवने नहीं, गमेज कोई जन्न ।
ए फल केवा कर्मथी, संभलावो शुभतन्न ॥१२९॥