________________
१५० श्रीविंशतिविहरमानजिनचतुष्पदी. षष्ठ
श्रीमंधर श्रीसुजात सूरप्रभ चन्द्रबाहु, वीरसेन पांच पुंडरीकिनी वखानिये । ऋषभानन श्रीबाहु वज्रधर भुजंग ने, देवयशा नगरी सुसीमा मन आनिये ॥१४॥ दूजा युगमंधर ने स्वयंप्रभजी छट्ठा, विशाल ईश्वर महाभद्र तणा धाम की। नगरी विजया तथा पांच जिनराज तणी, एकहीज नगरी है वीतशोका नाम की । श्रीसुबाहु चन्द्रानन अनंतवीर्यने वली, नेमिप्रभ चार जिनराज अभिराम की । जिनजी अजितवीर्य विहरमानजी छेला, पांचुही की नगरी गिणाइ जन्म ठाम की ॥१५॥ ८-१२ विहरमान जिन तनुवर्णादि, ( हरीगीत-छंदमां) सुवर्ण वर्ण शरीर सुंदर वीसो श्रीविहरमान का, वीसों का आयु लख चोरासी पूर्व वचन प्रमाण का । है धनुष पांचसो शरीरमान समान भाष्यो सहु तणो, ज्ञानी मुनि दशलाख ने सामान्य शतकोटी गणो ॥१६॥
अन्त्यप्रशस्ती, राग धन्याश्रीगाया गाया श्रीजिनवर स्थानक गाया ॥ टेर ॥ जुजुआ जिनना जुजुआ स्थानक, शत पंचोतर गाया। विहरमानजिन वीशतणा वलि,रविस्थानक सह भायारे गा०१