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उल्लास]
श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ९७ जाव नमीनुं दश धनुष, नव कर पारसनाथ । सात हाथ श्रीवीरजिन, शरीरमान विख्यात ॥१९०॥ ५२ जिनेश्वरोनो आत्मांगुलथी देहमानदेहमान आत्मांगुले, इक शत वीस प्रमाण । सहु जिनपतिनो जानिये, न्यूनाधिक मत जाण ॥१९१॥ ५३ जिनेश्वरोर्नु प्रमाणांगुलथी देहमानउत्सेधांगुल प्रमाणसे, चार धनुष निरधार । धनुष अंश बारे कर्यां, अंश दो उपरि धार ॥ १९२ ।। दो अंश चउ धनुषनो, ऋषभर्नु अंगुल जाण । एहवा एकसो वीसनो, ऋषभ देह परिमाण ॥ १९३ ।। अंगुल वारे हीन कर, सुविधिजिन परियंत । जाव अंगुल चोवीसनु, देह सुविधिजिन मंत ॥ १९४ ॥ एक प्रमाणांगुल तणा, पचास भाग तो कीध । वीसभाग दो-अंगुला, अनंत लग हानि लीध ॥१९५॥ १ एकसो-आठ छिन्नुं वलि, चोरासि बहोतेर ।
साठ अडताली छत्तीस, अंगुल एम अवेर २-इगविस अंगुल तीशांश; उन्नीस ने दशांश ।
सोल ने चालीस अंश, वली चौद वीशांश ॥१॥ अंगुल बारह जानिये, अनंतजिन भगवान । शीतलथी अनंत लगे; प्रमाणांगुल ए मान ॥२॥