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________________ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [द्वितीयबारे अंगुल माहेसुं, इक दशांश कर हीन । धर्मजिनसु नेमि लगण, एहिज मारग चीन ॥१९६॥ अंश सगवीस पार्श्वनो, इगविस अंशनुं वीर । प्रमाणांगुले मान इम, गणि लीजे मन थीर ॥१९७॥ ५४ गृहवासमां अने दीक्षानन्तर आहार गृहवासे ऋषभेशने, उत्तरकुरु फलाऽऽहार । संयम में जिन शेषने, सदा अन्न आधार ॥ १९८ ॥ ५५ जिनेश्वरोनो कुमार-कालमानवीश अढारे पंचदश, साड़ि-बार दश जाण । सादी-सात पण अढि क्रमे, पूरव लाख वखाण ॥१९९॥ पचास पचीस पूरव सहस, वर्ष लाख इगवीस । अढारे पंदरे साढिसत, अढ़ी लाख जगदीश ॥ २०० ॥ सहस वर्ष पचवीस अरु, पौने चोवीसीश । इकवीश एकसो वत्सर, पिचोतरशत पचवीश ॥२०१॥ १-दशांगुले चालीस अंश, नवांगुल त्रिंशांश । अष्टांगुल विंशति अंश, सप्तांगुल दश अंश ॥१॥ अंगुल छ मल्लिजिनेश, पूरण करिने मान । चतुरंगुल चालीस अंश, व्यंगुल त्रिंशांशान ॥२॥ दो अंगुल वीश अंश, धर्मजिनसुं क्रम होय । नेमि परियंत जानिये, जैनागमथी जोय ॥३॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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