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उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ४४ जिनेश्वरोना लंछन
वृषभ गय हय पउम स्वस्तिक, शशी मकर महमहे । श्रीवच्छ खग्गि महिष सूकर, श्येन पवि मृग छगल हे ॥ नंदावर्त कलश ने कूर्म उत्पल, शंख सर्प सिंह क्रम हे । ऋषभादि जिनना चिह्न जाणो,सूरिराजेन्द्र इम कहे १७७ ४५ जिनेश्वरने फणनी संख्याइक पांच ने नव फण, सुपार्श्व जिनने राजे । सुमिणो शय्या में, दीठो माय तिण काजे ॥ तीन सात इग्यारे, पार्श्वने अहिफण मानो । फण सहस मतंतर, सूरिराजेन्द्र वरवानो ॥१७८ ॥ ४६-४८ जिनेश्वरोना लक्षण, ज्ञान अने वर्णलक्षण सहु जिनने, सहस इक अड जोय । जिन सर्व गृहवासे, गर्भे ज्ञान तिय होय ॥ चन्द्र सुविधि धोला, नीला मल्ली पास । पउम वासुपूज राता, नमतां पूरे आस ॥१७९ ॥ मुनिसुव्रत नेमी, श्याम वरण सुहाय । सोले सोवन वरणा, इम चोवीस कहाय ॥ सूत्र सिद्धान्तमें जोइ, बोले मुनीसर वाणी । सूरिराजेन्द्र दाखी, लीजे भवियण प्राणी ॥ १८० ॥